प्यार हुआ चुपके से - भाग 10 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 10

रति ने गौरी की हथेली को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और बोली- गौरी,कॉलेज में हुई हमारी पहली मुलाकात से लेकर आज तक तूने हर मुश्किल घड़ी में मेरा साथ दिया है इसलिए मैं खुद से ज्यादा तुझ पर भरोसा करती हूं। मैं तुझसे ये उम्मीद कर सकतीं हूं ना कि तू मेरे जिन्दा होने वाली बात गलती से भी किसी के सामने नही करेगी? जानती हैं ना कि अगर शक्ति को पता चला तो वो क्या करेगा?

गौरी ने मुस्कुराते हुए रति के गाल को छुआ और बोली- मैं मानती हूं कि लड़कियों के पेट में कोई बात नही टिकती पर मैने अपने अंदर ढेर सारे राज छिपा रखे है इसलिए तुझे फिक्र करने की जरूरत नहीं है। मैं गलती से भी किसी को ये सच नहीं बताऊंगी कि तू जिंदा है पर तुझे भी ये प्रॉमिस करना होगा। तू जहां भी रहेगी,जिस हाल में भी रहेगी। मुझे अपने बारे में बताती रहेगी और जरुरत पड़ने पर मेरी मदद भी लेगी और हमारी दोस्ती के बीच ये स्वाभिमान,आत्म सम्मान, मेहरबानी जैसे शब्दों को कभी नही आने देगी और हां जब भी ये बच्चा इस दुनिया में आने वाला होगा मुझे अपना ख्याल रखने से नही रोकेगी। वादा कर...

"वादा"- रति मुस्कुराते हुए बोली तो गौरी ने उसकी बांह पकड़ी और बोली- अब चल..चलकर किसी अच्छी सी जगह समोसे खाते है और चाय पीते है। बहुत मिस किए है मैने हमारे समोसे....

रति मुस्कुरा दी और कुछ कह पाती। उसके पहले ही गौरी उसका हाथ पकड़कर उसे वहां से ले गई। इधर शक्ति अपने ऑफिस की बोर्ड मीटिंग में पंहुचा। जहां पहले से बोर्ड के सारे मेंबर्स बैठे हुए थे। शक्ति को देखते ही उसके पापा गुस्से में उठकर खड़े हुऐ।

"शक्ति, ये मीटिंग क्यों बुलाई तुमने?"- अधिराज ने गुस्से में पूछा। शक्ति मुस्कुराते हुऐ चेयर पर बैठा और उसने अधिराज की ओर देखकर पूछा- ये सवाल आप बिना गुस्सा किए हुए भी तो कर सकते थे ना पापा?

अधिराज फिर से कुछ कहने ही जा रहे थे कि तभी अरुण बोल पड़े- रिलेक्स अधिराज,गुस्सा करने से बेहतर होगा कि पहले ये जान लिया जाए कि शक्ति ने ये मीटिंग आखिर बुलाई क्यों है। बैठ जाओ.....प्लीज।

अधिराज फिर से अपनी चेयर पर बैठ गए। शक्ति के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। वो अपनी चेयर से उठा और बोला- आप सब ये बहुत अच्छे से जानते है कि शिव की मौत के बाद हमारी कंपनी के शेयर मार्केट में तेजी से लुढ़क रहे है। इन्वेस्टर हमारी कंपनी में कोई भी बड़ा इन्वेस्टमेंट करने से घबरा रहे है क्योंकि उन्हें अब हमारी कंपनी पर भरोसा नहीं रहा। उन्हें ये लगने लगा है कि हम उनका प्रोजेक्ट वक्त पर पूरा नही कर पायेंगे क्योंकि उनका भरोसा शिव के रूप में खत्म हो चुका है इसलिए अब इस कम्पनी को उसके अगले मैनेजिंग डायरेक्टर की सख्त जरूरत है। अगर हमने वक्त की नजाकत को समझते हुऐ जल्द से जल्द इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया और जल्द से जल्द मैनेजिंग डायरेक्टर की खाली कुर्सी पर किसी को नहीं बैठाया तो वो दिन दूर नही जब हमारी कंपनी पर ताला लग जायेगा।

