भाग 22
“कविता, कहाँ हो? देखो तो कौन आया है?” विक्रम घर में घुसते ही कविता को पुकारने लगा।
कविता जो किचन में रात के खाने की तैयारी में जुटी थी, विक्रम की आवाज़ सुन हाथों में कड़छी लिए बाहर आई। उसे देख विक्रम और गौतम दोनों ने अपने हाथ ऊपर उठा लिए और बोले,
“माफ़ी सरकार, माफी।”
“अरे! मैं तो किचन में काम कर रही थी। क्या तुम दोनों भी ना! नमूने हो बिल्कुल।” कविता ने हँसते हुए कहा, और फिर गौतम की तरफ देख मुस्कुराते हुए बोली, “हैलो गौतम! कैसे हो?”
“हैलो कविता! मैं बिल्कुल ठीक हूँ। तुम कैसी हो?” गौतम असहज होकर बोला।
“क्या बात है? तुम दोनों इतने औपचारिक होकर बात क्यों कर रहे हो? दोस्त हो तो दोस्तों की तरह मिलो।” विक्रम ने दोनों को टोकते हुए कहा।
विक्रम की इस बात पर गौतम और कविता दोनों ने हँसते हुए हाथ मिलाया। कविता ने दोनों को बैठने के लिए कहा।
“कवि! यार पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। पहले खाना लगवा दो प्लीज़।” विक्रम ने कहा।
“पता है मुझे, मुन्नी को बोल दिया है, तुम दोनों हाथ धो लो खाना तैयार ही है। अरे! मुन्नी, जल्दी कर।” मुन्नी को आवाज़ देते हुए कविता रसोईघर में चली गई।
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“वाह! कविता, मज़ा आ गया। बहुत लज़ीज़ खाना था।” गौतम ने कविता की तारीफ करते हुए कहा।
“भाई होगा क्यों नहीं! आज तो कविता ने इसमें एक्स्ट्रा प्यार मिलाया है।” विक्रम ने मज़ाक में कहा। पर उसका मज़ाक कविता और गौतम को पसंद नहीं आया। गौतम ने नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा, “बस यार, तेरी यही बात मुझे पसंद नहीं है। भाई गलती हो गई जो कॉलेज में तेरी बीवी पर दिल आ गया। और उससे भी बड़ी ग़लती ये हुई कि तुझे अपने दिल की बात बता दी। तू कब तक उसी बात को याद दिलाता रहेगा?”
“हाँ विक्रम, गौतम सही कह रहा है। मैं भी तुम्हारे इस मज़ाक से सहमत नहीं हूँ। इतने साल बीत गए इस बात को, अब बस करो।” कविता ने गुस्से से कहा।
“अरे! तुम दोनों तो इतने सीरियस हो गये। मैं तो बस मज़ाक करता हूँ हर समय। मेरी मंशा तुम दोनों को ठेस पहुंचाने की बिल्कुल नहीं थी। सॉरी।” विक्रम ने कान पकड़ते हुए कहा।
“हम्मम, अब ठीक है। कविता इतनी सज़ा काफी है या इसे मुर्गा बनाया जाए।” गौतम ने हँसते हुए कहा।
“मुर्गा? अबे मरवाएगा क्या यार? वैसे गौतम,
भाई मेरे मज़ाक को किसी और तरह मत लेना। मैं जानता हूंँ कि मुझसे मिलने के बाद कविता की ज़िंदगी में कभी कोई नहीं आया। और मैं ये भी जानता हूं कि तू भी अब आगे बढ़ चुका है। और तेरे दिल में कविता के लिए ऐसी कोई भावनाऐं अब नहीं हैं।”
“देखो, मैं मानता हूँ कि मैं कॉलेज में कविता को बहुत पसंद करता था। पर जब मुझे पता चला कि कविता और तू एक दूसरे को पहले से ही पसंद करते हो तो यकीन मानो मैं पीछे हट गया। आज मैं अपने परिवार में बहुत खुश हूँ। और नंदनी के साथ एक सुखी जीवन बिता रहा हूं।” गौतम ने सारी बातें साफ करते हुए कहा।
“अच्छा एक बात बता, अगर कभी तुझे पता चले कि कविता और मेरे बीच में कुछ ठीक नहीं है, तो क्या तू कविता के करीब आने की कोशिश करेगा?” विक्रम ने सवाल किया।
विक्रम के इस सवाल पर कविता भड़क गई।
“ये क्या सवाल है विक्रम? तुम आज शाम का मूड खराब कर रहे हो।”
“अरे कविता! रुको प्लीज़। मेरे सवाल का जवाब जानने दो, फिर बताऊंगा क्यों पूछा। बता गौतम, तेरा जवाब क्या होगा?”
“देख भाई, कविता मुसीबत में होगी तो मैं उसकी हर संभव मदद करूंगा क्योंकि वो मेरी दोस्त है, पर मैं कभी उसके नज़दीक आने की कोशिश नहीं करुंगा।”
“क्यों नहीं करेगा? एक समय था जब तू उसे पसंद करता था। तो करीब आने का मौका मिलेगा तो क्यों नहीं आएगा?” विक्रम ने फिर सवाल किया।
“क्योंकि कविता मेरा अतीत थी और नंदनी मेरा आज और भविष्य है। और मैं नंदनी के साथ बहुत खुश हूँ। मैं उसे धोखा क्यों दूंगा?”
