प्यार हुआ चुपके से - भाग 9 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 9

दीनानाथजी मंदिर में आरती कर रहे थे और रति भी उनके पास हाथ जोड़े खड़ी थी। उसे बस गौरी के आने का इंतज़ार था। वो बार-बार पलटकर, मन्दिर से बाहर देख रही थी पर तभी उसे अजय मन्दिर में आता हुआ नज़र आया। उसके चेहरे पर एक बार फिर उदासी छा गई। उसने फिर से भोलेनाथ की पिंडी की ओर देखा और अपनी आँखें बंद करके आरती गाने लगी। अजय भी बिना उसे देखे उसकी बगल में आकर खड़ा हो गया। आरती खत्म होते ही पंडितजी सबको आरती देते हुऐ रति से बोले- काजल,बिटिया सबको प्रसाद दो।

"जी बाबा"- रति ने इतना कहकर वही रखी प्रसाद की थाल उठाई और सबको प्रसाद देने लगी पर उसकी नज़रे अभी गौरी की राह देख रही थी। वो सबको प्रसाद देते हुए अजय के पास आई और बोली- प्रसाद सर,

अजय ने रति की ओर देखा और प्रसाद के लिये अपना हाथ आगे बढ़ाया। रति ने उसे प्रसाद दिया और फिर आगे बढ़ गई। अजय प्रसाद हाथों में लिए उसे देखकर मन ही मन बोला- पता नही क्यों? पर मुझे काजल को देखकर हमेशा ऐसा क्यों लगता है? जैसे इसकी नज़रे किसी को ढूंढ रही है। पर किसे? पता करना पड़ेगा।

अजय ने प्रसाद खाया और रति की ओर बढ़ने लगा। तभी प्रसाद बांट रही रति की नज़रे मन्दिर की सीढ़ियों के नीचे आकर रूकी एक कार पर पड़ी। रति बहुत ही बेचैनी के साथ उस कार की ओर देखने लगी। तभी गौरी ने कार का दरवाज़ा खोला और बाहर आई। उसे देखते ही रति के उदास चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ गई। उसने प्रसाद की थाली वही खड़ी एक लड़की को पकड़ाई और बोली - ये प्रसाद सबको दे दो।

वो मन्दिर की सीढ़ियों से दौड़ती हुई नीचे आने लगी। गौरी की भी नज़रे जैसे ही उस पर पड़ी। उसका चेहरा भी खिल गया। रति के कदम उसके पास आते ही रुक गए और वो आंखों में आसूं लिए गौरी की ओर देखने लगी।

गौरी रोते हुए उससे लिपट गई और बोली- रति.... मुझे तो लगा था कि मैने अपने दोनों दोस्तों को हमेशा के लिए खो दिया है पर भोलेनाथ ने तुझे मेरे पास वापस भेज दिया। समझ नही आ रहा कि कैसे भोलेनाथ का शुक्रिया करूं?

रति ने उसकी ओर देखा और आंखों में आंसू लिए हल्की सी मुस्कुराहट के साथ पूछा- कैसी है तू?

"तुझे देख लिया..अब ठीक हूं। तू कैसी है?"- गौरी के इस सवाल को सुनकर रति का रोना और बढ़ गया। उसे रोता देख गौरी ने उसे अपने गले से लगा लिया और बोली- सब ठीक हो जाएगा रति सब ठीक हो जायेगा और तू तो बहुत स्ट्रॉन्ग है। हर मुश्किल में हिम्मत से खड़ी रहती है। इस बार भी तुझे मजबूती से खड़े रहना होगा। अपने लिए ना सही, अपने होने वाले बच्चे के लिए...... इसलिए खुद को टूटकर बिखरने मत दे।

रति कुछ नही बोल पाई। गौरी ने उसे अपनी गाड़ी में बैठाया और बोली- चल मेरे साथ,

रति के गाड़ी में बैठते ही वो भी गाड़ी में बैठी और उसे वहां से लेकर चली गई। मन्दिर में खड़ा अजय ये सब देख रहा था। वो वही खड़ा रति के बारे में सोचने लगा। दूसरी ओर.... शक्ति रेडी होकर अपने कमरे से बाहर आकर चीखा- घनश्याम काका, नाश्ता लगाइए मेरा।

