भाग–३१
सुबह मेरे दरवाजे पर मीशा ने दस्तक दी, मैं सुबह जल्दी उठकर नहा कर तैयार हो चुकी थी । मैने दरवाजा खोला तो मीशा मेरे लिए नाश्ता और चाय लेकर आई थी।
"अरे मीशा मैं नीचे ही आ रही थी तुमने क्यों तकलीफ की। वैसे भी सफर और शादी में तुम्हे बहुत परेशानी हुई होगी इस समय तुम्हे आराम करना चाहिए । मैं कोई पराई नही हूं । तुम आराम करो मैं सब संभाल लूंगी। "
"मम्मी ने कहा है , आज तुम्हारी पग फेरे की रस्म है। तो तुम्हारे घर से तुम्हारे मामा, मामी, चचेरे भाई, भाभी और उनकी बेटी आने वाले है । "
"ओह अच्छा , "
"हां,,वैसे कैसी कटी रात ? राजीव ने सोने दिया या नही?" मीशा ने शरारत भरे स्वर में पूछा ।
मैने उसे मुस्कुराते हुए आंखें दिखाई । तो वो हंसने लगी और उसने कहा " जानती हूं ये सब इतना जल्दी नहीं होगा , लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि तुम राजीव के दिल में अपने लिए प्यार भर दोगी, तुम हो ही इतनी प्यारी तुमसे कोई कैसे प्यार ना करे"
"मक्खन ज्यादा ले आए क्या अंकल?"
"क्या यार इतनी प्यार से तारीफ कर रही हूं और तुम हो कि,,"
"अच्छा चलो तुम आराम कर लो "
मैं बात को टाल कर मीशा को नीचे लेकर गई, रोहिणी आंटी रसोई में थी, मैं उनकी मदद को गई तो उन्होंने कहा" बेटा अभी तुम रसोई में हाथ नही बटा सकती हो, तुम्हारी पहली रसोई का मुहूर्त निकलवाना बाकी है, मैं रसोई से बाहर आ गई और मैने मौका पाकर मिहिर को कॉल किया ।
"हेलो, मिहिर"
"हेलो कीर्ति, बोलो क्या बात है ?कल फोन क्यों काट दिया , मैं निशी के सामने भी तुमसे बात कर सकता हूं वो बहुत अंडरस्टैंडिंग है"
"जानती हूं मिहिर , वो बहुत समझदार है, लेकिन मेरी वजह से तुम दोनो के बीच कोई दिक्कत हो ये मैं नही चाहती।"
"अच्छा बोलो इतनी रात को तुमने यूंही तो फोन किया नही होगा "
"हां दरअसल मैने कुछ सोचा है,"
"क्या ?"
"मिहिर , मैं राजीव को डाइवोर्स नही दूंगी "
"लेकिन कीर्ति , वो तो शादी ही कॉन्ट्रैक्ट पर किया है, एक साल बाद वो तुम्हे छोड़ ही देगा , "
"लेकिन मेरे पास ये एक साल तो है ना एक साल मतलब 365 दिन , इतने दिनों में मुझे उसके दिल में मेरे लिए प्यार जगाना है बस"
"हां बात तो सही है , कर पाएगी तू ऐसा?"
"हां ज़रूर"
"ओके फिर , यदि ऐसा कुछ होता है तो मुझसे ज्यादा खुशी किसी को नहीं होगी "
तभी बालकनी में राजीव आकर अंगड़ाई लेता है।
"जानती हूं एक तु ही तो है जो मुझे समझ पाता है इसलिए तो तुझे बताया "
"तू ठीक है ना?"
"हां अब बिल्कुल ठीक हूं, तुझसे बात जो हो गई मेरी।"
"चल यार अपना खयाल रखना "
"ओके बाय" इतना कहकर मैं अंदर चली गई।
राजीव ठीक मेरे ऊपर वाली बालकनी में खड़ा था। शायद उसने मेरी बात सुनी हो , शायद ना भी सुनी हो।
मैं वापिस अपने कमरे में आई । राजीव को बनियान में बालकनी के खड़ा देखा तो दिल फिसलने लगा। वो बालकनी में हल्की फुल्की एक्सरसाइज कर रहा था। और इतना सेक्सी लग रहा था कि मन किया कि उसे पीछे से पकड़ कर हग कर लूं।
मैने अपनी भावनाओं पर काबू किया और राजीव से कहा " उठ गए आप, चाय लाउ आपके लिए"
"रातभर में तुझ में एक पत्नी वाला एटीट्यूड आ गया क्या?"
"मतलब?"
"अरे , राजीव और तू बोलने वाली लड़की जो कभी मुझे एक ग्लास पानी भी ना दे , वो पूछ रही कि आपके लिए चाय लाउ? तुझ से इतनी इज्जत मुझे हजम नही होती"
"अब मैं सबके सामने आपको तु करके नही पुकार सकती और आदत तो डालनी होगी ना एक साल तक साथ रहना है , आखिर सब ये बात नोटिस तो करेंगे ना"
"हां ये बात भी सही है एक साल तक पति पत्नी वाला नाटक तो करना ही पड़ेगा"
राजीव ने कहा ।
"हम्मम, मैं आपके लिए चाय लाती हूं "
"देख झल्ली, तू न अब भी अपनी लाइफ वैसे जीना जैसे तू जीती आई है, और मुझे अपना दोस्त ही रहने देना , प्लीज , मुझसे अपने दिल की हर बात कह सकती है तू, कुछ छुपाना मत यार, "
"हां बाबा" मैने कहते हुए उसके गाल खींच लिए । वास्तविकता में मैं उसे किस करना चाहती थी लेकिन वो मैं कर नही सकती थी उसपर प्यार बहुत आ रहा था तो मैंने उसके गाल खींच लिए ।
और मैं उसके लिए चाय लेने चली गई ।लेकिन मेरा फोन मैं उसी कमरे में चार्जिंग पर लगाकर आई थी।
राजीव और मेरी लाइफ बिलकुल बदल चुकी थी । अब शुरू हो रहा था हमारी जिंदगी का सफर। देखते है ये सफर की मंजिल क्या है ?