द मिस्ड कॉल - 7 vinayak sharma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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द मिस्ड कॉल - 7

तुम पास आये...
 

इतने प्रश्नों के बाद एक-एक प्रश्न का दीर्घ और लघु उत्तर मेरे दिमाग में स्वयं ही आ जा रहा था। नहीं, अगर उस लड़के से ज्यादा बात हुई होती तो कोयल यह जान जाती कि मैं वो लड़का नहीं हूँ। अगर वो लड़का उससे मिल पाता तो वो इतने दिनों से अमोल को फोन नहीं करती। फिर भी एक उम्मीद तो यह जरुर थी कि वो इस लड़के से फिर मिले। 

फिर मेरे मन को जो सबसे सटीक लगा, मैंने वो उत्तर अपने लिए रख कर लॉक कर लिया। भले ही बात कुछ और क्यों न हो। मैंने यह तय किया कि कोयल उस लड़के से पहली बार मिली थी और उसी समय उस लड़के ने या तो अपना नम्बर बोला या फर लिख कर दिया, जिसमें कोई न कोई अंक गलत निकला और गलती से फोन अमोल को लग जा रहा था। बस इसके अलावा और कोई भी बात हो ही नहीं सकती। इतना कहकर मैंने अपने दिमाग को शांत कर दिया।

‘क्या हुआ आपने कोई जवाब नहीं दिया? आपको कोई आश्चर्य नहीं हुआ था जब मैंने अपना नाम आबिदा से बदलकर कोयल बताया तो! लगता है आप कहीं बिजी हैं। ठीक है, आप अपनी अम्मी का दिया काम कर लीजिये, मैं उसके बाद आपको मैसेज करती हूँ।’ कोयल का मैसेज आया।

‘नहीं ऐसी बात नहीं है। लोगों के दो नाम होना तो आम बात है न, एक असली नाम होता है और ए निक नेम होता है। तो मैंने यही सोच लिया कि आपका निक नेम ही कोयल होगा।” मैंने जवाब दिया।

‘अरे वाह जितने स्मार्ट आप दीखते हैं, उतने ज्यादा स्मार्ट आप हैं भी। चलिए अभी मुझे भी काम आ गया है, मैं बाद में आपसे बात करती हूँ।’ 

कोयल के इस मैसेज के बाद मुझे लगा कि मैं अपनी शक्ल देखूँ कि मैं कितना स्मार्ट दीखता हूँ। मैंने इधर-उधर आईना खोजना शुरू कर दिया, नहीं मिलने पर मुझे याद आया कि मेरे फोन में भी तो फ्रंट कैमरा है। मैंने कैमरा ऑन करके अपनी शक्ल देखी तो मेरा मन मुरझा सा गया। मैं उतना अच्छा नहीं दीखता था। मुझे यह यकीन हो गया, जो लड़का कोयल से मिला था वो बहुत ही स्मार्ट रहा होगा। अब तो कोयल को सबकुछ सही बता देना ही उचित रहेगा। फिर भी मन ऐसा करने को मान नहीं रहा था। 

‘हाँ मैं भी थोड़ा काम निबटा लूँ उसके बाद बात करता हूँ।’ मैंने उसे जवाब लिखा और फिर मैं सोचने लग गया कि मैं जो कर रहा हूँ, वो सही है या फिर गलत है। इस बारे में मैं किससे राय लूँ, मैं यह सोचने लग गया। मैं अमोल को भी कुछ नहीं बता सकता था और आदित्य से कुछ साझा करने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकता था। मैं अपने आप को बहुत ही ज्यादा उलझन में महसूस कर रहा था। 

मैं उस पीपल के पेड़ से उठकर अपने ख्यालों में खोया-खोया कब अपने घर के अपने कमरे में आ गया, मुझे पता भी नहीं चला। मैं अपने बिस्तर पर लेट कर अपनी छत को निहारने लगा। जैसे मेरे मन की उलझन को शांत करने का तरीका छत पर लिखा हो।

