कुकड़ुकू - भाग 11 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कुकड़ुकू - भाग 11

अगले दिन रघु ने स्कूल में सबको अपने फुटबॉल टीम मे खेलने के बारे मे बता दिया। सब उसकी बात सुनकर बहुत खुश लग रहे थे। रघु का एक दोस्त आगे आया और कहा– “वाह यार रघु , पहले तुझे सब तेज दौड़ने की वजह से जानते थे, और अब तो तू फुटबॉल भी खेलने लगा है, अब तो और भी लोग तुझे जानने लगेंगे।” कहते हुए वो लड़का मुस्कुराने लगा।

रघु भी सबको खुदके बारे मे बता कर खुश था। इतने मे शिल्पा आई और रघु का हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गई। “ओए शिल्पा क्या कर रही है तू ! छोड़ मुझे।” रघु ने हाथ छुड़ाते हुए कहा।

“तू क्यों खुदके बारे मे ढिंढोरा पीटने मे लगा हुआ है ! पहले मैच वगैरा मे खेल तो सही, नही तो जो लोग अभी तेरी तारीफ कर रहें हैं, वही लोग तेरी बुराई करने और मजाक उड़ाने मे समय नहीं लगाएंगे। इसलिए पहले अच्छे से खेलना सिख और मैच मे अच्छा खेलकर दिखा, फिर देख लोग खुद तेरी तारीफ करेंगे, और अगर तू ऐसे ही खुदके बारे मे ढिंढोरा पिटता रहा और कल को अच्छा नहीं खेला तो लोग तेरा बहुत मजाक उड़ाएंगे, इसलिए पहले अच्छे से खेलना सिख।” शिल्पा ने रघु को समझाते हुए कहा।

रघु को भी शिल्पा की बात सही लगी। उसने शिल्पा की तरफ देखते हुए कहा– “तू सही बोल रही है यार, अब मैं खेलने मे अच्छे से ध्यान दूंगा, और जल्दी ही मैच मे अच्छा खेल कर दिखाऊंगा।” रघु की बात सुनकर शिल्पा मुस्कुराते हुए वहां से चली गई।

शिल्पा, रघु से कितना भी लड़े, उसको कितना भी परेशान करे, पर अगर दूसरा कोई रघु का मजाक उड़ाए या उसको परेशान करे तो शिल्पा को बिलकुल बरदास नही होता था, वो उनसे लड़ पड़ती थी।

एक दिन ऐसे ही कुछ लड़के मिलकर रघु का मजाक उड़ा रहे थे। रघु चुपचाप अपनी बेंच पर बैठकर उनकी बाते सुन रहा था। शिल्पा ने ये सब होते हुए देख लिया। वो उन लडको के पास गई और उनमें से एक लड़के को तमाचा मार दिया। रघु ने ये देखा तो जल्दी से बेंच से उठा और शिल्पा का हाथ पकड़ कर आगे वाली बेंच पर ले जाकर बैठा दिया।

“शांत हो जा, शांत हो जा भीम, इतना गुस्सा क्यों कर रही है, शांत हो जा।” रघु ने शिल्पा को शांत करवाते हुए कहा।

“तू छोड़ रघु , छोड़ मुझे, मैं इन सबका मुंह तोड़ दूंगी, इन लोगो को हिम्मत कैसे हुई तेरा मजाक उड़ाने की, छोड़ मुझे।” शिल्पा ने गुस्से से रघु से हाथ छुड़वाते हुए कहा।

“अरे अब शांत भी हो जा, कितना गुस्सा करती है।” रघु ने शिल्पा से कहा।

“रघु तूने मुझे रोका क्यों? तू नही रोकता तो अभी तक तो मैने उन सबका मुंह तोड़ दिया होता।” शिल्पा ने रघु से कहा। शिल्पा को ऐसे देख कर रघु मन ही मन सोचने लगा की हमेशा तो मुझे परेशान करती रहती है, और अगर दूसरा कोई मुझे परेशान करे तो उनसे लड़ने लगती है, ये लड़की तो मेरी समझ से बाहर है। कब क्या करेगी कोई नही कह सकता। रघु ये सोच ही रहा होता है की शिल्पा उसका कंधा पकड़कर हिलाने लगती है।

