दोस्त की दुश्मनी
आदित्य ने अपना मोबाइल साइलेंट कर रखा था। हालाँकि, अमोल अपने ही मोबाइल और मैसेज में इतना व्यस्त था कि उसे बाकी किसी से कोई मतलब नहीं था, मगर फिर भी आदित्य ने अहतियात बरत रखी थी।
अमोल का ध्यान बार-बार मोबाइल पर जा रहा था कि भावना कोई मैसेज करे। मैंने उस छेड़ा भी,
“क्या बार-बार मोबाइल देख रहे हो, मोबाइल देखने आये हो कि रावण-वध? इतने लोग आये हुए, इतनी लड़कियाँ आई हुई हैं, और तुम मोबाइल में व्यस्त हो।”
“अरे इतने लोग तो आ गये मगर वो आये जिसको आना था, तब बात बने न...” अमोल ने काफी धीमे स्वर में कहा।
“क्या?” मैंने सुन लिया था, मगर फिर भी अंजान बनते हुए पूछा।
“कुछ नहीं यार, फोन में बैटरी देख रहा था कि है कि नहीं। रावण-वध होगा तब उसकी रिकॉर्डिंग भी करनी होगी न।”
“हाँ तो वो है।” मैंने कहा और फिर हम सब मेले में मौजूद लड़कियों के बारे में चर्चा करने लगे। अमोल हमारे वार्तालाप से निर्लिप्त था।
“अमोल हमेशा ब्रह्मचारी ही रह गया, जब भी लड़की की बात होती है, यह कभी भी कुछ नहीं बोलता।” आदित्य ने कहा और मुझे देख कर मुस्कुरा दिया।
“यार अब तुमलोगों को तो पता ही मेरे बारे में कि मुझे इस तरह की गप में कोई इंटरेस्ट नहीं है।” अमोल ने अपनी सफेदी और भी ज्यादा चमकदार बताने की कोशिश की।
“हाँ वो तो हम जानते ही हैं। मगर फिर भी अब तुम्हारी नौकरी लग गयी है, अब तो थोड़ा-बहुत इधर-उधर कर सकते हो। अब क्या दिक्कत है?” मैंने पूछा।
“यार कुछ नहीं करूँ तो भी तो कोई दिक्कत नहीं है न।” अमोल ने जवाब दिया।
उसके बाद हम सबने अमोल को कुछ नहीं कहा और मैदान में आई लड़कियों का पर्यवेक्षण चालू रखा। अमोल फिर से अपने मोबाइल में देखने लगा। उससे रहा नहीं गया।
“पंद्रह मिनट तो हो गया, आप आयीं कि नहीं?” अमोल ने अपनी बेचैन उँगलियों से टाइप किया।
“हाँ मैं आ गयी हूँ और गेट पर हूँ, मगर मेरे साथ दो और लडकियाँ भी हैं।” आदित्य जब यह टाइप कर रहा था तब उसने मुझे दिखाया। जैसे ही मैसेज डिलीवर हुआ, अमोल मैदान के गेट की तरफ देखने लगा।
वहाँ उसे तीन लड़कियाँ नहीं दिखीं। हमलोग भी गेट से ज्यादा दूर नहीं थे। हमलोग जहाँ खड़े थे वहाँ एक लोकल साबुन का ऐड लगा हुआ पोस्टर खम्भे से टंग रहा था।
“आप दिख नहीं रही हैं।” अमोल अभी भी अपनी निगाहों को भीड़ में मौजूद एक-एक लड़की के चेहरे पर दौरा रहा था।
“आप कहाँ हैं?” आदित्य ने मैसेज किया।
‘Typing...’ आदित्य के मोबाइल पर यह दिख रहा था। अमोल अपने लोकेशन के बारे में टाइप कर रहा था। वह अपने आसपास कोई विशेष निशान खोजने के लिए इधर-उधर देखने लगा।
“ अरे आप ज्यादा इधर-उधर नहीं देखिये, मैंने आपको देख लिया है। आप तो अब बहुत बड़े हो गए हैं।” आदित्य ने मैसेज किया।
“लेकिन आप मुझे दिख नहीं रही हैं, एक मिनट रुकिए मैं गेट के पास ही आ रहा हूँ।” पहले से जो कुछ भी अमोल ने लिख रखा था, उसे झट से मिटाकर उसने यह मैसेज टाइप किया।
“अरे नहीं, मुझे ग्राउंड के अन्दर आने दीजिये मैं भी कोई अच्छी जगह पर जाकर आपको बुलाती हूँ।”
“ठीक है।”
अमोल बेचैन होकर इधर-उधर देख रहा था। थोड़ी देर इधर-उधर देखने के बाद वो मोबाइल देखने लगता था। करीब दस मिनट तक जब आदित्य ने उसे मैसेज नहीं किया, तब उसने फिर से मैसेज किया।
“आप अभी तक गेट पर ही हैं या फिर ग्राउंड के अन्दर आ गयी?”
