कुकड़ुकू - भाग 9 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 9

शेखर के घर पहुंचते देर नही हुई की शिल्पा ने उसके हाथ से सब्जी के झोले लिए और घर के अंदर चली गई। अंदर जाकर उसने झोला रखा और देखने लगी की उसके पापा क्या क्या लाएं हैं। उसने देखा की झोले मे एक छोटी थैली के अंदर समोसा, कचोरी और बाकी खाने की चीजें रखी हुई हैं। उसने आव देखा ना ताव, एक प्लेट मे एक समोसा, एक कचोरी और थोड़ी सी जलेबी लेकर खाने बैठ गई।
“अरे इसको देखो तो, ऐसा नहीं की पापा बाजार से आएं हैं तो उन्हें पानी वगेरा के बारे मे पूछे, ये तो सीधे खाने पर टूट पड़ी।” जानकी ने शेखर को शिल्पा की शिकायत करते हुए कहा।
“अरे खाने दो ना, वो नही खाएगी तो और कौन खाएगा ! तू खा बेटा.., मम्मी की बात पर ध्यान मत दे। ये बता तूने शक्कर पाला क्यों नही लिया?” शेखर ने मुस्कुराते हुए पूछा अपनी बेटी शिल्पा से पूछा।
अपने पापा की बात सुनते ही शिल्पा ने थैली मे देखा तो उसे शक्कर पाला भी मिल गया। उसने अपनी प्लेट मे थोड़ा शक्कर पाला भी निकल लिया और खाने लगी।

दूसरी तरफ सुशील भी अपने घर पहुंच चुका था। घर पहुंचने के बाद वो आंगन मे बैठ गया। उसने इधर उधर देखते हुए शांति से पूछा, “अरे शांति ! रघु कहां है ! कहीं दिख नहीं रहा?”
“अरे वो गाय चराने गया है।” शांति ने अपने पति सुशील से कहा।
“गाय चराने चला गया? मुझे तो लगा वो सुबह टमाटर तुड़वा के थक गया था इसलिए सो रहा होगा ! पर ये तो गाय चराने चला गया। मैं उसके लिए कुछ खाने को लेकर आया था। चलो कोई नही, शाम को वापस आकर खा लेगा।” सुशील ने अपनी पत्नी शांति से कहा, और फिर सब्जियों का झोला घर के अंदर रखने के बाद मुंह हाथ धोने लगा। सुशील मुंह हांथ धो रहा था तब तक शांति ने उसके लिए खाना निकाल दिया था। सुशील ने खाना खाया और फिर दोनो बैठ कर बातें करने लगें।

थोड़ी देर के बाद रघु भी गाय चराकर घर वापस आ गया। उसने देखा की उसके मम्मी पापा आंगन मे बैठे हुए हैं। वो अपने पाप के पास आया और मुस्कुराते हुए उनसे पूछा, “पापा बाजार से मेरे लिए क्या लाए?”
रघु से ये सुनकर सुशील ने झोले की तरफ इशारा करते हुए कहा, “वो झोले मे देख, उसमे तेरे लिए कुछ है।” ये सुनते ही रघु ने झोले मे देखा तो उसमे एक छोटी थैली थी, जिसमे खाने के लिए शक्कर पाला, जलेबी, समोसा, और कचोरी रखी हुई थी। उसने थैली खोली और अपने मम्मी पापा की तरफ देखते हुए पूछा, “मम्मी... पापा... आपके लिए भी समोसा, कचोरी निकालकर लाऊं क्या?”
रघु की बात सुनकर उसकी मां शांति ने कहा, “प्लेट मे निकल कर ले आ।”
“जी मां” कहते हुए रघु तीनों के लिए सभी चीज प्लेट मे रख कर ले आया , उसके बाद तीनो साथ मे बैठ कर समोसे और कचौरियां खाने लगे।

दूसरी तरफ मंगल ने अपने बड़े भईया दिलीप से रघु के लिए बात कर ली थी। उसके बड़े भाई ने उसे अगले दिन रघु को मैदान पर लाने के लिए बोल दिया। मंगल ये बात बताने के लिए रघु के घर आया, और साथ मे उसके लिए अपने फुटबॉल खेलने वाले जूते भी ले आया।
“अरे बेटा मंगल तू यहां? रघु जा अंदर से एक प्लेट लेकर आजा।” शांति ने रघु से कहा ही था की तभी उसकी नजर मंगल के हांथ मे पकड़े जूतों की तरफ गई। उसने के हांथ मे उन जूतों को देखते हुए पूछा, अरे बेटा मंगल ! इस समय ये जूते लेकर कहां जा रहा है?”
“अरे चाची मै ये जूते रघु के लिए लेकर आया हूं। उसने बोला था की उसको फुटबॉल खेलना है, इसलिए मैने भईया से बात की तो उन्होंने कल उसको मैदान पर बुलाया है। रघु अपने घर वाले जूतों से तो फुटबॉल नही खेल पाएगा, इसलिए मैं उसके लिए ये फुटबॉल खेलने वाले जूते लेकर आया हूं।” मंगल ने रघु की मम्मी से कहा।

