साथिया - 85 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 85














" छोड़िये भैया..!!" आव्या ने दोबारा से आकर आकर निशांत से उसका हाथ छुड़ाना चाहा तो निशांत ने एक जोरदार तमाचा आव्या के चेहरे पर मारा और आव्या का सिर घूम गया और वह एकदम से बिस्तर पर जा गिरी। हल्की सी बेहोशी उसे आ गई और निशांत सांझ को खींचता हुआ बाहर चल दिया।



सांझ ने उसके पैर पकड़ लिए।

"प्लीज जाने दो मुझे...!! मत करो ऐसा प्लीज मुझे जाने दो। क्यों कर रहे हो..?? अगर तुमको लगता है कि नेहा दीदी मेरी वजह से भागी तो मुझे माफ कर दो। गलती हो गई मुझसे...!! मैं माफी मांगती हूं हर गलती की..!! पर तुम मेरे साथ ऐसा मत करो प्लीज निशु..!!" सांझ रोते हुए बोलती जा रही थी। और निशांत उसे खींचते जा रहा था।


" निशु बेटा छोड़ दो उसे..?? तुम कहाँ से आ गए..?? तुम तो बाहर गए थे न..?? " आव्या की माँ बोली और निशांत का हाथ पकड़ लिया।

" छोड़िये चाची मुझे..!! और मैं इसे नही छोड़ सकता। " निशांत ने चाची को झटका दिया और सांझ को खींचने लगा।

वह जमीन में गिर घिसटते जा रही थी पर निशांत का दिल नहीं पसीजा।


" भागवान से डरो बेटा..!! ये पाप है जो तुम्हे बर्बाद कर देगा।" आव्या कि माँ दुखी होकर बोली पर निशांत ने उनकी एक न सुनी और उसने ले जाकर सांझ अपनी गाड़ी में डाल दिया और तुरंत ड्राइविंग सीट पर बैठकर गाड़ी आगे बढ़ा दी।

सांझ ने वापस से कोशिश की उसे रोकने की तो निशांत ने उसे उसके चेहरे पर दो-तीन तमाचे मार दिए और सांझ वापस से निढाल होकर गिर गई और निशांत उसे लेकर ट्यूबवेल की तरफ निकल गया।

तभी सुरेंद्र घर पहुंचे और आव्या के कमरे का दरवाजा खुला देख तो वहां आए।

आव्या बिस्तर पर पड़ी हुई अभी भी हल्की बेहोशी में थी।

सुरेंद्र ने उसके चेहरे पर पानी डाला।

" पापा वो निशु भैया वह सांझ दीदी को ले गए। मैं नहीं बचा पाई पापा वो सांझ शांति दीदी को ले गए। मेरी गलती है मुझे दरवाजा नहीं खोलना चाहिए था पर मम्मी ने कहा कि खाना खा लो इसलिए मैंने दरवाजा खोला। मुझे नहीं पता था कि निशु भैया यहीं पर है। प्लीज पापा सांझ दीदी को बचा लो। ना जाने भैया क्या करेंगें उनके साथ। वह इस घर में थी तब तो सुरक्षित थी अब पता नहीं क्या होगा..?? सिर्फ शाम तक की बात है शाम को सौरभ भैया आ जाएंगे फिर वह जरूर कुछ ना कुछ करेंगे सांझ दिदी के लिए। प्लीज पापा बचा लो उन्हें।" आव्या ने रोते हुए कहा।

"तुम चिंता मत करो मैं देखता हूं..!! सुरेंद्र बोले और वह भी ट्यूबवेल की तरफ चल दिये।


निशांत ने सांझ को ले जाकर ट्यूबवेल पर बने अपने कमरे में बंद कर दिया। उसके दो दोस्त पहले से ही वहां पर बैठे हुए थे।

"यह तुमने सही किया जो इसे उठा लाये। अब शाम तक का टाइम है हमारे पास इसके साथ इंजॉय करने का, उसके बाद पप्पू आ ही रहा है उसे दे देना।" निशांत के दोस्त ने कहा तो निशांत ने उसे देखा और फिर मुस्कुरा उठा।

'तुझे ही ज्यादा जल्दी है तो तू ही जा मुझे उसके साथ कोई मजा नहीं करना और ना ही मेरा उसमें कोई इंटरेस्ट है। कहा है ना शुरू से ही नफरत है मुझे उसके चेहरे से उसकी सख्सियत से.!" निशांत ने कहा तो उसका दोस्त कमरे के अंदर बढ़ने लगा।

उधर सांझ कमरे में चारों तरफ इधर-उधर घूम कर देख रही थी कि कुछ हो जिससे वह अपना बचाव कर सके पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी वहां पर रखी फलों की डलिया उसे दिखाई दी जिसमें की चाकू रखा हुआ था।

सांझ ने जल्दी से वह चाकू अपने कपड़ों में छुपा लिया कि तभी दरवाजा खुला और वह आदमी अंदर आया।

