कुकड़ुकू - भाग 4 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 4

रात मे खाने खाने के बाद रघु और उसके मम्मी पापा चैन की नींद सो गए। आधी रात मे अचानक बकरियों की चिल्लाने की आवाज आने लगी। आवाज सुनकर शांति और सुशील की नींद खुल गई। दोनो ने जब बाहर जाकर देखा तो कुछ जंगली कुत्ते एक बकरी को पकड़कर खींच रहे थे। सुशील ने पत्थर उठाया और कुत्तों को मारने लगा। लेकिन कुत्ते थे की वहां से भागने को तैयार ही नहीं थे। तभी सुशील का पत्थर एक कुत्ते को जा लगा। उसी समय सभी कुत्ते वहां से भाग गए।

शांति और सुशील ने जब बकरी को देखा तो बकरी की हालत खराब थी। शांति ने कुछ इमली के बीज सेंके और फिर बकरी के घाव को गरम बिज से दागने लगी। दागने के बाद एक कपड़े से बकरी के घाव पर पट्टी बांध दी, और फिर बकरियों को बाड़े के अंदर करके शांति और सुशील सोने चले गए।

सुबह सुबह चार बजे सुशील खेतों मे पानी छोड़ने के लिए रवाना हो गया। वहीं शांति भी जल्दी उठकर साफ सफाई और घर के काम मे लग गई।

सुबह के सात बजे तक सुशील खेतों मे पानी छोड़कर वापस घर आ चुका था। “शांति आज बकरियों को चराने मत ले जाना, एक दो दिन बाड़े मे ही रहने देना। मैने चारा लाकर रख दिया है, उन्हे वही चारा डाल देना। और हां, रघु से कहना की स्कूल से आने के बाद बकरियों को थोड़ी देर घर के आस पास चारा ले।” सुशील ने शांति से कहा और आंगन मे बैठकर दातुन करने लगा।

“रघु...! चल बेटा उठ जा, स्कूल के लिए तैयार भी होना है। चल जल्दी उठ और पापा के साथ कुवें पर नहाने चला जा , तब तक मैं तेरा नाश्ता तैयार कर देती हूं।” शांति ने रघु को जगाते हुए कहा और नाश्ता बनाने के लिए रसोई मे चली गई।

रघु भी अपने पापा के साथ नहाने के लिए कुवें पर चला गया। शांति नाश्ता तैयार करने के बाद आंगन मे बैठकर धान सुखा रही थी की उसकी पड़ोसन उसके पास आई और बोली, “शांति बहन...! रात मे तुम्हारे यहां से बकरियों के इतना चिल्लाने की आवाज क्यों आ रही थी ?”

“दीदी वो रात मे कुछ जंगली कुत्ते एक बकरी को खींचकर ले जा रहे थे, अगर मेरी और रघु के पापा की नींद नहीं खुली होती तो वो कुत्ते बकरी को मारकर खा चुके होते।” शांति ने अपनी पड़ोसन से कहा।

“अरे शांति बहन, आजकल ये जंगली कुत्ते घरों के आस पास ज्यादा ही आने लगे हैं। अभी परसों ही सुनने मे आया था की पड़ोस की रानू बहन के बच्चे को खींचकर ले जा रहे थे। अगर लोगों ने देखा नही होता तो वो बच्चा बच नहीं पाता।” उस औरत ने शांति को बताया और फिर उसके बाद खेतों की तरफ चल पड़ी।

थोड़ी देर बाद रघु और सुशील नहाकर वापस आ गए। शांति ने दोनो को नाश्ता दिया और घर के काम मे लग गई।

“रघु बेटा, आज तू खेत पर मत आना, यहीं घर के आस पास बकरियों को चारा लेना और यहीं आस पास रहना।” सुशील ने अपने बेटे रघु से कहा।

“पर पापा मुझे खेत पर आना है, मैं बकरियों को भी खेत पर ले आऊंगा और वहीं चरा लूंगा ।” रघु ने उदासी भरे भाव से अपने पापा से कहा। उसे तो पता ही नही था की रात में क्या हुआ था।

“अरे बेटा समझने की कोशिश कर, बकरियों को चोट लगी है, वो इतनी दूर नहीं जा सकती।” रघु के पापा ने रघु को समझाते हुए कहा।

“पर पापा कल तक तो बकरियां ठीक थी फिर अचानक कब और कैसे चोट लग गई?” रघुने अपने पापा से कहा और बकरियों को देखने लगा। उसने देखा की एक बकरी के पैरों पर कपड़े की पट्टी बंधी हुई थी। उसने अपने पापा की तरफ देखा और पूछा, “पापा इस बकरी को चोट कैसे लग गई?”