शांतिऔर मंगल बात कर ही रहे थे की रघु एक प्लेट लेकर आ गया, और उसने प्लेट मे समोसा और जलेबी निकाल कर रखा और मंगल की तरफ बढ़ा दिया। मंगल ने प्लेट ली और समोसा खाने लगा।

इतने में रघु की नजर उसके पास मे रखे जूतों पर पड़ी। “अरे मंगल, ये फुटबॉल खेलने वाले जूते लेकर कहां जा रहा है?” रघु ने मंगल से पूछा। “अरे भाई मै ये जूते तेरे लिए लाया हूं। कल भईया ने तुझे मैदान पर बुलाया है। तू ये जूते पहन कर आना।” मंगल ने रघु से कहा।

रघु ने जब ये सुना तो खुशी के मारे उछल पड़ा और मंगल से जूते ले लिए। इसके बाद रघु ने मंगल को शुक्रिया कहा और फिर मुस्कुराते हुए पूछा, “तू भी मेरे साथ चलेगा ना?”
रघु के मुंह से ये सुनकर मंगल ने मुस्कुराते हुए कहा, “अरे हां मैं भी तेरे साथ चलूंगा, पर मैं मैदान के बाहर खड़े रहकर देखूंगा।”
मंगल की बात सुनकर रघु ने उसकी तरफ हैरानी भरी नजरों से देखते हुए कहा, “अरे यार मुझे लगा तू भी मेरे साथ फुटबॉल खेलेगा, पर तू तो बाहर खड़े रहकर खेल देखने की बात कर रहा है।”

मंगल ने रघु की ये बात सुनकर मुस्कुराते हुए कहा, “अरे यार तू तो अभी से घबरा रहा है। ऐसे घबराएगा तो फुटबॉल कैसे खेलेगा? तू चिंता मत कर, भईया तुझे सिखाएंगे।” इतना कहकर मंगल जलेबी खाने लगा। थोड़ी देर बाद मंगल अपने घर चला गया।

अगले दिन रघु स्कूल से घर आकर मैदान पर जाने के लिए तैयार होने लगा। जूते, टीशर्ट और निक्कर पहनकर मैदान जाने के लिए निकल गया। मैदान पहुंचकर उसने देखा की बहुत से बड़े बड़े लड़के किट अप होकर खड़े हैं और कुछ छोटे लड़के एक तरफ बैठे हुए हैं। रघु इधर उधर देख ही रहा था की उसको कहीं से आवाज आई– “रघु.., आजा इधर"। रघु ने देखा तो मंगल के भईया उसे बुला रहे थे। रघु भागता हुआ उनके पास गया। “रघु... अभी हम खेलना शुरू करेंगे, वहां देख वो बच्चे दिख रहें हैं ना, उनके साथ वॉर्म अप कर ले, फिर हम दो टीम बनाकर प्रैक्टिस करेंगे।

रघु उन बच्चों के पास गया और उनके साथ वॉर्म अप करने लगा। वो बच्चे भी लगभग उसी की उमर के थे। कुछ देर वॉर्म अप करने के बाद खिलाड़ियों की दो टीम बनी। रघु को दिलीप ने अपनी टीम मे ले लिया। वो देखना चाहता था की रघु को फुटबॉल खेलना आता है या नही। खेल शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही दिलीप को पता चल गया की रघु को बिलकुल फुटबॉल खेलना नही आता, पर उसे दौड़ने की तेजी देखकर वो हैरान था।

खेल लगभग एक घंटे चला, फिर सब आराम करने के लिए एक जगह एक गोला बनाकर बैठ गए। रघु की तेजी देखकर दिलीप जितना हैरान था, बाकी खिलाड़ी भी उसी की तरह हैरान थे। वो सभी रघु की तारीफ करने लगे। दिलीप ने रघु को अपने पास बुलाया और कहा–“रघु अगर तुझे फुटबॉल खेलना सीखना है, तो रोज प्रैक्टिस पर आना होगा, और शाम को घर पर आ कर शीन पैड और मोजे ले लेना। उससे तुम्हारे पैर सेफ रहेंगे, और हां ये मंगल की किट तू रख ले, मैं उसको दूसरी किट दिला दूंगा। अभी तू घर जा, शाम को मेरे घर पर आ जाना।” दिलीप ने रघु से कहा और अपने घर को रवाना हो गया।

Story to be continued.....
Next chapter will be coming soon.....