साथिया - 86 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 86

" एक हफ्ते तक सांझ का इलाज दिल्ली मे चला और फिर अबीर सांझ और अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए क्योंकि सांझ को बेहतर और एडवांस ट्रीटमेंट की जरूरत थी।" सुरेंद्र बोले।

" मुझे बिना बताये..!! बिना पूछे..?? सब मेरे और सांझ के रिश्ते को समझते थे जानते थे..! फिर क्यों नही बताया..?? और सांझ?? उसने भी मुझे नही बताया..? " अक्षत का दर्द आँखों से खून के रूप मे निकल रहा था।

" वो सांझ की जिंदगी के साथ कोई रिस्क नही लेना चाहते थे और सांझ तो तब आपको बताती जब बताने की हालत मे होती..!" सुरेंद्र बोले तो अक्षत ने नासमझी से उन्हे देखा।

"उस हादसे में सांझ की मेमरी लॉस हो गई। उसे कुछ याद नही।" सुरेंद्र ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखा तो अक्षत ने आँखे भींच ली।

"क्या मतलब...?? सांझ की याददाश्त चली गई है?" साधना के मुंह से दर्द के साथ निकला।

"हां जी मिसेज चतुर्वेदी..!! सांझ की याददाश्त चली गई थी उस हादसे में। शायद ऊंचाई से कूदने के कारण सिर में उसे कहीं चोट आई थी। वह वैसे ही सब कुछ भूल चुकी थी उसके बाद इतना सब कुछ हुआ और फिर उसकी हालत नहीं थी यहां रहने की। उसे बेहतर इलाज की जरूरत थी इसीलिए अबीर ने डिसाइड किया कि वह सांझ को लेकर अमेरिका चले जाएंगे ताकि उसे बेहतर इलाज मिल सके और वह जल्द से जल्द ठीक हो सके। यहां पर दुनिया के लिए वैसे भी सांझ मर चुकी थी कोई नहीं जानता था उसके जिंदा होने का सच मेरे अबीर के और उसे मछुआरे के अलावा। और सांझ की जिंदगी पर यहां खतरा भी बना ही रहता क्योंकि अगर निशांत और बाकी लोगों को पता चल जाता है कि सांझ बच गई है तो भी वह उसे सुकून से नहीं जीने देते क्योंकि कहीं न कहीं उनके मन डर होता है कि अब कहीं उनके कांड सामने ना आ जाए और उन्हें सजा ना मिले। इसलिए मैंने भी बेहतर यही समझा कि किसी को भी अभी ना बताया जाए और अबीर भी नहीं चाहते थे।" सुरेंद्र ने कहा।

अक्षत भरी हुई लाल आंखों से उन्हें देख रहा था।

"मुझे माफ कर दो अक्षत बेटा ..!! आपकी तकलीफ देखकर कई बार मुझे बहुत तकलीफ होती थी? दिल करता था आपको सब सच बताने का पर मैं नहीं जानता था कि सांझ की याददाश्त आएगी या नहीं आएगी..?? या कब तक आएगी..?? ऐसे में आप उसकी यादों के सहारे कब तक जिंदगी बिताते? और दूसरी बात आपकी और सांझ की शादी हो चुकी है इस बारे में कोई भी कुछ भी नहीं जानता था। मैं अगर सांझ का भला चाहता था तो आपका भी भला चाहता था। मैं चाहता था कि आप सांझ को भूलाकर आगे बढ़ जाओ, क्योंकि मुझे नहीं लगता कि अब आपका सांझ के साथ कोई भी फ्यूचर है।" सुरेंद्र ने कहा।

"और यह आप कैसे कह सकते हैं?" अक्षत ने कहा।

" क्योंकि अब यह वह सांझ नहीं रही जिसे कभी आपने चाहा था। अब सब कुछ बदल चुका है।" सुरेंद्र बोले।

"कुछ भी बदल जाए पर एक सच नहीं बदल सकता कि मै सांझ को बेइंतहा मोहब्बत करता हूं। और शायद इतना ही प्यार सांझ मुझे करती है।

हाँ मैं मानता हूं कि आज उसे मैं याद नहीं। पर मैं उसे याद दिलाऊंगा और दूसरी बात एक और सच है जिसे कोई नहीं बदल सकता कि मैं और सांझ पति पत्नी है। सांझ मेरी वाइफ है। और आज के समय में मुझ पर सबसे ज्यादा हक सांझ का है और सांझ पर सबसे ज्यादा हक मेरा है। उसके पिता अबीर राठौर से भी ज्यादा। और किसी और को अधिकार नहीं हम दोनों को हमारी मर्जी के बिना अलग करने का।" अक्षत ने दर्द और गुस्से से कहा।


"अगर अबीर यह सब जानते होते तो शायद वह भी आपसे पूछे बिना कोई निर्णय नहीं लेते। पर उस समय उन्हें इस बात का पता नहीं था कि और सांझ की शादी हो चुकी है और कानूनन आप दोनों पति-पत्नी हो। इसलिए एक पिता होने के नाते सांझ के बारे में डिसीजन लेने का पूरा अधिकार अबीर का था और इन्होंने उस अधिकार का उपयोग किया और सांझ को लेकर चले गए।"सुरेंद्र ने कहा...!!