“बिल्कुल, पर उसने धोखा दिया।” विक्रम ने टेबल पर मुक्का मारते हुए कहा।
गौतम और कविता विक्रम को हैरानी से देखने लगे। तब विक्रम ने प्रीति की सारी जानकारी कविता को बताई और कहा, “कविता, तुम जानना चाहोगी कि वो नम्बर किसका है जिससे प्रीति रात-रात भर बालकनी में खड़े होकर छिप-छिप कर बात करती है!”
“हाँ बिल्कुल जानना है विक्रम।” कविता इस रहस्य को और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
“वो शख्स है….अमोल।” विक्रम ने बताया।
“अमोल! मतलब प्रीति और अमोल बराबर संपर्क में हैं?” कविता ने आश्चर्य जताते हुए कहा।
“आज से नहीं पिछले तीन सालों से। ये देखो, प्रीति के प्राइवेट फोन की लिस्ट।” विक्रम ने कविता को लिस्ट पकड़ाते हुए कहा।
“दोनों हमसे झूठ क्यों बोला रहे हैं?” कविता हैरत में थी।
“झूठ इंसान तब बोलता है जब वो कुछ छिपाना चाहता है। ये दोनों कुछ तो छिपा रहे हैं।” विक्रम ने अपने मन की बात ज़ाहिर करते हुए कहा।
“वैसे मेरे पास एक और चीज़ है जिससे तुम दोनों को ज़बरदस्त धक्का लग सकता है और शायद…तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर भी मिल जाए कि वो दोनों क्या छिपा रहे हैं।” गौतम ने चाय का कप हाथ में पकड़ते हुए कहा।
“ऐसा क्या है तुम्हारे पास?” विक्रम ने पूछा।
गौतम के चेहरे पर जीत भरी मुस्कान उभर आई। उसने अपनी जेब से एक लिफाफा निकाला और विक्रम को पकड़ा दिया।
विक्रम ने जल्दी से उससे लिफाफा लिया और खोल कर उसमें रखा कागज़ निकाला। उस कागज़ को पढ़ते ही विक्रम के चेहरे के भाव बदल गए। उसने वो कागज़ कविता की ओर बढ़ाया। कविता भी उसे पढ़ते ही हैरान हो गई।
“मतलब, प्रीति अक्सर दिल्ली आया जाया करती थी।” कविता बोली।
“हाँ, पिछले तीन साल में काफी बार वो दिल्ली आई है। अब…इसका कनैक्शन अमोल से है कि नहीं, ये मैं नहीं कह सकता। क्योंकि दिल्ली में उसका मायका भी है। पर एक बात है कि पिछले तीन सालों में ही प्रीति का दिल्ली आना जाना बढ़ा है। उससे पहले वो साल में एक या दो बार ही दिल्ली आती थी। अब प्रीति किसी कम्पनी में तो काम करती नहीं थी जो उसका दूसरे शहरों में आना-जाना रहे। पर फिर भी…ये पुख्ता सबूत नहीं है। पर इससे शायद तुम दोनों को मदद मिले इस केस में।” गौतम ने कहा।
“पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा है कि ये अमोल, नीलम को धोखा दे रहा था।” विक्रम बोला।
“सिर्फ अमोल ही नहीं विक्रम, शायद नीलम भी।” कविता ने गंभीर स्वर में कहा।
“ऐसा तुम कह रही हो? तुम्हें तो नीलम के चरित्र पर बहुत भरोसा था? अचानक क्या हुआ?” विक्रम ने कविता की तरफ आँखें फाड़कर देखते हुए कहा।
“हाँ विक्रम, सोच तो मेरी यही थी।पर आज जो सुना उसने मेरे भरोसे की बुनियाद को थोड़ा सा हिला दिया है।”
“क्या मतलब? क्या सुना तुमने? अरे हाँ! तुम तो डॉक्टर अपर्णा घई से मिलने गई थी ना। क्या बताया उन्होंने?” विक्रम ने पूछा।
“वो नीलम को पर्सनली नहीं जानती। उनके कॉलेज के एक सहपाठी ने रिक्वेस्ट की इसलिए उन्होंने नीलम का केस डॉक्टर चंद्रा को सौंपा।”
कविता ने बताया।
“कौन था वो सहपाठी? ज़ाहिर है कि वो नीलम की कोई बहुत अच्छी दोस्त ही होगी।” विक्रम बोला।
“हाँ, अच्छी नहीं, अच्छा दोस्त। डॉक्टर अपर्णा घई का वो सहपाठी कोई और नहीं, शरद है!” कविता ने खुलासा करते हुए कहा।
“क्या? शरद?” विक्रम कुर्सी से उछलकर उठते हुए बोला।
“अब ये केस बहुत पेचीदा हो गया है। कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ, ये तय कर पाना मुश्किल होता जा रहा है।
कुछ पल के लिए हॉल में सन्नाटा छा गया। तीनों खामोश हो गए।
क्रमशः
आस्था सिंघल