उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 24 Neerja Hemendra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - भाग 24

भाग 24

बहुत दिनों के पश्चात् राजेश्वर का फोन आया था। उसे अच्छा लगा कि राजेश्वर इतना स्वस्थ को गया है कि कम से कम अब फोन तो कर सकता है। अन्यथा उसने तो सुना था कि वो बिस्तर से उठने व चलने-फिरने तक में असमर्थ हो गया है। फोन उठा कर वह बात करने को तत्पर ही हुई कि उधर से राजेश्वर के स्थान पर किसी स्त्री के स्वर सुन कर वह विस्मित् हो गयी।

" हलो.....हलो....! आप शालिनी दीदी बोल रही हैं क्या...? "

" हाँ......बोल रही हूँ...। उसने धीरे से कहा।

" मैं उनकी.....राजेश्वर जी की पत्नी बोल रही हूँ।.....नमस्ते। " उसने अत्यन्त शालीनता से कहा। राजेश्वर की पत्नी की मधुर आवाज सुनकर उसे अच्छा लग तथा आश्चर्य भी हुआ। आश्चर्य इस बात का कि........राजेश्वर की पत्नी इतनी सरल और मृदु भाषी है, इसका अनुमान शालिनी को नही था। उसने सुना है कि राजेश्वर की पत्नी अधिक पढ़ी-लिखी नही है किन्तु बात करने का ढंग एक शिक्षित व समझदार स्त्री की भाँति था।

" आपको तो पता ही होगा इनके स्वास्थ्य के बारे में......?.... वह रूक-रूक कर बोल रही थी। उसके स्वर में चिन्ता स्पष्ट थी। उसकी बातें शालिनी खामोशी से सुन रही थी, किन्तु कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही कर रही थी।

" आजकल इनका स्वास्थ्य बहुत खराब चल रहा है। उठने-बैठने, चलने-फिरने में असमर्थ हैं। न जाने ऊपर वाले की क्या इच्छा है....? क्यों वह हमारी परीक्षा ले रहा है...? क्यों वह हमें इतनी तकलीफ दे रहा है....? " कहकर वह सुबकने लगी।

" धैर्य रखो। परेशान न हो। सब ठीेक हो जाएगा। " शालिनी ने समझाते हुए राजेश्वर की पत्नी से कहा। इस कठिन समय में इससे अधिक वह और क्या कह सकती थी उससे।

" दीदी जी! ये तो बार-बार मुझसे आपका हाल लेने के लिए कहते हैं। इतनी अस्वथता में भी इन्हें आपकी फ़िक्र रहती है। दिन भर में अनेकों बार आपका नाम उनकी ज़ुबान पर आता है। उनका जी आपमें, मतलब कि आपका हालचाल ठीक है कि नही उसी में लगा रहता है, ये बात मैं जानती हूँ। इसीलिए बो बार-बार आपका हालचाल पूछने के लिए कहते हैं। " राजेश्वर की पत्नी की बातें मैं सुन रही थी।

मात्र सुन ही नही रही थी। सकते में थी। उसकी बातें सुनकर स्तब्थ थी कि जिस बात को शालिनी दुनिया से, राजेश्वर के परिवार से छुपाकर रखना चाह रही थी, रख रही थी, उस बात को इस साधारण-सी स्त्री ने कितनी सरलता से समझा और उतनी ही सरलता से कह भी रही है।

" दीदी, सुना है आजकल आप कुशीनगर आयी हुई हैं। अपने बहुमूल्य समय में से थोड़ा-सा समय हमारे लिए निकाल कर घर आकर इनसे मिल लीजिए। मुझे विश्वास है कि आपसे मिलकर इनका स्वास्थ्य अवश्य ठीक हो जायेगा। इन्हें दवा लगेगी। इनकी साँसें लौट आयेंगी। दीदी आप थोड़ी कृपा कर दीजिए। कुछ देर के लिए घर आकर इनसे अवश्य मिल लीजिए। " शालिनी कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त किए बिना राजेश्वर की पत्नी की बातें सुन रही थी।

