DERA Devika Singh द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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DERA

ऑफ सीजन की वजह से उस छोटी सी जगह पर पर्यटकों के नाम पर शायद एक हम ही थे। "सीज़न के समय पर यहाँ पर्यटक भटकते कैसे रहते हैं?" मैंने चाय रखने आए होटल के केयरटेकर से पूछा। "उस वक्त तो ये पूरा भरा होता है साहब" वो चाय की ट्रे टेबल पर रखता हुआ बोला "आप लोग अभी ऑफ सीजन में आए हैं इसलिए कोई खाली पड़ा है"


"आप रहने दीजिए, मैं बना लूँगी" वो चाय के कप में डालने लगा तो आगे बढ़कर मेरी बीवी ने उसे रोक दिया। "कहाँ से आये हैं आप लोग?"


"दिल्ली से" मेरे से पहले मुकेश ने जवाब दिया


"सीजन के टाइम पर आना चाहिए आपको साहब। दिल लगता है यहाँ पर" केयरटेकर ने जवाब दिया "मेला सा लग जाता है"


"गर्मियों में?" मेरी बीवी संध्या ने चाय का एक कप मेरी तरफ से बढ़ाते हुए पूछा।


"नहीं सर्दीयों में" हम बातें कर ही रहे थे तो वो बुड्ढा वहीं एक कुर्सी पर हमारे साथ ही बैठ गया "वैसे तो गर्मियों में भी लोग आते हैं यहाँ पर, गर्मी से बचने के लिए, पर ज़्यादातर दिसंबर और जनवरी के महीनों में होती है"


"उस वक्त तो काफ़ी सर्दी होती होगी यहाँ?" मैंने पूछा. "हाँ पूरी सर्दी होती है। जमके बर्फ पड़ती है। 0 से नीचे ही रहता है तापमान" केयरटेकर ने जवाब दिया। "फिर भी लोग आते हैं?" संध्या बोली. "स्की करने आते होंगे?" मैने अनुमान लगाया. "जी हां" केयरटेकर बोला "2 महीने जमके स्की होती है। सब होटल भरे रहते हैं। आने से पहले एडवांस में बुकिंग करानी पड़ती है वरना रुकने को जगह नहीं मिलती।" "और गर्मियों में? मुकेश ने पूछा


"गर्मी में भी खासी भीड़ रहती है पर आप लोग अभी बरसात के मौसम में आए हैं तो खाली पड़ा है। अभी यहाँ बारिश ही इतनी होती है। "रोज़ पानी बरसता है तो ऐसे में कहीं घूम फिर भी नहीं सकते”


"सही बात है" मैंने हमी भारी


"वैसे आप लोग टीवी वाले हैं क्या?" केयरटेकर ने सवाल किया. मैं समझ गया के उसने हमारा बड़ा सा कैमरा देख लिया होगा इसलिए पूछ रहा था। मैं और मुकेश दोनो ही नेशनल जियोग्राफिक के लिए काम करते थे।


मैं हिंदुस्तान में पाए जाने वाले अलग-अलग किस्म के कीड़ों और कीड़ों पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहा था और मुकेश मेरा कैमरा मैन था। "तो आप लोग यहां कीड़े मकोड़े ढूंढने आए हैं?" बुड्ढे ने पूछा तो संध्या ने पड़ी है। "जी हाँ" मैंने जवाब दिया "इधर बारिश ज़्यादा पड़ने की वजह से जंगल काफ़ी हरा भरा रहता है जिसकी वजह से कीड़ों की कई प्रजातियाँ इस इलाके में पाई जाती हैं। और अभी बरसात के मौसम में सब कीड़े मकोड़े ज़मीन से बाहर आ जाते हैं तो इसलिए ढूंढने में भी आसानी रहती है" मैंने उसे समझाते हुए कहा। "चलिए अच्छा है" वो खड़ा होते हुए बोला "मेरे लायक कोई सेवा हो तो जरूर बताइयेगा"


