कुकड़ुकू - भाग 5 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 5

“रघु, आज स्कूल से आने मे इतनी देर क्यों हो गई?” रघु की मां ने रघु के देरी से घर पहुंचने पर पूछा।

“अरे मां, वो शिल्पा है ना, उसके कारण देरी हो गई। उसने मुझे आम तोड़ने के लिए रोक लिया था। जिद पकड़कर बैठी थी की आम खाना ही है, तो मुझे तोड़कर देना पड़ा।” रघु ने अपनी मां से कहा।

रघु की ये बात सुनकर शांति मुस्कुराने लगी और कहा, “अरे तुझे तो पता है ना की वो कितनी जिद्दी और नटखट है। चल छोड़, जाकर खाना खा ले। मैं तेरे पापा के लिए खाना लेकर जा रही हूं, शाम को लौटूंगी। मैने बकरियों को पेड़ से बांध दिया है, यहीं चरती रहेंगी। तू यहीं रहकर बकरियों का ध्यान रखना, और इधर उधर मत निकल जाना।” इतना कहकर शांति ने टिफिन लिया और खेतों की तरफ रवाना हो गई।

रघु ने खाना खाया और आंगन मे बैठकर पढ़ाई करते हुए बकरियों पर नजर रखने लगा। वो पढ़ाई कर ही रहा था की उसको कहीं से आवाज आई। मेला.. मेला.. मेला, जल्द ही गांव मे लगने वाला है मेला। आप सभी का स्वागत है मेले मे। ज्यादा से ज्यादा तादात मे आएं और मेले को सफल बनाये।

ये आवाज मेले का प्रचार कर रहे आदमी की थी। रघु मेले का सुनकर बहुत खुश हो गया, वो मेले का सोच कर मुस्कुरा रहा था की तभी मंगल उसके पास आकर खड़ा हो गया। “अरे रघु...! बहुत मुस्कुरा रहा है, क्या बात है?” मंगल ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“अरे भाई तूने सुना नही क्या! गांव मे मेला लगने वाला है। मैं बस यही सुनकर मुस्कुरा रहा था। मेले मे जायेंगे, खूब मजे करेंगे।” रघु ने मंगल की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।

जल्द ही वो दिन भी आ गया जब गांव मे मेला लगने वाला था। सभी लोग गांव मे मेला लगने की वजह से बहुत खुश थे। जो लोग बाजार वाले दिन खाने पीने की चीजों की दुकानें लगाते थे, उनके लिए ये कमाई का सुनेहरा मौका था। सब अपनी अपनी दुकानें मेले मे लगाने वाले थे। शेखर भी मेले मे नमकीन वागेरा की दुकान लगाने वाला था। वहीं दूसरी तरफ सुशील भी मुर्गा लड़ाई के लिए अपना मुर्गा लेकर मेले मे जाने वाला था। सभी लोगो के लिए ये मेला कमाई का अच्छा अवसर लेकर आया था।

सुबह सुबह शेखर अपनी ठेले वाली दुकान तैयार कर रहा था की तभी पीछे से आवाज आई, “चलिये शेखर भाई, मेले मे नही चलना क्या?”

शेखर ने जब पीछे मुड़कर देखा तो सुशील हाथ मे मुर्गा लिए उसकी तरफ चला आ रहा था। “अरे सुशील भाई, ये मुर्गा लेकर किधर चल दिए?” शेखर ने को देखकर मुस्कुराते हुए पूछा।

“अरे शेखर भाई आज मेले मे इसकी जंग है, इसलिए इसको तैयार करके ले जा रहा हूं।” सुशील ने शेखर से कहा।

“अच्छा तो आज मुर्गा लड़ाई के लिए जा रहे हो। पर अकेले अकेले जा रहे हो...? रघु और शांति भाभी नही दिख रहें?” शेखर ने सुशील से पूछा।

“अरे शेखर भाई, वो लोग तो दोपहर तक मेला घूमने आयेंगे, चलो हम चलते हैं। और हां... शिल्पा और जानकी भाभी कहां हैं? वो नही चलेंगे क्या?” सुशील ने शेखर की तरफ देखते हुए पूछा।

इतने मे जानकी बाहर आई तो देखा की शेखर और सुशील वहां खड़े बातें कर रहे हैं। “अरे सुशील भईया नमस्ते, मेला मे नही जा रहे हो क्या?” जानकी ने सुशील से पूछा।

“अरे जानकी भाभी मै तो मेले मे जाने के लिए ही निकला था, फिर मैंने सोचा की शेखर भाई से भी पूछ लूं की वो मेले मे चल रहें हैं या नही! यहां आया तो देखा शेखर भाई भी मेले मे जाने की तैयारी कर रहें हैं, अब हम दोनो साथ मे ही निकलेंगे। आप बताओ आप और शिल्पा नही चल रहे हो क्या?” सुशील ने जानकी से पूछा।

“अरे सुशील भईया, हम लोग इतनी जल्दी जाकर क्या करेंगे! आराम से दोपहर तक आयेंगे।” जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा।

जानकी की बात सुनकर सुशील ने उससे कहा, “अरे तो जानकी भाभी एक काम क्यों नही करते, रघु और शांति के साथ ही आ जाना, वो लोग भी दोपहर तक आने वाले हैं।”

“अरे ये तो बढ़िया हो गया, चलिए आप दोनो जाइये, हम सब साथ मे आ जायेंगे।” जानकी ने इतना कहा और घर के अंदर चली गई।

