भाग 24
नंदनी कविता का बहुत प्यार से स्वागत करती है। दोनों मिलकर खूब सारी बातें करती हैं।
“कविता, कल तुम प्रीति के घर ग्यारह बजे के बाद जाना। और मेरा एक हवलदार सादे कपड़ों में तुम्हें टैक्सी में छोड़ने जाएगा और लेने भी आएगा। कविता एक बात तो बिलकुल सही है कि प्रीति और अमोल आपस में बातें करते हैं। अब…उनका ये रिश्ता किस हद तक है, ये तुम्हें पता लगाना है।” गौतम बोला।
“हम्मम, पता तो करना ही पड़ेगा। नीलम की गुत्थी को सुलझाए बिना चैन नहीं मिलेगा। ठीक है, मैं कल तैयार रहूंगी। और नंदनी, अगर मैं जल्दी फ्री हो गई तो तुम्हारे साथ शॉपिंग पर ज़रूर चलूंगी।”
“बिल्कुल कविता। आओ मैं तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा दूँ।” नंदनी उठते हुए बोली।
कमरे में एकांत मिलते ही कविता ने विक्रम को फोन लगाया।
“आ गई हमारी याद! कैसी हो?” विक्रम की प्यार भरी आवाज़ सुन कविता चहक उठी।
“तुम्हें मिस कर रही हूँ। खाना खा लिया तुमने?”
“यार! तुम औरतें खाने के अलावा कुछ और नहीं सोच सकती। सारे रोमांस का कचरा कर दिया।” विक्रम ने चिढ़ते हुए कहा।
कविता विक्रम की इस हरकत पर मुस्कुराते हुए बोली, “डार्लिंग, स्वीटहार्ट, जानू…. तुमने…”
“येस, आगे बोलो…आ रही हो अपने रंग में वापस।” विक्रम उत्तेजित होते हुए बोला।
कविता ने और अधिक रोमांटिक आवाज़ में कहा,
“तुमने…. तुमने…. खाना खा लिया?” और ये कहते ही वो ज़ोर से खिलखिला कर हँस पड़ी।
पहले तो विक्रम उसकी इस हरकत पर खफा हो गया फिर उसको इतनी बेबाकी से हँसते सुन वो भी हँस पड़ा।
“तुम नहीं सुधरोगी। अच्छा अब एक काम की बात सुनो। मनोज का पता चल गया है। जिसने कॉलेज के समय नीलम से छेड़छाड़ की थी। तुम हैरान हो जाओगे ये सुनकर की वो नीलम के मायके के एरिया में ही रहता है।” विक्रम बोला।
“मतलब, बादली गांव में।”
“हाँ, और कल मैं जा रहा हूँ उससे पूछताछ करने। बस कल दोपहर तक उसके कॉल रिकार्ड आ जाएंगे। उससे और ज़्यादा आसान हो जाएगा पता लगाना कि उसने कभी नीलम को कॉन्टेक्ट किया था कि नहीं।” विक्रम बोला।
“विक्रम, मेरे दिमाग में एक बात आई है। हो सकता है नीलम के पास भी दूसरा नम्बर हो।”
“ऐसा क्यों लग रहा है तुम्हें?”
“देखो, वो टपरवेयर का काम करती थी तो ज़ाहिर है कि उसे सुलोचना जी के, आरती जी के फोन आते होंगे। अमोल की शक करने की आदत के अनुसार, मैं ये मान कर चल रही हूँ कि वो नीलम का फोन ज़रूर चैक करता होगा। पर अमोल ना तो इन लोगों को जानता था, और ना ही नीलम के टपरवेयर के काम के बारे में जानता था। तो, हो सकता है ना उसका कोई दूसरा नम्बर हो। मैं सुलोचना जी और आरती जी से बात करती हूँ। शायद मेरा शक सही हो।”
“बात तो तुम सही कह रही हो। ठीक है तुम बात कर लो इन लोगों से। अगर कोई दूसरा नम्बर हो तो मुझे बता देना।”
“ठीक है। चलो मैं अब सोने जा रही हूँ। गुड नाईट।” ये कह कविता ने फोन रख दिया। फिर उसने सुलोचना, जो नीलम को टपरवेयर का सामान देती थीं, को फोन किया, “सुलोचना जी, माफी चाहती हूंँ, देर रात फोन करने के लिए। मुझे एक बात पता करनी है, क्या नीलम का कोई दूसरा नम्बर भी था?”
“कविता मैम, उसका एक ही नम्बर था।”
“क्या आप मुझे वो नम्बर दे सकती हैं?”
“जी, एक मिनट होल्ड कीजिए, मैं बताती हूँ। हाँ, ….लिखिए।” सुलोचना ने नीलम का नम्बर बताते हुए कहा।
“तो आपकी नीलम से इसी नम्बर पर बात होती थी ना।” कविता ने फिर पूछा।
“जी मैम, टपरवेयर में तो उसका यही नम्बर है सबके पास।”
“शुक्रिया सुलोचना जी। और एक बार फिर सॉरी, आपको परेशान किया।”
“मैम, नीलम मिल जाए बस, हम सब यही चाहते हैं।”
कविता ने अपने बैग से नीलम के केस की डायरी निकाली। वो हैरान हो गई ये देखकर की नीलम के पास भी दो नम्बर थे। उसने तुरंत वो नया मिला नम्बर विक्रम को भेज दिया।
नम्बर मिलते ही विक्रम का फोन आया, “क्या चालू आइटम हैं सब के सब। दाद देनी पड़ेगी तुम्हारे दिमाग की। मैं अभी इस नम्बर को डिपार्टमेंट में भेज देता हूँ। देखता हूँ क्या पता चलता है। चलो तुम अब सो जाओ और…सपने में मुझे देखो।” विक्रम हँसते हुए बोला।
“मज़ाक सूझता है तुम्हें हर समय। चलो मैं फोन रखती हूँ।” ये कह कविता ने फोन रख दिया और जल्द ही नींद के आगोश में समा गयी। वध
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आज सुबह का सूरज बहुत से प्रश्नों के उत्तर देने वाला था। कविता तैयार होकर गौतम के हवलदार, जो सादी वेशभूषा में उसका ड्राइवर बनकर आया था, के साथ कैब में बैठ प्रीति के घर के लिए रवाना हो गई।
उधर दिल्ली में विक्रम भी मनोज से पूछताछ करने बादली गांव के लिए निकल पड़ा था।
प्रीति के बंगले पर
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कविता की गाड़ी जैसे ही प्रीति के घर के बाहर रुकी, कविता ने नज़रें उठा कर उसकी घर की तरफ देखा। प्रीति का घर एक आलीशान बंगला था। कविता गाड़ी से उतर कर गेट की तरफ गई।
वहाँ उसे गार्ड ने रोक लिया।
“मुझे प्रीति से मिलना है। मैं उसके कॉलेज की सहेली कविता हूँ।” कविता ने गार्ड को अपना परिचय देते हुए कहा।
“आप रुकिए, मैं मैम से पूछता हूँ।” गार्ड ने ये कहकर फोन घुमाया।
“मैम आपसे कोई कविता नाम की लेडी मिलने आईं हैं।”
वहां से जो आवाज़ आई वो तो सुनाई नहीं दी, पर गार्ड ने फोन रख आदर सहित कविता को अंदर जाने को कहा।
अंदर जाते ही एक और नौकर ने एक बड़ा सा आलीशान गेट खोला और उसे आदरपूर्वक अंदर बड़े से हॉल की तरफ ले गया।
प्रीति की शानो-शौकत देख कविता दंग रह गई। एक बार मन में विचार आया कि इतने बड़े घर की मालकिन, अमोल से रिश्ता क्यों रखेगी? शायद उसे और विक्रम को कोई गलतफहमी हो रही है।
तभी एक नौकरानी ने आकर उसे बैठने को कहा और सामने रखी टेबल पर नाश्ते की प्लेट सजाने लगी।
“आप बैठिए मैम, मेमसाब अभी आ रही हैं।” ये कह वो नौकरानी भी वहाँ से चली गई।
कविता उस बड़े से आलीशान हॉल में इधर-उधर अपनी नज़रें घुमाने लगी। दीवारों पर बहुत सारी तस्वीरें लगीं थीं। उनमें से एक तस्वीर में प्रीति अपने पति और बच्चे के साथ खड़ी थी। शायद काफी साल पहले की तस्वीर थी। कविता ने बहुत बारीकी से उस तस्वीर का मुआयना किया। वो तस्वीरें देख ही रही थी कि पीछे से एक आवाज़ आई, “तेरी तस्वीरों को बारीकी से देखने की आदत आज भी नहीं गई।”
कविता पीछे मुड़ी। सुंदर जड़ाऊ साड़ी, मेचिंग ब्लाउज, गले में कीमती हार, कानों में लम्बे झुमके, सलीके से बनाया जूड़ा जिसपर बहुत ही मंहगा जूड़ा पिन लगा था और चेहरे पर मुस्कान लिए प्रीति खड़ी थी।
क्रमशः
आस्था सिंघल