द मिस्ड कॉल - 6 vinayak sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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द मिस्ड कॉल - 6

बेग़म कोयल आबिदा
 

“यार अमोल देख अभी तो मेरी बात आदित्य से हुई, वो बोल रहा है कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया है। मगर मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मैं पता करके जरुर बताऊंगा कि आखिर वो है कौन। ऐसे...” थोड़ी देर तक अपने मन के ख़्वाबों में घूमता हुआ मैंने अमोल को फोन लगाया और फिर इतना कहकर चुप हो गया। मैं उसे कहना चाहता था कि ऐसे एकाध बार इस लड़की से बात करके देखने में कोई बुराई नहीं है। मगर फिर मैं चुप हो गया क्योंकि अब मैं उस लड़की से बात करना चाहता था।

“ऐसे क्या?” अमोल ने भी अपने मन में पनप रहे सवाल को मुझपर दाग ही दिया।

“नहीं यार ऐसे यही कि हो सके तो इन सबको इग्नोर ही करके चला करो।” मैंने उसे मुफ्त की सलाह दे दी।

“हाँ ठीक कह रहे हो।” उसे भी मुफ्त की चीज हजम करने में कोई दिक्कत नहीं हुई और उसने मेरी बात में हामी भर दी।

अगले दिन मेरे नम्बर पर उसी नम्बर से मैसेज आया। ‘आप मेरे नम्बर पर फोन क्यों कर रहे हैं?’

मैंने जब यह देखा तो मुझे उस नम्बर वाले पर गुस्सा आया कि खुद मेरे दोस्त को तंग कर रहा है तो कुछ नहीं, और इस बात का पता लगाने के लिए मैंने एक बार फोन कर दिया तो यह पूछ रहा है कि मैं इसे फोन क्यों कर रहा हूँ? मुझे गुस्सा आया और मैंने मैसेज में कोई जवाब नहीं देते हुए सीधे उसे फोन घुमा दिया। उसने मेरा फोन नहीं उठाया। मेरा गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया। हालाँकि मुझे यह लग रहा था कि अगर वो लड़की हुई तो मेरा गुस्सा करना व्यर्थ है क्योंकि मुझे एक बार ऐसा लगा था कि मैंने फोन उठाने पर उस तरफ से लड़की की आवाज सुनी है।

‘आप फिर से मुझे फोन क्यों कर रहे हो? कौन हो आप? मैं आपको नहीं जानती। मुझे फोन नहीं करो आप।’ मेरा चेहरा गुस्से से लाल था, मगर जैसे ही उसके मैसेज में मैंने ‘जानती’ शब्द देखा तो मेरे अंदर फिर से दूसरी हलचल होने लग गयी। ऐसा लग रहा था जैसे बुखार से तपते किसी आदमी को पारासीटामोल मिल गया हो।

अब मैं यह सोचने लग गया कि मैं इसे क्या जवाब दूँ। मैं अपने मन में अच्छे-अच्छे जवाब खोजने और गढ़ने लगा। 

‘मैं आपसे बात करना चाहता हूँ, इसलिए आपको कॉल कर रहा हूँ। आप एक बार मुझसे बात कर सकती हैं?’ मैंने ढेर सारे मैसेज लिख कर मिटाने के बाद इस मैसेज को भेजना लाजमी समझा।

‘क्या आप मुझे जानते हैं?’ उधर से उसका मैसेज आया और मैं फिर से सोच में पड़ गया कि मैं क्या जवाब दूँ। 

‘जानता हूँ थोड़ा-थोड़ा।’ मैंने बात आगे बढ़ाने के लिए लिख भेजा। 

हालाँकि मैं उसे लगातार मैसेज भेज रहा था, लेकिन हरेक मैसेज को भेजने के बाद जब मेरे डेढ़ रूपये मेन बैलेंस से कट जा रहे थे, तब नौकरीशुदा आदमी होने के बावजूद मुझे बहुत ही ज्यादा अखर रहा था। मैं उसे मैसेज में जवाब देते हुए रिचार्ज की दुकान की तरफ बढ़ रहा था। 

