बेटियां (खुशबू की तरह) DINESH KUMAR KEER द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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बेटियां (खुशबू की तरह)

1.
मैं यह सोचकर उसके दर से उठी थी
कि वह रोक लेगा मना लेगा मुझको ।

हवाओं में लहराता आता था दामन
कि दामन पकड़कर बिठा लेगा मुझको ।

क़दम ऐसे अंदाज़ से उठ रहे थे
कि आवाज़ देकर बुला लेगा मुझको ।

कि उसने न रोका न मुझको मनाया
न दामन ही पकड़ा न मुझको बिठाया ।

न आवाज़ ही दी न मुझको बुलाया
मैं आहिस्ता - आहिस्ता बढ़ती ही आई।

यहाँ तक कि उससे जुदा हो गई मैं
जुदा हो गई मैं, जुदा हो गई मैं ।

2.
कहाँ जाते हो रुक जाओ
तुम्हे मेरी कसम देखो
मेरे बिन चल नही पाओगे
जानम दो कदम देखो

3.
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
हिज्र भी लाजवाब होता है |

तेरा चेहरा है बज्म मे ऐसा
जैसे गुल में गुलाब होता है |

4.
अपने होठों पर तुझे सजाना चाहती हूँ
तेरी बाहों में एक ठिकाना चाहती हूँ

बनाकर तुझ पर कोई हसीन ग़ज़ल
अब मैं तुझे गुनगुनाना चाहती हूँ

थक गई हूँ मैं बहुत तुझे याद करते - करते
अब मैं तुझे याद आना चाहती हूँ

5.
न वस्ल की आरज़ू न दीदार की तमन्ना है
तमाम उम्र तेरे होंठो पर गीत बनकर सँवरना है

6.
हम तो फूलों की तरह,
अपनी आदत से बेबस हैं ...
तोड़ने वाले को भी,
खुशबू की सजा देते हैं ...!

7.
आज़ फिर बैठ गया है चाँद अभी,
मेरी खिड़की पर आकर...
पर नाराज़ हूँ मैं, नहीं बोलूँगी...
रोज़ जाता ये मुझे रुलाकर...

8.
प्रेम में प्रेमिकाएं दूर होती है
छल - कपट से इश्या द्वेष से
दुनिया के दिखावटी चकाचौंध से
उसे पसंद होती सादगी, समर्पण, इंतजार
और अपने प्रियतम का साथ
वे मांगती हैं तो बस वक्त जिसे वो जी सके
अपने प्रियतम के साथ और सिर्फ उसी के लिए
उसे आता है खुश रहना, वो हमेशा से संतुष्ट होती है
और समझदारी से परिपक्व तभी तो समझा दी जाती हैं
उसे जिम्मेदारीयां, मर्यादा और बता दी जाती है
सीमाएं जिसके अनुरुप उसे रहना है
वे नहीं करती हैं शिकायतें और ढल जाती है
परिवार वा समझौते के साथ

9.
खुशबू की तरह होती ये बेटियां
जब गले मिलती हैं तब रूह तक महक उठती है

10.
लग जा गले की फिर ये हसीन रात हो न हो
शायद फिर इस जन्म में मुलाकात हो न हो

11.
भीगते रहते है बारिश में अक्सर
पर मांगी किसी से पनाह नही
हसरते पूरी न हो तो न सही
ख्वाब देखना तो कोई गुनाह नही

12.
सुना है नजरो से वो पढ़ लेते है
खामोशी मेरी
आज दिल उसकी आजमहिश पर आमादा है
13.
इश्क का रास्ता काली बिल्ली ने काटा है शायद
जो इस रास्ते से गया मुकम्मल नही लौटा

14.
जिन हाथों ने बचपन मे तुझे झुला झुलाया
कांधे पर अपने तुझे बिठाकर संसार सारा दिखाया
उस बाप की जब उम्र ढले तुम लाठी उसकी बन जाना
दो घड़ी उससे बतीया के कर्ज़ अपना चुकाना

15.
(1)बेटियां तो वो मननत है,
जिनसे घर जननत है,
खुशनसीब हैं वो लोग,
जिन पर बेटियों के रूप में
उस खुदा की रहमत है।

(2)खुशबु बिखेरती फूल है बेटी,
इंद्रधनुष का सुंदर रूप है बेटी,
सुरों को सुंदर बनाने वाली साज है बेटी,
हकीकत में इस धरती का ताज है बेटी।

(3).सारे जहां की खुशियां मैं तुझ पर लुटा दूं,
जिस राह से तू गुजरे वहां फूल बिछा दूं,
होगी विदा तूं जब भी मेरे आँगन से “बेटी”,
ख्वाहिश है यही ज़मीं से लेकर पूरा आसमां सजा दूं।