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अधूरी रात

इस कहानी को मैंने महसूस किया है और दुनिया ने तराशा होगा। मैं उस दिन बहुत खुश था की चलो कुछ तो नया हो रहा है। लेकिन था सब कुछ वैसे ही जैसे किसी बच्चे ने कुछ सुबह बिखेरा हो और वो अभी तक ऐसे ही बिखरा हो उसे कोई उठाने वाला न मिला हो। ऐसे ही मैं खुश था लेकिन मन बहुत अकुशल था। उसकी वजह कोई था। जिसने पहली बार मन की दहलीज पर आकर कुछ दस्तक दी और कुछ भी नही लेकिन उतना मेरे लिए अति हो गया जैसे किसी सांप का जहर मन मे भर गया हो। और मेरा पागलपन चरम सीमा पर था उनके लिए कुछ भी हो सकता था ऐसी स्थिति कैसे पैदा हो गई जिस बंदे को ये न पता हो कि दोस्ती के अलावा भी कुछ है। बहुत कुछ। एक दिन में मेरा नियम कायदा बदल गया। और इतने सब के पीछे केवल वो छुपे हुए तीन शब्द जिनकी तलाश हर किसी को है। चाहे वो गरीब हो या अमीर लेकिन सबकी तलाश इस जवानी में एक है। वो शब्द I love you। मेरे कान ये सुनकर अपने आप को रोक न पाए और उनके खयाल ख्वाब उनका सब कुछ अपना बनाने के लिए तड़प उठे। और फ़िर मैं बावरा हो गया। मैं उनके यहां और उनके पास आने को तड़प उठा मुझे लगा की कोई मुझे जबरदस्ती चुंबक लगाकर खीच रहा है। और मेरी धड़कन मे कोई छेड़ खानी कर रहा है। नादान दिल की एक तमन्ना हो गई की वो अब ज़िद करने लगा था। और उस दिन से उस जगह में किसी और का घर बनने लगा। बस कहानी कुछ यूं शुरू होती है। की मैं उस दिन सुबह उठकर स्कूल जाता हूं पढ़ता हूं और सब कुछ करता सिवाय दिल के क्योंकि उसका दिल कही और ही था। जिंदगी के कई मायने होते है। मन पर दबाव डाला गया तो वो मायने भी बदलने लगते है। मेरा मन इतना हलचल कर रहा था। की कुछ समझ पाना मुश्किल था। दिल को समझने वाला पता ही नहीं कहा था। और मंजिल की करीबी बढ़ती जा रही थी। सुबह की चाय ने भी अब साथ छोड़ दिया। बस उनका अहसास ही मेरा तन मन धन सब कुछ था। कैसे उनको पा कर गले लगा लूं। कैसे अपने मन को बहलालू मैं। कितना ही दृढ़ हो जाऊ। क्या अब मैं फांसी चढ़ जाऊं। ऐसा प्रबल मन जिसका प्रसंग न जाने कैसा था। उसकी एक झलक का दीदार मुझे कत्ल करने का जिम्मा बना देता था। मैं उसको न पाऊं तो न जाने क्या हो जाता था। रूप कोई और कैसे देखता जब से मैंने उसको देखा। मन के तार टूटने लगे थे। बस अब कैसे भी उनको मिलना हुआ। उस दिन मैंने घर पर खाना नही खाया और उनके देख कर अपना पेट भर लेने का इरादा बनाया। बस भूख इतना सुनकर और बेताब हो गई। लड़किया बड़ी चुनौती भरी होती है। उनसे निपटना आसान उपाय नहीं है। बस यूं समझो की आपको मैनेज करना है। मैने उनके साथ उस पल के बाद करीब चार साल बिताए। लेकिन मैं अभी बात शुरवाती दिनों की कर रहा हूं की कैसे हम इतना करीब हुए। जबकि मुझे कभी इसका अंदाजा भी नहीं था। बस अपनी मस्ती को जीना आता था l लेकिन अब उतना खुस नुमा माहोल नही रहा मेरी जिंदगी में। क्योंकि मैं खुद ही गायब हो गया धीरे धीरे उनके वियोग में। मुझे वो रातों में याद आने लगी। जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी। जब आप किसी को चाहते है। तो आप उसको देखे और छुए और निहारे बिना नहीं रह सकते है। जिस कारण आप का प्रेम बहुत बढ़ जाता है। जिंदगी तो चीजे इंसान को जरूर करनी चाहिए जो की मेरा अनुभव है। प्रेम और दूसरा नियम आपको एक अच्छा इंसान बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसलिए ही जरूरी नहीं की आप का प्रेम किसी प्रेमिका से ही संभव है। हो सकता है की प्रकृति और पर्यावरण से भी प्रेम संभव हो। तो नियम और प्रेम बहुत अच्छी परिभाषा है इंसान के लिए। विषय पर वापस आता हू। और उस दिन मन एक दम उन्हे सोचकर सागर और सरिता हो रहा था। मैं शाम को आकर फिर उनके घर को जाता हू। उनके घर की सीढ़ियां तो मुझे ऐसी लग रही थी। जैसे की कोई म्यान से एक एक कर तलवार निकाल रहा हो। उनके घर पहुंच कर मैं थोड़ी देर घर के दरवाजा पर ठिठका और फिर पूरी योजना के साथ अंदर गया। जाते ही उनके बच्चे मुझे लिपट कर और दुलार का तूफान उड़ेलने लगे। मैं भी मौके का फायदा उठाकर बैठ गया। बस अब उनके निकलने का इंतजार कमरे के दरवाजे से हो रहा था। लेकिन वो मुझे खिड़कियों से ही झक रही थी। जैसे मैं उनका रिश्ते में कोई बड़ा लग रहा हूं। पानी आया और मैंने पानी पिया। और कुछ घड़ी बाद जब वो न निकली तभी मैंने कहा। की मैं जा रहा हूं। ये स्वर उनको अंदर तक ऐसे खीच गए जैसे मैं। कोई मदारी था। और डमरू बजाते ही वो घर से बाहर दिखाई। दे गई। अब मेरी जिम्मेदारी कुछ बढ़ सी गई मन में लड़ाई चल रही थी। की जाया जाय या नहीं। क्योंकि मैंने ऊंचे स्वर में जो बोल दिया था। लेकिन मैं चला आया और उनको वही छोड़ आया। पर घर पहुंचने के बाद क्या देखता हूं। की वो मेरे पीछे खड़ी हुई है। लेकिन मैंने थोड़ा मजाक किया। और वो भी मुस्कुराई। फिर क्या था दोनो में थोड़ा संवाद और हम अपने कमरे पर और वो अपनी बहन के यहां लेकिन गर्मी की उस। रात में ईश्वर का बहुत बड़ा खेल हुआ। और बिजली गुल हो गई। बस क्या था फिर सब घर के ऊपर और मैं और वो भी छत के ऊपर लेकिन चुलबुली मस्ती के साथ। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और धीरे से खीच लिया मैं घबराया और बोला क्या बात है। आज कोई बात नही बस मन कर रहा था तुम्हे छूने को और तुम्हारे पास बैठने को बैठ जाऊ। मैने कह हां लेकिन उन्होंने धीरे से कहा की लेकिन लेकिन कुछ नही बस मुझे बैठना है। हम करीब उस रात 11 बजे तक बैठे। फिर चले और जाकर सो गए। लेकिन रात भर हम दोनो एक दूजे का हाथ अपने हाथ में लेकर सोए। और सुबह वो मिली ही नही। वो रात अधूरी रात ही रही।

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