" मुझे अबीर राठौर का एड्रेस दीजिए।।मैं कल ही जा रहा हूं अमेरिका।",अक्षत ने कहा .।

"प्लीज बेटा आप इस तरीके से जल्दबाजी मत कीजिए। धैर्य से काम लीजिए।" सुरेंद्र ने कहा।


" धैर्य से ही तो काम ले रहा था, पिछले दो सालों से। पर अब और नहीं। अब सबसे पहले सांझ को वापस लाऊंगा इंडिया और अपनी जिंदगी में भी। और उसके बाद उसके एक-एक गुनहगारों को उनके अंजाम तक पहुंचाऊँगा।" अक्षत ने कहा।


" ठीक है मैं आपको उनका एड्रेस दे रहा हूं। बाकी आप चाहो तो बात कर लो।" सुरेंद्र ने कहा।

" नहीं अब जो भी बात करूंगा वहीं जाकर करुंगा। और आपसे भी एक रिक्वेस्ट है अब तक अबीर राठौर के कहने पर आपने मुझे नहीं बताया सांझ के बारे में। अब मेरे कहने पर आप अबीर को नहीं बताएंगे कि मैं वहां आ रहा हूं। मैं खुद देखना और समझना चाहता हूं सारी कंडीशन और सांझ की हालत भी।" अक्षत ने कहा।

"ठीक है जैसी आपकी मर्जी...। मैं बिल्कुल भी नहीं कहूंगा और आप लोगों से भी यही विनती करूंगा कि जब तक सब कुछ ठीक नहीं हो जाता सांझ जिंदा है यह बात किसी को पता नहीं चले तो ही बेहतर होगा।" सुरेंद्र ने कहा।

"आप निश्चिंत रहिए यहां सब हमारे अपने हैं..!! सब विश्वास वाले हैं कोई भी इस बात को बाहर नहीं ले जाएगा।" अक्षत ने कहा और फिर कबीर का एड्रेस लेकर वह लोग वापस अपने घर निकल गए।

उन लोगों के निकलते ही सौरभ ने सुरेंद्र की तरफ देखा।

"इतनी बड़ी बात आपने मुझसे भी छुपा रखी थी पापा..??" सौरभ ने कहा।

"मजबूर ना होता तो कभी नहीं छुपाता। और अभी तो अक्षत पूरी बात जानता ही नहीं है।" सुरेंद्र बोले तो सौरभ ने आँखे छोटी कर उन्हें देखा।



"अब सांझ अक्षत की सांझ नही बल्कि अबीर राठौर की बेटी माही राठौर है। जिसके अंदर न यादे अक्षत की सांझ वाली है..! न कोई रिश्ता अक्षत की सांझ का है और न सूरत अक्षत की सांझ की है। भगवान हिम्मत दे अक्षत को, सारी सच्चाई जानने की और जो सच सामने आने वाला है उसे एक्सेप्ट करने की बस यही प्रार्थना करता हूं मैं..!!!" सुरेंद्र बोले और उठकर अपने कमरे में जाने लगे।

" ये क्या बोल रहे है आप?? ये कैसी सच्चाई है..?? सौरभ ने उठकर उनके सामने आते हुए कहा तो तो सुरेंद्र ने उसके कंधे पर हाथ रखा।


"कई बार कोई एक हादसा जिंदगी बदल देता है और उस एक हादसे ने सांझ के साथ-साथ अक्षत की जिंदगी भी बदल दी है। अब इस बदलाव का असर पॉजिटिव आता है या नेगेटिव आता है यह तो वक्त ही बताएगा। पर मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि सांझ और अक्षत हमेशा खुश रहे और रही बात किसी को ना बताने की तो मजबूर था। बात सिर्फ यहां सांझ की सेफ्टी और सिक्योरिटी की नहीं थी। सांझ के हाथों एक खून भी हुआ है और अगर उन लोगों को पता चल गया कि सांझ जिंदा है तो सबसे पहले वह इसी का फायदा उठाकर सांझ को फिर से नुकसान पहुंचाने की या गिरफ्तार कराने की कोशिश करेंगे। और सांझ अभी इस हालत में नहीं है कि यह सब चीजे बर्दाश्त कर सके। इसीलिए अबीर के साथ-साथ मैंने भी इस बात को छुपाना ही बेहतर समझा।" सुरेंद्र बोले और अपने कमरे में चले गए।