सब लोग शक्ति की बातें सुनकर एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे। शक्ति फिर से बोला- चाचाजी,इस वक्त इंडिया में नही है पर मेरी उनसे फोन पर बात हुई है और उन्हें भी यही लगता है कि हमें कम्पनी की भाग दौड़ किसी मजबूत हाथों में सौंप देना चाहिए। मैने तो उनसे कहा कि उन्हें ही एमडी की कुर्सी संभाल लेनी चाहिए पर उनका कहना है कि उन्हें इंडिया से बाहर का हमारा बिज़नेस संभालने के लिए अक्सर आउट ऑफ इंडिया रहना पड़ता है इसलिए वो ये जिम्मेदारी अच्छे से नही निभा पायेंगे इसलिए अब फैसला आप लोगों के हाथों में है कि आप किसे इस कंपनी का मैनेंजिंग डायरेक्टर बनाना चाहते है पर ये फैसला आपको जल्द लेना होगा क्योंकि वक्त नहीं है हमारे पास...... एक महीने बाद सरकार तीन बड़े प्रोजेक्ट के लिए टेंडर निकालने वाली है और हम भी ये टेंडर भरने वाले है पर ये प्रोजेक्ट हमें मिलेगा या नहीं..... ये हमारी कम्पनी की रेपोरेशन डिसाइड करेगी।

"मुझे लगता है कि शक्ति ठीक कह रहा है।"-अरुण के इतना कहते ही सबने उसकी ओर देखा। अरुण उठकर खड़े हुऐ और बोले- मैं जानता हूं कि ये मिस्टर अधिराज कपूर के लिए थोडा मुश्किल वक्त है। अपने जवान बेटे को खो देने का दर्द शायद हम में कोई नही समझ सकता और खास तौर से जब बेटा, शिव जैसा होनहार बेटा हो पर किस्मत पर किसका बस चला है। आज का सच यही है कि अब शिव इस दुनिया में नही रहा इसलिए अब इस कम्पनी में उसकी जगह हमें किसी को देनी पड़ेगी। यही इस कम्पनी के लिए ठीक रहेगा।

अरुण की बातें सुनकर बाकी लोग भी एक के बाद एक नए एमडी के सिलेक्शन को लेकर बोलने लगे। वही एक चेयर पर बैठी नेहा, शक्ति को देखकर मुस्कुराने लगी। सबकी बातें सुनकर अधिराज ने अपनी आंखे बंद की और फिर खुद को संभाला। वो अपनी आंखे खोलकर उठ खड़े हुऐ और बोले- ठीक है.... अगर आप सब यही चाहते है तो आज से ठीक एक हफ्ते बाद बोर्ड की मीटिंग फिर से होगी पर एक हफ्ते बाद मुझे कांफ्रेस रूम में बोर्ड के सारे सदस्य चाहिए। ओमी भी.... वो भी बोर्ड का मेंबर है और उसका वोट इस चुनाव के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि वो इस कंपनी में 20% का हिस्सेदार है।

सब उनका चेहरा देखने लगे पर शक्ति ने गुस्से में अपने हाथ की मुठ्ठी बांध ली। अधिराज़ इतना कहकर वहां से चले गए। बाकी सब भी एक-एक करके वहां से जाने लगे पर नेहा अपनी चेयर पर बैठी शक्ति को देख रही थी। सबके जाते ही शक्ति ने वही रखी एक चेयर पर बहुत जोर से लात मारी तो कुर्सी दीवार से जा टकराई। ये देखकर नेहा उठकर उसके पास आईं। उसने टेबल पर रखा पानी का ग्लास उठाया और शक्ति की ओर बढ़ाकर बोली- पी लो..... फिलहाल इसकी जरूरत है तुम्हें.....

शक्ति ने उसके हाथों से पानी का ग्लास लिया और गुस्से में बहुत जोर से फर्श पर दे मारा। ये देखकर नेहा की आंखे बड़ी-बड़ी हो गई और वो फर्श पर बिखरे कांच के टुकड़ों को देखने लगी। तभी शक्ति गुस्से में चीखा- ये मेरा बाप....मेरा सबसे बड़ा दुश्मन है। इनके रहते मैं कभी अपने सपनों की मंजिल नहीं पा सकूंगा। ओमी....मेरा साथ कभी नही देगा। कभी नही......