" दीदी, फोन मैंने उनसे पूछे बिना किया है इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।......आप आयेंगी न दीदी...? " अत्यन्त उम्मीदों व याचना से भरे स्वर थे उसके।

शालिनी कुछ भी बोलने-कहने में स्वंय को असमर्थ पा रही थी।

" ठीक है। प्रयत्न करती हूँ। " कह कर शालिनी ने फोन रखने की इजाजत मांगी। उसने अत्यन्त निराशा भरे स्वरों में ’ नमस्ते ’ कहा।

फोन रखकर शालिनी सोचने लगी कि राजेश्वर की पत्नी बड़ी ही सुघड़ है। सुना है कि अक्षर ज्ञान से अधिक पढ़ी-लिखी नही है। बातचीत से वो शालिनी को सुघड़ ही नही, समझदार भी लगी। न जाने क्यों शालिनी को उससे ईष्र्या होने लगी।

राजेश्वर की पत्नी कितनी अच्छी महिला है। दो दिनों तक शालिनी के मन में यह मंथन चलता रहा कि राजेश्वर के घर वह जाये या नही? तीसरे दिन शाम के धुँधलके में उसने ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिए कहा। कुछ देर तक शहर में इधर-उधर चक्कर लगाने के पश्चात् उसने ड्राइवर से गाड़ी राजेश्वर के घर की ओर मुड़वा दी। कुछ ही देर में वह राजेश्वर के घर के गेट के भीतर थी। कुछ संकोच के साथ उसने डोरबेल बजा दी। दरवाजा राजेश्वर की पत्नी ने खोला। शालिनी को देखकर प्रसन्नता से उसका चेहरा खिल गया। दोनों हाथ जोड़कर उसने शाालिनी का अभिवादन किया।

" मैं....शा....."

" कुछ भी कहने की आवश्यकता नही है। आप शालिनी दीदी हैं।... आपको देखते ही मैं पहचान गयी। " शालिनी को अपना परिचय देने से पूर्व ही वह बोल पड़ी। राजेश्वर की पत्नी अत्यन्त सुन्दर थी। शालिनी उन्हें प्रथम बार देख रही थी। शालिनी का हाथ पकड़ते हुए वह उसे भीतर की ओर ले जाने लगीं। कदाचित् राजेश्वर के कक्ष की ओर।

" मुझे विश्वास था कि आप अवश्य आयेंगी, किन्तु में मन में निराशा व भय भी था। " चलते-चलते वह बात भी किए जा रही थीं। एक कक्ष के सामने आकर उसने मुझे अन्दर आने का संकेत किया।

" भय कैसा? " मैंने पूछा।

" यही कि आप आयेंगी कि नही....कहीं ऐसा न हो कि आप न आयें...? राजेश्वर की पत्नी ने कहा। उसकी बात सुनकर शालिनी मुस्करा पड़ी।

कुछ ही क्षणों में शालिनी राजेश्वर के कक्ष में थी। उसे देख राजेश्वर आश्चर्यचकित था। वह बिस्तर से उठने का प्रयत्न करने लगा। शालिनी ने देखा कि उसे उठकर बैठने में तकलीफ हो रही है अतः उसने उसे लेटे रहने का संकेत किया। फिर भी प्रयत्न कर के राजेश्वर किसी प्रकार तकियें के सहारे बैठ चुका था। राजेश्वर को देखकर शालिनी को उसकी गम्भीर अस्वस्थता का अनुमान हो गया था। गौरवर्ण का आकर्षक व स्वस्थ राजेश्वर अत्यन्त कृषकाय व निस्तेज हो गया था। उसके उलझे खिचड़ी बाल अस्त-व्यस्त थे। दुखी मन से शालिनी खामोश होकर बैठी थी। कभी राजेश्वर की ओर देखती कभी दृष्टि झुका लेती।

