अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 23 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 23

जतिन और मैत्री के इस रिश्ते से दोनो परिवारो के सब लोग खुश थे सिवाय दो लोगो के... एक जतिन की मम्मी बबिता जो जतिन की शादी श्वेता से करवाना चाहती थीं और दूसरी मैत्री जो इसलिये खुश नही थी क्योकि वो अपनी पहली शादी के कड़वे अनुभवो को फिर से अपनी आंखो के सामने होते हुये देख रही थी लेकिन नियति ने एक झटके मे जो खेल खेला था उस खेल ने मैत्री को भले बेमन से पर जतिन के साथ जिंदगी बिताने की तरफ एक कदम आगे बढ़ा दिया था...

राजेश की जतिन से मैत्री के रिश्ते के लिये हुयी बातचीत के दो दिन बाद यानि रविवार के दिन राजेश ने कानपुर जाकर जतिन के परिवार से मिलने का प्लान बना लिया, उसके साथ उसके पापा नरेश और उसकी ताई जी सरोज कानपुर जाने वाले थे चूंकि जगदीश प्रसाद की तबियत अभी भी पूरी तरह ठीक नही हुयी थी इसलिये डॉक्टर ने उन्हे सफर करने से मना किया था इधर राजेश ने भी जतिन को कॉल करके बता दिया था कि वो लोग रविवार के दिन कानपुर आ रहे हैं!!

दिन रविवार का था और पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से राजेश अपने पापा नरेश और अपनी ताई जी सरोज को लेकर दोपहर करीब एक बजे जतिन के घर पंहुच गया था, उसके घर पंहुचने के बाद जतिन, जतिन के पापा विजय, उसकी मम्मी बबिता और बहन ज्योति सब लोगो ने राजेश और उसके परिवार का बड़े ही अच्छे और हर्षित तरीके से स्वागत किया, जतिन की मम्मी बबिता भले ही इस रिश्ते से खुश नही थीं लेकिन घर मे आये इन मेहमानो का उन्होने भले ही बेमन से पर अपने आप को खुश दिखाते हुये बड़े ही अच्छे तरीके से स्वागत किया ताकि उनके मन में बैठी इस रिश्ते के प्रति उनकी अस्वीक्रति किसी पर जाहिर ना हो जाये, राजेश और उसके परिवार के जतिन के घर मे आने के बाद थोड़ी देर तक इधर उधर की बाते होती रहीं, बबिता ने भले सबका अच्छे से स्वागत किया था लेकिन स्वागत करने के बाद वो बेमन से चुपचाप अपनी जगह पर बैठीं सबकी बस बाते सुन रही थीं, कोई उनसे कुछ पूछ लेता था तो ही वो जवाब देती थीं बाकि कुछ नही बोल रही थीं, उनका बिल्कुल भी मन नही था जतिन की शादी मैत्री से करवाने का लेकिन घर मे सब लोग इस रिश्ते से खुश थे इसलिये उन्होने श्वेता के लिये अपनी भावनाओ को अपने दिल मे जैसे दफन कर दिया था, इधर बातचीत करते करते मैत्री की मम्मी सरोज ने अपने बैग से एक लिफाफा निकाला और उसे सामने ही रखी मेज पर खिसकाते हुये बोलीं- जी.. मै अपने साथ मैत्री की फोटो लायी हूं, ये है मेरी बेटी की फोटो आप सब देख लीजिये...

मैत्री की मम्मी सरोज के लिफाफा मेज पर रखते हुये इस बात को बोलने के बाद बबिता ने तो कोई प्रतिक्रिया नही दी पर ज्योति जो उनके बगल मे ही बैठी थी वो अपनी जगह से उठी और उस लिफाफे को उठाकर खोलने के बाद उसमे से जब मैत्री की फोटो उसने बाहर निकाली तो मैत्री को देखकर आश्चर्यचकित सी होकर वो बोली- अरे ये हैं मैत्री, इनके साथ इतना सब कुछ हुआ है...!!

ऐसा बोलकर ज्योति ने जब मैत्री की फोटो अपनी मम्मी बबिता की तरफ बढ़ायी तो बबिता ने बेमन से अपने बगल मे पड़ा अपना चश्मा लगाते हुये जब मैत्री की फोटो की तरफ देखा तो वो मैत्री को देखती रह गयीं और कुछ सेकंड्स तक मैत्री को देखने के बाद हतप्रभ सी हुयी वो बोलीं- हॉॉॉॉ.... ये तो बड़ी प्यारी बच्ची है, इसको इतना सब कुछ झेलना पड़ा... ( इसके बाद मैत्री को देखकर अफसोस सा करती हुयी वो आगे बोलीं) भगवान भी कैसे कैसे खेल खेलते हैं इतनी प्यारी और मासूम सी बच्ची को इतना दुख देते हुये भगवान को जरा सा भी तरस नही आया.... (पास ही बैठे अपने पति विजय की तरफ मैत्री की फोटो को बढ़ाते हुये बबिता ने कहा) देखिये इस प्यारी सी बच्ची के साथ इतना कुछ हो गया...

बबिता के इस तरह से अपनी बात कहते हुये मैत्री की फोटो को अपनी तरफ बढ़ा कर दिखाने पर विजय ने मैत्री की फोटो को देखा और उसके बाद उस रात से नाराज हुयी बबिता की तरफ देखने लगे इसके बाद उन्होंने फिर मैत्री की फोटो की तरफ देखा और फिर से एक बार बबिता की तरफ देख कर मुस्कुराने लगे!!

