कुकड़ुकू - भाग 7 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 7

घर पर पहुंचने के बाद शिल्पा अपने गुड्डे से खेलने लगी। वो गुड्डा पाकर बहुत खुश थी। “पापा देखो, मेरा टेडी बियर कितना प्यारा है।” शिल्पा ने अपना टेडी बियर वाला गुड्डा अपने पापा को दिखा कर मुस्कुराते हुए कहा।

“अरे वाह, ये तो मैने देखा ही नहीं। ये तो सच मे बहुत प्यारा है।” शिल्पा के पापा ने उसका गुड्डा देख कर मुस्कुराते हुए कहा। इसके बाद वो घर के अंदर चला गए।

घर के अंदर जाकर शेखर जानकी के पास बैठ गया। “अरे जानकी, आज मेले मे क्या क्या देखा?” शेखर ने जानकी से इतना पूछा ही था की शिल्पा अंदर आकर बोली, “अरे पापा, आज हमने मेले मे बहुत कुछ देखा, पर सबसे ज्यादा मजा तो बड़े वाले झूले पर आया। और हां हमने बंदर वाला खेल भी देखा और कुल्फी भी खाई।”

“अरे वाह इतना कुछ देखा...! मैं तो कुछ देख ही नहीं पाया। दुकान से फुरसत ही नही मिली, पर कोई बात नही, आज कमाई अच्छी हो गई।” शेखर ने कहा और शिल्पा की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा।

“अजी मुंह हांथ धो लो, सुशील भईया के यहां जाना है या नही?” जानकी ने शेखर से कहा। जानकी की बात सुनकर शेखर ने कहा, “अरे इतनी जल्दी...! अभी अभी तो वो लोग घर पहुंचे हैं, इतनी जल्दी जाकर क्या करेंगे?”

शेखर की बात सुन जानकी बोली, “अरे आप कैसी बात कर रहे हो! शांति और सुशील भाई पराए थोड़ी ना हैं, और वैसे भी मेले से घर आने मे बहुत देर हो गई है, शांति बहन अकेले क्या क्या करेंगी? एक काम करते हैं, मैं वहां चली जाती हूं, शांति बहन का थोड़ा हांथ बटा दूंगी। आप और शिल्पा बाद मे आ जाना।” जानकी ने शेखर को समझाते हुए कहा।

“हां बोल तो तुम सही रही हो। ठीक है तुम जाओ, मैं और शिल्पा बाद मे आ जायेंगे।” शेखर ने जानकी से कहा। उसको भी जानकी की बात सही लगी। इसके बाद जानकी ने मेले से लाया सामान जमाया और शांति के घर जाने के लिए रवाना हो गई।

थोड़ी देर बाद जानकी, शांति के घर पहुंच गई। वहां पहुंचकर उसने देखा, शांति और सुशील दोनो बाहर आंगन मे बैठ कर खाना बना रहें हैं। शांति ने चूल्हे पर चावल चढ़ा रखा है, और सुशील मुर्गे का मीट धो रहा है।

“अरे यहां तो तैयारी शुरू भी हो गई।” जानकी ने शांति से कहा।

ये सुनते ही शांतिने जानकी की तरफ देखते हुए बोली, “अरे आओ जानकी बहन, आओ बैठो। आप अकेली आई हो ! शिल्पा और शेखर भईया नही आए?” शांति ने जानकी को अकेला देखा तो पूछा।

“अरे मैने सोचा चलकर थोड़ा हांथ बता दूं , इसलिए चली आई। एक काम करो, आंटा ले आओ, मैं रोटी बना देती हूं।” जानकी ने शांति से कहा। पर शांति को उनसे ये कराना सही नही लगा, उसने जानकी की तरफ देखा और कहा, “अरे आप कैसी बात कर रही हो जानकी बहन! आज आप हमारी मेहमान हो, हम आपसे काम कैसे करवा सकते हैं? आप आराम से बैठो।”

शांति की बात सुनकर जानकी का चेहरा उतर गया। उसने शांति के कंधे पर हांथ रखते हुए कहा, “मैं तो तुम्हे अपना परिवार समझती थी, पर तूने तो आज मुझे पराया बना दिया।”

“अरे जानकी बहन मेरे कहने का वो मतलब नहीं था, मैं तो बस..,” शांति का इतना कहना हुआ ही था की जानकी उसका चेहरा देखकर हंसने लगी। ये देख कर शांति को समझ नही आया की अचानक जानकी को क्या हो गया?