मैंने सोचना शुरू किया कि इस रिश्ते का होगा क्या? एक तो मैं हिन्दू और वो लड़की मुसलमान है। अगर मेरे झूठ बोलने के बारे में वो एक पल को भूल भी जाए और मुझे माफ़ कर वो मुझसे प्यार भी करने लगे तो क्या होगा इस रिश्ते का? दोनों में किसी के घरवाले तो इस रिश्ते को स्वीकार करने से रहे। क्या उसे यही बता देना सही नहीं रहेगा कि मैं वो लड़का ही नहीं हूँ, जो वो समझ रही है। फिर मैं यह सोचने लग गया कि कहीं वो लड़का भी तो मुसलमान ही नहीं था? फिर याद आया अभी तक उसने उस लड़के का नाम नहीं लिया। मतलब यह भी हो सकता है कि वो उस लड़के के बारे में भी बहुत कम ही जानती हो। अगली बार जब भी बात होगी तो मैं उस लड़के बारे में जानने की कोशिश करूंगा। और इतना सोचने के बाद हमने जितना भी चैट किया था वो बहुत ही ध्यान से पढ़ने लगा और फिर कोयल की तस्वीर अपने मन में उतारने लगा।

करीब दस मिनट मैं यूँ ही लेटा रहा तो मेरे मोबाइल पर एक मैसेज आया। जैसा कि मुझे उम्मीद थी, मैसेज कोयल का ही था।

‘क्या कर रहे हो?’ मुझे मैसेज में बहुत ही ज्यादा प्यार दिख रहा था। मैं अंदर तक खुश हो गया। मुझे ऐसा लगा जैसे कोयल मुझे मिस कर रही है। 

‘आपको याद।’ मैंने भी रोमांटिक होते हुए जवाब दे दिया।

‘सच..?’ 

‘मुच’ मैंने जवाब भेजा।

‘झूठ मत बोलिए, आपने तो कहा था कि माँ ने आपको जो काम दिया था आप वो करने जा रहे हैं।’ कोयल ने अपने बारे में और ज्यादा सुनने के लिए ऐसा मैसेज किया। मैंने उसके भाव को परख लिया और फिर मैंने उत्तर दिया,

‘माँ ने जो काम दिया था वो तो बस दो मिनट का ही था, उसे ख़त्म कर के मैं अपने बेड पर लेटा हुआ हूँ और आपको याद कर रहा हूँ। आपके भेजे गए सारे मैसेज पढ़ रहा हूँ। और...’ इतना टाइप करके मैं रुक गया। मैं लिखना चाह रहा था कि मैं अपने मन में आपकी नयी-नयी तस्वीर बुन रहा हूँ। मगर मुझे याद आ गया कि हो सकता है कोयल तो उस लड़के से पहले मिल चुकी हो, इसलिए उस लड़के को कोई तस्वीर गढ़ने की कोई जरूरत ही नहीं है। 

‘और क्या? अरे वैसे आप भी मैसेज पढ़ते हैं क्या? मैं भी हमारा पूरा चैट पढ़ रही थी और पढ़कर हँस रही थी कि मैंने आपको न जाने क्या-क्या बता दिया। मैं भी कितनी बेवकूफ हूँ न? बताइए न पहली बार जब हम मिले थे, तब थोड़ी-सी भी बात कहाँ हुई थी, बस सारी रात उस शादी में आँखों ही आँखों में बातें होती रहीं। आप जब बार-बार मेरी तरफ देख रहे थे तो मैं तो यह समझ गयी थी कि आप मुझसे कुछ कहना चाह रहे थे मगर उस भीड़-भाड में आप मुझसे कुछ कह नहीं पा रहे थे। मैंने आपका हौसला बढ़ाने के लिए थोड़ा सा मुस्का क्या दिया, आपने तो निडर होकर मेरे हाथ में अपना नम्बर थमा दिया था। मगर जब मैं कॉल बैक कर रही थी तो आप मेरा फोन नहीं उठा रहे थे तो मुझे आपपर बहुत ही ज्यादा गुस्सा आ रहा था। अगर आप इस नम्बर से मुझे रिप्लाई नहीं करते तो... तो भी मैं क्या कर लेती? मैं तो आपके बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। अरे जानती तो अभी भी नहीं हूँ। देखिये न इतने सारे मैसेज मैंने फ़ालतू के कर दिए, यह तक बता दिया कि मैं कोयल कैसे बन गयी, मगर आपका नाम अभी तक मैंने पूछा ही नहीं है। चलिए बताइए आपका नाम क्या है?’ 