विजय को इस तरह से अपनी तरफ देखकर मुस्कुराते हुये देखके बबिता भी समझ गयीं कि विजय ऐसा क्यो कर रहे हैं इसलिये झेंपी हुयी हल्की सी हंसी हंसते हुये वो उनसे बोलीं- मुझे क्या देख रहे हैं मैत्री को देखिये ना...

बबिता की बात सुनकर मुस्कुराते हुये विजय ने कहा- देख लिया, बहुत प्यारी और मासूम सी बच्ची है...

विजय की बात सुनकर दो दिन से नाराज बबिता भी मुस्कुराने लगीं लेकिन इन सबकी बाते सुनते हुये मैत्री की मम्मी सरोज थोड़ा घबराई हुयी थीं ये सोचकर कि कहीं कोई मना ना करदे, वो आशाओ भरी नजरो से अपनी बेटी मैत्री के उज्जवल भविष्य के सपने लिये कभी जतिन को देखतीं तो कभी मैत्री की फोटो देखकर रियेक्ट करती ज्योति को तो कभी जतिन के मम्मी पापा को एक दूसरे से बात करते, वो ये सब देख ही रही थीं कि तभी बबिता ने एक ऐसी बात कह दी जिसकी कल्पना मैत्री की मम्मी सरोज ने तो क्या खुद जतिन, ज्योति और विजय ने भी नही करी थी... बबिता ने कहा- बहन जी मुझे मैत्री बहुत पसंद है, आगे का कार्यक्रम जो भी होगा जैसा भी होगा वो बिल्कुल वैसा होगा जैसा आप लोग चाहेंगे...

मैत्री के जीवन मे इतनी कम उम्र मे आये दुख के उस तूफान को अपनी आंखो से देखने और सहने वाली उसकी मम्मी सरोज.. जतिन के परिवार से मिली इतनी सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखकर वहीं बैठे बैठे बहुत भावुक हो गयीं और उनकी आंखो मे आंसू आ गये और वो अपनी आंखे पोंछने लगीं, सरोज को ऐसे भावुक होते देखकर बबिता अपनी जगह से उठीं और उनके पास जाकर उनके आंसू पोंछते हुये बोलीं- बहन जी अब आप दुखी मत हो, जितना दुखी होना था उतना दुखी हो चुकीं आप लेकिन अब हम आपको दुखी नही होने देंगे, हम इसी हफ्ते मे मैत्री से मिलने लखनऊ आ रहे हैं....

इतना कहकर बबिता ने पास ही रखे मिठाई के डिब्बे को खोला और सरोज को मिठाई का एक टुकड़ा खिलाते हुये बोलीं- आप मुंह मीठा करिये और ऐसे खुशी के मौके पर दुखी नही हुआ करते....

बबिता की बात सुनकर वहां मौजूद सारे लोग खुश हो गये और सब लोगों में सबसे जादा खुश जतिन था, जतिन और उसके परिवार के लखनऊ आने की बात होने के थोड़ी देर बाद ही राजेश, उसके पापा और ताई जी सरोज जतिन के घर से लखनऊ के लिये निकल गये, उन लोगो के जाने के बाद बबिता ने घर के सभी सदस्यो के सामने बोला- अब समझ मे आया कि जतिन उस दिन इतना परेशान क्यो था, मैत्री है ही इतनी प्यारी... (जतिन ज्योति और अपने पति से माफी मांगते हुये बबिता ने कहा) मेरे उस दिन के व्यवहार के लिये आप सबसे दिल से सॉरी..!! मुझे बिना जाने बिना समझे ऐसे व्यवहार नही करना चाहिये था...

अपनी मम्मी बबिता को इस तरह से माफी मांगते देखकर जतिन और ज्योति दोनो को बहुत बुरा लगा और दोनो अपनी अपनी जगहो से एक साथ उठकर बबिता के पैरो के पास आकर बैठ गये और बबिता के दोनो हाथ पकड़ कर पहले जतिन ने कहा- नही मम्मी आप ऐसे सॉरी मत बोलो आप अपनी जगह बिल्कुल सही थीं, आपसे कोई शिकायत ही नही है जब तो सॉरी क्यो बोल रही हो आप...? आप बड़ी हैं मेरी मां हैं आप अगर उस दिन ना मानतीं तो मै अपनी जिद छोड़ देता पर आपकी बात कभी नही टालता....

असल मे जतिन को पता ही नही था कि उस दिन उसके कमरे मे जाने के बाद विजय, ज्योति और बबिता के बीच मे क्या बात हुयी थी और घर मे सब लोग ये जानते थे कि जतिन को कुछ नही पता उसे यही लग रहा था की बबिता खुद से ही मैत्री के परिवार वालो से मिलने के लिये राजी हुयी हैं इसलिये जतिन के अपनी बात करने के बाद ज्योति सिर झुकाकर हंसने लगी और बबिता का हाथ अपने हाथों मे लेकर बोली- मम्मी मुझे भी उस दिन आपसे कसम वाली बात नही करनी चाहिये थी, प्लीज मुझे माफ कर दीजिये....

ज्योति के कसम वाली बात बोलने के बाद जतिन ने जब पूछा कि आखिर माजरा क्या है तब उसे बताया गया कि असल मे उस दिन उसके अपने कमरे मे जाने के बाद क्या क्या हुआ था, सारी बात जानने के बाद जतिन ने कहा- अच्छा तो ये बात है लेकिन सब खुश तो हैं ना चाहे इस तरीके से चाहे उस तरीके से!! बस यही काफी है..

जतिन की ये बात सुनकर बबिता ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते हुये अपना मूड बिल्कुल ठीक कर लिया.....

क्रमश: