प्यार हुआ चुपके से - भाग 8 Kavita Verma द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्यार हुआ चुपके से - भाग 8

अपनी मां को रोते देख शिव उनके पास आया। उसने उनके हाथों से पूजा की थाली ली और वही खड़े नौकर की ओर बढ़ा दी। नौकर ने तुरंत थाली पकड़ ली। शिव ने आगे बढ़कर अपनी मां के आंसूओ को पौछा तो उसकी मां ने उसकी हथेली को चूम लिया। शिव ने अपनी मां को अपने सीने से लगा लिया।

"तुझे पता है शिव? आज तुझे सामने देखकर लग रहा है जैसे तेरी मां फिर से जी उठी है।"- किरण रोते हुए बोली। शिव अपनी मां को बांहों में भरकर बोला- आज मुझे भी ऐसा लग रहा है मां,जैसे दुनिया भर की खुशी मेरी बांहों में समां गई हो। बहुत मिस किया मैंने आपको मां,

किरण ने उसकी ओर देखा और बहुत प्यार से उसके चेहरे को छूकर उसके माथे को चूमा और बोली- तुम्हारे अपने घर में तुम्हारा स्वागत है बेटा।

शिव के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने घर के अंदर झांककर देखा और पूछा- मां घर के बाकी लोग कहां है? कोई नजर नही आ रहा? मैंने तो सोचा था कि सब मेरे वेलकम के लिए तैयार खड़े होंगे।

किरण ने उसकी कलाई थामी और उसे घर के अंदर लेकर आई। तभी अधिराज अपने नौकरों से बोले- गाड़ी से शिव का सामान निकालो और उसके कमरे में रखवाओ।

नौकरों ने सिर हिलाया और डिक्की से शिव का सामान निकालने लगे। शिव ने नजरे घूमाकर चारों ओर देखा तो उसके चेहरे की मुस्कुराहट और बढ़ गई। वो फिर से अपनी मां से कुछ पूछने ही जा रहा था कि तभी किरण बोली- शक्ति इंदौर में नही है...दोस्तों के साथ आगरा गया है। टीना और ओमी कॉलेज गए है और उन्हें पता नही है कि तू इंडिया आ गया है। तेरे चाचू ऑफिस में है और तेरी चाची,वो अभी-अभी अपने कमरे में गई है।

तभी पायल अपने कमरे से बाहर आई। शिव की नजर जैसे ही उन पर पड़ी तो वो मुस्कुराते हुए उनके पास आया। उसने उनके पैर छुए तो पायल उसके सिर पर हाथ रखकर बोली- जीते रहो,

"आपने मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दिया। मुझे बहुत अच्छा लगा चाची"- शिव उनकी ओर देखकर बोला। पायल मुस्कुराने की कोशिश करने लगी। शिव फिर से कुछ कहने जा ही रहा था कि तभी तुलसी बोल पड़ी- शिव, बेटा सफर कर के आए है आप। नहा लीजिए और जल्दी से नीचे आ जाइए क्योंकि आज आपकी मां ने सारी चीज़े आपकी पसन्द की ही बनाई है।

"बस पांच मिनट में आया दादी"- शिव इतना कहकर दौड़ता हुआ अपने कमरे में चला गया। तभी डॉक्टर ने हॉस्पिटल के बेड पर बेहोश पड़े शिव की बांह पर इंजेक्शन लगाया तो सुई की चुभन से वो अपने बीते हुए कल से बाहर आ गया और थोड़ी ही देर में सो गया।

दूसरी ओर रति ऑफिस की अपनी डेस्क पर बैठी अपना काम कर रही थी और सामने के कैबिन में बैठा अजय उसे एकटक देख रहा था। वो मन ही मन ही बोला- मुझे तो लगा था कि ये लड़की शायद मेरे ऑफिस में ज़्यादा देर टिक नहीं सकेगी पर ये तो बहुत अच्छे से अपना काम कर रही है। लड़की पढ़ी-लिखी होने के साथ-साथ मेहनती भी है और खूबसूरत भी,

अपने ही मुंह से काजल के लिए ये खूबसूरत शब्द सुनकर अजय चौक गया। उसने अपने आसपास देखा और फिर काजल की ओर देखकर बोला- ये क्या सोच रहा हूं मैं? वो मेरी एम्प्लॉयी है। मुझे उसके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।

अजय ने फिर से अपने काम पर ध्यान देने की कोशिश की पर कुछ देर में लंच ब्रेक हो गया और सब लोग अपना-अपना टिफिन लेकर खाना खाने चले गए। रति ने भी अपनी फाइल बंद की और अपना टिफिन लेकर सबके पीछे जाने लगी। तभी उसे रिसेप्शन पर रखा फ़ोन नज़र आया पर वहां कोई नहीं था। रति ने इधर-उधर देखा और फिर टेलीफोन के पास आई। उसने रिसीवर उठाया और गौरी का नंबर डायल किया। गौरी जो रति के ही फोन का इंतज़ार कर रही थी। टेलीफोन की घंटी बजते ही वो दौड़ती हुई टेलीफोन के पास आई और रिसीवर उठाकर बोली- हैलो....

"गौरी"- रति के मुंह से अपना नाम सुनकर गौरी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। उसने अपने आसपास देखा तो लिविंग रूम में एक नौकर सफाई कर रहा था।

"बहादुर मेरे लिऐ एक कप चाय ले आओ। जाओ"- गौरी रिसीवर पकड़े हुए ही बोली। बहादुर ने सिर हिलाया और अपना काम छोड़कर रसोईघर में चला गया। उसके जाते ही गौरी आहिस्ता से बोला- रति तेरा काम हो गया है। तेरे डॉक्यूमेंट्स मिल गए है मुझे,

रति के मुरझाए से चेहरे पर जैसे चमक आ गई। वो तुरंत बोली- थैंक्यू गौरी..... थैंक्यू सो मच....हमेशा की तरह इस बार भी तूने मेरा साथ दिया है। थैंक्यू,

"तुझे जितने थैंक्यू कहना है मिलकर कहना। अब मुझे अपना पता बता। मैं खुद ओंकारेश्वर आ रही हूं तुझसे मिलने और प्लीज़ ना मत कहना क्योंकि मैं तेरी कोई बात नही मानूंगी। मुझे देखना है कि तू ठीक है या नही और मुझे तुझे एक बहुत जरूरी बात भी बतानी है। और ये भी जानना है कि आखिर उस रात तेरे साथ ऐसा क्या हुआ कि ज़िंदगी को खुलकर जीने वाली रति खुदकुशी करने के लिए उफनती हुई नदी में कूद गई।"-
गौरी की बातें सुनकर रति को वो सब याद आने लगा जो उस रात उसके साथ हुआ था।

उसने खुद को संभाला और फिर बोली- पर गौरी तेरे यहां आने से अगर किसी को पता चल गया कि मैं जिंदा हूं। तो ये बात शक्ति तक पहुंचते देर नहीं लगेगी।

"ऐसा कुछ नही होगा रति.... मैं बहुत केअरफुल रहूंगी। किसी को कुछ बता नही चलेगा। प्लीज़ बता मुझे कि तू कहां है? प्लीज"

"ठीक है। एड्रेस लिख"- रति के इतना कहते ही गौरी ने जल्दी से टेबल की ड्रॉ से एक कॉपी और पेन निकाला और रति का बताया हुआ पता लिखने लगी। पता लिखते ही गौरी बोली- परसों संडे है और मैं संडे को ओंकारेश्वर आ रही हूं इसलिए प्लीज़ अपने बताए पते पर ही मिलना।

"ठीक है। अब मैं फोन रखती हूं। बाय"

गौरी के बाय कहते ही रति ने रिसीवर नीचे रख दिया और वहां से चली गई। इधर गौरी ने भी रिसीवर नीचे रखा और कॉपी में लिखा हुआ एड्रेस पढ़ने लगी। एड्रेस पढ़कर उसने पेज फाड़ा और पलटी। तभी उसकी नज़र अपने पापा पर पड़ी। उन्हें देखते ही गौरी उनकी ओर दौड़ी। उसके पापा अरुण मित्तल ने जैसे ही अपनी बेटी को देखा तो मुस्कुरा दिए।