मैं यह डॉक्यूमेंट्री पिछले एक साल से बना रहा था और अब यह अंतिम चरण में थी। मेरा काम ऐसा था कि ज़्यादातर वक़्त मैं कैमरा उठाता यहाँ वहाँ घूमता रहता था।


अब ऐसे में अगर संध्या को घर छोड़ कर जाया जाता है तो साल के 10 महीने वो घर पर अकेली गुज़रती है इसलिए मैं उसको जहाँ जाता अपने साथ ही ले जाता है। इस तरह से मेरा काम हो जाता था और उसका घूमना फिरना। क्या इलाके के पहाड़ी जंगलों में सरीसृप और कीड़े-मकौड़े जैसी कोई प्रजातियाँ मिलती थीं, दुनिया भर में कहीं और नहीं मिलती थीं और ये सब सिर्फ बरसात के मौसम में ज़मीन से बाहर निकलते थे।


मैं पिछले 6 महीनों से इंतज़ार कर रहा था कि बारिश शुरू हो और मैं यहाँ आकर अपनी डॉक्यूमेंट्री पूरी कर सकूँ। जहाँ हम रुके हुए थे वो एक बहुत छोटा सा गाँव था। घरों से ज्यादा होटल बने हुए हैं जिनकी वजह से यहां स्की ढलानें हैं। 20-30 घरों के इस गांव में इस वक्त हमारे सिवा पर्यटकों के नाम पर और कोई नहीं था जो मेरे काम करने के लिए बहुत मुनासिब था। अकेले में शांति से आराम कर सकते हैं, वरना अगर ज्यादा लोग भरे हों तो जानवर छुपे रहते हैं, बाहर नहीं आते।


उस वक्त हम होटल के सामने आग जलाये बैठे चाय पी रहे थे। सारा दिन हल्की-हल्की बारिश होती रही थी जिसकी वजह से मौसम में ठंडक थी। केयरटेकर ने हमें बताया था कि सीजन के समय होटल में पूरा स्टाफ होता है, लेकिन ऑफ सीजन में वो अकेला ही देख लेता है।


"एक बात बताई बाबा" केयरटेकर जा ही रहा था के संध्या बोल पड़ी "वो उधर पहाड़ी के ऊपर छोटा सा मंदिर टाइप जो बना हुआ है, वो क्या है?" उसके सवाल करते ही बुड्ढे के चेहरे के भाव बदल गए। "आप लोगों से मेरी विनती है के उस तरफ ना जाएँ" उसने रुकते हुए कहा। "क्यों ऐसा क्या है" मैंने पूछा


"डेरा है वो, भूतों का। बुरी आत्माएं बस्ती हैं वहां"

मैं उम्मीद कर रहा था कि वो किसी जंगली जानवर के खतरे के बारे में कहेगा पर उसकी बात सुनकर मेरी हंसी छूट गई। "क्या?" मैंने जल्दबाजी की


"जी हां. जान का खतरा है उधर जाने में" उसका चेहरा देखने से लग रहा था के जो कह रहा था, उस बारे में बहुत सीरियस था.


"किस्से ख़तरा है? भूत से?" मुकेश भी हंसी में मेरा साथ देता हुआ बोला। "हंसिए साहब" बुद्धा हमें देख कर मुस्कुराता हुआ बोला "पर आपके मानने ना झुटलने से सच तो बदल नहीं जाएगा"


"और सच ये है कि वहां भूत बसते हैं?" इस बार संध्या ने पूछा


"आज से नहीं बहुत पहले से। गाँव वाले जाते तक नहीं उस तरफ़ से और इसी वजह से उस पहाड़ी पर चढ़ने के सारे रास्ते भी बंद हैं" वो फिर से कुर्सी लेकर बैठ गया।


"यह एक दिलचस्प कहानी लगती है। और क्यों नहीं जाते लोग उस तरफ?" मैंने पूछा


"बताया तो, एक बुरी आत्मा का डेरा है वो"


"अभी तो आपने कहा था कि भूत और आत्माएँ और अब आप कह रहे हैं सिर्फ़ एक आत्मा बस्ती है वहाँ?" मुकेश ने बात पकड़ी.