"अभी लाया बिटवा"- घनश्याम ट्रे में ब्रेड रखते हुए बोला और जल्दी-जल्दी नाश्ता ट्रे में रखने लगा। तभी शक्ति आकर डाइनिंग टेबल के पास रखी चेयर खींचकर बैठा और सामने बैठी अपनी दादी से बोला- गुड मॉर्निंग दादी,

तुलसी ने उसके गुड मॉर्निग का कोई जवाब नही दिया पर नज़रे उठाकर शक्ति की ओर देखा और फिर से न्यूज़ पेपर पढ़ने लगी। वो अखबार में छपी शिव की तस्वीर और खबर देखने ही वाली थी कि तभी शक्ति गुस्से में बोला- बार-बार इस घर के लोग, मुझे ये यकीन दिलाने पर क्यों तुले रहते है कि मैं इस दुनिया का सबसे बुरा इन्सान हूं? ऐसा क्या कर दिया है मैने? ना मैने शिव को मारा है और ना ही उसकी बीवी को....तो फिर मुझसे ये नफरत किसलिए दादी?

तुलसी ने न्यूज़ पेपर टेबल पर रखा और ऊंची आवाज़ में बोली- घनश्याम हमारा नाश्ता ले आइए। हमें अनाथालय जाना है।

तभी घनश्याम आकर टेबल पर नाश्ता रखने लगा। उसने जैसे ही शक्ति की प्लेट में पोहे डाले तो शक्ति ने गुस्से में प्लेट को हाथ मारकर फर्श पर फेंक दिया।

"अब क्या शिव के मरने के बाद भी इस घर में रोज़ उसकी ही पसन्द का नाश्ता बनेगा?"- शक्ति ने अपनी चेयर से उठकर गुस्से में पूछा। तुलसी ने नज़रे उठाकर फिर से शक्ति की ओर देखा पर कुछ बोली नहीं।

लेकिन पायल ये सब देखकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी। शक्ति फिर से चीखा- मरने के बाद भी उसे इस घर में ज़िंदा रखा जा रहा है और जीते जागते इन्सान के साथ ऐसा बर्ताव किया जाता है। जैसे वो यहां है ही नही..... क्यों हमेशा से मेरे साथ इस घर में ऐसा किया जाता है?

तभी तुलसी गुस्से में उठकर खड़ी हुईं और बोली- शक्ति, आपकी हरकतें सबको आपके खिलाफ कर रही है। अपने अभिमान के आगे आपको रिश्ते नज़र नही आते। वो भाई, मरने के बाद भी आपको अपना दुश्मन लग रहा है। जिससे आप कभी खुद से भी ज़्यादा प्यार किया करते थे। जिसे अगर एक चोट लग जाए तो आप चोट पहुंचाने वाले का तब तक पीछा नहीं छोड़ते थे। जब तक आप उसे चोट नही पहुंचा देते थे।

आपका छोटा भाई ओमी शिव की मौत के सदमे से आज तक बाहर नहीं आया। शिव और रति को भुलाने के लिए उसने खुद को शराब में डूबो रखा है। आपकी बहन, पिछले तीन महीनों में एक बार भी नही मुस्कुराई है। आपकी मां, अपने बेटे की लाश देखकर अपनी सुद-बुद खो बैठी हैं पर आपको उससे क्या? आपको सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ... अपनी नफरत... अपना गुस्सा नज़र आता है। अपने परिवार का दर्द नहीं। इसलिए शायद आप मैनेजिंग डायरेक्टर बनने के लिए इतने बेचैन है। है ना?