सांस उसे देखकर डर के मारे सांप गई क्योंकि उसके चेहरे पर अलग-अलग सी डरावनी मुस्कुराहट थी।


कुछ समय निकला था कि एक चीख कि आवाज आई और निशांत और उसका दूसरा दोस्त अंदर भागे।

" साली ने चाकू मार दिया।" वो आदमी बोला तो निशांत ने घूर के सांझ की तरफ देखा जिसके बाल बिखरे हुए थे..!! कपड़े जगह जगह से कटे फटे..!! हाथ मे अब भी खून सना चाकू था।
साथ ही सांझ के हाथ चेहरा और कपड़ो पर भी खून था।

" मुझे गुलाम बना ले.. या अपने इन दोस्तो को सौंप दे या बेच दे इतनी तेरी औकात नही निशांत ठाकुर..!" सांझ कांपते हुए चीखी और तुरंत वहाँ से बाहर की तरफ भागी।

"इसे मैं संभालता हूं तु उसे पकड़।" निशांत का दोस्त बोला तो निशांत सांझ के पीछे भागने लगा।

अभी-अभी वहां पहुंचे सुरेंद्र ने भी यह सारी घटना देख ली थी और वह भी सांझ के पीछे भागे।


"बेटा रुक जाओ मैं तुम्हें यहां से बाहर निकाल दूंगा।" सुरेंद्र चिल्लाये


"चाचा अब कोई मेरे लिए कुछ नहीं कर सकता..!! कुछ नहीं कर सकता। अब मुझे जीना ही नहीं है।" सांझ बोली और पूरा जोर लगाकर दौड़ती हुई आगे बढ़ने लगी।

उसके पीछे-पीछे निशांत और उसके पीछे-पीछे सुरेंद्र थे।
सांझ गाँव मे बहती नदी के ब्रिज पर पहुंची और जब उसे लगा कि अब निशांत उसे पकड़ लेगा तो उसने ब्रिज से नीचे छलांग लगा दी और नदी के तेज बहाव में आगे बहने लगी।


"मर गई साली..!!" निशांत ने ब्रिज के ऊपर से देखा और फिर सुरेंद्र को देखा जिनकी आंखों में गुस्सा और आंसू थे।

" यह तुमने ठीक नहीं किया निशु बिल्कुल गलत किया तुमने। एक बेगुनाह की जान ले ली तुमने।"सुरेंद्र बोले..!!

"और वह मेरे दोस्त को मार कर भागी है। पता है कहाँ चाकू मारा है..??" निशु बोला तो सुरेंद्र ने आँखे छोटी कर उन्हे देखा।

"बच भी जाती है तो जेल में सड़ती। " निशांत बोला और वापस से अपने ट्यूबवेल की तरफ निकल गया ताकि अपने दोस्त को अस्पताल ले जा सके।


सुरेंद्र का मन बेहद दुखी हो गया था। वह वहीं बैठ गए आंखों से आंसू निकलने लगे। उन्हें अब समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? उन्हें अब लग रहा था कि अबीर को खबर करके भी उन्होंने गलती कर दी।

अबीर रात तक पहुँचने वाले थे।

वह दो-तीन घंटे वहीं बैठे रहे।

गांव के कुछ लड़कों ने नदी में कूद कर सांझ को ढूंढने की कोशिश की पर ना ही सांझ मिली ना ही उसकी बॉडी मिली।

देखते देखते रात हो गई पर सुरेंद्र उस पुलिया पर बैठे भरी आंखों से बहती नदी को देख रहे थे कि तभी किसी ने आकर उनके कंधे पर हाथ रखा।

सुरेंद्र ने नजर उठा के देखा तो पडौस गाँव का मछुआरा था जोकि नदी किनारे झोपड़ी मे रहता था।


" आइये मेरे साथ..!!" मछुआरे ने कहा।

" जाओ तुम गढू..!! अभी मन ठीक नही।" सुरेंद्र ने दुखी होकर कहा ।

" पता चला कल क्या हुआ चौपाल पर और साथ ही ये भी कि आप उसके लिए बहुत कोशिश किये।"

" पर फिर भी बचा न सका..!" सुरेंद्र का दर्द आँखों से निकलने लगा।

" जाको राखे साइयां मार सके न कोई..!!" वो मछुआर बोला तो सुरेंद्र ने आश्चर्य से उसे देखा।

उसने पलकें झपकाइ तो सुरेंद्र की आँखे चमक उठी और वो फ़ौरन उसके साथ चल दिये।

" मैं तो मछलियाँ पकड़ने उस दूसरे छोर तक निकल गया था जहाँ ये मिली।

" जान बच गई है बाकी..!" मछुआरे ने झोपड़ी मे खाट पर पड़े उस निर्वस्त्र मास के लोथड़े की तरफ इशारा किया तो सुरेंद्र की चीख निकल गई।