जानकी ने उसका हैरानी भरे भाव वाला चेहरा देखकर कहा, “अरे मैं मजाक कर रही थी। तेरा चेहरा तो देखने लायक था। चल अब बता मैं क्या करूं?”

जानकी को ऐसे हंसता देख कर, एक पल के लिए तो शांति घबरा ही गई थी। “अरे जानकी बहन, आपने तो डरा ही दिया था। आप एक काम करो, आप आंटा गूंध दो, तब तक मैं चूल्हे पर दाल चढ़ा देती हूं।” शांति ने जानकी से कहा।

कुछ देर बाद खाना तैयार हो गया। शेखर और शिल्पा भी तब तक वहां पर आ चुके थे। वहीं रघु ने अपने दोस्त मंगल को भी खाने पर बुलाया था। तीनों बच्चे एक तरफ बैठ कर खाना खा रहे थे और बड़े एक तरफ बैठ कर खाना खा रहे थे। सब लोग खाना खाते खाते आपस मे बातें कर रहे थे।

“अरे रघु तुझे पता है, गांव मे फुटबॉल टूर्नामेंट शुरू होने वाला है। आस पास के गांव की टीमे भी आएंगी, बहुत मजा आयेगा। और तुझे पता है, हमारे गांव की टीम भी खेलेगी। वो मेरे भैया की टीम है, मैं भी उसमे खेलने वाला हूं।” मंगल ने रघु से कहा और खाना खाने लगा।

“अरे यार ये तो मुझे पता ही नही था। तूने तो मुझे कभी बताया भी नही की तेरे भईया और तू गांव की फुटबॉल टीम मे हैं?” रघु ये पूछ कर मंगल की तरफ नाराजगी भरी नजरों से देखने लगा।

“अरे यार तू इतनी सी बात पर नाराज क्यों हो रहा है ! मुझे लगा तुझे पता होगा इसलिए मैने तुझे नही बताया। पर तू इस बात से नाराज क्यों हो रहा है, तुझे भी खेलना है क्या?” मंगल ने रघु से पूछा।

मंगल की बात सुनकर रघु बोला, “खेलने का तो बहुत मन है यार, पर तुझे तो पता है आज तक मैने कभी फुटबॉल नही खेला है, मैं तो बस रनिंग करने मे तेज हूं। और वैसे भी यार, गांव की फुटबॉल टीम मे तो बड़े बड़े लड़के हैं, वो लोग तो मुझे अपने साथ खिलाएंगे भी नही।”

“अरे यार तू उदास मत हो, अगर तुझे खेलना है तो मैं भईया से बात कर लूंगा। पर रघु याद रखना, फुटबॉल खेलने मे चोट लगती रहती है। इसलिए मैं तो यही बोलूंगा की तू फुटबॉल रहने दे। फालतू मे आगे जाकर अगर कभी बड़ी चोट लग गई तो दिक्कत हो जायेगी।” मंगल ने रघु को समझाते हुए कहा।

“अरे यार तू उसकी चिंता मत कर। तू बस तेरे भईया से बात कर लेना, और मुझे बताना उन्होंने क्या कहा।” रघु ने मंगल से ये कहा ही था की शिल्पा बीच मे आते हुए बोली, “मंगल तू रहने दे, ये कहां फुटबॉल खेलेगा!” इतना कहकर शिल्पा हंसने लगी।

रघु ने जैसे ही ये सुना, वो शिल्पा को घुरकर देखने लगा और गुस्से मे उससे बोला, “शिल्पा तुझे क्या लग रहा है ना की मैं फुटबॉल नही खेल सकता ! अब तू देख, मैं तुझे फुटबॉल खेलकर दिखाऊंगा।”

“हां..हां.. देखते हैं, तू फुटबॉल खेल भी पाता है या नही।” शिल्पा ने हंसते हुए रघु से कहा।

“हां हां देख लेना, अब मैं तुझे फुटबॉल खेलकर ही दिखाऊंगा।” इतना कहते हुए रघु खाना खाने लगा।