उसकी बातें सुनकर नेहा जोर-जोर से हंसने लगी। उसे हंसते देख शक्ति का गुस्सा और बढ़ गया। उसने गुस्से में नेहा की बांह पकड़ी और उसे अपने करीब लाकर पूछा- पागल हो गई हो? तुम्हे मेरे सपने मजाक लग रहे है क्या?

नेहा ने अपनी हंसी रोकी और गुस्से में बोली- मज़ाक तो तुमने बना रखा है अपने सपनों का..... इसलिए तो दिमाग चलाना छोड़ दिया है तुमने.... क्योंकि अगर ऐसा नही होता तो तुम मेरी बातों को एक कान से सुनकर दूसरे कान से नही निकालते।

"साफ-साफ कहो कि तुम क्या कहना चाहती हो। घुमा-फिरा कर बात करने वाले लोग मुझे पसन्द नही है"- शक्ति उसे घूरते हुए बोला तो नेहा तीखे स्वरों में बोली- मैंने तुमसे उस दिन साफ-साफ़ कहा था शक्ति कि अगर तुम इस कंपनी पर अपनी हुकूमत चाहते हो तो तुम्हें अपने घरवालों के दिलों पर हुकूमत करना सीखना होगा। उनके लिए शिव बनना होगा तुम्हें.... पर तुम हो कि अपना शक्ति प्रदर्शन करने में लगे रहते हो। अपने गुस्से पर काबू करना सीखो शक्ति..... शिव की तरह राम बन जाओ..... अगर तुम राम बन गए तो ओमी अपने आप लक्ष्मण बन जायेगा और तुम्हारी साइड हो जायेगा और तुम्हारे पापा को भी तुम्हारी साइड होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। वैसे एक इन्सान और है जो अगर तुम्हारी तरफ हो गया तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हे मैनेजिंग डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठने से नही रोक पायेगी।

नेहा की बाते सुनकर शक्ति उसे हैरानी से देखने लगा और उसने पूछा- किसकी बात कर रही हो तुम? दादी की??

"तुम्हारी मां की"- नेहा के मुंह से अपनी मां के बारे में जानकर शक्ति के चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट आ गई। वो अपनी चेयर पर बैठा और उसने अपने दोनों पैरो को टेबल पर रखकर कहा- लगता है तुम्हारा दिमाग फिर गया है नेहा.....तभी ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रही हो। मां, इस दुनिया में अगर सबसे ज्यादा किसी से प्यार करती थी तो वो शिव था..... उसके जाने के बाद मां की हालत देखी है तुमने? होश खो बैठी है अपना......मेरा तो वो चेहरा भी नही देखना चाहती। नफरत करती है मुझसे...... वो मुझे अपनी जिंदगी में शिव की तो क्या मेरी अपनी जगह भी नहीं देगी।

"जरुर देगी शक्ति..... क्योंकि वो तुम्हारी सगी मां है। जन्म दिया है उन्होंने तुम्हें...."- नेहा बोली। शक्ति ने नजरे उठाकर उसकी ओर देखा और कुछ कहने ही जा रहा था कि तभी नेहा फिर से बोली- पर शिव उनका खून नही था। वो शिव की सौतेली मां है। सौतेली मां को कैकई बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगता और फिर तुम्हे राम को वनवास पर भेजने की जरुरत भी नही पड़ेगी क्योंकि उसने तो सीधे ऊपर का टिकट कटा लिया है। शिव इस दुनिया में नही है और तुम्हारी मां उसकी मौत के सदमे में जी रही है। इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा तुम्हें..... अपनी मां के दिल में अपनी जगह बनाने का....जाओ और जाकर अपनी मां का ख्याल रखना शुरू करो और उनकी जिन्दगी में शिव की जगह ले लो। एक बार फिर कह रही हूं तुम्हें......एक हफ्ता है तुम्हारे पास। जाकर अपने रिश्तों में इस तरह घुल जाओ। जैसे चाय में शक्कर घुल जाती है और फिर उसे पानी से अलग करना मुश्किल हो जाता है। प्लीज़ समझो मेरी बात को शक्ति...... वरना तुम्हारे हाथ कुछ नही लगना। कुछ भी नही.....

