अब तक रजत के मॉम डैड घर आ चुके थे और यह सारिका और रजत को नहीं पता था।
जब सारिका रजत को समझा रही थी तब उसने कहा, “तुम सही कह रही हो सारिका अब तो इस मुसीबत का अंत आ जाना चाहिए बस मॉम डैड मान जाएं …!”
तभी रजत की मॉम की आवाज़ आई, “मानेंगे क्यों नहीं … जिस घर में इतनी सुशील, गृह लक्ष्मी का गृह प्रवेश हुआ हो; उसकी बात मानेंगे क्यों नहीं?” इस तरह कहते हुए वह अंदर आ गईं।
दरवाज़ा तो केवल उड़का हुआ ही था, उनके साथ रजत के डैड भी थे। दरअसल उन दोनों को रजत के कमरे से बातें करने की दबी-दबी आवाज़ आ गई थी। तब वह यह सोचकर घबरा गए कि शायद सारिका को सच पता चल गया है। उन्हें लगा अब तो रजत के साथ उसका झगड़ा होगा। इसीलिए उन्होंने अंदर आने के लिए क़दम बढ़ाए। लेकिन समझदारी और प्यार से भरी सारिका की बातें सुनकर उन दोनों के क़दम कमरे के बाहर ही रुक गए। उन्होंने सब कुछ सुन लिया और अपने आँसुओं को पोछते हुए कमरे में आ गए।
सोनिया की बातें सुनकर सारिका अपनी मॉम के सीने से लग गई।
तब मॉम ने कहा, “सारिका तुम्हारे माता-पिता ने बहुत मेहनत से यह गहने तुम्हारे लिए बनाए हैं, क्या तुम इन्हें …?”
“मॉम यह गहने हमारे सुख-दुख के साथी ही तो हैं। सुख में शरीर पर सज कर हमारी सुंदरता बढ़ा देते हैं, उसमें चार चांद लगा देते हैं और मुसीबत की घड़ी में हमारी इज़्ज़त भी बचा लेते हैं। यह संस्कार मेरी दादी ने हमारे परिवार को दिए हैं।”
रजत के मॉम डैड ने सारिका के सामने दोनों हाथ जोड़ लिए। तब सारिका ने उनके हाथों को अपने सर पर रखकर नीचे झुकते हुए कहा, “मॉम डैड यह हाथ केवल आशीर्वाद देने के लिए हैं। मैं आपकी बेटी ही तो हूँ।”
दूसरे दिन सारे गहनों और महंगी गाड़ियों को बेचकर रजत के परिवार ने अपना घर छुड़वा लिया।
आज सच में उनके चेहरे पर झूठी बनावटी मुस्कान नहीं सच्ची ख़ुशी थी। यह जीवन का कटु सत्य उन्होंने बहुत देर से सीखा कि झूठी शान और दिखावा धीरे-धीरे हमसे हमारा सुकून छीन लेता है। जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए। यही जीवन में खुश रहने का मूल मंत्र है।
रात को खाना खाते समय अजय ने कहा, “थैंक यू सारिका बेटा, आज तुम्हारी वज़ह से मैं तनाव मुक्त होकर खाना खा रहा हूँ। कितना हल्का महसूस हो रहा है, कोई कर्ज़ नहीं है तो कोई मानसिक तनाव भी नहीं है।”
सोनिया ने कहा, “बिल्कुल सच आज मुझे भी बिल्कुल हल्का महसूस हो रहा है। वरना तुम्हें चिंतित देखकर ऐसा लगता था कि कहीं तुम्हें कुछ हो ना जाए। थैंक यू बेटा सारिका।”
“डैड मॉम आप सच में खुश है ना?”
“हाँ बेटा बहुत खुश हैं लेकिन तुम्हारी ज्वेलरी भी …?”
“अरे मॉम भगवान चाहेगा तो वह तो फिर से बन जाएगी। मैं तो बहुत खुश हूँ मॉम जो खुशियाँ मुँह मोड़ कर हमसे दूर जा रही थीं, हम सब ने मिलकर उन्हें वापस बुला लिया है।”
रजत ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ-हाँ इसीलिए तो आज वह सबके चेहरों पर दिखाई दे रही है।”
तभी अजय ने कहा, “जिसके परिवार में इतनी प्यारी बेटी आ गई हो वहाँ से ख़ुशी भाग कैसे सकती है? अब तो वह हमेशा हमारे साथ ही रहेगी।”
अजय की बात सुनकर सारिका बहुत खुश हो गई और तब उसे उसकी दादी के शब्द याद आ रहे थे जब उन्होंने कहा था, जैसे एक अच्छी बेटी हो वैसे ही वहाँ एक अच्छी बहू बनकर दिखाना और उस घर की मर्यादा की हमेशा लाज रखना। अपनी ख़ुशी के साथ उन सभी की खुशियों का भी ध्यान रखना।
तभी रजत ने कहा, “चलो सोते हैं गुड नाइट मॉम डैड,” कहते हुए वह दोनों अपने कमरे में गए।
जाते समय रजत ने प्यार भरी नजरों से सारिका की तरफ़ देखते हुए कहा, “आई लव यू सारिका। तुम्हारा नाम तो ख़ुशी होना चाहिए था। सचमुच तुमने तो कमाल कर दिया।”
सारिका ने भी मुस्कुराते हुए कहा, “आई लव यू रजत। यह कमाल मैंने नहीं दादी की सोच और उनके सोने के कंगन ने किया है, जिसने परिवार को तनाव मुक्त रखा।”
उसके बाद रात के अंधेरे में वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में खो गए। आज जिस ज़मीन पर वह सो रहे थे वह सच में पूरी उन्हीं की थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त