"छोड़िए ना साहब। बुड्ढे ना कहा "मैं कुछ बताऊंगा, आप लोग हँसेंगे और मेरी हँसी उड़ाएँगे"


"अरे बताओ ना। हँसेंगे नहीं वादा है" संध्या ने कहा।


"पर आप मानेंगे भी तो नहीं" बुड्ढे ने कहा


"हमारे मान लेने या इंकार करने से क्या होता है बाबा। 4 दिन के मेहमान हैं हम यहां. एक कहानी समझ कर सुना दीजिए। बैठे बैठे वक्त ही गुजर जाएगा"


"अच्छी बात है" जिस तरह से बुड्ढा बैठा हमेशा बात कर रहा था उससे जाहिर था कि उसके पास भी करने को कुछ और नहीं था और हमेशा बात करके उसका भी टाइम पास हो रहा था "बहुत पुरानी बात है. कई सौ साल पहले"


“कई सौ साल पहले? इतना पुराना है वो मंदिर?" मैंने पूछा


"मंदिर नहीं है वो साहब" बुड्ढने ने बताना शुरू किया "अब तो पहले घर पर कुछ भी नहीं है"


"किसका?"


"कोई जादूगरनी थी कहते हैं या चुड़ैल कह लीजिए। वहाँ उस पहाड़ी पर उस घर में रहती थी, गाँव से अलग"


"खुद से अलग रहती थी या गाँव वालों ने अलग कर दिया था?"


"अब कौन जाने साहब। पुरानी बातें हैं, हकीकत में कैसा था कौन जाने" बुड्ढे ने जवाब दिया "पर जो भी था, गाँव वाले इधर इन पहाड़ियों में रहते थे और वो उधर उस परली पहाड़ी पर अकेली रहती थी"


"हम्म्म्म" मैंने कहा "फिर?"


"गांव का कोई उससे बात नहीं करता था, सब उसे डरते थे। इतना डरते थे कि उस पहाड़ी के आस-पास कोई भी नहीं जाता था"


"ऐसा क्यों? इतना डर ​​किसलिए?" संधा बोली


"अब ये तो नहीं पता के उसने ऐसा क्या किया था कि लोग डरने लगे पर कहते हैं कि किसी दिन की रोशनी में भी उस तरफ़ नहीं जाता था। लोग मानते थे कि वो कोई काला जादू कर देगी जिससे उनके मवेशी मर जाएँगे, या उनकी फसल सूख जाएगी वगेरा वगेरा"


"हम्म्म्म. फिर?" मैंने पूछा


"और फिर एक बार ऐसा हुआ कि गाँव से लड़कियाँ गायब होनी शुरू हो गई। जवान लड़कियाँ, ज़्यादा उम्र की लड़कियाँ" बुड्डा कहता रहा।


"गयाब बोले तोह?


" मुकेश ने सवाल किया "गायब मतलब सुबह घर से निकली तो फिर आयी ही नहीं। या रात को घर में सबके साथ सोई सुबह गायब मिली। ऐसे एक एक कर के लडकियाँ गाव से गयाब हुई।पूरे गांव में हल्ला मच गया।बहुत तलाश हुई पर किसी बच्ची का कोई नामो निशान नहीं मिला"


“इंट्रेस्टिंग। फिर?"


"फिर जैसा की होता है, जान पर बने तो चिटी भी पलट कर काटने को आती छोड़े है ऐसा ही गांवों वालो के साथ हुआ। जब बच्चियों का कोई पता नहीं चला सबका शक किस तरफ जाता"


"उस जादूगरनी की तरफ" संध्या ने कहा।


"बिलकुल" केयरटेकर ने हामी भारी "पूरे गाँव में बातें फैलने लगी के सबके पीछे उसका ही हाथ है। अब वो तो गाँव में आती नहीं थी इसलिए गाँव के सब लोग हिम्मत करके एक दिन उसके पीछे उसके डेरे पर गए, पूछने के लिए"


"फिर?