‘अच्छा, आप मेरे बारे में क्या और कैसे जानते हैं?’ उसने जब यह मैसेज भेजा तो मुझे लगा कि यह मुझसे बात करने में इंटरेस्टेड है। मगर फिर एक शक पैदा हो गया कि कहीं मेरे साथ भी तो कोई उसी तरह का खेल नहीं खेलने लग गया, जैसा कुछ साल पहले अमोल के साथ खेला गया था। मेरे मन में एक सवाल यह भी उठा कि कहीं यह आदित्य ही तो नहीं है? फिर मुझे लगा कि नहीं यार वो तो खुद इस मामले में हमारी मदद करने की बात कर रहा था, वह नहीं हो सकता है। जरुरी थोड़े ही न है कि हर बार कोई ऐसा ही कर रहा हो। यह भी तो हो सकता है कि इस बार सचमुच की लड़की हो। और मुझे ऐसा लगा भी था कि एक बार मैंने उसकी आवाज सुनी है। 

मैंने सोचा जवाब देना सही ही होगा। इतने में मैं रिचार्ज की दुकान के पास पहुँच गया और एक मैसेज पैक का रिचार्ज करवा लिया।

अब मैं एकांत की तलाश में था, जहाँ मैं अकेले बैठ कर उससे मैसेज में बातें कर सकूँ। मैं मैसेज टाइप करते हुए एक गली में बढ़ा जिसके ख़त्म होने के बाद एक पीपल का पेड़ था, वहाँ बहुत शांति रहती थी और दोपहर में वहाँ कोई होता भी नहीं था।

‘मैंने एक बार आपकी आवाज सुनी है, आपकी आवाज बहुत ही ज्यादा अच्छी है। और जिसकी आवाज इतनी ज्यादा अच्छी हो, वो कितनी ज्यादा अच्छी होगी इसका अंदाजा तो मैं लगा ही सकता हूँ।’ मैंने मैसेज टाइप किया और इतने में मैं गली पार करके पीपल के पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठ भी गया। वहाँ मेरे अलावा कोई नहीं था।

दोपहर में भी जो ठंडी हवा उस अंजान लड़की की आवाज की मिठास लिए आ रही थी, उससे मैं एक अलग ही रोमानी दुनिया में खोता जा रहा था। न जाने फिर से कितने चित्र मैंने अपनी कल्पना में उस लड़की के बना डाले थे। मैं अपने ख्यालों का पुल तैयार किये जा रहा था, जो पुल शायद उस लड़की तक पहुँच ही जाता कि तभी उसका मैसेज आ गया। 

‘आप बहुत बदमाश हैं, आपने नम्बर क्यों बदल दिया अपना और उस नम्बर पर कोई जवाब क्यों नहीं दे रहे?’ उसके इस मैसेज से कुछ साफ़ नहीं हुआ। भाँति-भाँति के विचार मन में आने लगे। लेकिन इतनी बात तो मेरी समझ में आ गयी कि यह लड़की ही है और मुझे कोई और लड़का समझ रही है, जिसके किसी नम्बर से उसे जवाब नहीं मिल रहा है।

फिर मुझे तुरंत याद आया कि वो लड़का तो अमोल ही है, जिससे इसको जवाब नहीं मिल रहा है। फिर क्या ये लड़की अमोल को जानती है और अमोल जानबूझ कर उस लड़की को कोई जवाब नहीं दे रहा है? मैं ऊहापोह में पड़ गया। अब क्या जवाब दूँ यह नहीं सूझ रहा था। 

लेकिन एक कहावत है न ‘ऑल मेन आर डॉग्स’, सो मैंने इस शतरंज में हाथी या ऊँट नहीं, कुत्ते वाली चाल चल दी। मैंने उसे जवाब दिया। 

‘दरअसल मेरा वो नम्बर खो गया है और मैंने इसकी रिपोर्ट पुलिस में कर दी है। अब आप उस नम्बर पर कॉल या मैसेज नहीं करना, आप मेरे इस नए नम्बर पर ही मैसेज या कॉल करना।’ मैंने यह जवाब तो उसे भेज दिया, मगर मुझे यह तो आभास था ही कि वो लड़की उस लड़के से परिचित है और बात आगे बढ़ी तो बहुत मुमकिन है कि वो उस लड़के के बारे में पूछे और तब मैं कुछ बता नहीं पाउँगा। लेकिन उससे पहले मुझे अमोल से यह बात सुनिश्चित करनी थी कि वो लड़का अमोल ही तो नहीं है।

मैंने तुरंत अमोल को फोन लगा दिया।

“सुन तूने तो किसी लड़की को नम्बर नहीं दिया है न?”