"पापा... शक्ति "कपूर ग्रुप ऑफ कंपनी" का मैनेजिंग डायरेक्टर बनने जा रहा है। आपने मुझे ये बात क्यों नहीं बताई?"- गौरी ने पूछा। उसके पापा ने अपना सूटकेस नीचे रखा और उसकी बांह पर हाथ रखकर दो कदम चलकर बोले- बेटा, शिव के जाने के बाद किसी ना किसी को तो उसकी जगह लेनी ही थी....तो शक्ति से बेहतर ऑप्शन इस वक्त कोई नही है। फिर वो भी तो अधिराज का बेटा है और शिव के जितनी ही काबिलियत रखता है। हां उसे गुस्सा थोड़ा ज्यादा आता है पर वो अपना काम बहुत अच्छे से करता है।

"पर पापा उसने रति की जा"- इतना कहकर गौरी चुप हो गई और मन ही मन बोली- ये क्या करने जा रही थी गौरी? अगर तूने पापा को बताया कि शक्ति ने रति के साथ क्या किया है तो वो ये पूछेंगे कि तुझे ये बात कैसे पता चली और फिर तुझे उन्हें बताना पड़ जायेगा कि रति जिंदा है। तभी अरुण ने पूछा- क्या हुआ बेटा? बोलते-बोलते रुक क्यों गई?

गौरी ने मुस्कुराने की कोशिश की और अपने पापा की बांह अपने दोनों हाथों से पकड़ कर बोली- मैं ये कह रही थी कि शिव और रति को इस दुनिया से गए। अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है तो इतनी जल्दी क्या है शक्ति को मैनेजिंग डायरेक्टर बनाने की? कम से कम शिव और रति की बरसी तक तो रुक ही सकते है।

"बेटा शादी-ब्याह की बात होती तो रुक सकते थे पर बात बिज़नेस की है। वैसे भी शिव की मौत की खबर सुनकर हमारी कंपनी के शेयर ताश के पत्तों की तरह गिर रहे हैं। कम्पनी को चलाने के लिए किसी के हाथ में सारे पॉवर्स देना जरूरी है बेटा,पर तुम इतने सवाल क्यों कर रही हो?"- अरुण ने पूछा।

उनका सवाल सुनकर गौरी सिटपिटा गई और फट से बोली- बस ऐसे ही पापा..... आज मैं दादी से मिलने गई थी। वही शक्ति से इस बारे में पता चला बस इसलिए आपसे पूछ लिया।

अरुण ने उसकी बातें सुनकर बहुत प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा तो गौरी बोली- पापा संडे को मेरे सारे फ्रेंड्स ओंकारेश्वर घूमने जा रहे है। मैं भी जाऊं? प्लीज़,

"जाओ बेटा"- अरुण मुस्कुराते हुए बोले तो गौरी खुशी से उछल पड़ी। अरूण की मुस्कुराहट और बढ़ गई और वो अपने कमरे की ओर चले गए। उनके जाते ही गौरी ने सूकुन की सांस की।

इधर ऑफिस खत्म होते ही रति अपना बैग लिए ऑफिस से बाहर आई और पैदल ही अपने घर की ओर बढ़ने लगी। अजय उसके पीछे ही गाड़ी लिए चला आ रहा था। उसने रति के पास आकर गाड़ी की स्पीड कम की और बोला- मिस काजल, आइए मैं आपको छोड़ देता हूं।

रति ने तुरंत उसकी ओर देखा और बोली- नो थैक्स सर...मैं चली जाऊंगी।

"आपका घर यहां से बहुत दूर है मिस काजल। मैं छोड़ देता हूं आपको"

"मैंने आपसे कहा ना, मैं खुद चली जाऊंगी। थैंक्यू"- इतना कहकर रति तेज-तेज कदमों से आगे बढ़ने लगी। अजय ने भी अपनी गाड़ी आगे बढ़ाई और बोला- काजल मौसम खराब है। कभी भी बारिश शुरू जायेगी। आप भीग जाओगी बस इसलिए मैं आपकी मदद करना चाहता हूं।