कोयल का बहुत ही ज्यादा लम्बा मैसेज आया। मगर यह मैसेज ऐसा था कि अब क्या जवाब दिया जाए मैं इसी सोच में पड़ गया। एक मन आया कि मैं अपना नाम ही बता दूँ, फिर लगा कि वो दोनों जब मिले थे तो किसी की शादी थी। हो सकता है जो लड़का वहाँ गया होगा, वो मुसलमान ही होगा। मुसलमान होने की सम्भावना ही ज्यादा थी, ऐसी सूरत में मुझे जवाब देना नहीं सूझ रहा था।

‘आपको मैसेज लिखने में दिक्कत हो रही होगी। इतने लम्बे मैसेज के लिए आपको बहुत समय लग रहा होगा। क्या हम फोन पर बात कर सकते हैं? क्या हम फोन कर सकते हैं आपको?’ मुझे लगा कि बात करके बात बदली जा सकती है, मैसेज में बात कैसे बदलें? इसलिए मैंने उसे फोन पर बात करने की इजाजत माँगी। ऐसे भी प्यार टेस्ट मैच जैसा होता है, जो काफी लम्बा चलता है। और जब टेस्ट मैच में आपको लगे कि आप हार रहे हों, तो उसे ड्रा करने के लिए भी खेला जाता है। मैंने भी वही करने की कोशिश की।

‘नहीं पहले आप अपना नाम बताइए, तब हम फोन पर बातें करेंगे।’ कोयल ने मुझे साफ़ मना कर दिया।

‘फोन करते ही आपको पता चल जाएगा कि मैं कौन हूँ, और मेरा नाम क्या है?’ मैंने भी अब ठान लिया था कि मैं भी कोयल को कोई जवाब नहीं दूँगा, जबतक वो मुझे कॉल नहीं करेगी। 

‘नहीं मैंने आपको कॉल किया था, लेकिन उस समय आपने मेरा कॉल नहीं उठाया था इसलिए अब मैं आपको कॉल नहीं करुँगी।’ कोयल अब मुझे थोड़े गुस्से में लग रही थी।

‘अरे बाबा, मेरा जब वो नम्बर ही गुम हो गया था तो मैं कैसे कॉल उठाता? आप ही बताइए।’ मैंने उसे मनाने की कोशिश की।

‘वो सब मैं कुछ नहीं जानती। मैं अब आपको कॉल नहीं करूंगी।’ एक बार फिर से गुस्से से भरा उसका मैसेज आया। 

‘तो मैं ही कॉल कर लेता हूँ।’ मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा। 

‘जी नहीं, कोई जरुरत नहीं है।’ उसका जवाब आया। जिसे पढ़ने के बाद मैंने उसके नम्बर पर कॉल कर दिया। फोन पूरा रिंग हुआ लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। 

‘आप एक बार फोन उठा लीजिये, मैं अपना नाम तो क्या अपने बारे में सबकुछ आपको बता दूंगा।’ मैंने एक मैसेज लिखके उसे भेज दिया।

‘मुझे कुछ भी नहीं जानना है।’ कोयल अभी तक यह जता रही थी कि हमारी प्रेम कहानी की हिरोइन वही है और भाव खाना उसका हक है। मैंने उसके इस मैसेज को पढ़ा और फिर से उसे फोन लगा दिया। इस बार उसने फोन उठा लिया। मेरे दिल की धड़कने काफी बढ़ गयी थीं।

