“देखो, हमें दोनों पहलुओं पर गौर करना चाहिए।
हो सकता है कि प्रीति सच में दिल्ली केवल अपने माता-पिता से मिलने आती हो, और हो सकता है कि शरद ने सिर्फ नीलम की मदद की हो। उसके पीछे कोई और वजह ना हो।” गौतम ने गुत्थी को थोड़ा सुलझाने की कोशिश की।
“हाँ, पर इसका उल्टा भी हो सकता है। तो, एक काम करते हैं, कविता तुम बैंगलुरू चली जाओ। प्रीति से मिलकर आओ। शायद सच्चाई पता चल जाए।” विक्रम बोला।
“अमोल से ही पूछताछ कर लेते हैं ना, मेरे बैंगलुरू जाने से क्या होगा?” कविता ने कहा।
“नहीं-नहीं, अमोल से नहीं। वो हमें गोल-गोल घुमा देगा। प्रीति आसान टारगेट है। भोली है, शायद सच्चाई निकल जाए उसके मुँह से। और मैं शरद से पूछताछ करूंगा।” विक्रम ने कहा।
“ठीक है जैसे तुम्हें ठीक लगे। टिकट बुक कर दो।” कविता बोली।
“तुम कब वापस जा रहे हो गौतम?” विक्रम ने पूछा।
“कल दोपहर की फ्लाइट से।”
“बस तो कविता को भी साथ ले जाओ। कौन सी एयरलाइंस है। मैं अभी टिकट बुक कराता हूँ।” विक्रम ने कहा।
“चलो मैं पैकिंग कर लेती हूँ। बाय गौतम, एयरपोर्ट पर मिलते हैं।” ये कह कविता उठकर अपने कमरे में चली गई।
गौतम और विक्रम ने मिलकर टिकट बुक की और फिर गौतम अपने गेस्ट हाउस के लिए निकल गया।
विक्रम कमरे में आया तो देखा पलंग पर कपड़े बिखरे पड़े थे और कविता खिड़की के पास खड़ी होकर कुछ गहन चिंतन में थी। विक्रम ने चुपके से जाकर उसे पीछे से अपनी बाहों में भर लिया। और उसके होंठों की लाली को और लाल करते हुए बोला, “क्या बात है जान! क्या सोच रही हो?”
कविता ने गीली आँखों से विक्रम की तरफ देखा और बोली, “सोच रही हूँ कि क्या हर आदमी की फितरत होती है अपनी पत्नी पर शक करना?”
“अरे! क्या हुआ जानेमन, ऐसे क्यों बोल रही हो?” विक्रम ने अपने होंठ उसके होंठों के करीब लाते हुए कहा। तो कविता ने अपनी उंगलियों को उसके और अपने होंठों के बीच में रख उसे दूर कर दिया और पैकिंग करने लगी।
“क्या हुआ है कवि? क्यों नाराज़ हो?”
“जैसे तुम्हें पता ही नहीं!”
“नहीं पता, इसलिए तो पूछ रहा हूँ। अच्छा इसलिए नाराज़ हो क्योंकि मैंने तुम्हें प्रीति से जाकर मिलने को कह दिया? अब यार! एक औरत ही दूसरी औरत को अपने दिल की गहराई समझा सकती है ना। मुझे थोड़ा ही वो अपने मन की बात बताएगी।”
“उफ्फ! ये बात नहीं है। वो तो मैं भी जानती हूँ कि प्रीति से मिलने मुझे ही जाना होगा।”
“तो और क्या बात है?”
कविता चुपचाप अपने कपड़े अटैची में डालती रही।
“कवि! बोलो ना क्या हुआ?”
“तुम मुझे गौतम के साथ क्यों भेज रहे हो? तुम्हें मुझपर यकीन नहीं है या गौतम पर शक है?” कविता ने अटैची को तेज़ी से बंद करते हुए कहा।
विक्रम कुछ देर खड़ा हो कविता को देखता रहा। फिर हल्की सी मुस्कान उसके चेहरे पर खिली गई। उसने कविता को अपनी तरफ खींचा और उसके चेहरे को अपनी हथेली में समाते हुए बोला,
“मैं, तुम पर, अपनी कवि पर शक करुंगा? तुमने सोचा भी कैसे?”
“तो गौतम के साथ क्यों भेज रहे हो?” कविता ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा।
“वो बैंगलुरू ही तो जा रहा है, तो इसलिए उसके साथ भेज रहा हूँ। सफर में तुम्हें बोरियत नहीं होगी और गौतम के साथ तुम केस को और डीटेल में डिस्कस कर पाओगी। बस इसलिए।”
“विक्की, सच में यही बात है ना? तुम्हें मेरी तुम्हारे प्रति वफादारी पर शक तो नहीं है ना?”