" आप ने आने का कष्ट क्यों किया? " राजेश्वर ने शालिनी से पूछा। उसकी आवाज़ अत्यन्त धीमी थी। कदाचित् कमजोरी के कारण वह ठीक से बोल नही पा रहा था।

" इसमें कष्ट जैसा कुछ नही है। आप शीघ्र स्वस्थ हो जाइये। " शालिनी की बात सुनकर राजेश्वर के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गयी।

राजेश्वर शालिनी की ओर एकटक देख रहा था। जैसे रेगिस्तान में चलत-चलते किसी प्यासे को पानी का चश्मा दिख गया हो। अस्वस्थता की अवस्था में भी वह प्रेम का देवता ( ट्यूपिड ) लग रहा था। जिससे मात्र प्रेम किया जा सकता है। शालिनी के मना करने के पश्चात् भी राजेश्वर की पत्नी शालिनी के लिए चाय का प्रबन्ध करने चली गयी। कुछ देर तक शालिनी राजेश्वर के पास बैठी रही। कमरे में शालिनी और राजेश्वर ही थे। कमरे में व्याप्त निःशब्दता बहुत कुछ कह रही थी।

" शीघ्र स्वस्थ हो जाईये। " राजेश्वर को अपनी ओर देखते पाकर शालिनी ने कहा।

" आप मेरे पास आ गयी हैं तो स्वस्थ होना ही पड़ेगा। " राजेश्वर ने कहा। उसके चेहरे पर वही हल्की-सी मुस्कान थी। शालिनी का चेहरा शर्म व संकोच से रक्ताभ हो उठा।

राजेश्वर की पत्नी शालिनी के लिए चाय व कुछ खाने-पीने की चीजें तथा रातेश्वर के लिए पथ्य लेकर कमरे में आ चुकी थी। चाय पीने के पश्चात् वह राजेश्वर व उसकी पत्नी से विदा लेकर वापस आ गयी। गेस्ट हाऊस के कक्ष में पहुँच कर आज शालिनी को अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे हृदय पर से कोई बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो। ऐसा भली अनुभूति उसे बहुत दिनों के पश्चात् हो रही थी। शालिनी को दो दिन और कुशीनगर में रूकना था। लखनऊ आने से पूर्व वह एक बार और राजेश्वर से मिलने उसके घर गयी। इस बार भी समय वही था, शाम का धुँधलका। इस बार राजेश्वर पहले की अपेक्षा स्वस्थ लग रहा था। यह देखकर शालिनी के हृदय को सुकून मिला कि राजेश्वर धीर-धीरे स्वस्थ होने लगा था।

" दीदी! आपने हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है। पहले इनको कोई दवा नही लग रही थी, किन्तु अब हर चीज फायदा कर रही है। आपके पैर क्या पड़े मेरे घर में, अब सब कुछ ठीक होने लगा है। " दोनों हाथ जोड़कर अभिवादन करते हुए राजेश्वर की पत्नी ने कहा।

प्रत्युत्र में शालिनी बस मुस्करा पड़ी। सोचने लगी कि दो दिनों में ऐसा क्या जादू कर दिया है उसने, जो येे सब हो गया।

लखनऊ आकर शालिनी बच्चों के साथ अपनी दिनर्चा में व्यस्त हो गयी। साथ ही राजेश्वर के शीघ्र स्वस्थ होकर लौट आने की प्रतीक्षा करने लगी। लगभग एक माह के पश्चात् राजेश्वर लखनऊ आया। उसे पूरी तरह स्वस्थ देखकर शालिनी की प्रसन्न्ता कर कोई सीमा न थी। उसके चेहरे फैली प्रसन्नता राजेश्वर से छुपी न रह सकी।

" ओह! आप स्वस्थ हो ही गए। " वह सहसा बोल पड़ी।

" आप गयी थीं, तो स्वस्थ कैसे न होता....? " राजेश्वर ने तत्काल उत्तर दिया और मुस्करा पड़ा।

राजेश्वर ने शालिनी के साथ घर गृहस्थी के अधूरे कार्य पूरे करवाये। बच्चों की आवश्यकता की वस्तुओं की खरीदारी करवायी। लगभग छः माह से घर के बहुत से कार्य राजेश्वर के बिना अपूर्ण थे। राजेश्वर ने वो सभी काम शालिनी के साथ मिलकर पूरा करवाया। दो-चार दिनों तक रूकने के पश्चात् शालिनी से पुनः आने का वादा कर राजेश्वर कुशीनगर लौट आया।

♦ ♦ ♦ ♦

राजेश्वर चला तो गया किन्तु शालिनी के समक्ष अनेक प्रश्न खड़े कर गया। बल्कि ये प्रश्नतो शालिनी ने स्वंय अपने समक्ष खड़े किए हैं। शालिनी का कुशीनगर में उसके घर जाना तथा राजेश्वर के परिवार व उसकी पत्नी से मिलना ही एक प्रश्न बन गया है। राजेश्वर की कम पढ़ी-लिखी साधी-सादी पत्नी का हृदय कितना बड़ा ै और विचार कितने ऊँचे। वो महान महिला है। राजेश्वर व शालिनी के अन्तरंग सम्बन्धों के विषय में उसे अवश्य ज्ञात होगा। राजेश्वर का लखनऊ आना और कई-कई दिनों तक शालिनी के पास रूकना .....क्या उसे शालिनी व राजेश्वर के सम्बन्धों का अनुमान न होगा?

इतनी समझदार महिला क्या ये सब न समझ पाती होगी..? अवश्य सब कुछ समझती होगी। क्या वह स्त्रीजनित ईष्र्या की भावना से ग्रसित न होती होगी? अपने पति के स्वास्थ्य के लिए वह उससे सम्पर्क कर उसे अपने घर बुला सकती है है तो क्या यह सब बस यूँ ही है? नही, कदापि नही। उसे बुलाने का अर्थ बस यूँ ही नही है। बल्कि वह सब कुछ जानती व समझती है। फिर भी अपने पति की प्रसन्न्ता के लिए उसे सब कुछ स्वीकार है। पति के जीवन के लिए पराई स्त्री का उसके जीवन में प्रवेश भी।

अपने पति के जीवन के लिए उसने वो सब कुछ किया जो वह कर सकती थी। क्या शालिनी को अपने घर बुलाने से पूर्व उसके हृदय में पीड़ा न हुई होगी....? शालिनी के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह था कि वो राजेश्वर के बिना कैसे रह पायेगी....? राजेश्वर की पत्नी के त्याग के विषय मे सोच कर शालिनी को आत्मग्लानि होने लगी। राजेश्वर की पत्नी के अधिकारों का बँटवारा वो कैसे कर सकती है...? राजेश्वर की पत्नी ने अपने पति के प्राणों के मूल्य पर राजेश्वर के साथ ही साथ अपने सभी अधिकार भी उसे दे दिये हैं।

आत्मग्लानि की पराकाष्ठा तक पहुँच चुकी शालिनी के अन्र्तमन ने यही कहा कि वो राजेश्वर के बिना अपूर्ण है। उसका विवाह इन्देश के साथ अवश्य हुआ था किन्तु उसे पहली बार प्रेम की अनुभूति राजेश्वर के साथ हुई है। प्रेम व समर्पण का अर्थ तो उसने राजेश्वर से ही सीखा है। बिना कुछ कहे, बिना अपनी अहमियत प्रकट किये, बिना किसी पर उपकार जताये बस समर्पित होते जाना, प्रत्येक परिस्थिति में उसके साथ खड़े रहना, तथा दुनिया की परवाह न करते हुए त्याग व समर्पण के दृष्टान्त प्रस्तुत करते जाना ही सही अर्थों में प्रेम है।

