जब भोर हुई तो विलसिया ,सनातन,पुरातन और प्रत्यन्चा ड्राइवर रामानुज के साथ अस्पताल की ओर चल पड़े,वे सभी अस्पताल पहुँचे तो पता चला कि धनुष को अभी तक होश नहीं आया है,भागीरथ जी ने बहुत मायूस होकर सबसे ये बात कही....
तब विलसिया भागीरथ जी से बोली....
"बड़े मालिक! दुखी होबे की जरूरत नाहीं है,हमार छुटके बाबू का कुछु ना होई,देखिओ तनिक देर मा हम सबही का खुशखबरी मिल जाई कि हमार छोटे बाबू एकदम ठीक हैं"
"आशा तो यही है विलसिया! हमने तो खुद को सम्भाल लिया है लेकिन उसके बाप को तो देखो,कैंसा परेशान दिख रहा है,रात भर से बैठा तक नहीं है,बस यूँ ही तब से टहल रहा है", भागीरथ जी ने तेजपाल जी की ओर इशारा करते हुए कहा....
फिर भागीरथ जी की बात सुनकर प्रत्यन्चा उनसे बोली...
"आप चिन्ता ना करें दादाजी! मैं चाचाजी को समझाती हूँ"
और इतना कहकर प्रत्यन्चा तेजपाल जी के पास पहुँचकर उनसे बोली....
"चाचाजी! आपके लिए चाय लाऊँ,मैं घर से थरमस में चाय बनाकर लाई हूँ"
"रहने दे बेटी! अभी कुछ नहीं सुहा रहा है मुझे",तेजपाल जी प्रत्यन्चा से बोले....
"चाचाजी! आप यूँ मायूस रहेगें तो कैंसे चलेगा,एक बार दादा जी की तरफ भी तो देखिए,जैसे आपको अपने बेटे की चिन्ता है,वैसे ही आपको परेशान देखकर दादाजी को भी आपकी चिन्ता हो रही है,इसलिए उनका मन रखने के लिए ही चाय पी लीजिए,उनके दिल को थोड़ी तसल्ली मिलेगी"
फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर तेजपाल जी उससे बोले....
"ठीक है! ले आओ चाय और बाबूजी को भी चाय पिला दो"
इसके बाद प्रत्यन्चा ने सबको चाय दी और चाय पीने के बाद एक नर्स बाहर आकर बोली....
"आपके मरीज को होश आ गया है,अब आप उनसे मिल सकते हैं,लेकिन सब इकट्ठे नहीं एक एक करके उनसे मिलने जाइएगा",
ये सुनकर सबको बहुत राहत पहुँची और सबसे पहले धनुष को देखने के लिए तेजपाल जी भीतर गए...
जब तेजपाल जी भीतर जाने लगे तो भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा को उनके साथ जाने का इशारा किया और प्रत्यन्चा भी तेजपाल जी के पीछे पीछे धनुष को देखने चल पड़ी....
तेजपाल जी भीतर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि धनुष बिस्तर पर लेटा हुआ है और उसके माथे पर पट्टी बँधी हुई है,दाएँ हाथ की हथेली में भी प्लास्टर चढ़ा है और पैर में ज्यादा चोट नहीं आई है,केवल वहाँ पर पट्टी बँधी हुई है,तेजपाल जी वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए और धनुष से पूछा....
"कैंसे हो?"
तब धनुष धीरे से बोला...
"ठीक हूँ"
तब तेजपाल जी धनुष से बोले....