"वहां पहुंचे तो कुछ और ही देखने को मिला जिससे सब हैरान हो गए।


"क्या देखा?" मैंने पूछा


"पूरे गाँव को पता था के वो दिखने में बहुत बुरी थी और काफ़ी बुड्ढी भी थी। जिस किसी ने उसे देखा था, उसे देखकर डर ही गया था। पर उस दिन जब गाँव वाले वहाँ पहुँचे, तो जो सामने आई वो एक हसीन औरत थी"



"फिर?


“टैट्स इंट्रेस्टिंग फिर आगे क्या हुआ”।


"गाँव वाले हैरान रह गए। खैर, जो पूछने वहाँ गए थे वो पूछा पर उसने किसी लड़की की भी कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया। अब उसके मुँह पर उसे ललकारने की किसी की हिम्मत तो नहीं थी इसलिए उसका जवाब सुनकर वापस आ गए पर दिल में शक बैठ गया। गाँव से जवाब बच्चियाँ गायब हो रही थी और देर वाली

जादुगरनी बुद्धि से जवान खूबसूरत हो रही थी। गाँव वालों ने 2 और 2 मिला कर 4 बनाए और यहाँ के राजा के यहाँ शिकायत कर दी"



"फिर राजा आया?" मैंने पूछा


"नहीं वो तो नहीं आया पर उसने अपने कुछ सिपाही भेजे। वो लोग उस जादूगरनी के डेरे पर गए पर कुछ भी नहीं मिला। खाली हाथ वापस आ गए"


"वो बच गई?"


"हाँ उस वक्त तो कुछ मिला नहीं इसलिए बच ही गई पर गाँव वालों का शक सही निकला और एक दिन उसे रंगे हाथ पकड़ लिया"


"वो कैसे?" हम तीनों बड़े ध्यान से बैठे उनकी कहानी को कान लगा कर सुन रहे थे। "अब हुआ यूँ के उस चुड़ैल के सीधे पाँव का अंगूठा नहीं था" बुड्ढे ने कहा।


"मतलब?"



"मतलब उसके डायन पांव में सिर्फ 4 अंगुलियां थीं, अंगूठा नहीं था" केयरटेकर ने जवाब दिया।


"क्यों?" संध्या ने बेवक़ूफ़ना सा सवाल किया।


"अब क्यों किसे पता। कट कट गई होगी" बुड्ढे ने हाथ हिलाते हुए कहा।


"फिर?"


"याद है पुराने ज़माने में घर की दीवारों पर या तो गीली मिट्टी फिराते थे या गोबर लेप दिया करते थे?"


"हाँ पुराने ज़माने में क्यों अब भी देहात में बहुत गाँव हैं जहाँ ऐसा करते हैं" मुकेश बीच में बोल पड़ा।


"हाँ तो हुआ यूँ के एक घर से फिर एक बच्ची एक रात गायब हो गई। रात सोई अपने बिस्तर पर पर सुबह नहीं मिली। गाँव में हल्ला मच गया। पूरा गाँव जिसकी बच्ची खोई थी उसके यहाँ इकट्ठी हो गई। किस्मत से उसने सोने पहले रात को अपने घर की दीवारों और ज़मीन पर गोबर या मिट्टी किसी एक चीज़ का लेप लगाया था।"


"ठीक है" मैंने कहा "उससे क्या हुआ?"


"हुआ ये के लेप करने ने बाद घर के लोग अपने अपने बिस्तर में घुस गए ताकि जब सुबह तक उठें तो लेप सूख जाए। चला फिर कोई नहीं। पर सुबह नीचे गीली मिट्टी में किसी के पैरों के निशान थे" बुड्ढे ने समझाया।


"मुझे अनुमान लगाने दो" मुकेश बीच में बोला "उन पैरों के निशान में डायन पांव के अंगूठों का निशान नहीं था?"


"बिलकुल" बुड्ढे ने कहा "गाँव वाले समझ गए के रात में आकर डेरे वाली चुडेल बच्ची को ले गई"


"दिलचस्प है। फिर?"