“कैसी बात कर रहा है यार, मैं किसी लड़की को नम्बर क्यों दूंगा? मैं तो ऑफिस में भी किसी लड़की से उतनी बात नहीं करता, नम्बर देना तो दूर की बात है। हाँ, किसी ने ऑफिस के रजिस्टर से लिया हो तो बात अलग हो सकती है। क्या कहा उस लड़की ने कि मैंने उसे नम्बर दिया है?” अमोल ने अपनी बात रखते हुए अपने मन में उठे प्रश्न को भी मेरे हवाले कर दिया।

मैंने भी उसके सवाल को गोद ले लिया और वो प्रश्न दुबारा उसके मन में न आये इसलिए मैंने सोच समझ कर उत्तर दिया,

“नहीं-नहीं, उस लड़की ने या लड़का जो भी है, अभी तक तो मेरा फोन ही नहीं उठाया है, और न ही उसने मुझे कोई मैसेज किया है। इसलिए मुझे लगा कि हो सकता है कि ये तुम्हारी ही कोई करीबी हो, जो तुमसे बात करना चाहती हो। खैर अब मुझे लग रहा है उस नम्बर से तुम्हें कोई फोन या मैसेज नहीं आएगा मगर यदि फिर भी आये तो जवाब मत देना बस इग्नोर करना।”

“इतने दिन से वही तो कर रहा हूँ।” अमोल ने मुझे गुस्से में जवाब दिया।

“चल मैं कोशिश में हूँ कि अब वो तुम्हें फोन या मैसेज न करे।” मैंने उसे थोड़ी शांति दी, ताकि उसका ध्यान उस फोन से हट जाए।

उसका ध्यान हटा या नहीं यह तो मुझे नहीं पता लेकिन मेरे ध्यान में अब बस एक ही बात थी कि वो लड़की मुझे कौन-सा लड़का समझ रही है? मैं यह सोचने लग गया कि आखिर वो कौन सी बात थी, जिसके बाद वो लड़की यह सोचने लग गयी कि मैं उसका वाला लड़का हूँ। फिर मुझे याद आया कि मैंने उसके आवाज की तारीफ़ की थी, शायद इसीलिए उसे ऐसा लगा है। इसका मतलब उसके पहचान का जो भी लड़का है, उसके आवाज की तारीफ जरुर करता है।

‘अच्छा आपको मेरी आवाज इतनी अच्छी लगती है क्या?’ उस लड़की का मैसेज आया।

‘हाँ और नहीं तो क्या, आपको नहीं पता कि आपकी आवाज बहुत ज्यादा अच्छी है?’ मैंने थोड़ा और मक्खन लगाया।

‘वैसे जब मेरा नाम ही कोयल है, तो फिर मेरी आवाज तो अच्छी होगी ही।’ उसने अपना नाम बता दिया।

‘अच्छा आपका नाम कोयल है, तभी तो आपकी आवाज इतनी अच्छी है। वैसे मुझे लगता है, आपकी आवाज अच्छी होगी इसीलिए आपका नाम आपके घरवालों ने कोयल रख दिया होगा।’

‘नहीं-नहीं, मेरी आवाज उतनी भी अच्छी नहीं है, जितनी आप कह रहे हैं। घर वालों ने मेरा नाम इसलिए कोयल नहीं रखा कि मेरी आवाज बहुत ज्यादा अच्छी थी। कोयल नाम रखने के पीछे तो कोई और कारण था।’ अब लम्बे-लम्बे मैसेज आने शुरू हो गए। और मुझे ऐसा लग रहा था कि अब बात भी अच्छे से हो जायेगी इस लड़की से, मगर फिर वही बात ध्यान में आ रही थी कि ये लड़की मतलब कोयल तो मुझे कोई और ही लड़का समझ कर बात कर रही है। जैसे ही इसे पता चल जाएगा कि मैं वो लड़का नहीं हूँ, तो ये मुझसे बात नहीं करेगी और पता नहीं मेरे बारे में और क्या-क्या सोच ले।

