दंगा Arjit Mishra द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दंगा

बात बहुत पुरानी है किन्तु आज भी प्रासंगिक है और शायद आज जो देश का  माहौल है इसमें इस कहानी का ज़िक्र आवश्यक है|

उन दिनों हमारा छोटा सा शहर धार्मिक दंगों की आग में जल रहा था| चूँकि दंगों का असर शहर के पुराने हिस्से में अधिक था जहाँ हिन्दू-मुस्लिम आबादी लगभग समान अनुपात में ही थी  और मैं  शहर के नए हिस्से में और ऊपर से हिन्दू बहुल क्षेत्र में था तो अपनी सुरक्षा को लेकर निश्चिंत था| शाम के समय मोटरसाइकिल से आसपास घूमने निकला तो सोंचा पेट्रोल भी डला लूँ|

अब पेट्रोल पंप किसका है ये किसको पता होता है और उससे फर्क भी क्या पड़ता है| मेरी बाइक में पेट्रोल पड़ ही रहा था कि अचानक एक उग्र भीड़ ने पेट्रोल पंप पर हमला कर दिया| वहां के कर्मचारी जान बचाने के लिए सब कुछ  वैसे ही छोड़कर दीवार कूद कर दूसरी तरफ भाग गए| मैं भी जल्दी से अपनी बाइक की टंकी का ढक्कन बंद कर वहां से जान बचाकर  निकल ही रहा था कि मेरी नज़र पेट्रोल पंप के मैनेजर शोएब पर पड़ी, वो एक बड़े से बैग में शायद तिज़ोरी का सारा कैश भरकर एयर टैंक के पीछे छुपने की कोशिश कर रहा था| शोएब मेरा दोस्त नहीं था न कोई ख़ास जान पहचान ही थी बस घर के नज़दीक का पेट्रोल पंप था हमेशा वहीँ पेट्रोल भरवाते थे तो बस उसको जानते थे|

मुझे नहीं पता कि वो पेट्रोल पंप का सारा कैश लेकर भाग जाना चाहता था या अपने मालिक के पैसे के साथ ही अपनी भी जिंदगी बचाने कि कोशिश कर रहा था| परन्तु उस समय मुझे उसकी स्वामिभक्ति ने प्रभावित किया और पता नहीं कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गयी कि एयर टैंक के पास से गुज़रते हुए मैंने बिना उस ओर देखे बोला “भाई, यहाँ नहीं बचोगे| दीवार कूदकर पीछे कच्चे रास्ते पर मिलो|”

कच्चे रास्ते से उसको बाइक पर पीछे बैठाने के बाद मैंने बाइक शहर के बाहर हाईवे की तरफ भगा दी| हल्का अँधेरा हो रहा था और हम बिना पीछे देखे बस भागते जा रहे थे| अब मुझे थोड़ा थोड़ा डर भी लग हा था, सोंचने लगा कि अगर किसी भीड़ ने आगे बाइक रोक ली तो अगर मुस्लिम भीड़ हुई तो मैं तो हिन्दू हूँ, गर्दन काट ही देंगे और अगर हिन्दू भीड़ हुई तो एक मुस्लिम को बचाकर ले जा रहा वो भी गर्दन काट देंगे| और इससे भी बड़ा डर ये कि दंगों के समय में जोश में आकर एक मुस्लिम को बाइक के पीछे बैठाकर लिए तो जा रहे, अगर उसी ने पीछे से गर्दन काट दी तो|

ये सब सोंचते सोंचते शहर से करीब दस किलोमीटर बाहर आकर एक कस्बे के बस स्टैंड पर बाइक रोकी| बाइक से उतर कर मैंने शोएब को बोला “भाई, अब आप सेफ हो, आपको जहाँ भी जाना हो, यहाँ से आपको सवारी मिल जायेगी”| शोएब ने मुझे गले लगाया और शुक्रिया कहा फिर  अपने बैग से कुछ रुपयों कि गड्डीयाँ निकाली और मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोला “ भाई, ज़िन्दगी बचाने का कोई मोल तो नहीं पर आप ये दस लाख रख लीजिये, मैं मालिक को बोल दूंगा कि दंगाई लूट ले गए”| कुछ पल के लिए तो मुझे भी समझ न आया कि क्या करूँ| फिर मैंने उससे बोला “ शोएब भाई, मुझे आपके पैसे नहीं चाहिए, बस ये वादा करिए कि जीवन में कभी ऐसे हालत दुबारा हुए और आप मेरी जगह हुए तो किसी की जान बचा लीजियेगा”||