"ओह, तो आपकी प्रॉब्लम ये है दादी कि आप मुझे आपके लाड़ले शिव की कुर्सी पर बैठा नही देख सकती। वो कुर्सी जिस पर बड़ा होने के नाते मेरा हक़ था"- शक्ति की ये बात सुनकर तुलसी उसके पास आई और बोली - शक्ति हमें आपके मैनेजिंग डायरेक्टर बनने से कोई एतराज नहीं है बेटा। अगर एतराज है तो उस नफ़रत से जो आपके दिल में शिव और अपने परिवार के लिए ना जाने किसने भर दी है।

इतना कहकर तुलसी ने पायल को गुस्से से घूरा पर शक्ति उनकी बातों से इतना हर्ट हुआ कि गुस्से में, भनभनाता हुआ वहां से चला गया।

तुलसी का चेहरा देखकर पायल तुरंत बोली- मेरी तरफ ऐसे मत देखिए मां.... मैं अपने ओमी की कसम खा चुकी कि मैंने शक्ति को नही बताया था कि शिव उसका सगा भाई नही है और ना ही मैंने इस घर के रिश्तों में दरार डाली है। ये जो कुछ भी हो रहा है। वो सब उस लड़की की वजह से हो रहा है। जिसे आप इस घर की बहू कहती थी।

अगर रति हमारे बच्चों की ज़िंदगी में नही आई होती तो शिव और शक्ति के बीच दरार कभी नही पड़ती। दो भाई जो एक-दूसरे पर अपनी जान छिड़कता थे एक-दूसरे के दुश्मन बन बैठे ..... सिर्फ और सिर्फ उस लड़की की वजह से...... और यही सच है मां..... उस लड़की ने शिव और शक्ति दोनों को अपनी खूबसूरती के जाल में फंसाया..... और फिर शिव से शादी करके इस घर में आ गई क्योंकि वो जानती थी कि शिव को आप लोग हमारी कंपनी का मैनेंजिंग डायरेक्टर बनाने वाले है। ये सब उसकी वजह से ही हुआ है।

"पायलल...."- तभी किरण को अपने कमरे से बाहर ला रहे अधिराज़ चीखे। उनकी ऊंची आवाज़ पूरे घर में गूंज उठी। वो किरण को नीचे लेकर आए और उन्होंने उसे डाइनिंग टेबल के पास रखी कुर्सी पर बैठाकर पायल की ओर गुस्से में देखा पर वो कुछ कहते, उसके पहले ही तुलसी ने उनकी बांह पकड़ ली और उन्हें कुछ ना कहने का इशारा किया। अधिराज़ चाहकर भी कुछ नही बोल पाए पर पायल गुस्से में उठकर चली गई। तुलसी ने अधिराज की बांह पकड़ी और उसे चेयर पर बैठाकर बोली- नाश्ता कर लीजिए बेटा,

"आज कल इस घर में सांस लेने में भी घुटन होने लगी है मां तो नाश्ता कैसे करूं? आप किरण को कुछ खिला दीजिए। इसे दवाइयां लेनी है। मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है। मैं चलता हूं"- अधिराज इतना कहकर वहां से चले गए।

उनके जाते ही तुलसी ने शिव की तस्वीर की ओर देखा और मन ही मन बोली- हे महादेव, कोई चमत्कार कर दीजिए। इस घर की खोई हुई खुशियां लौटा दीजिए। बचा लीजिए इस घर को टूटने से ...बचा लीजिए। तुलसी की आंखो से आंसू बहने लगे।

दूसरी ओर गौरी ने अपनी कार नर्मदा नदी के एक घाट पर रोकी और रति के साथ गाड़ी से बाहर आई। गाड़ी से बाहर आते ही रति नदी की ओर चुपचाप बढ़ने लगी। गौरी भी उसे देखते हुए चुपचाप उसके साथ आगे बढ़ रही थी। नदी के किनारे पर पहुंचकर रति के कदम रुक गए। गौरी ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और बोली- रति, शक्ति को बहुत जल्द "कपूर ग्रुप ऑफ कंपनीज़" का एमडी बनाया जा रहा है।

रति ने उसकी बात सुनने के बाद भी ना ही कुछ कहा। और ना ही उसके चेहरे के भाव में कोई बदलाव हुआ। गौरी ने उसके कन्धे को कसकर दबाया और फिर से बोली- रति, मुझे बताएगी नही कि उस रात ऐसा क्या हुआ जो तुझे इस नदी में कूदना पड़ा? जिसकी वजह से तू हम सबसे दूर हो गई।