" मछलियों ने पूरी देह नोच खाई है। और कुछ घाव गिरने और पत्थरों की रगड़ के है।" मछुआरा बोला तो सुरेंद्र वही जमीन पर गिर रो पड़े।

" इससे तो अच्छा भगवान इसे मौत दे देते।" सुरेंद्र बोले।

" अनपढ़ हूँ साहब ज्यादा ज्ञान नही है पर इतना जानता हूँ कि अगर जीवन बचाया है पदमनाभि ने तो जरूर कारण होगा। शायद इसी देवी के हाथों उन राक्षसों का नाश लिखा हो।" मछुआरे ने सुरेंद्र के कंधे पर हाथ रखा।

सुरेंद्र ने भरी आँखों से उसे देखा।

" एक को तो मौत दे चुकी है ये..!! जिसे चाकू मारा था वो सिधार गया है।" मछुआरे ने कहा तो सुरेंद्र की आँखे छोटी हो गई।

" इतना तेज मारा..?"

" तेज नही पर जगह नाजुक चुनी।" मछुआरे ने कहा तो सुरेंद्र ने गहरी सांस ली तभी अबीर का फोन आने लगा।


" हाँ राठौर साहब..! पता भेज रहा हूँ आ जाइये और हाँ अपनी पॉवर दिखाइये और बिना किसी की नजर में आये मेडिकल हेल्प लाइये अपनी बेटी के लिए।" सुरेंद्र ने कहा और कॉल कट करके अबीर को पता भेज दिया

तब तक मछुआरे ने देशी नुस्खा उपयोग कर सांझ के शरीर पर लेप कर सूती कपड़ा लपेट दिया था।


कुछ देर मे अबीर वहाँ पहुँच गए।

" कहाँ है सांझ?" अबीर ने पूछा तो सुरेंद्र ने खाट पर सूती कपड़े की पट्टियों से पूरी तरह लिपटी सांझ की तरफ इशारा कर दिया।।।

उसे देखते ही अबीर का सिर चकरा गया और वो गिरते गिरते बचे।

सुरेंद्र ने उन्हे बिठाया पानी पिलाया और सारी बात बताई।

" मैं जिंदा नही छोडूंगा उन लोगो को।" अबीर की आँखों से खून उतर आया।

" उनको सजा तो जब देंगे तब देंगे पर अभी अपनी बच्ची को देखिये। जीवन मे कुछ न किया आपने इसके लिए। अब पिता होने का फर्ज निभाइये..!!" सुरेंद्र बोले।

" मैं अभी पुलिस को कॉल करता हूँ।" अबीर ने फोन निकाल के कहा तो उस मछुआरे ने हाथ पकड़ लिया।

" कुछ भी करने से ज्यादा जरूरी है इनकी जान बचाना..!! और एक बात इनके हाथो भी एक खून हुआ है।" मछुआरा बोला तो अबीर के चेहरे पर तनाव आ गया।


कुछ देर मे मेडिकल टीम आ गई और सांझ को एंबुलेंस मे लिटा लिया।

" वादा कीजिये..!! आज जो हुआ वो हम तक रहेगा। दुनियाँ की नजरों मे आज सांझ की मौत हो गई है नदी मे कुदकर..!! आप तक किसी को कुछ नही बतायेंगे जब तक सांझ इस लायक नही हो जाती कि हम सब सही कर सके। और रही बात पिता के फर्ज कि तो मैं नही निभा पाया क्योंकि कुछ कारण रहा होगा..! पर अब मेरी बेटी को हवा भी मेरी मर्जी के बिना छू न सकेगी..!" अबीर ने कठोरता से कहा और सांझ को लेकर निकल गए।


*फ्लेश बैक खत्म*

आज का दिन..!!

सुरेंद्र का बोलना रुका और उन्होंने सामने देखा।
। सबकी आँखों से आंसू निकल रहे थे और अक्षत की आँखे अंगारों की तरह लाल थी।
शरीर का पूरा खून आँखों मे उतर आया था।


" एक हफ्ते तक सांझ का इलाज दिल्ली मे चला और फिर अबीर सांझ और अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए क्योंकि सांझ को बेहतर और एडवांस ट्रीटमेंट की जरूरत थी।" सुरेंद्र बोले।

" मुझे बिना बताये..!! बिना पूछे..?? सब मेरे और सांझ के रिश्ते को समझते थे जानते थे..! फिर क्यों नही बताया..?? और सांझ?? उसने भी मुझे नही बताया..? " अक्षत का दर्द आँखों से खून के रूप मे निकल रहा था।

" वो सांझ की जिंदगी के साथ कोई रिस्क नही लेना चाहते थे और सांझ तो तब आपको बताती जब बताने की हालत मे होती..!" सुरेंद्र बोले तो अक्षत ने नासमझी से उन्हे देखा।

"उस हादसे में सांझ की मेमरी लॉस हो गई। उसे कुछ याद नही।" सुरेंद्र ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखा तो अक्षत ने आँखे भींच ली।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव