साथिया - 84 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 84

निशांत की नींद खुली तो नजर घड़ी पर गई जो की ग्यारह बजा रही थी।

उसका भी सिर दर्द कर रहा था क्योंकि उसने कल रात कुछ ज्यादा ही पी ली थी।

कल रात की घटना याद आते ही उसके चेहरे पर भी फिर से गुस्सा आ गया। वह उठा और सीधा बाथरूम में चला गया।

आधे घंटे बाद जब बाहर निकला तो अपने बेड पर आकर वापस गिर गया।

"ठीक है अब अवतार तो यहां से चले गए अब सांझ की जिंदगी का फैसला मैं करूंगा। ऐसी सजा मिलेगी उसे की अब कोई भी इस तरीके की हरकत करने का सोचेगा भी नहीं। मेरी बहन नियति को मौत मिली थी और अब नेहा की बहन सांझ को मौत से भी बदतर जिंदगी दूंगा मैं। बस एक बार मुझे मौका मिल जाए उसे यहां से ले जाने का फिर मैं उसके जीवन का निर्णय करूंगा सिर्फ मैं..!!" निशांत ने खुद से ही कहा और फिर उठकर बाहर आ गया।


नजर आव्या के कमरे पर गई जिसका दरवाजा अब भी बंद था।

"कब तक अंदर छिपी रहोगी सांझ। आखिर कभी तो निकलोगी तुम। मैं भी नजर रखे रहूंगा तुम पर।" निशांत खुद से ही बोला और वही आंगन में कुर्सी डालकर बैठ गया पर नजर उसकी आव्या के कमरे के दरवाजे पर टिकी हुई थी।


उधर सुरेंद्र ने सुबह उठने के बाद फिर से अबीर को कॉल लगाना शुरू कर दिया पर इस बार भी फोन पिक नहीं हो रहा था।

सुरेंद्र पूरी तरीके से निराश हो गए थे। दोपहर के एक बच चुके थे और उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे सांझ की मदद करें की तभी उनका फोन बज उठा।



सुरेंद्र तुरंत फोन को साइलेंट करके घर के बाहर निकल गए और एकांत में जाकर उन्होंने कॉल पिक किया।

"हेलो..!!" सामने से अबीर की आवाज आई

"हेलो अबीर राठौर बोल रहे हैं? " सुरेंद्र ने पूछा।

" हाँ मैं अबीर राठौर बोल रहा हूं। आप कौन बोल रहे हैं? मैंने आपको पहचाना नहीं। आप कल से लगातार कॉल कर रहे है।" अबीर बोले।

"मैं सुरेंद्र बोल रहा हूं अविनाश सिंह का दोस्त..!! वही अविनाश सिंह जिनको आपने अपनी बेटी सांझ गोद दी थी।" सुरेंद्र ने जैसे ही कहा अबीर के चेहरे के भाव बदल गए और एक पल को दिल कांप गया।

" हुआ क्या सांझ को? बताइए क्या बताना चाहते हैं आप? मुझे अचानक से फोन कैसे लगाया? " अबीर बैचेनी से बोले।

"आपको पता होगा कि अविनाश और उनकी वाइफ का सालों पहले देहांत हो गया है...!" सुरेंद्र ने कहा

" नहीं मुझे इस बारे में कुछ भी नहीं पता था..!! पर सांझ के बारे में मुझे काफी कुछ पता चल गया है। और मेरी बेटी सांझ की दोस्त है। उसके कॉलेज में पढ़ती है और इस वजह से मैं जानता हूं कि सांझ के मां-बाप नहीं है तो इसका मतलब कि अविनाश नही रहे।"

" तो इसका मतलब आप जानते हैं कि सांझ आपकी बेटी है? " सुरेंद्र बोले।

" हां अभी दो दिन पहले ही मुझे पता चला है। जब सांझ अपने हॉस्टल से अपने गांव गई थी तो उसने मेरी बेटी शालू से कहा था कि उसके कुछ डॉक्यूमेंट पोस्ट करने हैं। तभी शालू ने जाकर उसका बैग देखा और उसके बैग में उसे अविनाश उनकी पत्नी और सांझ के बचपन का फोटो मिले। और मेरे घर में भी अविनाश का फोटो है इसलिए मेरी बेटी बहुत अच्छे से पहचानती है। साथ ही सांझ की डायरी में भी काफी कुछ लिखा हुआ था। जिसे पढ़कर उसे समझ में आ गया कि सांझ मेरी बेटी है, जिसे मैंने अविनाश को दिया था।" अबीर बोले।