रति ने अपनी आँखें बंद की तो उसे वो सब याद आने लगा जो उस रात हुआ था। उसे अपनी ही चीख सुनाई देने लगी। उसने खुद को संभाला और गौरी को उस रात के बारे में सब कुछ बताने लगी। सच जानकर गौरी परेशान होकर बोली- मुझे तो अभी भी यकीन नही हो रहा रति। कि दो भाई जो एक-दूसरे पर जान छिड़कते थे। उनके बीच ऐसी दरार पड़ेगी कि एक भाई, दूसरे भाई को मरते देखने के बाद भी उसकी जान नही बचाएगा। शक्ति में इतनी हिम्मत कहां से आई कि वो अपने ही भाई को मरते देख पाया। दौलत के नशे ने शक्ति को अंधा कर दिया है।

"ये जो कुछ भी हुआ है या हो रहा है। उसकी वजह दौलत नही है गौरी..... मैं हूं। ना मैं शिव और शक्ति की ज़िंदगी में आती और ना वो दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बनते। ये सब कुछ सिर्फ और सिर्फ मेरी वजह से हुआ है"- रति के इतना कहते ही गौरी ने उसकी बांह पकड़कर उसे घाट की सीढ़ियों पर बैठाया और उसके पास बैठकर बोली- रति,जो कुछ भी शिव और शक्ति के बीच हुआ। उसकी वजह तू नही बल्कि वो सच है। जो शक्ति के सामने गलत तरीके से पेश किया गया था।

उस सच को जानने के बाद ही शक्ति के दिल में शिव के लिए नफरत का बीज बोया गया और उसी वजह से शक्ति ने ये जानते हुए भी कि तू और शिव एक-दूसरे से प्यार करते हो। तुझे पाने के लिए सारी हदें पर कर दी थी पर तेरी और शिव की मोहब्बत सच्ची थी इसलिए तुम दोनों को जुदा करने की लाख कोशिशों के बाद भी तुम दोनों एक हो ही गए और ये बात, शायद शक्ति से बर्दाश्त नही हुई और उसने शिव की जान ले ली।

"शिव को कुछ नही हुआ है गौरी ....वो ज़िंदा है। और बहुत जल्द लौटकर आऐंगे और सब कुछ ठीक कर देंगे।"- रति नदी की ओर देख कर बोली। गौरी उसकी बातें सुनकर परेशान हो गई और कुछ बोल नहीं पाई। रति भी उदास होकर नदी की ओर देख रही थी। उसे अपना अतीत याद आ रहा था।

तभी गौरी फिर से बोली- रति, मुझे लगता है कि तुझे घर वापस जाना चाहिए और अपने ससुराल वालों को सच बताकर शक्ति के खिलाफ़ पुलिस कम्पलेन करनी चाहिए।

गौरी के इतना कहते ही रति ने उसकी ओर देखा और पूछा- तुझे सच में लगता है गौरी कि उस घर में कोई मेरे सच पर यकीन करेगा? हां दादी मां शायद मेरा यकीन कर भी ले पर बाकी सब?? वो मेरी बातों पर कभी यकीन नही करेंगे और फिर मैं सबको बताऊंगी क्या? यही कि उस रात शक्ति ने शिव से ऐसी बातें कहकर उन्हें वहां बुलाया था कि उन्होंने अपना आपा खो दिया और शक्ति पर हाथ उठा दिया।

शक्ति तो बहुत आसानी से ये कह देगा कि शिव ने उस पर हाथ उठाया था इसलिए उसने खुद को बचाने के लिए उन पर हाथ उठाया और शिव को अपने ही हाथ से गोली लग गई और वो नदी में गिर गए। उसके दोस्त इस बात की गवाही भी दे देंगे और मेरे साथ जो उसने उस रात किया। उसका ना मेरे पास कोई सबूत है और ना ही कोई गवाह.... कैसे और किसे यकीन दिलाऊंगी मैं? कि उस रात शक्ति ने अपने ही छोटे भाई की पत्नि की इज्ज़त के साथ खिलवाड़ करना चाहा था।

