ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 11 astha singhal द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ए पर्फेक्ट मर्डर - भाग 11

भाग 11

खिड़की गांव थाना
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विक्रम आस-पास कई फुटेज देखने में व्यस्त था। तभी कविता वहाँ आ पहुँची।

“मिल आईं नीलम की फैमिली से?” विक्रम ने पूछा।

“हाँ, बहुत गरीब घर से ताल्लुक रखती है नीलम। बादली गांव में छोटा सा घर है। बुरी हालत में। समझ नहीं आया कि अमोल ने बच्चों को वहाँ क्यों भेज दिया। उसके माता-पिता ने बताया कि नीलम शादी से पहले एक स्कूल में टीचर थी। और उसने सरकारी स्कूल से पढ़कर अपनी पढ़ाई पूरी की, और साथ में ट्यूशन ले कर घर का खर्च चलाया। बहुत मेहनती रही है नीलम। उसके पिता एक बस ड्राइवर थे। पर पीने की आदत की वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया था। तब से नीलम ही सब ख़र्च उठा रही थी। शादी के बाद भी हर माह अपने घर पर खर्चें के लिए पैसे भेजती रहती थी। इस महीने नीलम के ना होने पर अमोल ने भी घर के लिए ख़र्च नहीं दिया। अब, ये समझ नहीं आ रहा कि अमोल इस बारे में जानता भी था कि नहीं।”

“तो कैसे चल रहा है उनके घर का खर्चा?” विक्रम ने पूछा।

“विक्रम, मैं उन्हें ये कह कर पैसे दे कर आई हूँ कि अमोल ने मुझे देने को कहें हैं। वैसे, आस-पड़ोस से भी ज़्यादा तो पता नहीं चला। नीलम की सभी सहेलियों की शादी हो चुकी है। उनके माता-पिता भी वहाँ नहीं रहते अब। पर जितने भी लोग नीलम को जानते थे उन सबका यही कहना है कि वो बहुत उसूलों वाली लड़की थी। वहाँ मोहल्ले में लड़के उसकी खूबसूरती की वजह से उसके इर्द-गिर्द घूमते रहते थे पर उसने कभी किसी को पास नहीं आने दिया।”

“हम्मम, तो अमोल से शादी मजबूरी में की क्या?” विक्रम ने पूछा।

“दरअसल अमोल के यहाँ से उसके मामा जी ही रिश्ता लेकर आए थे नीलम का। अमोल की
ठीक-ठाक नौकरी देख कर दी शादी।” कविता बोली।

“अमोल के परिवार से भी पूछताछ करनी पड़ेगी कविता। अरे! तुमने प्रीति को फोन किया?”

“ओह! हांँ अभी करती हूँ।” कविता ने बैग से फोन निकालते हुए कहा।

“हैलो! हाय! प्रीति! पहचाना!” कविता ने चहकती आवाज़ में कहा।

“हैलो! जी…नहीं मैंने आपको नहीं पहचाना।”

“प्रीति! मैं कविता! याद आया!”

“ओह! कविता! कैसी है तू? इतने सालों बाद याद‌ आई तुझे? और मेरा नम्बर कहाँ से मिला?”

“मुझे याद तो आई, तुझे तो वो भी नहीं आई। अच्छा सुन, हम सब एक गैट टुगेदर रख रहे हैं जल्द ही। तू भी आ जा ना!” कविता ने अपना पहला पासा फैंकते हुए कहा।

“गैट टुगेदर? वाह! बढ़िया। पर ये बता कि तुझे मेरा नम्बर मिला किससे।”

“वो…यार…तू अब पूछ ही रही है तो…अमोल से मिला। अब, कुछ और मत पूछना। पर मैं तो चौंक गई थी ये जानकर कि तू और अमोल साथ नहीं थे। कॉलेज में तुम दोनों के किस्से कितने मशहूर थे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम दोनों अलग-अलग लोगों से शादी करोगे।” कविता ने एक और दांव फैंकते हुए कहा।

“चल छोड़, कोई और बात करते हैं।” प्रीति की आवाज़ में दर्द स्पष्ट सुनाई दे रहा था।

“अच्छा तू आएगी ना पार्टी में?” कविता ने पूछा।

“यार मैं बैंगलुरू में रहती हूँ। कैसे आऊँगी?” प्रीति बोली।

“ओह! चल कोई बात नहीं। मैं एक काम के सिलसिले में बैंगलुरू आ रही हूँ। तू अपना एड्रेस भेज दे मैं तुझसे मिलने ज़रूर आऊँगी।” कविता बोली।

“ठीक है भेजती हूँ। ज़रुर आना। बैठकर बहुत सी बातें करेंगे। बाय!” ये कह प्रीति ने फोन रख दिया।

कविता के फोन रखते ही विक्रम ने किसी को फोन करके पूछा, “जी, पता चली लोकेशन? ओके…गुड जॉब। थैंक्स।”

“क्या हुआ, पता चल गया?” कविता ने उत्सुकतावश पूछा।

“हाँ, पता चल गया। वहाँ मेरा दोस्त इंस्पेक्टर अय्यर काम करता है, उसकी मदद से एक कॉन्स्टेबल को प्रीति के पीछे लगवा दूंगा। शायद कुछ सबूत मिल जाए। और कल तक अमोल के कॉल रिकार्ड भी आ जाएंगे। साथ ही प्रीति के कॉल रिकार्ड भी निकलवाने के लिए कह दिया है।”