 “हेल्लो”, मैंने कहा। उधर से कोई आवाज नहीं आ रही थी। मैं थोड़ी देर इन्तजार करता रहा।

“आप कुछ बोलेंगी नहीं?” मैंने थोड़ी देर के बाद पूछा। उधर से फिर भी कोई आवाज नहीं आई। अब क्या करूँ मेरी समझ नहीं आ रहा था। मैंने सोचा अब इसे अपना नाम बता दिया जाए। लेकिन नाम सही बताऊँ या गलत, यह मैं तय नहीं कर पा रहा था।

मैंने यह सोचा कि कोई मुस्लिम नाम ही बता दिया जाए क्योंकि अगर हिन्दू नाम बताया तो बहुत मुम्किन है कोयल आगे बात नहीं करेगी मुझसे। हिन्दू-मुस्लिम के पेंच में अभी मैं कुछ इस तरह फँस गया था, जैसे कि कोई राजनेता फँसा हो। मगर मैंने आख़िरकार यह तय किया कि चाहे जो भी होना है हो जाए, मैं अब अपना ही नाम बताने वाला हूँ।

“श्याम नाम है मेरा, अब तो आप कुछ बोलेंगी?” मैं फिर से इन्तजार करता रहा कि कोयल की कोयल सी आवाज मुझे सुनाई देगी, मगर अभी भी ख़ामोशी थी।

“क्या हुआ नाम पसंद नहीं आया क्या?” मैंने ख़ामोशी को तोड़ने का एक और प्रयास किया।

“जब आप ही मुझे पूरे के पूरे पसंद हैं तो फिर आपका नाम हमें क्यों नहीं पसंद आएगा? आपका नाम भी तो कितना सुन्दर है; भगवान् श्री कृष्ण का नाम।” कोयल के इस जवाब से मुझे आश्चर्य और ख़ुशी दोनों एक साथ हो रही थी।

मैं यह सोच रहा था कि कोयल को मैं कितना ज्यादा पसंद हूँ। और साथ-साथ मुझे इस बात की भी ख़ुशी हो रही थी कि मेरे हिन्दू होने से उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा। 

“अच्छा आप इतना ज्यादा पसंद करती हैं हमें?” मैं अन्दर ही अंदर फूलते हुए बोल रहा था। मैं अब यह पूरी तरह से भूल जाना चाहता था कि वो मुझे कोई और समझ रही है। 

“आपको यकीन नहीं होता? अच्छा अगर मैं आपको पसंद नहीं करती तो फिर आपके नम्बर पर पागलों की तरह कॉल क्यों करती?” कोयल की मधुर आवाज मेरे कानों पर पड़ रही थी।

“मुझे क्या पता कि आपने मुझे कितना कॉल किया। मैंने तो जब आपको कॉल किया तो आप मेरा फोन कितनी मुद्दत बाद उठाई हो।” 

“वो तो इसलिए कि आपने अपना पहला नम्बर खो दिया तो इसकी सजा आपको मिलनी चाहिए थी। किसी लड़की को अपना नम्बर देने के बाद आप उस फोन की अच्छे से हिफाजत तक नहीं कर सकते तो इसकी सजा तो आपको मिलनी चाहिए न!” कोयल की बातों से उसकी शरारत साफ़ झलक रही थी।

“हाँ-हाँ क्यों नहीं, आप हमें जो भी सजा दें हमें मंजूर है।” मैं खुश होते हुए बोल रहा था।

“तो एक सजा आपको और दी जायेगी और वो भी आपको माननी होगी।” अब हमारे बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया था और कोयल की आवाज में मैं खोता जा रहा था।

“मैंने तो पहले ही कहा है कि आप मुझे जो भी सजा देंगी मुझे मंजूर होगी, बस आप हुक्म तो कीजिये।” 

“तो आज से रोजाना आप मुझे कॉल करेंगे।” कोयल ने मुझपर अब थोड़ा अधिकार जताते हुए कहा।

