काल्पनिक भय Anand Tripathi द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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काल्पनिक भय

कल्पना में की गई बाते या दृश्य कभी सिद्ध नही होते।
मौत का सिद्धांत सत्य है। बिल्कुल सत्य पंरतु कल्पना की बाते यकीनन बेकार और बाहरी आडंबर से बनती है।
दिमाग अन्दर ही अन्दर चैट करता है तमाम बाते करता है।
फालतू की बाते करता है आपको इस भय से आगे बढ़ने के लिए कभी प्रेरित नहीं करेगा। और तो और आपके निजी अंतर मन को खा जायेगा।
हमारे मन एक पेड़ है विशाल
जिसकी तमाम शाखाएं है।
और मैने हर शाखाओं पर अपने फल की कल्पनाओं का जाल बिछाया है।
जो की एक दम बेबुनियाद बात है।
भूत की बाते हमे हमारे लिए काल्पनिक है।
वर्तमान संस्करण में हम हैं।
भविष्य में क्या होगा और क्या नहीं इसका नि करेगा।
और कोई नही
व्यर्थ की बाते सिर्फ तुम्हे दिन प्रतिदिन भयभीत करने के लिए नए ढंग से आती रहेंगी। इनसे बचो
हम रोज़ यह बात को मन में बांध सकते है की
व्यर्थ समय नहीं है
बीमारियों से लड़ना है
जीवन में निर्भीकता
हमारा मोह ही हमारी सम्पूर्ण कल्पना और विषय का कारण है।
हम कल्पना में इतने खो जाते है की जीवन का ध्यान तक नहीं रहता है।
कही कुछ भी हो गलत सही उचित अनुचित लेकिन हमारा मन उसे तुरंत पकड़ना चाहता है पकड़ लेता है।
और हम उसे और strong bana lete hai
Ham real ke bajay usi ke sath ho lete hai Jo drishy gat
Hota है जबकि सत्य उससे कही परे।
बार बार बार अपने दिमाग को इतना घोट देता है।
फिर व्यक्ति वहा से अधिक समय तक अंदर बंध जाता है।
उसकी वर्तमान खुशियां चली जाती क्युकी मन या तो भविष्य या भूत में रह रहा होता है।
यह दिशा बिलकुल ही अनुचित है जिसका जीवन में सिर्फ एक उद्देश्य आपके सम्मुख उद्देश्य होते हुए भी आपको उलझाए रखना
जो सत्य है वो सत्य है
ईश्वर सत्य है
आरंभ सत्य है
अंत सत्य है।
जीवन सत्य है
आत्मा सत्य है।
आंतरिक प्रसन्नता भी सत्य है।

जीवन बहुत सरल है
भय मूलतः हमारे अंतर मन
का एक दोष है।
अगर आप भयभीत हो तो कही पर फोकस नही कर सकते है।
चाहे जितना प्रयास करे।
दुनिया के रंगमंच में वो खिलाड़ी है जो सतत प्रयास रत है
जो निर्भीक है
जो सत्य और वास्तविकता से परिचित है।
जो कल्पना को कभी सच नही मानते जो बस अपने काम को ही सम्पूर्ण जगत मानते है।
वो marathon खेलते हैं जीतते है
निर्भीकता में एक हल्कापन है एक अद्भुता
परन्तु इन विचारों से न कुछ आता है न कुछ जाता है।
सिर्फ विचार और शब्दो के खेल को सत्य मत मानो
जब भी सोचो ऊंचा सोचो वास्तविक सोचो
कुछ भी मत सोचो
सोच केवल सोच है
जिसका जीवन में बेसलेस
प्रयोग होता है।

हम क्या करते हैं जो अधिक सोचता है वो अपनी आंखों से बैठे बैठे ही सब कुछ तय करता रहता है।
जैसे सब कुछ उसके सामने हो
परन्तु जब 2 min bad वो वहा से निकलता है तो पाता है की वहा न पहले कुछ था न ही अभी कुछ है।
और वो सकपका जाता है।
भगवान ने इंसान को निर्भय ही बनाया था।
परन्तु फिर इंसान भगवान पर आ गया तो भगवान कहा सत्य बताता हू वास्तविक और काल्पनिक के बारे में बताया ताकि इंसान बाहर आ जाए
लेकिन उसको विश्वास ही नहीं और वो फस्ता चला गया
और आज भी निर्भय नहीं है।
वो या तो समय से आगे चलता है या समय से पीछे परंतु समय के साथ कभी नहीं।
प्रत्येक क्षण आनंद का होता है
और आनंद की परिभाषा ही भगवान है।
मन आपकी एक नही सुनेगा
क्या वेदांत दर्शन वेद कुछ भी। उसको बस चलते रहना होता है।
मैने सीखा की जो व्यक्ति इसको प्रसन्न करेगा उसको ऐसा प्रसन्न करेगा।
की दुबारा वो प्रसन्न होने लायक
नही रहता।
विशेष कर आज का युवा
ऐसे विषयों की चिंता करता है।

निर्भयता ही संसार है।
बाकी तो सब कल्पना है।
जो आज है वो कल नही जो कल नही वो आगे नहीं।
तुम्हारे होना ही संसार है तुम्हारा न होना केवल कल्पना
ब्रम्ह सत्य है।
विचार सिर्फ कल्पना है।
बस
जो चीज तुम्हे आज निर्झर
लग रही है वो कल सूखेगी यह सत्य है
पर यह कहां का सत्य है।
निर्झर बहता झरना कल्पना में सूख ही नही रहा है।

Overthinking is kill ur inner choice
Happines
And all
निर्भय हो
बिना किसी भय के अपना काम करो।
किसी से क्यू और क्या डरना

भ्रम से जैसे बाहर आते है हम हल्के होते है।
हमे लगता है की अब मन हल्का है।

खाली बैठ कर, या तबियत खराब होने पर
ऐसे व्यर्थ विचार आते ही हैं।

इनसे डर हम अपना ही नुकसान कर देते है।