रति चिढ़कर में बोली- पर मुझे आपकी मदद की ज़रूरत नहीं है। पिछले तीन महीनों में, मैं अकेले
जीना सीख गई हूं... इसलिए मुझे किसी की मदद की ज़रूरत नहीं है और आपको शायद ये नही पता कि एक अकेली औरत का अपने बॉस की गाड़ी में बैठना समाज की नज़रों में गलत होता है। आपसे तो कोई कुछ नही कहेगा पर मुझ पर लोग उंगलियां उठायेंगे। जो मुझे गंवारा नही है इसलिये प्लीज़ आप जाइए। मैं ख़ुद अपने आप,अपने घर चली जाऊंगी।

रति का इस तरह से बात करना अजय को बिल्कुल पसन्द नही आया इसलिए उसने गुस्से में अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और वहां से चला गया। उसके जाते ही रति ने अपनी आँखें बंद की और सुकून की सांस ली। तभी आसमान में बादलों की तेज गड़गड़ाहट होने लगी।

रति ने ऊपर आसमान की ओर देखा तो आसमान में काले बादल उमड़ आए थे। वो तेज-तेज कदमों से अपने घर की ओर बढ़ने लगी पर वो कुछ दूर ही चली थी कि बारीश शुरू हो गई। बारिश होता देख उसने अपने आसपास देखा तो उसे एक नीम का पेड़ नज़र आया। वो दौड़कर उस पेड़ के नीचे आकर खड़ी हो गई और अपनी दोनों बांहे समेटे बारिश के थमने का इंतज़ार करने लगी।

बारिश की वजह से उसे कुछ लोग छाता लिए हुए नज़र आ रहे थे तो कुछ बारिश से बचने के लिए इधर-उधर भागते हुए। कुछ लोग तो उसी के साथ पेड़ के नीचे खड़े थे। उनमें एक औरत भी थी जो अपनी छोटी सी बच्ची को लिए खड़ी थी। उसकी बच्ची बार-बार बारिश में भीगने की ज़िद कर रही थी पर वो उसे समझाते हुए बोली- नही रानी,भीग जाओगी बेटा। बारिश में भीगने से तुम्हें सर्दी हो जायेगी।

"नही होगी मम्मी, पापा ने कहा है कि बारिश में भीगने से सिर्फ मजा आता है।"- वो बच्ची अपनी बांह छुड़ाकर बोली और भागकर बारिश में भीगने लगी। उसकी मां भी मुस्कुराते हुए उसके पास आ गई और उसे बारिश में खेलते देखने लगी। रति ये सब देखकर मुस्कुरा दी। कुछ देर बाद उस औरत ने अपनी बच्ची का हाथ पकड़ा और वहां से चली गई पर रति अभी भी मुस्कुरा रही थी।

"तुम हमारे बच्चे को उसकी ज़िंदगी की ये पहली बारिश मेहसूस नही करवाओगी"- तभी शिव आहिस्ता से उसके कान में बोला। रति ने उसकी आवाज सुनकर तुरंत उसकी ओर देखा। शिव को अपने इतने करीब पाकर उसके चेहरे की मुस्कुराहट और बढ़ गई।

शिव ने उसकी आंखो में देखते हुए बहुत प्यार से उसकी हथेली थामी और आहिस्ता-आहिस्ता अपने कदम पीछे लेने लगा। रति उसकी आंखों में देखते हुए उसके साथ आगे बढ़ रही थी। शिव उसकी कलाई पकड़े उसे बारिश में ले आया पर रति अभी भी सिर्फ उसे ही देख रही थी।

सड़क पर आते ही शिव उसकी हथेली थामे आहिस्ता-आहिस्ता उसके करीब आया और उसके पीछे खड़ा हो गया। उसने अपना दूसरा हाथ आगे बढ़ाया और अपनी हथेली में बारिश का पानी लिया।