“अजी दिन में एक बार क्यों, आप कहें तो दिन भर हम आपका हालचाल ही लेते रहें।” मैंने भी अपनी पूरी आशिकी जाहिर की।

“नहीं पूरे दिन आप मुझसे बात ही करेंगे तो फिर आप काम कब करेंगे? अरे देखिये, मैं भी कितनी पागल हूँ, पहले आपका नाम पूछना भूल गयी थी और अब मैं यह पूछना भूल गयी कि आप करते क्या हैं? बताइए आप करते क्या हैं?” कोयल अब मेरी जिंदगी की परतें उघार कर मेरी जिंदगी में दाखिल होना चाह रही थी और मेरे बारे में सबकुछ जान लेना चाहती थी। 

इस बार मेरे मन में किसी तरह की कोई उलझन नहीं थी। मैंने कहा, “जी मैं राज्य सरकार का नौकर हूँ, चाहें तो आप भी मुझे अपना नौकर बना सकती हैं।” अब मैं भी थोड़ा खुल के कोयल से बात करने लगा था। 

“अरे मैं आपको नौकर क्यों बनाऊँगी? आपको तो...” इतना बोलकर वो रुक गयी। 

“मुझे क्या?” 

“अच्छा छोड़िये इस बात को, आप यह बताइए कि आप राज्य सरकार में नौकरी क्या करते है?” कोयल जैसे अपनी कही गई बात से कुछ ज्यादा ही शर्मा गयी थी। वो बात बदलने के साथ-साथ बात आगे भी बढ़ाना चाह रही थी। वो मेरे बारे में सबकुछ जान जाना चाह रही थी।

“जी मैं एक छोटा-सा आदमी, सरकारी दफ्तर में एक छोटा सा कलर्क हूँ।” 

“अरे फिर तो आप बहुत बड़े आदमी हैं, सबलोग आपकी सिफारिश में लगे रहते होंगे। आप भाव खाते होंगे अलग और लोग आपको चढ़ावा अलग से चढ़ाते होंगे।” कोयल ने अब मेरी नौकरी और ईमान पर थोड़ा तंज कसा।

हाँ, यह बात सही है कि सरकारी दफ्तर में बैठे ज्यादातर लोग यही काम करते हैं, मगर यह बात चूँकि मैं नहीं करता था इसलिए अपने बारे में ऐसा सुनकर मुझे बुरा लग गया। मैंने इस बात पर कोयल को कोई जवाब नहीं दिया और चुप ही रहा। 

“क्या हुआ आप कुछ बोल नहीं रहे, कुछ गलत कह दिया क्या मैंने?” कोयल की आवाज आई। लेकिन मैं फिर भी चुप ही रहा;।

“अरे लगता है मैंने गलत कह दिया, आपको मेरी बात का बुरा लग गया। आय एम रियली सॉरी, मुझे माफ़ कर दीजिये।” कोयल को इस तरह सॉरी बोलते देख मुझे अब बुरा लग रहा था।

“इसमें आपकी कोई गलती नहीं है कोयल जी। दरअसल हमारे नौकरी पेशे वाले लोगों की ही गलती है, जिन्होंने ऐसा करके माहौल तो खराब किया ही, साथ ही हरेक कर्मचारी को बिना कुछ किये बदनाम भी कर दिया है। आप ही नहीं हरेक व्यक्ति यही सोचता है कि सरकारी दफ्तर में बैठा एक कलर्क बिना पैसा लिए कोई काम ही नहीं करता होगा। मगर मैं ऐसा बिलकुल भी नहीं करता कोयल जी। लेकिन फिर भी आपको सॉरी बोलने की कोई जरुरत नहीं है। हमारे बीच आगे से कभी सॉरी और थैंक यू नहीं आएगा। आप मुझे यह प्रोमिस कीजिये।” मुझे लगा मेरे सीधे-सीधे जवाब दे देने से कोयल को बुरा लग जाएगा इसलिए मैंने आखिर में वो सॉरी और थैंक यू की बात कही।