इसी उहापोह की स्थिति में अनेक दिन और रातें व्यतीत करने के उपरान्त आज वह इस निर्णय पर पहुँची कि कुशीनगर में राजेश्वर की पत्नी से मिलना एक संयोग हो सकता है, किन्तु उसके जीवन में राजेश्वर का आना मात्र संयोग नही है। राजेश्वर का उससे मिलना विधाता का निर्णय है। विधाता के निर्णय को वह स्वीकार करेगी। जो राजेश्वर उसे देखकर स्वस्थ हो सकता है, वह उसको देखे बिना कैसे रह पायेगा? इस बात को राजेश्वर की पत्नी भी समझती है।

राजेश्वर को स्वंय से दूर शालिनी भी कैसे कर पायेगी? क्या कहेगी उससे? राजेश्वर की किस ग़लती की सजा वह उसे देगी? राजेश्वर की अच्छाईयों की सजा वह उसे देगी? उससे विछोह राजेश्वर सहन कर पायेगा? उसके बिना राजेश्वर कहाँ जायेगा? इन सबसे बढ़कर राजेश्वर के बिना वो कहाँ जायेगी? क्या करेगी इस अपूर्ण जीवन का? उसने निश्चय कर लिया है कि यह अपूर्ण जीवन वो नही जीयेगी। न ही अब सम्पूर्णता की तलाश मेंहीं और भटकेगी। उसका जीवन राजेश्वर के साथ सम्पूर्णता पा चुका है। राजेश्वर ही उसका अन्तिम निर्णय है।

दीदी के घर आना जाना भले ही मैंने कम कर दिया है। दीदी का इच्छा का सम्मान करते हुए मैंने लगभग समाप्त ही कर दिया है। किन्तु उसकी फ़िक्र मुझे हर समय लगी रहती है। दीदी के सपनों का बड़ा-सा घर जिसमें जाने से पूर्व ही उसके सपने टूट गये थे। उन सपनों में एक बड़ा सपना था, उसका किसी बच्चे को गोद लेने का।

मैं चाहती थी कि दीदी का वो सपना पूरा हो। किन्तु अब तक वो सपना सच नही हो पाया है। कारण असमंजस की स्थिति में दीदी का रहना और सही समय पर सही निर्णय न ले पाने की उसकी पुरानी आदत है। अन्यथा यह स्वप्न आकाशकुसुम जैसा तो नही। मैं दीदी के स्वभाव से परिचित हूँ, तथा जानती हूँ कि दीदी किसी पर सरलता से विश्वास नही करती। बचपन में इन्दे्रश द्वारा की गयी वो अश्लील घटना या बेमेल विवाह भी दीदी की इस मनःस्थिति का कारण हो सकते हंै।

एक दिन माँ को फोनकर मैंने दीदी का हाल पूछा।

" उसका हाल बस क्या बतायें बेटा.......बस किसी प्रकार चल रहा है। " माँ ने कहा।

" देवर का बच्चा लेना नही चाहती। प्रांजल ने अपने बच्चों को कानूनन गोद देने से मना कर दिया है। उसने अनु से कहा है कि यदि कोई काम हो तो जब भी आवश्यकता हो वह बच्चों के साथ आ जायेगा......। " माँ की बोलती जा रही थीं। मैं उनका बातें सुन रही थी। दीदी की कठिनाई भी समझ रही थी।

" उसने कहा है कि इस बारे में मैं तुमसे भी पूछ लूँ बेटा! किसी प्रकार उसकी समस्या सुलझ जाये और उसके जीवन की गाड़ी भी पटरी पर चल पडे। " माँ ने कहा।

" वो अपने भाई-बहन का बच्चा ही गोद लेना चाहती है। " माँ ने अपनी बात पूरी की।

अब तक मैं माँ की बात सामान्य ढंग से सुन रही थी किन्तु अब मुझे आश्चर्य हो रहा था, मेरे बारे में दीदी के विचारो को सुनकर। दीदी भला बच्चे गोद लेने की बात मुझसे क्यों कहेगी। वो दीदी जो मुझसे बात करना पसन्द नही करती। भाई ने तो दीदी का प्रस्ताव स्वीकार नही किया। री बात मेरी तो दीदी ने अभी मेरे समक्ष प्रस्ताव रखा ही नही।