"जब आप इतना जान गए थे तो आपने सांझ को अपने पास क्यों नहीं बुलाया? उसे क्यों नहीं अपने पास रोक लियाm क्यों उसे मरने भेज दिया इस गांव में ..??" सुरेंद्र का गुस्सा फट पड़ा।

"क्या मतलब मरने भेज दिया?? वह उसका गांव है और वह वहां निकल चुकी थी तो हमने सोचा जब वह वापस आएगी तब हम उसे सच्चाई बता देंगे। क्या कहना चाहते हैं आप क्या हुआ है सांझ के साथ..?? मेरी बच्ची ठीक तो है ना..??" अबीर बेचैन हो उठे। ।

"नहीं वह ठीक नहीं है बिल्कुल भी ठीक नहीं है...!! बहुत बुरा हुआ है उसके साथ और कहीं ना कहीं इन सब के जिम्मेदार आप भी हैं। क्यों नहीं आपने अपनी बेटी की सुध ली?? क्यों नहीं आपने उसके बारे में पता लगाने की कोशिश की? बस दे दिया दोस्त को और बात खत्म..??" सुरेंद्र बोले।

"नहीं आप गलत समझ रहे हैं..!! खैर जब मिलेंगे तब बताऊंगा। अभी मुझे बताइए कि सांझ कैसी है? कहां है मैं आ रहा हूं उसे लेने के लिए ..??" अबीर ने कहा तो सुरेंद्र ने उन्हें पूरी बात बता दी।

"यह कैसे कर सकते हैं वह..?? जानवर है क्या वो लोग। वह ऐसा कैसे कर सकते हैं मेरी बच्ची के साथ...?? यह इंसानों को बेचना और खरीदना यह सब यह सब कहां की दुनिया की बात हो रही है..?? ऐसा कौन करता है भला..??" अबीर बेहद गुस्से से बोले।

" कौन करता है कौन नहीं करता है इन बातों का कोई मतलब नहीं है।।। मैं बस आपसे इतना कह रहा हूं कि जल्द से जल्द आ जाइए। मैं आपको एड्रेस भेज रहा हूं। गांव के बाहर आकार मुझे फोन करियेगा। सीधे घर मत आईयेगा वरना आपके लिए मुसीबत हो जाएगी। मैं कैसे भी करके सांझ को आप तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा सुरेंद्र ने कहा।

"ठीक है मैं रात तक पहुंच जाऊंगा आप प्लीज कैसे भी करके सांझ की हिफाजत कीजिये। उसे कुछ भी नहीं होना चाहिए। बाकी उन सबको तो मैं ठिकाने लगा दूंगा।" अबीर ने गुस्से से कहा।

"इस समय जोश की नहीं होश की जरूरत है। इस गांव में आकर बड़े-बड़े धुरंधर भी कुछ नहीं कर पाते। इसलिए आपसे कह रहा हूं कि बिल्कुल भी जोश से काम मत लीजिए।।आकर यहां पर इंतजार कीजिएगा मैं आपसे को खुद कॉल करूंगा।" सुरेंद्र ने कहा और कॉल कट कर दिया।


अबीर ने मालिनी और शालू को सांझ के बारे में बताया और फिर अपने एक विश्वासपात्र आदमी को लेकर तुरंत निकल गए।

उधर सांझ और आव्या अभी भी कमरे में बंद थी।

आव्या इंतजार में थी कि सौरभ आ जाए उसके बाद ही वह बाहर निकले पर ऐसे कब तक चलना था।

कल रात से आज दोपहर का समय हो गया था सांझ और आव्या दोनों ने ही कुछ भी नहीं खाया था।

