ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 5 astha singhal द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • You Are My Choice - 41

    श्रेया अपने दोनो हाथों से आकाश का हाथ कसके पकड़कर सो रही थी।...

  • Podcast mein Comedy

    1.       Carryminati podcastकैरी     तो कैसे है आप लोग चलो श...

  • जिंदगी के रंग हजार - 16

    कोई न कोई ऐसा ही कारनामा करता रहता था।और अटक लड़ाई मोल लेना उ...

  • I Hate Love - 7

     जानवी की भी अब उठ कर वहां से जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी,...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 48

    पिछले भाग में हम ने देखा कि लूना के कातिल पिता का किसी ने बह...

श्रेणी
शेयर करे

ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 5

भाग 5


दोपहर को कविता दोबारा उस दुकानदार की दुकान पर गयी और जैसा कि उसे अनुमान था, दुकानदार अपने घर आराम करने चला गया था और दुकान पर उसका नौकर मगन था।


"तो तुम मगन हो?" कविता ने पूछा।


"जी मैडम, आप तो….सुबह इंस्पेक्टर के साथ आईं थीं…है ना!" मगन ने उत्साहित होते हुए कहा।


"वाह! तुम तो दुकान पर थे भी नहीं फिर भी पहचान गये। क्या बात है मगन!” कविता ने संदेह भरी नज़र से मगन को देखते हुए पूछा।


“वो मैडम, मैं वो, सामने वाले घर में था, सामान देने गया था। वहीं से आपको और इंस्पेक्टर साहब को देखा।” मगन ने थोड़ा हड़बड़ाते हुए जवाब दिया।


“वैसे दूर की नज़र काफी तेज़ है तुम्हारी।” कविता मगन के बताए घर की तरफ देखते हुए बोली।


“जी मैडम, वो तो है।” मगन थोड़ा शर्माते हुए बोला।


एक मिनट तक उस घर को देखने के बाद कविता बोली, “लेकिन उस घर के मेन गेट से ये दुकान तो नहीं दिख सकती? फिर तुमने कैसे देखा?”


“मैडम, कमरे की खिड़की से दिखती है ना ये दुकान, वहीं से देखा।”


“कमरे की खिड़की से? तुम कमरे तक कैसे पहुँचे? तुम तो सामान देने गए थे ना?” कविता ने चौंकते हुए पूछा।


“वो, उस घर की मेमसाब ने मुझे कमरे के पंखे साफ करने के लिए रोक लिया था ना, इसलिए मैं कमरे में गया।” मगन ने अपनी सफाई में कहा।


“ओह! तो ये काम भी करते हो तुम!”


“वो मैडम, थोड़ा ऊपर की इनकम के लिए करता हूँ।” मगन घबराते हुए बोला।


“अच्छा एक बात बताओ, नीलम का स्वभाव कैसा था?"


"मैडम, दीदी तो एकदम मिलनसार स्वभाव की थीं। सबसे हंस कर बात करती थीं। सबकी मदद भी करती थी।"


"ओह! तो तुम्हारी भी मदद की थी क्या कभी उसने?" कविता के इस प्रश्न पर मगन झेंप गया। फिर धीरे से बोला, "मैडम, मालिक को मत बताना पर दीदी ने हमें पचास हजार रुपए दिए थे कुछ महीने पहले । बहुत अहसानमंद हैं हम उनके।"


"पचास हजार! क्यों दिए थे?"


"वो…हमारी बहन की शादी थी। और हम भी अपनी तरफ से कुछ करना चाह रहे थे पर इतनी कम तनख्वाह में क्या करेंगे। तो हमारी परेशानी देख उन्होंने हमें साहब से छिपा कर पैसे दिए थे।"


कविता थोड़ा सा हैरान हो गई इस बात से। क्योंकि नीलम के लिए इतनी बड़ी रकम देना बहुत आसान बात नहीं थी। और वो भी एक दुकान पर काम कर रहे नौकर को?


"अच्छा तुम्हें क्या लगता है कि क्या हुआ होगा नीलम को?" कविता ने उसे अपनी निगाहों से टटोलते हुए पूछा।


"मैडम, हम तो यही कह सकते हैं कि दीदी कोई बड़ी मुसीबत में हैं शायद। वो अपने परिवार से बहुत प्यार करती थीं। तो भाग गयी…. जैसा सब कह रहे हैं यहाँ, हमें नहीं लगता। आगे….आप लोग ढूंढ लो उन्हें।" मगन की आंँखों में आँसू थे।


"अच्छा…ये मोनिका के परिवार से कैसे संबंध थे नीलम के?" कविता ने पूछा।


"अच्छे थे। दोनों साथ ही हर जगह जाती थीं। पर…" ये कह मगन चुप हो गया।


"पर क्या? बोलो मगन?"


"मोनिका मैडम नीलम दीदी से थोड़ा जलती थीं। हमेशा उनकी नकल करने की कोशिश करती थीं। जैसा वो पहनती हैं, जैसा वो खाती हैं। सब कुछ। इसलिए उनके और उनके पति शरद भैया के बीच अक्सर लड़ाई होती थी।"


"लड़ाई? क्यों?" कविता ने पूछा।


"शरद भैया उन पर हंँसते थे कि तुम कुछ भी कर लो पर नीलम भाभी जैसी नहीं लग सकती। उनके जैसा घर नहीं सजा सकती, भाभी जैसा खाना नहीं बना सकती। इसपर मोनिका मैडम बहुत नाराज़ हो जाती थीं।" मगन ने कहा।


“हम्ममम, और तुम्हें ये सब कैसे पता? सच बताना मगन।” कविता ने कड़क अंदाज में कहा।


“मैडम, अक्सर, मोनिका मैडम के किचन की नाली रुक जाती थी तो वो तुरंत हमको बुलाती थीं। तब काफी बार भैया को उनसे ऐसे बात करते हुए सुना था। और…” ये कह मगन चुप हो गया।


“और क्या?” कविता ने पूछा।


“मोहल्ले में कोई भी दीदी के पीछे अगर मोनिका मैडम की तारीफ करता था तो उनके चेहरे पर गुस्सा साफ दिखाई देता था। नीलम दीदी के सामने उनकी तारीफ करती थी पर पीछे से उनकी हँसी उड़ाती थी।” मगन ने बताया।


“अच्छा नीलम को दीदी बुलाते हो पर मोनिका को‌ मैडम? ऐसा क्यों?” कविता ने पूछा।


“मैडम, कुछ रिश्ते दिल से बनाए जाते हैं। नीलम दीदी का स्वभाव बहुत अच्छा है, इसलिए उनको दीदी बुलाने का मन करता है, मोनिका मैडम बहुत नकचढ़ी हैं, मुझसे ढ़ंग से बात भी नहीं करतीं, तो उन्हें दीदी कैसे बुला सकता हूँ।” मगन की बातों में कविता को काफी सच्चाई दिखाई दी।


"चलो ठीक है। धन्यवाद मगन। तुम अच्छे इंसान हो। अच्छा.. देखो…अगर तुम्हें कुछ भी अटपटा लगे तो क्या तुम तुरंत मुझे कॉल कर पाओगे? अपनी दीदी के लिए इतना तो कर ही सकते हो।" कविता ने अपना कार्ड देते हुए कहा।


"बिल्कुल मैडम। बस दीदी मिल जाएं। मैं आपको पूरा सहयोग करूँगा।" मगन ने कहा।


**************


विक्रम अपने कैबिन में केस की सभी बारिकियों पर नज़र डाल रहा था। उसने नीलम, अमोल, शरद और मोनिका सबके फोन रिकार्ड मंगवा लिए थे। उन सबको बारीकी से देख रहा था और गोले लगा रहा था। तभी कविता अंदर आती है।


"कहांँ तक पहुंँची तहकीकात?" विक्रम ने पूछा।


"मगन से मिलकर आ रही हूँ। कुछ अजीब बातें पता चलीं।" कविता ने मगन से हुई सारी बातों की रिकॉर्डिग उसे सुनाई।


"पचास हजार रुपए! उसकी बहन की शादी के लिए? ये कुछ अटपटा सा है। ऐसा कौन‌ करता है? वो भी दुकान पर काम करने वाले नौकर के लिए। हाँ, वो मोटा दुकानदार मगन को इतने पैसे देता तो समझ में आता, पर….नीलम का देना समझ नहीं आया। " विक्रम ने कहा। फिर उसने अपने एक हवलदार को मगन की सारी जन्मपत्री निकालने को कहा।


"यहाँ भी थोड़ा गड़बड़ है। जब नीलम घर से निकली तो लगभग आधे घंटे बाद उसे अमोल ने कॉल किया और पांच मिनट तक बात की। फिर पंद्रह मिनट बाद फिर फोन किया और एक मिनट बात की। तो शायद…अमोल जानता था कि वो कहां जा रही है? और एक दिलचस्प बात। इसी दौरान, मोनिका ने भी अमोल को फोन किया और पंद्रह मिनट बात की। फिर…मोनिका ने अपने पति शरद को भी फोन किया और दो मिनट बात की। और फिर….शरद ने नीलम को फोन मिलाया…एक मिनट बात हुई। फिर उसने तीन- चार बार मिलाया पर नीलम ने उठाया नहीं।" विक्रम ने अब तक की सारी जांच कविता को बताते हुए कहा।


"तो…. क्या ये सब जानते थे कि नीलम कहांँ गयी थी?" कविता ने सवाल किया।


"यार! जब हम किसी को फोन करते हैं और वो बाहर हो…तो हम पूछते हैं ना कि कहांँ हो? तुम कितना पूछती हो मुझसे!" विक्रम ने हंँसते हुए कहा।


"मज़ाक करा लो बस जितना मर्जी। अच्छा…. मुझे नीलम की सहेलियों के फोन नंबर दो। पता नहीं क्यों…जो दिख रहा है वो है नहीं।" कविता बोली।‌


"हम्मम, ये लो वो लिस्ट। शाम तक आसपास के एरिया की फुटेज भी आ जाएगी। हमें पता तो चले कि नीलम वहाँ से आखिर निकली किस तरफ।" विक्रम बोला।‌


"सही किया। मैं शाम को आती हूँ। टेक केयर।" यह कह कविता चली गई।


क्रमशः

आस्था सिंघल