पागल - भाग 48 Kamini Trivedi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 5

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –लेकिन...

  • इंटरनेट वाला लव - 91

    हा हा अब जाओ और थोड़ा अच्छे से वक्त बिता लो क्यू की फिर तो त...

  • अपराध ही अपराध - भाग 6

    अध्याय 6   “ ब्रदर फिर भी 3 लाख रुपए ‘टू मच...

  • आखेट महल - 7

    छ:शंभूसिंह के साथ गौरांबर उस दिन उसके गाँव में क्या आया, उसक...

  • Nafrat e Ishq - Part 7

    तीन दिन बीत चुके थे, लेकिन मनोज और आदित्य की चोटों की कसक अब...

श्रेणी
शेयर करे

पागल - भाग 48

भाग –४८
जीजू और मिहिर अब अपने होटल में आकर लेट जाते है। मगर दोनों को ही नींद नहीं आती । उन्हे मेरा व्यवहार काफी अलग लगा । वो जिस कीर्ति को जानते थे मैं अब वो नही रही।
कितना कुछ सहा होगा कीर्ति ने भी इसलिए आज वो ऐसी है। यही सब सोचते हुए उन लोगों को थकान से नींद आ गई।

इधर मैंने उन लोगों को पीठ इसलिए दिखाई थी क्योंकि मैं रोने लगी थी और मैं अपने आंसुओ को जीजू और मिहिर को नही दिखाना चाहती थी। पलट कर मैने कठोरता से अभिषेक से उन्हे भेजने को कहा । इन दोनों के जाने के बाद मेरा रो रो कर बुरा हाल था । अभिषेक ने मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मैं उससे लिपट कर रोने लगी।
"किस्मत मुझसे क्या चाहती है अभी? जैसे तैसे मैने जिंदगी की जंग लड़ी। बड़े मुश्किल हालातों में दर बदर में भटक रही थी मुझे आज भी वो दिन। याद आता है तो तड़प जाती हूं।"
कहते हुए मैं उन पुराने दिन को याद करने लगी।

फ्लैशबैक
मैं राजीव का घर छोड़कर पहले तो सीधा मरने के लिए गई । रेलवे स्टेशन गई और खुद को किसी ट्रेन के आगे फेंक देने का सोच रही थी। तभी मेरे सामने बनारस की ट्रेन आई । ना जाने क्यों मेरा मन बदला और मैं बनारस की ट्रेन में बैठ गई ।
ट्रेन में बैठने के कुछ देर बाद ही बाथरूम की और से एक शख्स अपने हाथों को रुमाल से पोछते हुए वापिस अपनी जगह आया तो उसने पाया कि मैं उसकी सीट पर बैठी हूं।

मैं अपने घुटनों में मुंह दबाए बैठी थी।खुद में ही सिमटी हुई।
उसने मुझ से कहा
"माफ कीजिए आप मेरी सीट पर बैठी है।"
मैं ने आवाज की और देखना तो चाहा लेकिन वैसी ही बैठी रही।
"एक्सक्यूज मी" उसने दोबारा कहा
मगर मैं टस से मस नहीं हुई। मैं अपना रोता हुआ मुंह उसे नही दिखाना चाहती थी।
आखिरकार उस आदमी ने सामने वाली सीट पर बैठने को खुद को समझा ही लिया। बोगी में अभी सारी सीटें खाली थी । मैं उस शख्स के साथ अकेली थी।शायद आगे कोई यात्री आ जाए । तब वो आदमी मुझ से सीट मांग लेगा ये सोचकर वह खाली सीट पर बैठ गया।
ट्रेन चल पड़ी थी , वह काफी देर तक मुझ को देखे जा रहा था । आधे घंटे से ज्यादा हो चुका था मगर मै अपना मुंह अपने घुटनों के बीच दबाए हुए थी। अब उस आदमी की बैचेनी बढ़ गई थी। मगर वो एक लड़की से बात करने में थोड़ा हिचकिचा भी रहा था। ऊपर से मेरा ये अजीब व्यवहार उसे मुझ से बात करने की इजाजत नहीं दे रहा था।

