लागा चुनरी में दाग़--भाग(५५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(५५)

प्रत्यन्चा धनुष को आउटहाउस से खाना खिलाकर वापस आ गई, लेकिन फिर वहाँ से वापस आकर उससे खाना नहीं खाया गया,वो इसके बाद अपने कमरे में चली आई और धनुष की बातों को सोच सोचकर रोती रही, उसने मन में सोचा कितना चाहते हैं धनुष बाबू उसे,लेकिन वे अपनी चाहत को जाहिर क्यों नहीं करते, उन्होंने खुद को इतना बेबस क्यों बना रखा है,अगर वे मुझसे अपने दिल की बात कह दें तो शायद मैं भी....
प्रत्यन्चा ये सब अभी सोच ही रही थी कि तभी भागीरथ जी उसे खोजते हुए उसके कमरे में आएँ और उससे बोले...
"बेटी! अभी डाक्टर सतीश का अस्पताल से टेलीफोन आया था,कह रहे थे कि उनकी माँ सगाई की तारीख के लिए पूछ रहीं थीं,शायद वे सगाई की तारीख पक्की करने शाम को घर आएँ",
"लेकिन दादाजी! इतनी भी जल्दी क्या है सगाई करने की",प्रत्यन्चा बोली ...
"हमें जल्दी नहीं है बेटी! शायद उन्हें जल्दी हैं,हम तो चाहते हैं कि तू अभी हमारे घर में कुछ दिन और रहे", भागीरथ जी बोले...
"दादाजी! मैं भी आप सबको इतनी जल्दी छोड़कर नहीं जाना चाहती",प्रत्यन्चा उदास होकर बोली...
"भला ! कौन चाहेगा कि तुझ जैसी नेकदिल लड़की इस घर से चली जाएँ,तूने तो इस घर को सँवार दिया है, घर की खोई हुई खुशियाँ लौटाईं हैं",भागीरथ जी बोले...
"दादाजी! अभी सगाई मत करवाइए ना!",प्रत्यन्चा ने विनती की...
"ये हमारे वश में नहीं है बिटिया! अगर होता तो हम तो तुझे इस घर से कभी ना जाने देते", भागीरथ जी भावुक होकर बोले...
"जी! मैं समझ सकती हूँ,लेकिन सगाई अभी टल जाती तो अच्छा रहता",प्रत्यन्चा बोली...
"वो तो शाम को ही उन लोगों के घर आने के बाद पता चलेगा,अगर उन्होंने सगाई के लिए जल्दी की तो हम पूरी कोशिश करेगें कि सगाई कुछ दिन और टल जाएँ",भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा को तसल्ली देते हुए कहा....
और यूँ ही भागीरथ जी से प्रत्यन्चा की बातें चलतीं रहीं,शाम को डाक्टर सतीश और उनकी माँ जब घर आएँ तो उन्होंने एक हफ्ते बाद की सगाई की तारीख बताई,तब भागीरथ जी बोले....
"ये थोड़ी जल्दी नहीं है डाक्टर साहब!",
"नहीं! दीवान साहब! कोई जल्दी नहीं है,मेरा वश चले तो मैं तो प्रत्यन्चा को अभी इसी वक्त अपनी बहू बनाकर अपने घर ले जाऊँ",डाक्टर सतीश की माँ शीलवती जी बोलीं....
"ठीक है! जैसा आपको सही लगे,अब हम क्या कर सकते हैं इसमें",भागीरथ जी बोले...
"तो ठीक है कल शाम मैं प्रत्यन्चा को लेने आऊँगीं,उससे कहिएगा कि वो तैयार रहे,सगाई के लिए अँगूठी और कुछ कपड़े पसंद करने हैं उसके लिए,वो साथ चलेगी तो मुझे उसकी पसंद नापसंद पता चल जाऐगी", शीलवती जी बोलीं...
"जी! हम उससे कल शाम तैयार होने के लिए कह देगें",भागीरथ जी बोले....
"वैसे वो हैं कहाँ,दिख नहीं रहीं हैं",डाक्टर सतीश ने पूछा...
"शरमा रही होगी,इसलिए शायद अपने कमरे से बाहर नहीं निकली",विलसिया काकी मुस्कुराते हुए बोली...