किसी को कुछ साबित नही कर पाऊंगी मैं। पर हां, इंदौर पंहुचते ही शक्ति को ये ज़रूर पता चल जायेगा कि मैं शिव के बच्चे की मां बनने वाली हूं और फिर वो क्या करेगा। ये तू और मैं दोनों अच्छे से जानते है।

रति की बातें सुनकर गौरी की परेशानी और बढ़ गई। फिर अचानक उसे रति के मां बनने वाली बात याद आ गई और उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने तुरंत रति को अपने गले से लगाया और बोली- कांग्राचुलेशंस रति, तुझे भी और मुझे भी..... तू मां बनने वाली है और मैं मासी.....

रति के उदास चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने भी गौरी को पकड़ लिया। गौरी ने फिर से रति की ओर देखा और बोली - तूने बिलकुल सही फैसला लिया है। तुझे इन्दौर वापस नही आना चाहिए। मैं तेरे सारे डॉक्यूमेंट्स ले आई हूं। अब तू आसानी से अपनी ज़िंदगी की नई शुरुआत कर सकतीं है।

उसकी बातें सुनकर रति सोच में पड़ गई। गौरी फिर से बोली- वैसे रति,ये ओंकारेश्वर है। तेरे परिवार का यहां आना-जाना लगा रहता है। कही किसी ने तुझे यहां देख लिया तो तेरे लिए मुश्किल हो जायेगी। तू एक काम क्यों नही करती... शिमला चली जा। मेरी मासी की बेटी रहती है वहां..... वो वहां के एक होस्टल में तेरे रहने का इंतजा़म करवा देगी और तुझे एक अच्छी सी नौकरी भी दिलवा देगी। तुझे वहां कोई खतरा नहीं होगा।

शिमला का नाम सुनते ही रति को एक बार फिर बीती बातें याद आने लगी। उसने खुद को संभाला और बोली- नही गौरी मैं शिमला नही जा सकतीं क्योंकि मेरा दिल कहता है कि शिव को कुछ नही हुआ है। वो जल्द लौटकर आऐंगे और आते ही उनकी नज़रें मुझे तलाशेगी और अगर मैं उन्हें नही मिली तो शिव टूट जायेंगे और मैं ऐसा नहीं होने दे सकतीं इसलिए मुझे यही रहना होगा शिव के करीब.... ताकि जब वो लौटकर मुझे पुकारे तो मैं दौड़ती हुई उनके पास चली जाऊं।

गौरी ने उसकी बातें सुनकर मुस्कुराने की कोशिश की और बोली- ठीक है.... जैसी तेरी मर्जी..... मैं अभी आई। गौरी उठकर अपनी गाड़ी के पास आई। उसने गाड़ी से रति के डॉक्यूमेंट्स और अपना बैग निकाला। और फिर लौटकर रति के पास आकर बैठ गई।

"ये तेरे डॉक्यूमेंट्स"- गौरी ने सारे कागज रति को देते हुए कहा। रति सारे कागज देखने लगी। तभी गौरी ने अपने बैग से दस रुपए के नोट की एक गड्डी निकालकर रति की हथेली में थमाई और बोली- इसे भी रख ज़रूरत के वक्त तेरे काम आयेंगे।

रति ने पहले नोटों की गड्डी देखी और फिर हैरानी से गौरी को देखने लगी। गौरी मुस्कुराते हुए बोली- तेरी अलमारी में शिव के कपड़ों के बीच मिले ये मुझे... मैने ये सोच कर उठा लिए कि तेरे पति के रुपए तेरे ही काम आऐंगे। तुझे शायद ज़रूरत ना हो पर इस बच्चे को इनकी ज़रूरत पड़ सकती है इसलिए रख ले। रति ने फिर से गौरी को अपने गले से लगा लिया।

लेखिका
कविता वर्मा