इतने में टिकट चेकर आया । उसने उस आदमी से टिकट की मांग की। उसने अपनी टिकट दिखा दी। फिर वह मेरी और मुड़ा।
"मैडम टिकट प्लीज" मैंने अपना मुंह ऊपर किया ।
"मेरी आंखे लाल थी, बिखरे बाल थे नाक से भी पानी निकल रहा था। ,"वो आदमी मुझे देखता ही रह गया । इतनी बुरी हालत में होने के बाद भी उसे मैं बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। अपलक वह मुझे देखे जा रहा था।

उसे अपने आसपास की कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही थी।
"मैने कहा ना टिकट नहीं है तो उतरिए ट्रेन से या जुर्माना भरिए " टीसी के चिल्लाने से अचानक वो आदमी होश में आया ।
"पैसे नही है मेरे पास" मैं ने फिर कहा
"सर सर,, आप एक काम कीजिए , इनका टिकट बनाइए , मैं पैसे देता हूं" उस आदमी ने टीसी से कहा
"सर आप जानते नही ऐसे लोगो को मुफ्त में ट्रेन का सफर करने बैठ जाते है और ऐसे ही मासूम बनते है।" टीसी ने उस आदमी से कहा ।

"सर प्लीज, लगता है परेशान है , आप प्लीज टिकट बनाइए"
"मैडम कहां जाना है आपको?"
"काशी"
टीसी ने टिकट बनाई और उसे दे दी।
"आइंदा कभी ऐसे सफर करती दिखी तो सीधा जेल भिजवाऊंगा" टीसी बड़बड़ाया और चला गया।
"थैंक यू " मैंने अपने आंसू पोंछे और अपने घुटनों को नीचे करते हुए उस आदमी से कहा।
"क्या मैं जान सकता हूं आप इस तरह बिना टिकट इस हालत में कहां और क्यों जा रही है?"
"वो ,,, वो ,, मैं ,, हां ,, मेरी मासी की तबीयत खराब है वो काशी में रहती है । मैं उनसे बहुत प्यार करती हूं उन्हे कुछ हो ना जाए इसलिए रो रही थी। मुझे बस उनके पास जाना था , मैं अपने घर पर ही पर्स और मोबाइल भूल गई हूं"
मैं उसे अपने बारे में नही बताना चाहती थी।मैं नही चाहती थी कि मेरी मजबूरी का कोई फायदा उठाए और आखिर मैं इस आदमी को जानती ही कितना थी।
वो आदमी भी जानता था कि मैं झूठ बोल रही हूं मगर वो क्या कर सकता था,
"नही बताना है तो कोई बात नही " वो मन ही मन बुदबुदाया ।
"वैसे मैं आपका नाम जान सकता हु?"
"जी कीर्ति नाम है मेरा और आपका ?" मैंने पूछा
"अभिषेक राणा "
उसका नाम सुनने के बाद उस बोगी में खामोशी छा गई। कुछ देर बाद अभिषेक उसके लिए और मेरे लिए खाने को कुछ लेकर आया। मुझे बहुत भूख लगी थी। मैं बिल्कुल एक भूखे बिल्ले की तरह खाने पर झपट पड़ी और जल्दी जल्दी उसे खाने लगी।

मुझे ऐसे देख अभिषेक को मुझ पर बहुत दया आ रही थी। साथ ही साथ वह मेरी खूबसूरती पर मोहित हो गया था।मेरी गौरी त्वचा, गहरी भूरी आंखें, बिखरे रेशमी बाल, उसे देख कर लग रहा था की मैं किसी अच्छे घर से हूं ।ये गलत भी नहीं था । मगर इस हालत में क्यों? अभिषेक को अब मेरे बारे में सबकुछ जानने की उत्सुकता थी।

कौन था ये अभिषेक ? क्या ये वही था जो कीर्ति का पति है? या ये शख्स कोई और अभिषेक था ? कहानी आपको कैसी लग रही है जरूर बताइएगा ।