"अगर आपको एतराज़ ना हो तो क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ",डाक्टर सतीश ने दीवान साहब से पूछा....
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं,अब तो वो आपकी ही अमानत है,वो अपने कमरे में होगी,आप बेझिझक उसके कमरे में जा सकते हैं",भागीरथ जी ने कहा....
इसके बाद डाक्टर सतीश भागीरथ जी से इजाजत लेकर प्रत्यन्चा के कमरे के बाहर पहुँचे और उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी,तब प्रत्यन्चा ने दरवाजों के पीछे से पूछा...
"कौन...?
"जी! मैं हूँ डाक्टर सतीश",डाक्टर सतीश ने कहा...
इसके बाद प्रत्यन्चा ने अपना दुपट्टा ठीक किया और बोली...
"भीतर आ जाइए",
फिर डाक्टर सतीश कमरे के भीतर पहुँचे तो प्रत्यन्चा अपने बिस्तर से उठकर खड़ी होकर उनसे बोली...
"जी! बैठिए"
फिर डाक्टर सतीश सकुचाते से बिस्तर पर बैठ गए और प्रत्यन्चा से बोले...
"आप क्यों खड़ी हों गईं,आप भी बैठिए ना!"
फिर बिस्तर के दूसरी ओर थोड़ी दूर बनाकर प्रत्यन्चा भी बैठ गई और उसने डाक्टर सतीश से पूछा...
"जी! कोई खास काम था क्या आपको मुझसे"
"जी! ये पूछना था कि आप इस शादी से खुश तो हैं ना!",डाक्टर सतीश बोले....
"जी! लेकिन आप मुझसे ये सवाल क्यों पूछ रहे हैं",प्रत्यन्चा बोली...
"मुझे लगा कि आपसे से भी पूछ लेना चाहिए कि आप इस शादी से खुश हैं या नहीं",डाक्टर सतीश बोले...
"जी! हमारे समाज में बड़े बुजुर्गों के आगें लड़कियाँ किसी बात की आपत्ति नहीं जताया करतीं,जो बड़ो ने चुना होगा वो उसके भविष्य के लिए सही ही होगा",प्रत्यन्चा बोली...
"मेरे सवाल का ये तो कोई जवाब ना हुआ",डाक्टर सतीश बोले...
"मुझे जो जवाब उचित लगा सो मैंने दे दिया",प्रत्यन्चा बोली...
"मतलब इस शादी के लिए आपकी सहमति है",डाक्टर सतीश बोले...
"एक बात को बार बार पूछना ठीक नहीं है",प्रत्यन्चा बोली...
"जी! मैं सब समझ गया,अब मैं चलता हूँ,मैं बस आपसे यही पूछने आया था",
और इतना कहकर डाक्टर सतीश खुशी खुशी प्रत्यन्चा के कमरे से लौट आएँ,उनके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि वे प्रत्यन्चा के जवाब से खुश थे,कुछ देर के बाद डाक्टर सतीश और उनकी माँ भागीरथ जी से मिलकर अपने घर चले गए...
फिर उनके जाने के बाद प्रत्यन्चा अपने कमरे से बाहर निकली,भागीरथ जी से उसने थोड़ी बहुत बातें की और फिर वो रात का खाना बनाने के लिए रसोई में चली गई,रात के करीब साढ़े आठ बज रहे थे और प्रत्यन्चा खाना बनाकर डाइनिंग टेबल पर लगा चुकी थी,तेजपाल जी भी दफ्तर से आ चुके थे, सभी बस धनुष के बाहर से आने का इन्तजार कर रहे थे और तभी धनुष शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए घर में दाखिल हुआ,उसकी हालत देखकर सभी अचम्भित थे क्योंकि धनुष तो शराब पीना छोड़ चुका था तो फिर ये सब क्या था,लेकिन उस समय प्रत्यन्चा ने भागीरथ जी और तेजपाल जी को इशारों में शान्त रहने को कहा...
फिर धनुष लड़खड़ाते हुए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया और सभी बर्तनों से ढ़क्कन उठाकर बोला....