“बेटा रात मे जंगली कुत्ते आए थे, उन्होंने इसे काट लिया था, इसलिए वो कुछ दिन इधर उधर नही जा पाएगी।” सुशील ने रघु से कहा।

“ठीक है पापा मैं समझ गया। एक दो दिन मैं यहीं आस पास बकरियों को चरा लूंगा।” इतना कहकर रघु ने अपना बैग उठाया और स्कूल जाने के लिए रवाना हो गया।

रघु अपनी क्लास में बैठा किताब पढ़ रहा था की तभी एक बच्चे ने उससे कहा, “रघु मैने सुना तेरी बकरी को कुत्तों ने पकड़ लिया था, क्या ये बात सच है!”

“हां यार रात मे जंगली कुत्तों ने एक बकरी को पकड़ लिया था, मैं तो गहरी नींद मे सो रहा था, मुझे तो कुछ पता ही नही चला, वो तो मम्मी पापा उठ गए थे। उन्होंने कुत्तों को मारकर भगाया नही तो वो बकरी को मार ही देते। मुझे तो सुबह पापा ने बताया तब पता चला की रात मे क्या हुआ था।” रघु ने उस बच्चे से कहा।

“अरे यार संभल के रहना होगा, आजकल जंगली कुत्ते कुछ ज्यादा ही आने लगे हैं।” उस बच्चे ने रघु की तरफ देखते हुए कहा।

वो सब बात कर ही रहे थे की इतने मे टीचर क्लास मे आ गई और सब चुपचाप बैठ गए। दोपहर के 12 बजे स्कूल की छुट्टी हो गई। रघु अपने दोस्त के साथ घर जा रहा था की तभी किसी ने उसे पीछे से आवाज लगाई। “रघु रूक जा, मेरे लिए रुक, मैं भी चल रही हूं।”

रघु ने जब पीछे पलटकर देखा तो शिल्पा अपनी साइकिल हाथ मे पकड़कर उसकी तरफ पैदल पैदल आ रही थी।

“तुझे सुनाई नही देता क्या? कबसे आवाज दे रही हूं, बस चले जा रहा है।” शिल्पा ने गहरी सांस लेते हुए रघु से कहा। वो बहुत ज्यादा थक गई थी।

“तू मुझे आवाज क्यों दे रही थी! और साइकिल हाथ मे लेकर पैदल क्यों चल रही है?” रघु ने शिल्पा से पूछा।

“अरे मेरी साइकिल पंचर हो गई है इसलिए पैदल चल रही हूं। तुझे आवाज दे रही थी पर तू तो सुन ही नहीं रहा था, ये ले मेरी साइकिल पकड़।” कहते हुए शिल्पा ने अपनी साइकिल रघु को पकड़ा दी।

रघु किसी की मदद के लिए कभी मना नहीं करता था, और शिल्पा तो उसकी दोस्त थी। उसने साइकिल पकड़ी और चलने लगा।

“मैने सुना रात मे तेरी बकरी को कुत्तों ने पकड़ लिया था!” शिल्पा ने रघु से पूछा।

“हां रात मे मेरी बकरी को कुत्तों ने पकड़ लिया था, पर तुझे किसने बताया?” रघु ने शिल्पा से पूछा।

“अरे सुबह मम्मी ने बताया। वो सुबह तेरी मम्मी से मिली थी तब तेरी मम्मी ने उन्हें बताया था।” शिल्पा ने रघु की तरफ देखते हुए कहा और आगे चलने लगी।

उनका थोड़ी दूर चलना ही हुआ था की शिल्पा ने कहा, “वो देख रघु , उस पेड़ पर कितने सारे पके आम लगे हैं, चल तोड़ते हैं।”