"मेरी तो जैसे जान ही निकल गई थी तेरे एक्सीडेण्ट की बात सुन कर के,भगवान का लाख लाख शुकर है कि तू सही सलामत है,इतना क्यों सताता है तू अपने बूढ़े बाप को,तुझे कुछ हो जाता तो मैं तेरी मरी हुई माँ को क्या मुँह दिखाता,बेटा! जिन्दगी को खिलवाड़ समझकर मत जी,अभी समय है सम्भल जा,जब मैं ना रहूँगा ना इस दुनिया में, तो तब तेरे नखरे उठाने वाला कोई ना होगा"
और ऐसा कहते कहते तेजपाल जी की आँखों से गंगा जमुना बहने लगी,जिन आँसुओं को वो रात भर से अपनी आँखों के कोरों में समेटे हुए थे ,वे आँसू अब उन आँखों में नहीं समाना चाहते थे,बेटे का दुख देखकर वे आँसू खुदबखुद बाहर आने को आतुर हो उठे और फिर अपने पिता की आँखों में आँसू देखकर धनुष तेजपाल जी से बोला....
"मुझे माँफ कर दीजिए पापा!....मत रोइए,क्यों अपने बिगड़ैल बेटे के लिए अपने इतने कीमती आँसू बहा रहे हैं"
"बेटा चाहे बिगड़ैल हो या शिष्ट,...बेटा तो बेटा ही होता है,तू मेरा खून है,तेरी माँ के जाने के बाद मैंने तुझे अकेले ही पालपोस कर बड़ा किया है,अगर तुझे चोट लगेगी तो मुझे दर्द भी होगा और मेरे मुँह से आह भी निकलेगी",तेजपाल जी अपने आँसू पोछते हुए बोले....
"पापा...मत रोइए ना प्लीज! मैं आपको ऐसे नहीं देख सकता,मुझे अपने अकड़ू पापा ही अच्छे लगते हैं"
धनुष ने इतना कहा तो तेजपाल जी के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और वो धनुष से बोले....
"मैं अब बाहर जा रहा हूँ,क्योंकि सभी तुम्हें देखना चाहते हैं",
इतना कहकर तेजपाल जी बाहर चले गए और वहीं खड़ी प्रत्यन्चा ने धनुष से पूछा...
"अब कैंसे हैं आप!"
"तुम से मतलब",धनुष बोला...
"रस्सी जल गई लेकिन ऐठन ना गई....खड़ूस!"
और इतना कहकर प्रत्यन्चा भी बाहर चली गई और तेजपाल जी के पास जाकर बोली...
"देखा ! चाचाजी! आप नाहक ही परेशान हो रहे थे,धनुष बाबू एकदम ठीक हैं,जो चोटें उन्हें लगी हैं वो भी कुछ दिनों में बिलकुल से ठीक हो जाऐगीं,देखिएगा फिर वे आपके सामने दोबारा घोड़े की तरह दौड़ने लगेगें"
और प्रत्यन्चा ये बोलते बोलते रुक गई क्योंकि उसे लगा कि शायद वो कुछ गलत बोल गई,तब तेजपाल जी ने उससे सख्त लहज़े में कहा....
"घोड़े की तरह...तुम्हारा मतलब क्या है घोड़े की तरह"
"जी! जैसे घोड़ा दौड़ता है ना ! टगबग...टगबग,बिल्कुल वैसे ही ",प्रत्यन्चा आँखें बड़ी करती हुई धीरे से बोली...
फिर प्रत्यन्चा की बात सुनकर तेजपाल जी ठहाका मारकर हँस पड़े और उससे बोले....
"हाँ! मैं भी यही चाहता हूँ कि वो फिर से घोड़े की तरह टगबग...टगबग दौड़ने लगे"
और फिर प्रत्यन्चा ने शर्म से अपनी नजरें झुका लीं और वहाँ से जाने में ही अपनी भलाई समझी,फिर वो भागी भागी भागीरथ जी के पास पहुँची और उनसे बोली...
"धनुष बाबू बिलकुल ठीक हैं दादाजी!,अब आप जाकर उनसे मिल आइए"
"अच्छा! चल हम भी उसे देखकर आते हैं " भागीरथ जी बोले...
"आप उन्हें देखने तो जा रहे हैं उन्हें, लेकिन चाचाजी की तरह आप भी उनसे मिलकर गंगा जमुना ना बहाने लगिएगा" प्रत्यन्चा बोली...