विक्रम की आँखों में प्यार छलक उठा। उसने कविता को अपने आगोश में भरते हुए कहा,
“कवि! तुमपर शक करुँगा तो ये तुम्हारे प्यार की तौहीन होगी। मैं जानता हूँ कि इन आँखों में सिर्फ मैं बसता हूँ। जानती हो, जब तुम किसी पार्टी में किसी और के साथ डांस कर रही होती हो तो भी तुम्हारी ये नज़रें मुझे ही देख रहीं होती हैं। तुम्हारी सांसें सिर्फ मेरे लिए आहें भरती हैं। क्योंकि जब तुम मेरे बहुत करीब होती हो तो मुझे उनमें केवल अपने होने का एहसास होता है। और तुम्हारा ये दिल सिर्फ मेरे लिए धड़कता है, क्योंकि जब हम दोनों प्यार करते हैं तो तुम्हारे दिल से सिर्फ मेरी ही आवाज़ सुनाई देती है। तुम सिर्फ मेरी हो, ये मैं जानता हूंँ। तो शक कैसा कवि!”
कविता की आँखों से आँसू बह निकले। उसने अपने आपको विक्रम की बाहों में और कस दिया। विक्रम ने उसे चूमते हुए कहा, “दोबारा ऐसी बात ना कभी करना और ना सोचना।”
कविता ने विक्रम की आँखों में झांकते हुए कहा,
“आई लव यू जान!”
और दोनों एक दूसरे में खो गए।
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एयर इंडिया फ्लाइट
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“गौतम एक बात पूछूं तुमसे?”
“हाँ पूछो”
“तुम्हारे और नंदनी के बीच तो सब सही चल रहा है ना? मतलब…”
गौतम ने धीरे से हँसते हुए कहा, “ये सब तुम क्यों पूछ रही हो?”
“गौतम मेरी बात को अन्यथा मत लेना, पर तुम्हारा मुझे देखकर यूँ असहज हो जाना, थोड़ा अजीब लगता है इसलिए।”
“कविता, मेरे और नंदनी के बीच सब ठीक है। और रही बात असहज होने की, तो उसके लिए तुम्हारे शैतान पति को थैंक्स करना चाहिए। वो हमेशा ऐसा कुछ कह देता है कि सामने वाला असहज ही हो जाएगा। पता है, जब कॉलेज खत्म होने के बाद उसको पता चला था कि मैं साइलेंटली तुम्हें….तो पता है उसने क्या कहा था? उसने कहा था कि देखना बेटा, ये साइलेंट लव तुझे बहुत मंहगा पड़ेगा। अब तेरी गर्दन मेरे हाथ में है।” गौतम ने हँसते हुए कहा।
“विक्रम भी बहुत मस्तीखोर हैं।”
“और इस वजह से मैंने नंदनी को पहले ही सब कुछ बता दिया था। इस पाजी का कोई भरोसा नहीं है। पर कविता, विक्रम तुम्हें बहुत प्यार करता है, तुम्हारी बहुत रिस्पेक्ट करता है। और वो जानता है कि तुम सिर्फ और सिर्फ उससे प्यार करती हो। इसलिए कभी उसपर गुस्सा मत होना।” गौतम ने मुस्कुराते हुए कहा।
कविता मुस्कुरा दी और बाहर बादलों को उड़ते देखने लगी। उन शीतल, निर्मल बादलों के बीच उसे विक्रम का मुस्कुराता चेहरा दिखाई दिया। एक मीठी सी लहर उसके शरीर में दौड़ गई। और उसके होंठों पर विक्रम के साथ बिताए खूबसूरत लम्हों को याद कर एक मुस्कान उभर आई।
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बैंगलुरू एयरपोर्ट
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“मैं चलती हूँ गौतम, कल प्रीति के घर उससे मिलने जाऊंगी।” कविता अपना सामान उठाते हुए बोली।
“ओहो! मैडम! कहां चलती हूँ! आप मेरे साथ मेरे घर पर रुकेंगी। नंदनी को पता चला ना कि तुम आई हुई हो और मैं तुम्हें घर लाने की जगह होटल छोड़ कर आया हूँ तो वो मेरा खून कर देगी। चलो घर।” गौतम बोला।
“गौतम, तुम्हारे माता-पिता भी तो हैं साथ में, वो क्या सोचेंगे?”
“कविता, माना वो तुमसे कभी मिले नहीं पर तुम्हारी और विक्रम से मेरी दोस्ती कितनी गहरी है, ये जानते हैं वो। चलो अब, कोई और बहाना नहीं।”
दोनों एयरपोर्ट से गौतम के घर के लिए चल पड़ते हैं।
क्रमशः
आस्था सिंघल