तभी आस पास के कैमरा की फुटेज आ गयी। कविता और विक्रम उसे गौर से देख रहे थे। और नीलम जहां - जहां गयी उस जगह को नोट डाउन भी कर रहे थे। तभी उनकी नज़र एक बहुत अजीब सी गतिविधी पर पड़ी। वह दोनों चौंक गए। उन्होंने उस जगह की लोकेशन अपने फोन में ली और निकल पड़े खिड़की एक्सटेंशन की उस गली में।

फुटेज में विक्रम ने नीलम को खिड़की एक्सटेंशन की एक गली में जाते हुए देखा था। लगभग पांच मिनट बाद वह बाहर आई तो उसके हाथ में एक बहुत बड़ा नीले रंग का बैग था। फिर वह आटोरिक्शा में बैठ खिड़की गांव की तरफ निकल गई।

उस गली में पहुँच उन्होंने देखा कि वहांँ कहीं कैमरा नहीं था। तो अब यह पता लगाना बहुत मुश्किल हो गया था कि नीलम आखिर किसके घर गयी थी। कविता को बार-बार यही लग रहा था कि वह बड़ा सा बैग हो ना हो टपरवेयर का था। इसलिए उसने वहांँ स्थित एक दुकान के दुकानदार से पूछा,"भैया, यहांँ कोई महिला टपरवेयर का काम करती हैं क्या?"

"जी मैडम। वो सामने नीचे वाला घर है। वहांँ सुलोचना आंटी रहती हैं। वो करती हैं ये काम।" दुकानदार के बताने पर विक्रम और कविता वहाँ पहुंँच गए।

वहांँ पहुंँच उन्होंने सुलोचना जी को नीलम की तस्वीर दिखाई। तस्वीर देखते ही सुलोचना जी ने उन दोनों को अंदर आने को कहा।

"ये नीलम है। बहुत ही होशियार और मेहनती लड़की है। पिछले एक साल से मेरे साथ मिलकर टपरवेयर का काम कर रही है। बहुत बढ़िया कर रही है।" सुलोचना जी ने नीलम की तारीफ करते हुए कहा।

"तो आपने टपरवेयर की एजेंसी ले रखी है क्या आंटी? सिर्फ नीलम ही आपके साथ जुड़ी है या और औरतें भी जुड़ी हुई हैं?" कविता ने पूछा।

"जी, मैंने एजेंसी ले रखी है। और नीलम के अलावा भी कई औरतें मेरे साथ काम करती हैं। पर उन सब में नीलम ने अपने लिए और मेरे लिए भी बहुत प्रोफिट कमा कर दिया है।"

"एक बात बताएंँ, सभी औरतें यहीं आकर आपसे बैग लेकर जाती हैं हर बार?" विक्रम ने पूछा।

"नहीं नहीं ऐसा नहीं है। पर कुछ औरतें ऐसा करती हैं क्योंकि उन्होंने घर पर बताया नहीं होता इसलिए।" सुलोचना जी ने कहा।

"ओह! तो मतलब नीलम ने घर पर…." कविता की बात बीच में ही काटते हुए सुलोचना जी बोलीं, "अमोल, नीलम का पति, उसे नीलम का काम करना बिल्कुल पसंद नहीं था। इसलिए नीलम ये काम छिप कर करती थी। उसका एक सपना था कि वो अपने दोनों बच्चों को एक अच्छे कॉन्वेंट स्कूल में डाले। जैसा ये बाहर वाला स्कूल है ना…ऐ.पी.जे. वर्ल्ड स्कूल, इसमें डाले। फीस बहुत है इस स्कूल की। बस इसलिए इतनी मेहनत करती रहती है। पर. ….तीन दिन से आई नहीं। बैग वापस करने भी नहीं आई। कुछ बात है क्या?" सुलोचना जी ने पूछा।

"आंटी, नीलम जिस दिन आपके यहांँ से बैग लेकर निकली थी उस दिन से घर नहीं आई। आप बता सकते हैं कि वो कहाँ गयी थी?" कविता ने पूछा।

"वो…उस दिन…हाँ, ये पीछे जो मॉल है ना…सलैक्ट पैलेस, वहांँ गयी थी। दरअसल, नीलम आए दिन मॉल के रेस्तरां में होने वाली किटी पार्टी में जाकर अपना समान बेचती थी।" सुलोचना जी ने बताया।

"ओह! पर कैसे? क्या वो वहाँ उन महिलाओं को जानती थी?" विक्रम ने पूछा।

"ये नहीं पता इंस्पेक्टर। वो क्या करती थी, कैसे करती थी। पर मेहनत करती थी। दिमाग बहुत तेज़ था उसका। काश अमोल उसके दिमाग की कद्र करता। वो तो बस उसे घर पर बैठा कर रखना चाहता था। कितनी बार नीलम ने मुझे रोते हुए बताया कि वो जॉब करना चाहती थी पर अमोल करने नहीं देता था। बहुत शक्की मिजाज का आदमी है। सुंदर पत्नी है तो ये मतलब तो नहीं ना कि उसे घर पर कैद रखा जाए?" सुलोचना जी की आंँखों में नमी थी।

"आंटी आपका बहुत - बहुत शुक्रिया। अगर फिर आपकी ज़रूरत पड़ी तो क्या हम आपको बुला सकते हैं?" विक्रम ने उठते हुए कहा।

"बिल्कुल इंस्पेक्टर। नीलम के लिए कुछ भी कर सकती हूँ। बस वो मिल जाए।" सुलोचना जी ने अपनी नम आँखों को पोंछते हुए कहा।

क्रमशः
आस्था सिंघल