“ओए रघु , कौनसे खयालों में खोया हुआ है, सपनो की दुनिया से बाहर आजा।” शिल्पा ने रघु को पकड़ कर झंझोड़ते हुए कहा। इतने मे रघु का ध्यान टूटा और उसने हड़बड़ाते हुए कहा– “हां..हां क्या हुआ !” रघु के मुंह से ये सुनकर शिल्पा को हंसी आ गई।

“अरे तू कौनसी दुनिया मे खोया हुआ है ! चल स्कूल की छुट्टी हो गई है।” शिल्पा ने हंसते हुए कहा।

“अरे कुछ नही यार, बस यूं ही कुछ सोच रहा था।” इतना कहते हुए रघु ने अपना बैग उठाया और शिल्पा के साथ क्लास से बाहर आ गया।

“चाची बता रही थी की तू मैच खेलने के लिए दूसरे गांव जाने वाला है !” शिल्पा की ये बात सुनकर रघु ने कहा– “हां.. वो कल दिलीप भईया घर पर आए थे मम्मी पापा से बात करने के लिए। उन्होंने कहा की वो मुझे आज दूसरे गांव ले जायेंगे मैच खेलने के लिए। पहले तो ये बात सुनकर मैं बहुत खुश था, पर बाद मे मैने सोचा की अभी तो मुझे खेलना नही आता फिर वो मुझे अपने साथ क्यों ले जा रहे हैं ! फिर सुबह मैने मंगल से पूछा तो उसने बताया की नए खिलाड़ियों को खेल देख कर कुछ सीखने को मिले इसलिए मुझे भी साथ मे ले जा रहे हैं।”

रघु की बात सुनकर शिल्पा ने रघु की तरफ हैरानी से देखते हुए पूछा– “मतलब तू मैच नही खेलेगा?”

“अरे तू कैसी बात कर रही है, अभी मुझे टीम मे एक ही दिन तो हुआ है, और अभी तो मुझे खेलना भी नही आता है, ऐसे मे मै कैसे खेल सकता हूं। चल अब तू जा, मैं मंगल के साथ आ जाऊंगा।” रघु ने शिल्पा से कहा। फिर शिल्पा अपनी साइकिल से घर के लिए निकल गई। रघु भी थोड़ी देर बाद मंगल के साथ घर पहुंच गया।

“अच्छा रघु तू घर जा और खाना खा ले, उसके बाद कीट वगैरा पैक करके मेरे यहां आ जाना फिर हम भईया के साथ मैच खेलने जाने के लिए निकलेंगे।” मंगल ने रघु से कहा और अपने घर चला गया। कुछ देर बाद रघु भी अपने घर पहुंच गया और मुंह हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया।

“अरे रघु आराम से बेटा, इतनी भी क्या जल्दी है, खाना तो आराम से खा ले।” शांतिने रघु को जल्दबाजी मे खाना खाते देख कर कहा।

“अरे मां तुम्हे तो पता है की आज हम मैच खेलने के लिए दूसरे गांव जा रहें हैं।” रघु ने अपनी मां से कहा।

“अरे हां याद आया, पर बेटा खाना तो आराम से खा ले।” रघु की मां ने रघु से कहा। रघु ने खाना खाया और बैग पैक करने लगा। थोड़ी देर बाद उसने बैग पैक कर लिया और अपनी मां के पैर छुवे और मंगल के घर जाने के लिए निकल गया।

थोड़ी देर बाद रघु , मंगल के घर पहुंच गया। दोनो मैच खेलने जाने के लिए तैयार थे की तभी मंगल का बड़ा भाई दिलीप भी घर पर आ गया। दिलीप अपने लिए नए जूते लेने के लिए गया हुआ था। “चलो चलें।” दिलीप ने रघु और मंगल की तरफ देख कर कहा। दिलीप और मंगल ने हां मे सर हिलाया और दिलीप के पीछे बाइक पर बैठ गए।

बाकी के खिलाड़ी भी दिलीप के यहां आ चुके थे। सबने बाइक शुरू की और दिलीप के पीछे पीछे चल पड़े। जिस गांव मे वो लोग मैच खेलने जा रहें थे वो गांव ज्यादा दूर नहीं था। लगभग आधे घंटे मे ही वो लोग उस गांव मे पहुंच गए। उस गांव मे फुटबॉल मैच चल रहा था और आज के दिन दिलीप की टीम का मैच था। उन्होंने देखा की जिस टीम से उनका मैच है वो टीम किट अप होकर वॉर्म अप कर रहें हैं।