आव्या की मां ने दरवाजा खटखटाया तो सांझ एकदम से कांप गई और उसने आव्या की तरफ देखा।

" प्लीज आव्या यह दरवाजा मत खोलना।"'सांझ घबरा के बोली


" आप चिंता मत करो मैं देखती हूं कौन है?" आव्या ने कहा और खिड़की से देखा।


"'आव्या बेटा मैं हूं। कब तक दरवाजा बंद रखोगे..?? बाहर आ जाओ कुछ खा पी लो फिर चले जाना अंदर।" आव्या की मां बोली।


" निशु भैया कहां पर है?" आव्या ने कहा।

"वह तो बाहर निकल गया है अभी नहीं है..। और तुम्हारे ताऊजी और पापा भी घर पर नहीं है। इसलिए कह रही हूं दरवाजा खोल दो मैं तुम लोगों को खाना दे देती हूं।" आव्या की मां ने कहा।


" आप ले आओ खाना यही पर माँ..!!" आव्या बोली और दरवाजे की तरफ बड़ी।

सांझ ने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया।

"प्लीज दरवाजा मत खोलो। वह फिर से मुझे ले जाएगा पता नहीं क्या करेगा..?? जानवर है वो..? प्लीज बाहर मत जाना..!! मुझे प्लीज बचा लो दरवाजा मत खोलो।" सांझ बेहद डरी हुई थी।

" आप चिंता मत कीजिए सांझ दीदी मैं हूं ना। अभी निशु भैया घर पर नहीं है ताऊजी भी घर पर नहीं है पापा भी घर पर नहीं है। मैं आपके और मेरे लिए खाने का सामान लेकर आती हूं। रात तक सौरभ भैया आ जाएंगे फिर बिल्कुल भी चिंता करने की जरूरत नहीं है। वह हम दोनों को यहां से लेकर निकल जाएंगे।" आव्या ने सांझ को समझाया और दरवाजा खोला

आव्या की माँ ने खान की दो थालियां आव्या के सामने कर दी।

आव्या ने थालियां पकड़कर पीछे राखी और जैसे ही दरवाजा बंद करने के लिए मुड़ी निशांत ने दरवाजे पर आकर हाथ रख दिया।

आव्या की आंखें बड़ी हो गई तो वही कोने में बैठी सांझ और भी सिकुड़ गई।


"बहुत हो गई तुम्हारी मनमर्जी..!! कहा ना मैंने अपने काम से कम रखो। और वैसे भी कल सुरेंद्र चाचा से भी कहा था ना यह मेरा मामला है मैं खुद देख लूंगा तुम बाप बेटी को इस मामले में पड़ने की जरूरत नहीं है। मैंने खरीदा है इसे और उसके चाचा ने बेचा है समझी..!! इसलिए हम दोनों के बीच में मत आओ।" निशांत ने कहा।

"नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा निशु भैया..!! मैं आपको ऐसा कुछ भी नहीं करने दूंगी। इंसान है वह कोई जानवर नहीं है जो आपने खरीद लिया। आप जाइये यहां से। शाम को सौरभ भैया आ जाएंगे फिर हम बात करेंगे।।" आव्या ने कमरे से जाने को कहा और वापस दरवाजा बन्द करने लगी तो निशांत ने एक जोरदार धक्का आव्या को मारा और आव्या एकदम बेड पर गिर गई।

निशांत में आकर सांझ का हाथ पकड़ लिया।

"प्लीज जाने दो मुझे मुझे यहां से..!! जाने दो प्लीज निशांत..!! मैं हाथ जोड़ती हूं। क्यों कर रहे हो ऐसा..!!" सांझ ने कहा।

" छोड़िये भैया..!!" आव्या ने दोबारा से आकर आकर निशांत से उसका हाथ छुड़ाना चाहा तो निशांत ने एक जोरदार तमाचा आव्या के चेहरे पर मारा और आव्या का सिर घूम गया और वह एकदम से बिस्तर पर जा गिरी। हल्की सी बेहोशी उसे आ गई और निशांत सांझ को खींचता हुआ बाहर चल दिया।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव