ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 3 astha singhal द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 3

भाग 3


“विक्रम तैयार हो गए आप कि नहीं?” कविता ने कमर का दरवाज़ा खटखटाते हुए पूछा।


तभी विक्रम राठोर ने दरवाज़ा खोल कविता को अंदर ले लिया और उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, “आपको हमारा दरवाज़ा खटखटाने की क्या ज़रूरत है। मैडम आप बेझिझक अंदर आ सकती हैं।”


कविता ने एक नज़र विक्रम को देखा। उसके कमीज़ के अधखुले बटन के अंदर से उसका सुगठित शरीर दिख रहा था। कविता ने अपना हाथ उसकी कमीज़ के अंदर डालते हुए कहा, “ऐसी हालत में हमें अंदर ना बुलाया करें विक्रम साहब! हम कंट्रोल नहीं कर पाते अपने आपको।”


“तो मत कीजिए, हम भी तो यही चाहते हैं।” विक्रम राठोर ने उसे और करीब खींचते हुए कहा।


“पागल हो क्या! छोड़ो! अमोल का केस सॉल्व नहीं करने जाना क्या?” कविता ने पीछे हटते हुए कहा।


“लो, शुरुआत तुम खुद करती हो और इल्ज़ाम हम पर। बहुत नाइंसाफी है ये।” विक्रम राठोर ने अपनी कमीज़ के बटन लगाते हुए कहा।


“अच्छा एक बात बताओ विक्रम, जहाँ तक मुझे याद है अमोल तो कॉलेज में किसी प्रीति नाम की लड़की से प्यार करता था ना? उसका क्या हुआ?” कविता ने पूछा।


“हाँ, पूछा था मैंने पर, उसने कुछ खास बताया नहीं। खैर, उसका इस केस से क्या लेना-देना?” विक्रम बोला।


“लेना-देना क्यों नहीं है! विक्रम, तुम तो जानते हो कि ज़्यादातर क्राइम पास्ट रिलेशनशिप की वजह से होते हैं।” कविता ने कहा।


“तो तुम कहना चाहती हो कि अमोल ने अपनी पत्नी को….?”


“नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रही। पर, हम इस एंगल को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते विक्रम। जब तक नीलम मिल नहीं जाती, तब तक सब शक के दायरे में हैं।” कविता ने कहा।


“हाँ ये बात तो तुम्हारी बिल्कुल सही है। क्या बात है, हमारी संगत में रह कर कितना कुछ सीख गई हैं आप!” विक्रम ने अठखेली करते हुए कहा।


“ओहो! आप फिर शुरू हो गए। चलना नहीं है क्या? चलो अब!” कविता कमरे से बाहर निकलते हुए बोली।


***************


अमोल और कविता लगभग आधे घंटे बाद खिड़की एक्सटेंशन पहुँचे।


अमोल के घर की बाहर वाली गली में पहुंच विक्रम ने वहाँ स्थित एक किराने की दुकान के दुकानदार को नीलम की तस्वीर दिखाते हुए पूछा,"पहचानते हो इन्हें?"


"जी साहब, ये नीलम मैडम जी हैं। वहाँ… सामने के घर में रहती हैं 154A में।" दुकानदार ने तुरंत जवाब दिया।


"इन्हें आखिरी बार कब देखा था?" इंस्पेक्टर राठोर ने सख्ती से पूछा।


दुकानदार थोड़ा डर गया और अपने माथे से पसीने पोंछते हुए बोला,"साहब…परसों सुबह….मैडम दुकान पर सामान लेने आईं थीं।"


"कितने बजे आईं थी।" इंस्पेक्टर राठोर ने फिर कड़क आवाज़ में पूछा।


"साहब.. ‌दस से साढ़े दस के बीच में आई होंगी। सामान बताया और यहीं बंधवा कर रख गयी थीं। बोली एक - दो घंटे में आकर ले जाऊंँगी।" दुकानदार बोला।


"मतलब वो कहीं बाहर जा रहीं थीं। अक्सर ऐसा करती थीं क्या वो, सामान बंधवा कर रख जाती हैं।" इंस्पेक्टर राठोर ने पूछा।


"जी, साहब। ऐसा तो सब ही करते हैं। हमसे घर पर सामान पहुंँचाने को भी कह देते हैं। हम पहुंँचा देते हैं।" दुकानदार बोला।


कविता, इंस्पेक्टर राठोर की पत्नी जो इस तहकीकात में उसका साथ दे रही थी अचानक बोली,"आप पहुंँचाते हैं घर पर?"


इंस्पेक्टर राठोर और दुकानदार दोनों उसकी तरफ देखने लगे। कविता की बात सुन जहांँ इंस्पेक्टर राठोर को हंँसी आ गई वहीं दुकानदार थोड़ा झेंप गया क्योंकि उसका शरीर बहुत मोटा था।


"आप बुरा ना मानें, मेरा मतलब है कि क्या आपने कोई हैल्पर रखा हुआ है जो सामान पहुंँचाता है?" कविता ने बहुत विनम्र भाव से कहा।


"जी, मगन को रखा हुआ है। अभी भी वो गया है किसी घर में सामान पहुंँचाने। देखो, आया नहीं अभी तक। बहुत खराब आदत है इसकी। कहीं भी जाता है तो वहांँ देर बहुत लगाता है।" दुकानदार ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा।


“क्यों? वो इतनी देर क्यों लगाता है? आपने पूछा नहीं?” कविता ने पूछा।


“मैडम, उसको सबके साथ बतियाने की बहुत आदत है। वैसे भी ये सब गृहणियाँ खाली बैठी रहती हैं‌। तो मगन से बातें करती रहती हैं।” दुकानदार बोला।


“अच्छा! इस मगन की उम्र क्या है?” कविता ने फिर प्रश्न किया।


“अ…मैडम लगभग पच्चीस साल होगी। मतलब मुझे तो यही बताई है उसने। आगे तो देखिए साहब ये छोटे लोग झूठ कितना बोलते हैं।” दुकानदार ने सफाई देते हुए कहा।


“क्यों तुमने उसका वैरिफिकेशन नहीं करवाया था नौकरी पर रखने से पहले?” इंस्पेक्टर राठोर ने गुस्से से पूछा।


यह सुनते ही दुकानदार परेशान हो गया। बोलना चाह रहा था पर ज़ुबान उसका साथ नहीं दे रही थी।


“वो…वो साहब, दरअसल, हमारे पहचान का है वो। तो हमने कुछ पूछा नहीं।”


“वाह! बिना वैरिफिकेशन रख लिया नौकरी पर। अब अगर वो कोई क्राइम कर दे तो कौन फंसेगा?” कविता बोली।


“इस बात के लिए तुझपर अलग से चार्ज लगाऊंगा फिलहाल ये बताओ कि तुम्हें अजीब नहीं लगा जब नीलम मैडम सामान लेने आईं नहीं? क्या किया तब तुमने?" इंस्पेक्टर राठोर ने फिर से एक प्रश्न पूछा।


"साहब, अजीब लगा, क्योंकि वो जितना समय बोलकर जाती हैं उससे पहले ही आकर सामान ले जाती हैं। पर दोपहर को साहब आए तो मैंने उन्हें पकड़ा दिया।"


"साहब…मतलब, अमोल, दोपहर को आया? वो अक्सर आता है क्या दोपहर‌ को?" इंस्पेक्टर राठोर ने हैरत जताते हुए पूछा।


"नहीं साहब, पर नीलम मैडम वापस नहीं आईं इसलिए आए थे वो।” दुकानदार बोला।


“नीलम मैडम वापस नहीं आईं, ये बात उनको तुम ने बताई थी?” इंस्पेक्टर राठोर ने पूछा।



अरे! नहीं साहब। हम किसी की फैमिली में टांग नहीं अड़ाते। कौन कब आता है, नहीं आता है, इससे हमको क्या मतलब। शायद, मोनिका मैडम ने बुलाया होगा।" दुकानदार बोला।


"ये…मोनिका मैडम कौन हैं?" इंस्पेक्टर राठोर ने पूछा।


"वो साहब…दो घर छोड़ कर रहती हैं। उनके परिवार और अमोल साहब के परिवार की बहुत बनती है आपस में।"


"ठीक है…कुछ और पूछना होगा तो फिर आऊंँगा।" ये कह इंस्पेक्टर राठोर अमोल के घर की तरफ बढ़ गया। तभी कविता वापस दुकानदार के पास गयी और उससे एक पर्चा लेकर वापस आई।


"ये क्या है?" इंस्पेक्टर राठोर ने पूछा।


"लिस्ट…उस सामान की जो नीलम ने खरीदा था।" कविता ने सस्पेंस भरी निगाहों से इंस्पेक्टर राठोर को देखते हुए कहा।


“बेचारे दुकानदार का मज़ाक बना दिया था तुमने आज।” इंस्पेक्टर राठोर ने हँसते हुए कहा।


“सॉरी, वो…जिस तरह बोला कि हम सामान छोड़कर आते हैं, तो जिज्ञासा वश पूछ लिया मैंने।” कविता हँसते हुए बोली।


इंस्पेक्टर राठोर ने अपनी गर्दन झटकाई और 154 A की घंटी बजाई।


क्रमशः
©® आस्था सिंघल