सौरभ ने आव्या की तरफ देखा तो आव्या उसके पास आकर खड़ी हो गई।

"बहुत कोशिश की थी मैंने भैया पर मदद नहीं कर पाई सांझ दीदी की। निशांत भैया के ऊपर शैतान सवार था उस समय और वह किसी की भी नहीं सुन रहे थे। मेरे मन में हमेशा इस बात का अफसोस रहा था कि मैं उनकी मदद नहीं कर सकी पर आज सब जानकर दिल को बड़ा सुकून मिला। जो भी हुआ गलत हुआ। उसको अगर पीछे छोड़ दें तो यह एक बहुत ही अच्छी बात है कि सांझ दीदी जिंदा है। बाकी मुझे पूरा विश्वास है कि जल्दी ही वह ठीक हो जाएंगी और अक्षत भाई की जिंदगी में वापस आ जाएंगी।"


"मुझे भी यही उम्मीद है...!!" सौरभ ने कहा।


उधर अक्षत इंसान साधना और अरविंद वापस घर पहुंचे।

किसी के पास कहने के लिए कुछ नहीं था। साधना और अरविंद को जहां अक्षत और सांझ के लिए बेहद दुख और तकलीफ थी वही अक्षत एकदम शॉक्ड था इतनी सारी बातें सुनकर। वही ईशान को तो समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे रिएक्ट करें?? जहां एक तरफ वह अब तक शालू से नाराज था वहीं अब उसे शालू के लिए दुख हो रहा था। उसे तकलीफ हो रही थी शालू को उसकी बहन मिली भी तो इस हालत में मिली। उसे अब खुद ही नहीं समझ में आ रहा था कि इस समय वह शालू से नाराज रहे या उसका साथ दे। उसका संबल बने। कुल मिलाकर किसी के पास कुछ भी कहने के लिए नहीं था तो साधना और अरविंद अपने कमरे में चले गए और अक्षत और ईशान अपने अपने कमरे में।



ईशान अपने कमरे में आया और फोन खोल कर शालू का फोटो देखा।

"आज बहुत कुछ पता चला है..!! हां इस बात की तकलीफ है कि तुमने मुझे अपना नहीं समझा और यह सब बातें नहीं बताई। मैं मानता हूं कि अक्षत और सांझ की शादी के बारे में तुम्हारे पापा नहीं जानते थे इसलिए उन्होंने अक्षत को नहीं बताया। पर तुम्हारा और मेरा रिश्ता तो बहुत गहरा था। तुम तो मुझे बता सकती थी। ज्यादा नहीं तो कम से कम इतना तो बता ही सकती थी कि तुम अचानक से क्यों जा रही हो...और वापस आओगी या नहीं आओगी?? समझ नहीं आता क्या सही है क्या गलत है। अब तो मैं कुछ सोचना और समझना भी नहीं चाहता। सब कुछ वक्त के हाथों छोड़ दिया है। जैसा वक्त दिखाएं वैसा ठीक है वरना सब भगवान भगवान की मर्जी।" ईशान बोला और फिर फोन बंद कर दिया और आंखें बंद कर ली। जो भी सुरेंद्र ने कहा वह सब याद आते ही ईशान की आंखों में फिर से नमी उतर आई।

अक्षत कमरे में आया और दरवाजा बंद कर दिया।

दरवाजे से हाथ लगाया और आँखे बन्द कर ली ।

" सांझ ....!" अक्षत एकदम से जोर से चीखा और उसके बाद उसकी आंखों से आंसू निकलने शुरू हो गए।

रो-रो कर जब वह थक गया तो उसने आंसू पोंछे और सांझ की तस्वीर से हाथ लगाया।


"मुझे माफ कर दो सांझ तुम्हारा साथ नहीं दे पाया। जिस समय तुम्हें मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी मैं नहीं था तुम्हारे पास..!
तुम कितना तड़पी होगी मुझे याद करके मैं अंदाजा भी नहीं लग सकता...!! मैं पिछले दो सालों से इतना तड़प रहा हूं शायद उससे भी ज्यादा तड़प तुम्हारे अंदर रही होगी उन दो दिनों के अंदर..!! पर अब सब कुछ सही हो जाएगा। आ रहा हूं मैं तुम्हारे पास..!! तुम्हें लेने के लिए अपने पास लाने के लिए हमेशा के लिए।" अक्षत ने कहा और तुरंत अपने एजेंट से बोलकर अपने टिकट्स बुक कराये और अपना सामान पैक करने लग गया।

दिमाग उसका सुन्न हो चुका था और कानों में अब भी गूंज रही थी सुरेंद्र की कही बातें जो कि उसके दिल के साथ-साथ उसकी आत्मा को भी लहू लूहान करती जा रही थी।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव