लागा चुनरी में दाग़--भाग(१९) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग़--भाग(१९)

तेजपाल जी ने जब प्रत्यन्चा के खाने की तारीफ़ तो प्रत्यन्चा के चेहरे की खुशी देखने लायक थी,तब तेजपाल जी उसके चेहरे की ओर देखकर बोले....
"ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है,तुम ज्यादा दिन तक इस घर में टिकने वाली नहीं हो",
तेजपाल जी की बात सुनकर प्रत्यन्चा का चेहरा उतर गया तो भागीरथ जी अपने बेटे तेजपाल से बोले....
"ये क्या तरीका हुआ किसी से बात करने का,उसने तेरे लिए इतने प्यार से खाना बनाया और तू उसे अकड़ दिखाता है, तू कौन होता है इसे घर से निकालने वाला,ये घर हमारा है और ये यहीं रहेगी",
"वो तो वक्त बताएगा"
और ऐसा कहकर तेजपाल जी फिर से खाना खाने लगे तो भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले...
"बेटी! तू चिन्ता मत कर,ये तो कुछ भी बकता रहता,इसकी बातों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है",
"हाँ...हाँ...सिर चढ़ा लीजिए पराई लड़की को,फिर जब ये यहाँ से भाग जाऐगी तो पछताते रहिएगा" तेजपाल दीवान बोले...
"हम इसे सिर पर नहीं चढ़ा रहे हैं,इन्सानियत भी तो कोई चींज होती है,जो कि तुझे नहीं मालूम,तभी तो तू इससे ऐसी बातें कह रहा है",भागीरथ जी बोले...
"हाँ...हाँ..मैं इन्सान थोड़े ही हूँ ,मैं तो बैल हूँ,सींग उग आए हैं मेरे",तेजपाल दीवान बोले...
"हाँ! लगता तो यही है,तभी तो तू जब देखो तब किसी पर भी अपने सींगों से हमला करने जुट जाता है", भागीरथ दीवान बोले...
भागीरथ दीवान का इतना बोलना था कि प्रत्यन्चा बहुत जोर जोर से हँसने लगी,उसकी हँसी रुक ही नहीं रही थी फिर वो अपना पेट पकड़कर फर्श पर बैठकर हँसने लगी और उसकी हँसी देखकर पहले तो विलसिया हँसी,फिर भागीरथ जी और जब भागीरथ जी हँसे तो भला तेजपाल जी कैंसे शान्त बैठ सकते थे, उन्हें भी हँसी आ गई,जब दोनों मालिक हँसने तो दोनों नौकर सनातन पुरातन भी हँसने लगे,जो भी वहाँ आता तो बिना बात हँसने लगता,देखते ही देखते घर में सभी लोगों की हँसी गूँजने लगी और घर का माहौल एक दम खुशनुमा हो गया,जब सब हँस चुके तो भागीरथ जी तेजपाल जी से बोले....
"इसे कहते हैं लक्ष्मी के चरण,जैसे ही ये बच्ची घर में आई तो लोगों के चेहरों की हँसी लौट आई और एक तू है जो इस लड़की को कोस रहा था",
"आप कुछ भी कह लीजिए,मुझे फिर भी इस लड़की पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है,मेरा खाना अब हो चुका है,मैं दफ्तर का कुछ काम निपटाने जा रहा हूँ",
और ऐसा कहकर तेजपाल जी टेबल पर से उठे फिर उन्होनें सिंक में हाथ धुले और अपने कमरे की ओर बढ़ गए,तब भागीरथ जी प्रत्यन्चा से बोले....
"ये तो बड़बोला है,ऐसे ही हरदम कुछ ना कुछ बकता रहता है,लेकिन एक बात तो हैं आज तुम्हारी वजह से उसके चेहरे की हँसी लौट आई,बेटी! मुझे पूरा भरोसा है कि तेरे आने से अब इस घर के हालात बदल जाऐगें"
"हाँ! बड़े मालिक! हमका भी कुछ ऐसही लागत है",विलसिया बोली....
"अच्छा! अब तुम दोनों भी खाना खा लो,फिर थोड़ी देर आराम कर लो,इसके बाद बाजार चलेगें"
और ऐसा कहकर भागीरथ जी अपने कमरे में आराम करने चले गए,इसके बाद विलसिया और प्रत्यन्चा ने भी खाना खाया और फिर वो दोनों भी खाना खाकर आराम करने अपने अपने कमरे में चलीं गईं,शाम हुई तो भागीरथ जी अपने कमरे से बाहर आए,प्रत्यन्चा तब तक शाम की चाय तैयार कर चुकी थी और चाय के साथ आलू की पकौड़ियाँ भी बना लीं थीं उसने,ये देखकर भागीरथ जी बोले....
"बिटिया! अब तुम हम लोगों की आदत खराब कर रही हो"
तब तक तेजपाल जी भी नीचे आए और उन्होंने शाम की चाय और पकौड़ियों का आनन्द लिया,इसके बाद वो तैयार होकर कहीं निकल गए,उनकी किसी के साथ कोई जरूरी मीटिंग थी और ये भी कहकर गए कि वो रात का खाना घर पर नहीं खाऐगें,इसके बाद भागीरथ जी ने प्रत्यन्चा से बाजार चलने को कहा तो उसने उनसे कहा कि....
"मुझे क्या क्या चाहिए,ये सब मैंने विलसिया काकी को बता दिया है,वे लेती आऐगी बाजार से मेरे लिए,मेरा बाजार जाने का बिलकुल भी मन नहीं है"
"ठीक है तो मैं केवल विलसिया को लेकर बाजार चला जाता हूँ" भागीरथ जी बोले....
सच तो ये था कि प्रत्यन्चा घर से बाहर जाना ही नहीं चाहती थी,उसे डर था कि कहीं बाहर उसे कोई पहचान ना ले और उसकी सच्चाई भागीरथ जी के सामने आ जाए, फिर उससे ये घर भी छिन जाएँ,बड़ी मुश्किल से तो उसकी जिन्दगी को कोई ठिकाना मिला था,अगर ये घर भी छिन गया तो फिर वो कहाँ जाऐगी,यही सब सोचकर वो घर से बाहर नहीं जाना चाहती थी....
जब प्रत्यन्चा भागीरथ जी के साथ बाजार नहीं गई तो वे विलसिया को अपने साथ मोटरकार में बिठाकर बाजार की ओर चल पड़े,इधर शाम का वक्त हो गया था,इसलिए प्रत्यन्चा ने फौरन ही हाथ पैर धुले और सिर पर साड़ी का पल्लू रखकर मंदिर में दिया जलाने चल पड़ी,वो मंदिर में दिया जलाकर लौट ही रही थी कि उसकी नजर उसी शख्स पर पड़ी जो सुबह नशे में धुत था और अपनी कार से उतर नहीं पा रहा था,उसे अनदेखा करके प्रत्यन्चा वापस लौट आई और उसने सोचा कि क्यों ना मैं रात के खाने की तैयारी लूँ,क्योंकि विलसिया काकी बेचारी बाजार से थकी माँदी आऐगी तो वो कहांँ रसोई में काम करती फिरेगीं....
और फिर वो जैसे ही रसोईघर में घुसी तो कोई हाँल में आकर बोला...
"कोई है घर में,कुछ मिलेगा खाने को.....विलसिया काकी.....विलसिया काकी....कहाँ हैं आप?"
फिर प्रत्यन्चा ने हाँल में आकर देखा तो वही नौजवान जिसे उसने बाहर मंदिर के पास देखा था तो वो गहरे कत्थई रंग के सिल्क के नाइट गाउन में हाँल में खड़ा था,तब प्रत्यन्चा ने उस नौजवान से कहा....
"विलसिया काकी तो बाजार गईं हैं"
तब वो नौजवान बोला...
"लगता है तुम घर की नई नौकरानी हो,ऐसा करो मेरे खाने के लिए कुछ बना दो,आउटहाउस का खानसामा आज नहीं आया है,बतमीज जाने कहाँ मर गया,मैं जब शाम को सोकर जागा तो आउटहाउस में खाने के लिए कुछ भी नहीं था,लगता है वो खानसामा ही सारा सामान लेकर चम्पत हो गया है,यहाँ इस घर में अण्डे तो होगें नहीं,नहीं तो आमलेट ही बनवा लेता,क्योंकि दादाजी को उनकी रसोई में माँस मच्छी पकाना पसंद नहीं है,इसलिए कुछ भी जल्दी से बनाकर ले आओ",
"जी! अभी लाती हूँ"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा रसोईघर में गई और फौरन ही वो उस नौजवान के लिए गरमागरम चीला टमाटर की चटनी के साथ ले आई और उसने उस नौजवान की प्लेट में परोस दिया,नौजवान को चीला बहुत पसंद आया और उसने वो झटपट खत्म कर दिया,तब वो प्रत्यन्चा से बोला....
"ऐ...लड़की! ये क्या है,ये तो खाने में बहुत अच्छा है,तुम मेरे लिए और बना सकती हो"
"जी! ये बेसन का चीला है,मैं आपके लिए और लेकर आती हूँ"
और ऐसा कहकर प्रत्यन्चा फिर से चीला बनाने चली गई,एक एक करके वो नौजवान पाँच चीले खा गया और फिर प्रत्यन्चा से बोला...
"तुमने चीले बहुत ही अच्छे बनाएँ थे"
"जी! शुक्रिया!",प्रत्यन्चा बोली..
फिर ऐसा कहकर उसने एक पाँच का नोट अपने सिल्क के नाइट गाउन से निकाला(उस जमाने में पाँच रुपए की कीमत बहुत होती थी) और प्रत्यन्चा के मुँह पर फेंककर बोला...
"ये रहा तुम्हारा ईनाम"
और वहाँ से जाने लगा तो प्रत्यन्चा उससे बोली...
"जरा ठहरिए बाबू साहब!"
"अब क्या हुआ ईनाम कम है क्या?,कभी रात को मेरे आउट हाउस में आना,बहुत ईनाम दूँगा मैं तुम्हें," वो नौजवान बोला...
अब प्रत्यन्चा ये सुनकर गुस्से से तमतमा उठी और उस नौजवान से बोली....
"आप जो भी हैं,जुबान सम्भालकर बात कीजिए ,मैं कोई आलतू फालतू लड़की नहीं हूँ जो आप मुझसे इस तरह की बातें कर रहे हैं और ये जो आपने मेरे मुँह पर नोट फेंककर मारा है ना तो मैं इन रुपयों की भूखी नहीं हूँ,आइन्दा से मुझसे ऐसी बतमीजी की ना तो मुझसे बुरा कोई ना होगा",
"ओहो...दो कौड़ी की नौकरानी और ऐसे तेवर,क्या कर लेगी मेरा,ले अब जो करना है कर ले"
और ऐसा कहकर उस नौजवान ने प्रत्यन्चा को अपने सीने से लगा लिया लेकिन इस बात से प्रत्यन्चा को बहुत जोर का गुस्सा आया और वो झटके से उस नौजवान से अलग हुई फिर उसने जोर का थप्पड़ उस नौजवान के गाल पर रसीद दिया और रोते हुए वो अपने कमरे की ओर भाग गई....
और वो नौजवान अपना गाल सहलाता रह गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...