“अरे इतनी भीड़ है कि बड़ी मुश्किल से मैं आ पायी हूँ।”
“तो अब जल्दी से अपनी जगह बताइए मैं वहाँ आता हूँ।” जैसे ही यह मैसेज आदित्य ने देखा, उसकी हँसी बर्दाश्त से बाहर हुई जा रही थी। उसने मुझे मैसेज दिखाया। मुझे भी अमोल की बेचैनी देखकर हँसी आ गयी। वहीं अमोल इन सबसे बेखबर अभी भी मेले में भावना को ढूँढ़ रहा था।
“मैं सबसे कोने में खड़ी हूँ, जिधर पानी का स्टाल लगा हुआ है।”
“ठीक है मैं अभी आता हूँ।” अमोल ने मैसेज किया और झट से उस ओर जाने लगा। मैंने उसे रोकते हुए पूछा,
“किधर जा रहे हो?” मेरा सवाल सुनकर अमोल थोड़ा सा सकपका सा गया। जैसे उसने सोच ही नहीं रखा था कि मैं उससे यह पूछ भी सकता हूँ, या फिर वो यह भूल गया था कि हम भी उसके साथ हैं।
“मैं अभी तुरंत उधर से आ रहा हूँ, मेरा एक दोस्त आया हुआ है। उससे मिलकर मैं तुरंत आता हूँ।”
“अरे कौन दोस्त है? हम भी तो पहचानते होंगे, हम भी मिल लेते हैं चल के साथ में।” मैंने जानबूझकर अमोल को तंग किया।
“अरे नहीं यार तुम नहीं जानते उसे, वो typing क्लास में मेरा दोस्त बना था। रुको न मैं बस पाँच मिनट में आया।” बोलकर वो तुरंत पानी वाले स्टाल की तरफ जाने लगा। तब तक भीड़ काफी बढ़ गयी थी इसलिए उसे उस ओर जाने में दिक्कत भी आ रही थी मगर फिर भी वो लोगों को हटाते हुए और भीड़ को चीरते हुए बढ़े जा रहा था।
जैसे ही वो वहाँ से बढ़ा, मेरी और आदित्य की हँसी खुल कर बाहर आ गयी। मेरे साथ जो अन्य दोस्त मौजूद थे, उन्होंने हमसे पूछा भी कि अमोल कहाँ गया और हम इतना हँस क्यों रहे हैं? हमने उन्हें बता दिया कि अमोल अपने किसी दोस्त से मिलने गया है और हमें पिछले साल के रावण-वध की एक बात याद आ गयी, जिसके कारण हँसी आ रही है।
अमोल कि नजरें अब हर लड़की पर जा रही थी। मगर भावना कहीं नजर नहीं आ रही थी।
“आपने कौन से कपड़े पहन रखे हैं? मैं इतनी भीड़ होने के कारण आपको खोज नहीं पा रहा हूँ शायद।”
“मगर मैं तो आपको देख रही हूँ।”
“तो आप ही आ जाइये मेरे पास।” टाइप करने के बाद अमोल भावना के मैसेज का इन्तजार करने लगा। मगर अब आदित्य को कोई मैसेज देते ही नहीं बन रहा था।
शायद अब यहीं अंत हो जाना था इस नाटक का। आदित्य ने मुझसे कहा,
“यार अब कोई मैसेज नहीं करूँगा, अब उसे वापस आ जाने दो।” जैसे ही आदित्य ने मुझे यह कहा, मुझे लगा कि खामख्वाह ही अमोल को तंग कर दिया गया। मगर इस बार मैंने कुछ नहीं कहा। आदित्य अभी भी अमोल के परेशान चेहरे को देखकर खुश हो रहा था और हल्का-हल्का मुस्कुरा रहा था। मुझे अब अमोल पर थोड़ी दया आ रही थी और यह पछतावा भी हो रहा था कि मुझे अमोल को सबकुछ बता देना चाहिए था।
अमोल ने करीब करीब पाँच सात मैसेज लगातार कर दिए कि आप कहाँ हैं, आप यहाँ क्यों नहीं आ रही, आपने क्या पहन रखा है, इत्यादि, इत्यादि... मगर अब आदित्य कोई भी जवाब नहीं दे रहा था। अंत में हारकर अमोल ने उस नम्बर पर फोन कर दिया। आदित्य ने पहले से ही फोन को साइलेंट कर रखा था। जैसे ही अमोल का फोन आया उसने मुझे दिखाया और हँस दिया। मुझे हँसी नहीं आई और मैंने थोड़े से गुस्से से उसकी तरफ देखा तो वो मेरे चेहरे का भाव समझ गया और शांत हो गया।
अमोल ने आठ-दस बार कॉल लगाया मगर कोई भी जवाब नहीं आने पर उसने मैसेज और कॉल करना बंद कर दिया और फिर उतनी ही मशक्कत करते हुए भीड़ में वो हमारे पास आ गया। उसका चेहरा पूरी तरह से उतर चुका था।
जब जाते हुए मैंने उससे पूछा था तो आते हुए भी पूछना मेरा धर्म बनता था। इसलिए बेमन से मैंने उससे सवाल किया,
“मिल लिए अपने दोस्त से?”