ये बातें सोचकर मन में तो आ रहा था कि मैं उसे सबकुछ बता दूँ कि वो जो सोच रही है, वो मैं नहीं हूँ। मगर फिर मैंने सोचा जो होना है होगा, अभी जो चल रहा है उसे चलने दिया जाए।

‘क्या हुआ आपने कोई रिप्लाई नहीं दिया? आपको नहीं जानना कि मेरा नाम कोयल क्यों पड़ा?’ मैंने कुछ देर के लिए उसे मैसेज नहीं भेजा तो कोयल का मैसेज आ गया। 

‘नहीं-नहीं, दरअसल मैं कुछ सोचने लग गया था, इसलिए मैंने नहीं पूछा। मुझे लगा आप मैसेज टाइप कर रही होंगी कि आपका नाम कोयल क्यों पड़ा?’ मैंने जल्दी से एक मैसेज भेज दिया।

‘अच्छा छोड़िये, मैं बता देती हूँ कि मेरा नाम कोयल क्यों पड़ा। बचपन में जब बच्चे बोलना सीख रहे होते हैं, तो मेरे छत के पास वाले पेड़ पर एक कोयल बैठकर बोल रही थी। मैं अपने मामा के साथ छत पर थी; ऐसा लोग मुझे बताते हैं। तो मेरे मामा ने मुझसे पूछा बताओ कौन बोल रही है। चूँकि मैं उस समय केवल दो ही साल की थी, तो मुझे कुछ पता नहीं था। फिर मेरे मामा ने बताया कि ये कोयल बोल रही है, फिर मैंने चार-पाँच बार कोयल दोहराया। 

उसके बाद जब भी कभी मुझे कोयल की आवाज सुनाई देती थी, मैं कोयल-कोयल बोलने लग जाती थी। तभी से लोगों ने मेरा नाम कोयल रख दिया।’ कोयल का काफी लम्बा मैसेज काफी देर में आया। बीच में मैंने भी कोई मैसेज नहीं किया क्योंकि मुझे पता था कि जब वो नाम के पीछे कारण बता रही है तो मैसेज लम्बा ही होगा।

‘अच्छा तो ये बात है?’ मुझे उसके नाम के कारण में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी, फिर भी मैंने इतना कह दिया।

‘अच्छा एक बात बताइए, आप सोच क्या रहे थे? कहीं आप ये तो नहीं सोच रहे थे कि...” उसका लिखा अधूरा मैसेज ही मेरे पास आया। मैं सोच में पड़ गया कि ये कहना क्या चाह रही है। कहीं इसे शक तो नहीं हो गया है कि मैं वो लड़का नहीं हूँ, जो ये समझ रही है।

‘नहीं-नहीं, मैं वैसा कुछ नहीं सोच रहा था, मुझे माँ ने कुछ काम बोला था, मैं उसी के बारे में सोच रहा था कि कैसे करना है?’ मैंने बात बदलने के लिए मैसेज कर दिया।

‘ओ, मुझे लगा आप ये सोच रहे होंगे कि मैंने तो आपको उस समय कोई और नाम बताया था, और अब कोई और ही नाम बोल रही हूँ। ये ‘आबिदा’ कोयल कैसे हो गयी?’ उसका ये मैसेज आया तो मुझे पता चला कि उसका नाम आबिदा है और तब दिमाग ने यह कहा कि, ‘अरे यार ये तो मुस्लिम है!’ मन में आया कि अभी बात करना बंद कर दूँ और उसे यह बता दूँ कि मैं वो नहीं हूँ जिसके बारे में वो सोच रही है। लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पाया क्योंकि उससे बात करना अब मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। 

उसके एक मैसेज को मैं कई बार पढ़ रहा था। मैं अब यह सोचने लग गया कि उस लड़के को वो कितना जानती है, और नाम के अलावा और क्या-क्या बातें हुई हैं दोनों के बीच? वो दोनों कहाँ मिले थे, और फिर कहाँ मिल सकते हैं? वो लड़का कोयल से कितनी दूर रहता है? क्या वो उसके पास ही तो नहीं रहता? क्या वो मिलके उससे बात तो नहीं करेगा?