नेहा की बाते सुनकर शक्ति मन ही मन बोला- शायद नेहा ठीक ही कह रही है। मुझे उसकी बात मान लेनी चाहिए अगर मुझे ओमी का साथ चाहिए तो मुझे पहले अपनी मां को अपना बनाना होगा।

इधर गौरी और रति वही नर्मदा नदी के घाट के किनारे बैठी समोसे खा रही थी तभी रति ने पूछा- गौरी, मां-पापा और रानी कैसी है?

"सब तेरी और शिव की मौत के सदमे से बाहर आने की कोशिश कर रहे है। तेरे जाने के बाद मैंने तेरे घर जाना छोड़ दिया था। रानी से एक दो बार मुलाकात हुई थी। वो तेरे मां-पापा को संभालने की पूरी कोशिश कर रही है। शायद बहुत जल्द वो तेरी मौत के सदमे से उबर जायेगे।

तभी रति ने उसकी ओर देखकर पूछा- गौरी, घर पर सब कैसे है? मां,दादी,ओमी,टीना.... पापा....सब ठीक है ना?

"शिव को खोने के बाद कैसे होने चाहिए सब रति? वैसे ही है.... वो घर आज भी शिव और तेरी मौत के सदमे से बाहर नहीं निकला है"- गौरी के इतना कहते ही रति के चेहरे पर एक बार फिर मुस्कुराहट की जगह उदासी ने ले ली। तभी गौरी नदी की ओर देखकर बोली- किरण आंटी अभी भी सदमे में है रति..... और ओमी शराब पीने लगा। टीना भी ठीक नहीं है। दादी और अधिराज अंकल ने उस घर को संभाल रखा है अगर तेरा विश्वास सच्चा नही हुआ और शिव लौटकर नहीं आया तो उस घर को बिखरने से कोई नहीं बचा पायेगा।

"शिव जरुर आयेंगे गौरी..... बहुत जल्द आयेगे और सब कुछ ठीक कर देगें। मुझे मेरे महादेव पर पूरा भरोसा है।"- रति,गौरी की हथेली पर अपना हाथ रखकर बोली तो गौरी भी मुस्कुरा दी और फिर उठकर खड़ी हुईं और बोली- अगर तू कह रही है तो मैं मान लेती हूं पर अब मुझे चलना चाहिए रति..... अंधेरा होने से पहले मैं इंदौर पंहुच जाऊं वही ठीक रहेगा..... पापा से झूठ बोलकर अपनी एक दोस्त के साथ यहां आई हूं। उसकी बुआ रहती है यहां..... उसी से मिलने गई है। मुझे उसे भी पिकअप करना है। मैं जाऊं?

रति ने उदास मन के साथ आहिस्ता से अपना सिर हां में हिला दिया। दोनों गाड़ी की ओर बढ़ने लगी। गाड़ी के पास आते ही गौरी ने फिर से रति को अपने गले से लगाया और बोली- अपना और इस नन्हे मेहमान का ख्याल रखना रति.... और इतनी सी भी परेशानी हो तो मुझे तुरंत फोन करना। मैं तेरी मदद के लिऐ दौड़ी चली आऊंगी और पूरी कोशिश करूंगी कि हर संडे किसी बहाने से तुझसे मिलने आ सकूं।

"तू भी अपना ख्याल रखना गौरी.... और मुझे वहां का हाल बताती रहना।"- रति इतना कहकर रोते हुए गौरी से लिपट गई। गौरी की भी आंखे भर आई। उसने रति के आंसू पौछे और बोली- रति, मैं अभी भी कह रही हूं तुझसे... प्लीज़ मेरे साथ इंदौर चल... अगर शक्ति की वजह से तू शिव के घर में नही रह सकतीं है तो अपने पापा के घर चल.... और अगर वहां भी नही रहना चाहती है तो मेरे साथ मेरे घर चल। मैं तुझसे वादा करती हूं कि तुझे और तेरे बच्चे को एक खरोंच भी नही आने दूंगी।

रति ने खुद को संभाला और गौरी की दोनों हथेलियां पकड़कर बोली- मैं नही आ सकतीं गौरी..... क्योंकि अगर मैं तेरे साथ इंदौर गई तो दादी मुझे अपने साथ घर ले जाये बिना नही मानेगी और उस घर में ना मैं सुरक्षित हूं और न मेरा बच्चा..... इसलिए मैं तेरे साथ नही सकती। नही आ सकतीं मैं तेरे साथ.....