“नहीं यार मिल नहीं पाया। उसका फोन भी ऑफ हो गया था। चलो कोई बात नहीं, फिर कभी मिल लेंगे।” बोलकर अमोल रावण के बड़े खड़े पुतले को देखने लगा, जिसे कुछ ही देर में जल जाना था।
वो यह सोचने लगा कि अच्छा-ख़ासा वो जी रहा था, मगर कहाँ से वो इस मैसेज वगैरह के चक्कर में पड़ गया, और कहाँ से इस बुरे काम से जो वो दूर था, इसमें फँस गया। उसने मन में उसी समय शपथ ली कि वो अपनी इस बुराई को, जो अभी कुछ दिनों में उसके अन्दर पैठ कर गयी है, जला के राख कर देगा।
उस दिन अमोल बिलकुल ही उदास रहा। उसी तरह वो वापस भी आया मगर एक मलाल उसे रह गया कि जब अच्छे से वो मैसेज कर रही थी तो फिर मिली क्यों नहीं और न ही उसने फोन ही उठाया। जब उसने घर आकर यह सोचा तब उसे यह एहसास हुआ कि हो सकता है कि वो भावना हो ही न।
इस भ्रम को दूर करने के लिए उसने एक साहस और कर लिया। उसने भावना के फेसबुक पर मैसेज किया।
“हेल्लो भावना कैसी हो?” उस रात इस मैसेज का कोई रिप्लाई नहीं आया। वो काफी देर तक जगा रहा और बार-बार वो मैसेंजर खोल कर देखता रहा मगर मैसेज सीन भी नहीं हुआ। सुबह जब वो उठा तो उसने देखा कि एक मैसेज आया हुआ है।
“हाय अमोल मैं बिलकुल ठीक हूँ। तुम कैसे हो और अभी कहाँ हो और क्या कर रहे हो?” भावना के इस मैसेज को पढ़कर अमोल समझ गया कि उसके साथ क्या हुआ है। वो बहुत ही आहत हुआ। उसे समझ भी आ गया था कि हो न हो यह आदित्य का ही किया धरा होगा, मगर मैं भी इसमें सम्मिलित हूँ, वो यह नहीं जानता था।
“मैं ठीक हूँ और वहीं हूँ जहाँ था।” मैसेज करने के बाद उसने बिना कुछ सोचे अपना फेसबुक अकाउंट ही डिलीट कर दिया। वो बहुत ज्यादा उदास था।
उसी दिन आदित्य मेरी गैर हाजिरी में बहुतों को यह बात बता चुका था। मैंने आदित्य को मना किया था कि वो किसी को कुछ न बताये। अब तक जो हो गया, सो हो गया। मेरे सामने हाँ बोलने के बाद भी आदित्य ने मेरा कहा नहीं माना।
जब अमोल उस दिन दोस्तों से मिल रहा था तो सब उससे यही पूछ रहे थे, “और भावना मिली कि नहीं? सुनने में आया है कि भावना तुमसे मिलने वाली थी।” और इतना पूछ कर सब हँस दे रहे थे। अमोल किसी को कोई जवाब नहीं दे रहा था।
वो वापस घर चला गया। अब उसे यकीन हो गया था कि आदित्य ने ही यह किया था। उसने यह सारी बात मुझसे बताई। उसे मुझपर बहुत यकीन था, अब मुझे बहुत ही ग्लानी महसूस हो रही थी कि मैंने उसे यह बता क्यों नहीं दिया था। मगर मैं नहीं चाहता था कि वो मुझपर से विश्वास खो दे, इसलिए मैंने उससे कहा कि हाँ आदित्य ने मुझे भी यह बात बताई तो मैंने उसे डांट भी लगाई। मैंने अमोल से पूछा,
“मगर तुम तो इन सबसे दूर रहते हो, कहाँ इस चक्कर में पड़ गए?”
“यार तुम्हें तो पता ही है कि शुरू से भावना के लिए मेरे दिल में कुछ न कुछ था ही, जब उधर से बात शुरू हुई तो मैं अपने आप को रोक नहीं पाया और इसी का गलत फायदा आदित्य ने उठा लिया।”
अमोल ने अपने दिल की बात मुझे पहली बार बताई। वो जितना ज्यादा दुखी हो रहा था, मेरे सीने पर बोझ उतना ज्यादा बड़ा होता जा रहा था।
“खैर अब मैंने फेसबुक वगैरह डिलीट कर दिया है। अब ऐसी कोई गलती नहीं भाई...!”
“चलो ठीक है फिर तो।” मैंने कहा और थोड़ा सुकून का अनुभव किया।
हमें ऐसा लगा जैसे भावना का यह एपिसोड यहीं ख़त्म हो गया।