"क्या कहा तूने!,वो रो रहा था?"भागीरथ जी ने चौंकते हुए पूछा...
"हाँ! सच में,वे रो रहे थे",प्रत्यन्चा आँखें मटकाते हुए बोली....
"आखिर बाप है उसका,इतना बेरहम थोड़े ही हो सकता है कि बेटे का दुख देखकर उसकी आँखों में आँसू ना आएँ",भागीरथ जी बोले....
"जी! सच कहा आपने",प्रत्यन्चा बोली...
"अच्छा! ठीक है हम भी उसे देख आते हैं,फिर यहाँ के डाक्टर साहब से इजाजत लेकर धनुष को अपने अस्पताल भी तो ले चलना है",भागीरथ जी बोले...
"वो क्यों?,दादाजी!"प्रत्यन्चा ने पूछा...
"वो इसलिए कि हमारे अस्पताल में यहाँ के अस्पताल के मुकाबले बहुत ज्यादा सुविधाएँ हैं" भागीरथ जी बोले....
"तब तो उन्हें यहाँ से ले चलना ही ठीक रहेगा",प्रत्यन्चा बोली....
"आ! जा! तू भी चल हमारे साथ धनुष को देखने",भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से कहा...
"जी! मैं अब दोबारा ना जाऊँगी उन्हें देखने",प्रत्यन्चा मुँह बनाकर बोली...
"लेकिन क्यों?",भागीरथ जी ने पूछा...
"वो इसलिए कि मैंने उनसे पूछा कि कैंसे हैं अब आप तो वे मुझसे बोले कि तुमसे क्या मतलब,इसलिए अब दोबारा ना जाऊँगी मैं उन्हें देखने",प्रत्यन्चा बोली....
प्रत्यन्चा की बात पर पहले तो भागीरथ जी मुस्कुराएँ फिर बोले...
"अच्छा! तू मत जा!,हम ही होकर आते हैं",
और फिर भागीरथ जी धनुष को देखने चले गए,इसके बाद धनुष को देखने विलसिया काकी और बाक़ी के नौकर भी वहाँ गए,फिर डाक्टर साहब की इजाजत लेकर भागीरथ जी ने अपने अस्पताल से एम्बुलेंस मँगवाई और इसके बाद धनुष को अपने अस्पताल में शिफ्ट करवा दिया गया,वहाँ डाक्टर सतीश राय ने धनुष की देखभाल की जिम्मेदारी ले ली और उसे एक प्राइवेट रुम में शिफ्ट करके एक नर्स भी लगा दी जो हर वक्त धनुष का ख्याल रखेगी....
इसके बाद डाक्टर सतीश राय ने भागीरथ जी और तेजपाल जी से घर लौट जाने को कहा, लेकिन तेजपाल जी का मन नहीं था धनुष को छोड़कर वापस घर जाने का तब प्रत्यन्चा उनसे बोली....
"चाचाजी! अब आप घर चलकर स्नान करके कुछ खा लीजिए,आप रात भर से यहाँ हैं,ऐसे तो आपकी सेहद बिगड़ जाऐगी तो फिर कैंसे आप धनुष बाबू का ख्याल रख पाऐगें"
और फिर तेजपाल जी प्रत्यन्चा की बात मान गए,इसके बाद सभी घर आ गए और फिर प्रत्यन्चा स्नान करके जब मंदिर जा रही थी तो तब तेजपाल जी उससे बोले...
"प्रत्यन्चा! आज मैं भी तुम्हारे साथ मंदिर चलता हूँ,मुझे भगवान का शुक्रिया अदा करना है,मेरा धनुष सही सलामत मेरी आँखों के सामने है,ये सब उनकी ही कृपा है"
और फिर इसके बाद तेजपाल जी प्रत्यन्चा के साथ मंदिर की ओर बढ़ गए...
क्रमशः...
सरोज वर्मा...