"ठीक है....अब मैं तुझे इन्दौर चलने के लिऐ फोर्स नही करूंगी पर प्लीज मेरी मां.... अगर इतनी सी भी तकलीफ हो तुझे तो मुझे तुरंत फोन करना.... और मेरी मदद मांगने से बिलकुल मत झिझकना.... हमारी दोस्ती के बीच प्लीज़ अपने आत्मसम्मान को मत लाना.... समझी"- गौरी बच्चो की तरह बोली। रति रोते-रोते हंस दी। गौरी ने फिर से रति को अपने गले से लगाया और बोली- अब मुझे जाने दे.... मुझे देर हो रही है।

रति ने फिर से उदास होकर उसकी ओर देखा तो गौरी तुरंत गाड़ी में बैठ गई और गाड़ी स्टार्ट करके बोली- अगर मैं यहां और रूकी तो नर्मदा मैय्या के साथ रति नाम की भी नदी ओंकारेश्वर में बहना शुरू हो जाएगी। बाय.....

इतना कहकर गौरी ने गाड़ी स्टार्ट कर ली और हाथ हिलाकर रति को बाय का इशारा किया तो रति ने भी मुस्कुराते हुऐ अपना हाथ हिला दिया। गौरी चली गई। उसके जाते ही रति पलटी और आहिस्ता-आहिस्ता फिर से घाट की ओर बढ़ने लगी। वो फिर से आकर घाट की सीढ़ियों पर बैठी और नदी में बहते पानी की ओर देखने लगी। उसने अपनी आंखे बंद की तो उसकी आंखो से आंसू बहने लगे। उसका एक आंसू नर्मदा नदी में जा टपका तभी हॉस्पिटल के बेड पर बेहोश पड़े शिव को वो सब कुछ याद आने लगा जो उसके साथ हुआ था। तभी उसने ख़ुद को पहाड़ी से नदी में गिरते देखा और रति की चीख सुनी- शिववववववव........

"रतिईईईईईईईईई"- शिव चीखते हुए बेड से उठ बैठा। उसके पुकारते ही रति के कानों में हवा के झोंके के साथ शिव की आवाज़ भी गूंज उठी।

"शिव"- रति उसका नाम लेकर घबराकर उठ खड़ी हुईं। उसने चारो ओर घूमकर देखा पर उसे शिव कही नज़र नही आया। वो मन ही मन बोली- मुझे ऐसा क्यों लगा जैसे शिव ने मुझे पुकारा?

इधर हॉस्पिटल में शिव की चीख सुनकर डॉक्टर और नर्सेस दौड़ते हुऐ वहां आ गए। उन्हें देखते ही शिव ने बेड से उठने की कोशिश करते हुए पूछा- आप लोगों मुझे यहां क्यों लाए?? मेरी पत्नि कहां है? मेरा परिवार कहां है?

"देखिए,आप लेटे रहिए। इस वक्त आपको आराम की जरुरत है। अभी-अभी कोमा से बाहर आए है। खड़े नही हो पाएंगे आप"- डॉक्टर उसे पकड़ते हुऐ बोले तो शिव हैरान रह गया। वो कोमा में था। ये बात जानकर उसके जैसे होश ही उड़ गए। उसने फिर से अपने आसपास देखा। उसे ना ही रति अपने आसपास नज़र आई और ना ही उसकी मां। उसे घबराहट होने लगी। उसने हिम्मत करके डॉक्टर की ओर देखकर पूछा- मेरा परिवार कहां है?

"हम नही जानते।"- डॉक्टर के इतना कहते ही उसे ऐसा लगा जैसे ना उसके सिर पर आसमान रहा और ना ही पैरों तले ज़मीन.....

लेखिका
कविता वर्मा