कोयल मेरे जवाब से थोड़ी दुखी जरुर हो गयी। उसे अपने कहे पर पछतावा हो रहा था। और वो शायद मन ही मन यह सोच रही थी कि सही बात है सब आदमी जरुरी तो नहीं कि सरकारी दफ्तर में बैठकर घूस और रिश्वत ही ले।

“हाँ मैं प्रोमिस करती हूँ आगे से कभी ऐसा नहीं होगा।” वो बोल कुछ और रही थी और उसके कहने का भाव कुछ अलग ही आ रहा था। साथ ही उसकी आवाज से यह साफ़ झलक रहा था कि वो दुखी हो गयी है।

“कोयल जी वो सब छोड़िये, मुझे ये बताइए कि आप क्या करती हैं?” मैंने बात को बदलने की कोशिश की। 

“अच्छा तो अब आपको याद आयी है कि मेरे बारे में भी कुछ पूछना है, मेरे भी बारे में कुछ जानना है आपको।” कोयल थोड़ा सा नाराज हो गयी। 

“अरे नहीं वो बात नहीं है कोयल जी, मैं तो आपके बारे में सबकुछ जानना चाहता हूँ। मगर क्या करूँ, आपकी आवाज इतनी अच्छी है कि मन करता है बस आपकी आवाज को ही सुनता रहूँ, मैं कुछ नहीं बोलूं।” मैंने अपना बचाव करने की कोशिश की। वास्तव में अब मैं कोयल के बारे में सबकुछ जानना चाहता था। बस एक डर के कारण अब तक मैंने उससे ज्यादा कुछ पूछा नहीं था।

“रहने दीजिये ये बहाने मत बनाइये। और हाँ मैं कुछ नहीं करती।” कोयल ने मुझे थोड़ा रुखा जवाब दिया।

“अरे कोयल जी सॉरी, चलिए मैं कान पकड़ के माफ़ी माँग रहा हूँ। मगर मैं सच कह रहा हूँ, मैं सबकुछ जानना चाहता हूँ। बस मैं आपकी आवाज में ही खोया रह गया इसलिए मैंने कुछ नहीं पूछा।, वैसे आपका मन अगर कुछ नहीं बताने का कर रहा हो तो कोई बात नहीं आप नहीं बताइए। मैं यही समझूँगा कि आप मुझे कभी माफ़ नहीं करेंगी।” मैंने अपना दाव खेला।

“अरे ऐसा कैसे हो सकता है? मगर हाँ, मैं माफ़ तो नहीं ही करुँगी, अगर अगली बार से आपने मुझे कोयल जी, या आप कहके बुलाया तो।” अब कोयल मुझसे और ज्यादा नजदीक आना चाह रही थी और जैसा हर प्रेम कहानी में होता है कोयल ने भी मुझे आप कहने से मना कर दिया। 

“ठीक है मैं आपको आप नहीं कहूँगा, सॉरी, मैं तुम्हें आप नहीं कहूँगा। चलो अब तुम मुझे जल्दी से यह बता दो कि तुम क्या करती हो?” 

“मैंने एमए कर लिया है और अब मैं नेट की तैयारी कर रही हूँ।” कोयल ने जवाब दिया। मैं थोड़ा डर सा गया। ये तो मुझसे पढ़ाई में भी आगे है, मैंने तो बस ग्रेजुएशन तक की ही पढ़ाई की थी, ये तो मास्टर्स कर के बैठी हुई है।

मैं बहुत सोच में पड़ गया। एक बार फिर से मुझे यही लगने लगा कि मेरा और कोयल का कोई मैच है ही नहीं। वो मुसलमान है तो मैं हिन्दू, वो एमए है और मैं ग्रेजुएट, वो सुन्दर है और मैं साधारण। फिर कैसे हो सकता है हमदोनों का मेल? और इतनी ही बातें नहीं थी, सबसे जरुरी बात तो यह थी कि जो वो समझ रही थी मैं वो था भी नहीं। जिस दिन उसे यह पता चलेगा उस दिन क्या होगा? मैं अपनी सोच में उलझा चुप हो गया।