“अरे शिल्पा घर पहुंचने मे देरी हो जायेगी, चल फिर किसी दिन आम खा लेना।” रघु ने इतना कहकर शिल्पा की तरफ देखा तो शिल्पा उसे घूरके गुस्से मे देख रही थी।

“तुझे जाना है तो जा, मैं तो आम खाकर रहूंगी।” शिल्पा ने कहा और उदास सा चेहरा बना लिया।

“अरे यार क्या मुसीबत है ! चल ठीक है, अब तू इतनी जिद्द कर रही है तो आम तोड़ना ही पड़ेगा।” इतना कहकर रघु ने कुछ पत्थर उठाए और आम गिराने लगा। रघु आम तोड़ की बहुत कोशिश कर रहा था लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी एक भी आम नही गिरा।

“शिल्पा...! आम नही टूट रहा यार, चल चलते हैं।” रघु ने हांफते हुए शिल्पा की तरफ देख कर कहा।

“मुझे कुछ नही पता, मुझे तो आम खाना ही है। एक काम कर तू पेड़ पर चढ़कर आम तोड़ दे।” शिल्पा ने रघु से कहा और आम के पेड़ की तरफ देखने लगी। शिल्पा बहुत जिद्धी थी। वो आम खाय बिना वहां से जाने वाली नही थी।

रघु ने जैसे ही ये सुना तो हैरान नजरों से शिल्पा की तरफ देखते हुए बोला, “तेरा दिमाग खराब है क्या? मैं नहीं चढ़ने वाला इस पेड़ पर। तुझे इतना आम खाने का शौक है तो तू खुद ही चढ़ जा पेड़ पर।” इतना कहकर रघु गुस्से से शिल्पा को देखने लगा।

“अगर मैं पेड़ पर चढ़ पाती तो तुझे बोलती क्या? अब तक तो पेड़ पर चढ़ चुकी होती।” शिल्पा ने मुंह फुलाते हुए कहा।

“अरे तो मैं कोनसा चढ़ सकता हूं...! और अगर मै पेड़ पर से गिर गया तो मां से अलग डांट पड़ेगी।” रघु ने शिल्पा से कहा। रघु मन ही मन सोचने लगा की कहां फंस गया, अगर मंगल के साथ चला जाता तो ये मुसीबत गले नही पड़ती।

“तू कितना डरपोक है, तेरे जैसा डरपोक मैने आज तक नही देखा।” शिल्पा ने रघु का मजाक उड़ाते हुए कहा। ये सुनते ही रघु को गुस्सा आ गया। उसने पत्थर उठाया और गुस्से मे पेड़ पर लगे आम की तरफ मार दिया। वो पत्थर सीधा एक आम पर जाकर लगा, और आम टूट कर नीचे गिर गया।

शिल्पा के सामने जैसे ही आम गिरा, उसने फटाक से वो आम उठा लिया। रघु ने ऊपर आसमान की तरफ देखा और कहा, “अच्छा हुआ भगवान आम टूट गया, नही तो ये शिल्पा की बच्ची मुझे जिंदगी भर डरपोक कहकर चिढ़ाती और मेरा मजाक उड़ाती।”

इसके बाद रघु ने खिसयाई हुई नजरों से शिल्पा को देखते हुए कहा, “अब घर चले या और भी आम चाहिए तुझे?”

“हां...हां...चल ना, मैने कहां तुझे रोक रखा है।” शिल्पा ने आम खाते हुए रघु से कहा।

दोनो चलते चलते एक पंचर की दुकान पर पहुंच गए। शिल्पा ने अपनी साइकिल का पंचर बनवाया और साइकिल पर बैठकर अपने घर जाने के लिए रवाना हो गई। उसने रघु को अपने साथ चलने के लिए पूछा तक नहीं। रघु खड़े खड़े बस उसको जाते हुए देखता रहा। “क्या लड़की है यार, साथ मे चलने को भी नही कहा।” रघु ने मन ही मन सोचा और फिर वो भी अपने घर की तरफ चल पड़ा।

जल्द मिलते हैं कहानी के अगले भाग मे। तब तक के लिए अलविदा।