"फिर क्या था। जहाँ पहले लोग डरे सहमे रहते थे, वहीं जब अपने घर की बच्चियों पर बात आई तो सब भड़क गए। लाठियाँ और तलवारें उठाकर चढ़ गईं पहाड़ी पर"


"मिली वो?" संध्या ने पूछा


"कौन बच्ची?" बुड्ढे ने पूछा


"हां. और वो जादूगरनी"


"हां दोनो ही मिले. एक जिंदा और एक मुर्दा. वो डेरे वाली जादूगरनी जिंदा मिली और बच्ची मुर्दा"


"जादूगरनी को गांव वालों ने मार दिया होगा" मैंने कहा


"हां गांव में लाकर जला दिया ज़िंदा। बाद में जब एक बार फिर उसके पीछे जाकर तलाशी ली गई तो बाकी की लड़कियाँ भी उसके घर के पीछे नीचे ज़मीन में दफ़न मिली। और जानते हैं सबसे खतरनाक वाली बात क्या थी?"


"क्या?" संध्या ने पूछा


"हर बच्ची के शरीर से कोई न कोई अंग गायब था। किसी की आंख, किसी के दांत तो किसी का कुछ" बुड्ढे ने बताया।


"हम्म्म्म। तो बुढ़िया बच्चियों को मारकर खुद जवान होती जा रही थी?" मैंने पूछा


"हाँ कहते हैं के वो हर लड़की के हिस्से से कोई अंग निकाल कर अपने हिस्से में लगा लेती थी या उस अंग को आग में जला कर काला जादू करती थी जिसके अपने हिस्से का वही अंग जवान हो जाता था। जो कुछ भी था, गाँव वालों ने उस रात उसको जिंदा जला कर मार दिया"


"तो अब लोगों का मानना ​​है कि उसका भूत बस्ता है वहाँ?"


"जी हाँ। कहते हैं के वो मरने से पहले कह गई थी के वो हमेशा हमेशा यहीं रहेगी और उसको कोई नहीं मार सकता। और लोग मानते हैं के आज भी वो पहाड़ी पर बना घर उसकी आत्मा का डेरा है। वो अब भी रहती है वहीँ" बुड्ढे ने बताया.


"और आप मानते हैं ये सब?" संध्या ने सवाल किया. "बीबी जी। मैं अपने सामने काम से कम 10 लोगों को मरते देख चुका हूँ और सबकी लाश उस पहाड़ी के आस पास ही मिली है" बुड्डा बोला


"और आपको लगता है कि ये उस आत्मा का काम है?"


"हाँ बिलकुल" बुड्ढे ने हमी भारी "जब वो चुड़ैल ज़िंदा थी तो लोगों के शरीर के अंग निकलती थी। जिसके शरीर का जो हिस्सा पसंद आ जाए वो अपने में लगा लेती थी। किसी के बाल पसंद आए तो बाल ले लो, किसी की आंख पसंद आई तो आंख ले ली वगेरा वगेरा। और वो अब भी वैसा ही कर रही है। उस पहाड़ी पर अगर कोई

जाता है तो वो अब उस इंसान की आत्मा को निकाल कर अपने पास कैद रखती है"


"और मुझे अंदाज़ा लगाने दो" मुकेश ने कहा "आप जो ये 10 मौत अपने सामने की बात कर रहे हैं, इनके शरीर का भी कोई हिस्सा गायब था?”


"जी हां। अब वो तो मर चुकी है, इसलिए दूसरों के हिस्से के अपने हिस्से से अपने लिए हिस्सा बनाकर उसमें रहती है मनहूस"


उसके बाद थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गई। बुड्डा कहानी ख़त्म करके शायद हमारे अगले सवाल का इंतज़ार कर रहा था और हम इंतज़ार कर रहे थे के वो जाए और हम उसकी हंसी उड़ा सकें। "इसलिए अब हमने वो पहाड़ी बंद करके रखी है" थोड़ी देर बाद बुड्ढा बोला "वो खड़ी पहाड़ी है इसलिए कहीं और से तो उसके ऊपर कोई चढ़ ही नहीं सकता। ऊपर तक जाने के लिए पुरानी सी टूटी फूटी सीडियां बनी हैं जिसपर 12 महीने हम पहरा लगा कर रखते हैं कि कोई चढ़े नहीं। सीजन के समय पर टूरिस्ट लोगों को इधर-उधर जाने से रोकते हैं। सीढ़ियों से थोड़ा दूर एक आदमी हमेशा रहता है जो किसी को भी उधर जाने से रोकता है"


"पर आज हमें तो कोई दिखाया नहीं दिया " मैंने कहा.


"फिलहाल टूरिस्ट कोई नहीं है इसलिए आदमी नहीं होगा और गांव वाले तो वैसे ही नहीं जाते उस तरफ" बुड्ढे ने कहा और उठकर चल दिया।



"एक बात बताईये साहब, आप उस पहाड़ी की तरफ तो नहीं गए ना आज?" जाते जाते उसने हमसे पूछा। "नहीं" मैंने साफ झूठ बोल दिया। सच तो ये था कि हम उस पहाड़ पर क्या उसके ऊपर बने डेरे तक चढ़ कर आये थे। "और मेहरबानी कर के जायियेगा भी मत" बुड्ढे ने हमसे विनती की और चला गया। "आप इस कहानी के बारे में क्या सोचते हैं?" रात को सोते हुए संध्या ने मुझसे सवाल किया


"इसमें सोचने की क्या बात है। बकवास बातें हैं" मैंने जवाब दिया


"हम्म्म" संध्या ने हमी भरी।


"मेरा मतलब है यार। सिंपल सा लॉजिक है। हमारे शरीर में भी तो एक आत्मा है तो ऐसा कैसे हो सकता है कि एक बाहर की आत्मा हमें मार दे या हमारे शरीर में घुस जाए? हमारी आत्मा उस वक्त क्या तेल लेने गई होती है है? हमारी आत्मा अपने शरीर की रक्षा क्यों नहीं कर सकती?" मैं बोला.


"मैंने कहीं सुना था कि आत्मा में भी मजबूत कमजोर वाला फंडा होता है" संध्या बोली "के मजबूत वाली आत्मा कमजोर वाली आत्मा को दबाती है"


"चलो यार। आदमी को क्या मरते ही डराने और मारने या खून पीने की बीमारी हो जाती है है के आत्मा बनते ही वह हत्याओं का तांडव मचा देता है?" "पॉइंट" संध्या बोली "वैसे मैंने ये भी सुना है के बुरे लोगों की आत्मा ही होती है जो दूसरों को नुक्सान पहुंचाती है" वो अपने बालों में कंघा करती हुई बोली। "जो भी हो।


व्हाटेवर अब और मुझे भी सोने दो। मुझे सुबह जल्दी शूटिंग के लिए बाहर जाना है"


"ठीक है। शुभ रात्रि" संध्या ने जवाब दिया।


थोड़ी ही देर बाद हम कमरे की लाइटें बंद करके चुके थे। मुकेश बगल के ही कमरे में पहले से ही घोड़े बेचकर सो चुका था। मैं भी पूरे दिन का थका हुआ था इसलिए आंखें बंद करके ही नींद आ गई।



मुझे वक्त का सही अंदाज़ा नहीं था पर किसी आवाज़ पर मेरी आंख खुली पर नींद पूरी नहीं टूटी। नींद का खुमार था और कमरे में घुप अंधेरा था। मैंने पल भर के लिए आंख खोली और फिर करवट लेकर आंखें बंद कर ली। नींद के आगोश में जाने से ठीक पहले मुझे संध्या की तरफ से आवाज़ सुनाई दी। वो हिंदी में गिनती गिन रही थी। "55, 56, 57, 58, 59, 60, 61, 62"


"क्या हुआ, नींद नहीं आ रही? मैंने पूछा। वो शायद सो नहीं पा रही थी और सोने की कोशिश में गिन रही थी, पर मेरे सवाल का उसने कोई जवाब नहीं दिया और मैंने भी जवाब का इंतज़ार किया बिना फिर सो गया।


एक बार फिर रात को किसी आहट पर मेरी आँख खुली। कमरे में अब भी घुप अँधेरा था। मैं आँखें मलता हुआ सीधा होकर लेता और संध्या की तरफ़ से हाथ बढ़ाता .



वो बिस्तर पर अपनी जगह नहीं थी. बिस्तर पर सिर्फ मैं था. "संध्या? मैंने आवाज़ दी और जवाब भी एक बार मुझे फिर गिन्ती गिन्ने की आवाज़ सुनाई।


"6786, 6787, 6788, 6789, 6790, 6791 ....."


"क्या कर रही हो अब तक? नींद नहीं आ रही है?" कहते हुए मैंने अपनी तरफ से टेबल पर रखा लैंप ऑन किया और मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं।


नाइट लैंप की रोशनी काफी हल्की थी और उसमें जितना और जो मुझे नज़र आया वो मैं बता नहीं सकता। कमरे के एक कोने में कुछ था, क्या था मैं नहीं जानता।


रोशनी उसके सिर्फ चेहरे पर पड़ी, अगर उसे सिर्फ चेहरा कह जा सके तो।


जिस तरह से किसी फटे पुराने कपड़े को लेकर एक चेहरे जैसा मास्क बना दिया जाए वैसा ही चेहरा। बेधंगी नाक, कहीं से टाइट तो कहीं से लटके हुए गाल, हद से ज्यादा लंबी थोड़ी (ठोड़ी), और सबके बीच एक अजीब सी लाइन। जैसे इन सब चीज़ों को आपस में रख कर जोड़ा गया हो किसी चीज़ से, या सिल दिया गया हो और सिलाई का निशान साफ़ दिख रहा हो।


और तभी मेरा ध्यान उसकी आँखों की तरफ गया। उस हल्की सी रोशनी में भी उसकी आँखों में फरक बताया जा सकता था। एक आँख थोड़ी छोटी थी पर दूसरी बड़ी थी, बहुत बड़ी और हद से ज्यादा लाल। जैसे दो अलग-अलग लोगों की आंखों को साथ में रख दिया गया हो।


मेरी नज़र उस नज़र से मिली। मैंने उन्हें और उन आँखों ने मुझे देखा। फिर जाने क्या हुआ पर मैं अपने होश खो बैठा और कुछ याद नहीं रहा।



जब सुबह मुझे होश आया तो होटल में हलचल मच गई थी। चारो तरफ से पुलिस ही पुलिस थी। मैं उठकर बैठा और चारो तरफ देखा।


मुकेश मेरे बिस्तर के पास ही सर पकड़े बैठा था। "मुकेश" मैंने उठते हुए कहा "संध्या कहाँ हैं?" थोड़ी देर तक मुझे संभालने और हिम्मत रखने की बात कहते रहे। हर कोई मेरा कंधा थपथपा रहा था।


मेरे बार-बार एक ही सवाल दोहरे पर मुझे बताया गया कि मेरी बीवी की कल रात बहुत ही दर्द नाक तरीके से हत्या कर दी गई थी। "मैंने आपको मना किया था ना साहब, कहा था के डेरे की तरफ मत जाना" केयरटेकर के पास ही खड़ा रो रहा था। "उसने देख लिया आपकी बीवी को और ले गई जो उसे पसंद आया"


मुझे ये भी बताया गया कि पुलिस को मेरी बीवी के खून में कुछ पैरों के निशान मिले हैं और डायन पांव का अंगूठा गायब है, सिर्फ 4 अंगुलियों के निशान हैं। मेरे ज़ोर डालने पर मुझे संध्या की लाश दिख गई तो मेरा कलेजा फट पड़ा।


उसके सर को काट कर शरीर से अलग कर दिया गया था। बालों वाली बात थी कि उसके सिर पर एक भी बाल नहीं था। पूरे सर पर जख्म के निशान बने हुए थे, जैसे किसी ने बाल नोच नोच कर निकले हों। और तभी मुझे रात की सुनाई दी वो गिनती याद आई। "6786, 6787, 6788, 6789, 6790, 6791 ....."


जैसे कोई बड़े ध्यान से धीरे-धीरे एक करके एक बाल नोच रहा हो और गिन रहा हो।




The End