"मैं ये खाना नहीं खाऊँगा,मुझे ये दाल और परवल की सब्जी नहीं खानी,प्रत्यन्चा....तुम मेरे लिए कुछ और बनाकर लाओ"
ऐसा कहकर वो टेबल से उठने लगा तो खुद को सम्भाल नहीं पाया और धम्म... से फर्श पर गिर पड़ा, फिर बड़ी मुश्किल से वो फर्श से उठ पाया तो उसकी हालत देखकर तेजपाल जी से ना रहा गया और वे धनुष से बोले...
"ये क्या हाल बना रखा है?"
तब प्रत्यन्चा तेजपाल जी से बोली...
"चाचाजी! आप शान्त रहिए ना!"
इसके बाद धनुष प्रत्यन्चा से शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए बोला...
"तुमने सुना नहीं प्रत्यन्चा! कि मैंने तुमसे क्या कहा,तुम मेरे अभी आलू की सब्जी और पूरी बनाओ,मैं नाँनवेज बनाने को कहता तुमसे लेकिन तुम वो ना खाती हो और ना बनाती हो,इसलिए आलू की सब्जी और पूरियाँ बनाओ,मैं आउटहाउस जा रहा हूँ,तुम मेरा खाना लेकर वहीं आ जाना"
और ऐसा कहकर धनुष आउटहाउस जाने लगा तो तेजपाल जी ने धनुष से सख्त लहजे में कहा...
"ये क्या बतमीजी है धनुष!"
"चाचाजी! आप शान्त रहिए ना! मैं आलू की सब्जी और पूरियाँ बना देती हूँ,आप लोग तब तक खाना खाइए"
और फिर धनुष प्रत्यन्चा को आर्डर देकर आउटहाउस चला गया और प्रत्यन्चा आलू की सब्जी और पूरियाँ बनाने रसोईघर में चली गई...
इसके बाद वो खाना बनाकर आउटहाउस ले गई,वो वहाँ पहुँची तो धनुष शराब की बोतल और गिलास लेकर सोफे पर बैठा था,प्रत्यन्चा ने आलू की सब्जी और पूरियाँ टेबल पर रखते हुए कहा...
"लीजिए! खा लीजिए!"
"अरे! तुम तो सच में मेरी पसंद का खाना बनाकर ले आई,वैसे इतनी मेहरबानी क्यों कर रही हो तुम मुझ पर",धनुष ने पूछा...
"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मैं ऐसा क्यों ना कहूँ,क्योंकि तुम जैसी बेरहम लड़की मैंने पहले कभी नहीं देखी",धनुष गुस्से से बोला...
"मैं....और बेरहम,वो भला क्यों"?,प्रत्यन्चा ने पूछा...
"मुझे अभी भूख लगी है,खाना खाने दो,तुमसे सवाल जवाब करने की फुरसत नहीं मुझे"
और ऐसा कहकर धनुष खाना खाने की कोशिश करने लगा,लेकिन वो बहुत ज्यादा नशे में था और ठीक से खाना नहीं खा पा रहा था,हिलते डुलते उसने बस दो तीन निवाले ही खा पाएँ थे लेकिन खुद पर इतना खाना गिरा लिया जैसे कि कोई छोटा बच्चा खाना खा रहा हो,प्रत्यन्चा से ये देखा नहीं गया और उसने उससे कहा...
"मैं खिला दूँ"
"नहीं! बस तुम मेरी नजरों के सामने से चली जाओ",धनुष बोला...
"नहीं जाऊँगी",प्रत्यन्चा बोली....
"अब जाओ यहाँ से,मुझे किसी की जरुरत नहीं है,मैं अकेले रह सकता हूँ"
और फिर धनुष ऐसा कहकर लड़खड़ाते हुए सोफे से उठा और उसने गुस्से में आकर प्रत्यन्चा को धक्का देते हुए कहा...
"जाओ! यहाँ से!",
फिर प्रत्यन्चा खुद को सम्भाल नहीं पाई और वो फर्श पर गिर पड़ी,प्रत्यन्चा को फर्श पर गिरा हुआ देखकर धनुष उससे बोला...
"क्यों जिद़ करती हो,मैंनें कहा ना कि जाओ यहाँ से,गिर पड़ी ना! क्यों गुस्सा दिलाती हो मुझे"
इसके बाद प्रत्यन्चा फर्श से उठी और रोते हुए वापस चली गई....


क्रमशः...
सरोज वर्मा...