रति उसकी हथेली देख रही थी। शिव अपनी हथेली रति के पेट पर रखकर मुस्कुराते हुए बोला- परी इसे बारिश कहते है और ये मौसम की पहली बारिश है। मेहसूस करो....तुम्हें भी तुम्हारी मम्मी की तरह बारिश बहुत पसंद आएगी और तुम भी उसकी तरह ही बारिश में बहुत उछल-कूद करोगी।

रति मुस्कुराते हुए तिरछी नजरों से उसे देख रही थी। शिव ने उसे अपनी बांहों में भरा और उसके साथ डांस करते हुए आहिस्ता से उसके कान में बोला- और बारिश में ऐसे डांस करते है, जिससे बारिश का मजा दुगुना हो जाता है।

"अच्छा???"- रति ने मुस्कुराते हुए पूछा तो शिव ने उसकी कलाई पकड़कर उसे घुमाया और अपने करीब ले आया। रति एकटक उसकी आंखों में देखने लगी। शिव भी उसकी आंखो में देखते हुए बोला- वैसे तुम्हारी मम्मी तो बारिश देखते ही दीवानी हो जाती है और उसे उठाकर घर के अंदर लाना पड़ता है। प्लीज़ तुम अपने पापा को इतना तंग मत करना वरना तुम्हारे पापा के लिए मुश्किल हो जायेगी।

"तो मैं आपको इतना तंग करती हूं?"- रति ने शिव के गले में अपनी बांहे डालकर पूछा। शिव ने उसे अपनी बांहों में भरा और चेहरे पर तीखी सी मुस्कुराहट लिए बोला- ये सवाल तुम मुझसे नही बल्कि अपने आप से पूछो कि तुम मुझे कितना परेशान करती हो। जवाब अपने आप मिल जायेगा।

रति चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट लिए शिव को बहुत प्यार से देखने लगी और शिव उसे,

"बारिश बंद हो गई।"- तभी रति के साथ पेड़ के नीचे खड़ी एक लड़की ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा तो रति जैसे नींद से जाग गई। उसने उस लड़की की ओर देखा और फिर अपने आसपास देखने लगी पर शिव कही नही था। तभी वो लड़की फिर से बोली- बारिश बंद हो गई है दीदी, जल्दी से निकल जाइए। कही बारिश फिर से शुरू हो गई तो आपको मुश्किल हो जायेगी।

इतना कहकर वो लड़की वहां से चली गई पर रति की आंखो से आंसू बहने लगे। वो कुछ देर वही खड़ी रोती रही और फिर मन ही मन बोली- महादेव..... बचपन से आपकी पूजा करती आई हूं। कालों के काल महाकाल की भक्त हूं इसलिए शायद उस उफनती नदी में कूदने के बाद भी आज ज़िंदा हूं पर मेरे शिव तो आपके मुझसे भी बड़े भक्त है अगर आपने मुझे बचा लिया है तो मेरे शिव को भी ज़रूर बचाया होगा। मुझे मेरे शिव लौटा दीजिए महादेव..... लौटा दीजिए।

रति के मुंह से एक बार फिर अपना नाम सुनकर शिव के शरीर में हलचल होने लगी और उसे वो हादसा याद आने लगा। जब पहाड़ी पर उसकी और शक्ति की लड़ाई हो रही थी। वो दोनों एक-दूसरे को मार रहे थे। कभी वो शक्ति पर भारी पड़ता तो कभी शक्ति उस पर.... तभी शक्ति के हाथ में गन लग गई और उसने शिव पर गोली चलानी चाही। लेकिन शिव ने दौड़कर उसका हाथ पकड़ लिया। दोनों ने ही गन पकड़ी हुई थी।

इसी बीच शक्ति के हाथ से गन चल गई और गोली शिव के कन्धे पर जा लगी। शक्ति ने घबराकर उसे खुद से दूर धकेला तो शिव पहाड़ी पर जा लटका। शिव ने पलटकर नीचे देखा तो नीचे उफनती हुई नदी बह रही थी। उसने ऊपर आने की बहुत कोशिश की और फिर शक्ति की ओर देखा, जो खड़ा मुस्कुरा रहा था। तभी शिव का हाथ छूट गया और वो नीचे नदी में जा गिरा।

लेखिका
कविता वर्मा