शेखर और सुशील, मेले मे जाने के लिए रवाना हो गए। मेला गांव के बाहर वाले मैदान मे लगा था। कुछ ही देर मे वो दोनो वहां पहुंच गए। शेखर ने एक अच्छी सी जगह देख कर अपना ठेला खड़ा कर दिया और दुकान का सामान जमाने लगा। सुशील भी जहां मुर्गा लड़ाई हो रही थी उधर चल पड़ा।

बहुत से दुकानदारों ने मेले मे अपनी अपनी दुकानें लगाई थी। किसी ने नाश्ते की तो किसी ने खिलौने की। मेले मे कोई बंदर का नाच दिखाने वाला था तो कोई रस्सी मे चलने वाला करतब दिखाने वाला था। मेले मे दुकानों के अलावा बहुत से झूले भी लगे हुए थे।

कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद सुशील ने देखा की एक जगह लोगो की बहुत भीड़ जमा है। उसने पास जाकर देखा तो वहां मुर्गा लड़ाई चल रही थी। “अरे भाई साहब, आप भी मुर्गा लड़ाने आए हो क्या?” एक आदमी ने सुशील के हाथ मे मुर्गा देख कर मुस्कुराते हुए पूछा।

“हां भाई साहब मैं भी किस्मत आजमाने आया हूं।” सुशील ने उस आदमी से कहा। इसके बाद सुशील भीड़ मे से होता हुआ आगे आया और एक आदमी से पूछा, “भाई साहब, ये मुर्गा लड़ने के लिए नाम कहां लिखवाना है?”

सुशील का सवाल सुन उस आदमी ने एक आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “भाई साहब, वो देखो, वो आदमी जो कुर्सी पर बैठा है ना, वही नाम लिख रहा है।”

सुशील उस कुर्सी पर बैठे आदमी के पास गया और बोला, “भाई साहब, मुझे भी नाम लिखवाना है।” उस आदमी ने उससे पचास रूपये लिए और उसका नाम लिख लिया।

थोड़ी ही देर के बाद सुशील का नंबर आ गया। उसने अपने मुर्गे को नीचे रखा और सामने वाले आदमी के मुर्गे की तरफ अपने मुर्गे का मुंह करके खड़ा कर दिया और मुर्गे को सहलाने लगा। जैसे ही खेल के निर्णायक ने सीटी बजाई, दोनो मुर्गों के बीच लड़ाई शुरू हो गई। दोनो मुर्गे एक दूसरे पर टूट पड़े। दोनो मुर्गे एक के बाद एक हमला कर रहे थे।

वहां मुर्गों की पढ़ाई देख रहे लोगों को तो यही लग रहा था की सामने वाले आदमी का मुर्गा जीत जायेगा, पर अचानक सुशील के मुर्गे ने उछल कर सामने वाले मुर्गे की गर्दन पर मार दिया। वो मुर्गा वहीं ढेर हो गया और सुशील का मुर्गा जीत गया। निर्णायक ने सुशील की जीत की घोसणा की और सुशील को दो हजार रूपये देते हुए पूछा, “क्या आप एक और लड़ाई करवाना चाहोगे?” सुशील ने हां मे जवाब दे दिया।

“अगली बाजी पांच हजार की है, खुलकर दाव लगाईये।” मुर्गा लड़ाई के निर्णायक ने लोग की तरफ देखते हुए कहा। फिर से सब लोग दोनो मुर्गों पर दाव लगाने लगे, और निर्णायक सबसे पैसे लेकर सबके नाम लिखने लगा। लोगो ने सुशील के मुर्गे को लड़ता हुआ देख लिया था, इसलिए आधे से ज्यादा लोगो ने सुशील के मुर्गे पर दाव लगाया। किसी ने पचास रूपये तो किसी ने सौ रूपये, तो किसी ने तो हजार रूपये लगा दिए सुशील के मुर्गे पर।

निर्णायक की सीटी के साथ दोनो मुर्गों मे लड़ाई शुरू हो गई। ये लड़ाई भी सुशील का मुर्गा जीत गया। लेकिन उसका मुर्गा अब घायल हो चुका था, इसलिए और नही लड़ सकता था। निर्णायक ने सुशील की अगली लड़ाई के लिए पूछा तो सुशील ने मना कर दिया। क्योंकि वो अच्छे से जानता था की अब उसका मुर्गा नही लड़ सकता। निर्णायक ने सुशील को इनामी राशि दी और साथ मे दोनो हारे हुए मुर्गे भी दे दिये। क्योंकि मुर्गा लड़ाई का नियम था, जिसका मुर्गा हारेगा उसे अपना मुर्गा विजेता को देना होगा। सुशील अब जीते हुए सात हजार रूपये और साथ में तीन मुर्गे लेकर मुस्कुराता हुआ शेखर की दुकान पर आ गया।

“अरे भाई सुशील...! जब गए थे तो तुम्हारे पास एक मुर्गा था, और अब तीन मुर्गे !” शेखर ने सुशील के हाथ मे तीन मुर्गे देखकर पूछा।

“अरे शेखर भाई, आज मेरा दिन अच्छा था, इसलिए दो लड़ाई जीत गया और साथ मे ये दो मुर्गे भी मिल गए।” सुशील ने मुस्कुराते हुए कहा।

“अरे तो फिर आज तो घर पर दावत होगी...!” शेखर ने मुस्कुराते हुए सुशील से कहा।

“अरे हां जरूर शेखर भाई, आज सबका खाना मेरे घर पर है, शाम को आप सबको हमारे यहां खाने पर आना है, भूलना मत।” सुशील ने मुस्कुराते हुए शेखर से कहा और फिर दोनो बातें करने लगे।