साथिया - 76 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 76

मुझे लगा कि तुम मुझे पसंद नही करती बाकी मैंने क्या गलती कर दी जो तुम मुझे अभी शादी के पहले ही मारने पीटने लगी..??" नील ने का तो मनु मुस्कुरा उठी
तभी धड़ाम से दरवाजा खुला और अक्षत और ईशान अंदर आए।

" तो लव बर्ड यहां छुपकर गुटर गू कर रहे हैं..!!" ईशान ने कहा तो अक्षत मुस्करा उठा।

" और तुझे शर्म नाम की चीज है कि नहीं है..?! दूसरे के बेडरूम में कोई ऐसे घुसता है क्या..??" नील ने कहा।

" दूसरा कहाँ तू तो जिज्जा है मेरा..!!" ईशान बोला।

" होने वाला हूँ जीजा..!! अभी जीजा बना नहीं है समझा तू..!" नील बोला।

" अबे ओ जिज्जा..! यह ज्यादा दूसरे का बेडरूम तीसरे का बेडरूम मत कर..!! अभी तु मेरा दोस्त है समझा और दोस्त के रूम में दोस्त कभी भी आ सकते हैं..!! धड़ल्ले से आ सकते हैं। जब यह चुड़ैल इस कमरे में आ जाएगी न परमानेंट रहने तब नॉक करके आने लगेंगे हम..!! और वैसे सच बताऊँ ना तो इस चुड़ैल के कमरे में भी कभी नॉक के नहीं जाते हैं हम..!! जब मर्जी करती है धड़ल्ले से घुस जाते हैं।" ईशान ने बेड पर गिरते हुए कहा।

" मैं तो यह सोचकर हैरान हूं मानसी की तुम इस पागल के साथ उस घर में रहती कैसे थी..?? नील ने ईशान को घूरते हुए कहा।

" मेरी बहन बनकर समझा तु और बहन भाई एक दूसरे को हर हाल में एक्सेप्ट करते हैं..!! चाहे वह कैसा भी क्यों ना हो। समझ जब मैं इस चुड़ैल को एडजस्ट कर सकता हूं तो यह भी तो मुझे एडजस्ट कर सकती है ना..??" ईशान ने कहा।

अक्षत उन तीनों की बातें सुनकर मुस्कुरा रहा था।

आज जाने कितने महीनों बाद ईशान इस तरीके से खुलकर बात कर रहा था, वरना शालू के जाने के बाद से उसकी मस्ती भरी बातें भी कहीं खो गई थी। पर आज मानसी की खुशी में वह इतना खुश था कि अपना गम भूल गया था।

अक्षत ने नील की तरफ देखा तो नील भी भरी आंखों से ईशान और मनु को देख रहा था जो की एक दूसरे को उल्टा सीधा बोलकर झगड़ रहे थे और बिल्कुल छोटे बहन भाइयों की तरह उलझे हुए थे।

" कारण भले मैं और मानसी है पर आज जाने कितने दिनों बाद ईशु को इस तरीके से देखा है..! बड़ी ही खुशी हो रही है..। काश कोई कारण ऐसा बन जाए कि तुझे भी पहले की तरह हंसते मुस्कुराते देख लूँ..!!" नील अक्षत के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

"बनेगा कारण जल्दी ही बनेगा...!! जैसे ही मेरी सांझ मेरी जिंदगी में वापस आ जाएगी, मैं भी फिर से अपनी जिंदगी जीने लगूंगा।" अक्षत ने कहा।

थोड़ी देर वही बातचीत करके फिर सब लोगों ने खाना खाया और खाने के बाद फिर साधना और अरविंद अक्षत इंसान और मनु के साथ अपने घर निकल गए क्योंकि उन्हें अब शादी की तैयारी भी करनी थी पंद्रह दिन बाद शादी का मुहूर्त जो था।

अक्षत घर आकर अपने कमरे में आया तो मनु भी उसके पीछे-पीछे आ गई।

"क्या हुआ..?? अब तो सब सही हो गया है ना या अभी भी कुछ बकाया है? " अक्षत ने उसे देखकर कहा।

"सब सही हो गया है पर मुझे एक बात समझ नहीं आई कि तुमने रिया को ऐसे जाने कैसे दिया? मैं वहां सब लोगों के बीच में तुम्हारे खिलाफ नहीं जाना चाहती थी इसलिए मैंने कुछ भी नहीं बोल..!! पर उसे तो सजा देनी चाहिए थी ना..?? तुमने ही तो यह बात बोली थी ना कि लड़के और लड़की एक समान है तो फिर

"फिर तो फिर सजा देने के टाइम पर लड़की होने के नाते उसे रियायत क्यों दी..?? उसे भी सजा मिलनी चाहिए थी।" मनु ने कहा।

" कई बार सजा से ज्यादा सबक जरूरी होता है और आज सबक सिर्फ रिया को नही बल्कि उसके माता पिता को भी मिला। दूसरी बात चाहे लड़का हो या लड़की सजा जुर्म साबित होने और पीड़ित का नुक्सान होने पर मिलनी चाहिए पर यहाँ उसने कोशिश की पर नील का नुकसान नही कर पाई..!! हालांकि उसके षड़यंत्र के लिए उसे सजा दे सकते थे पर वही बात कई बार सजा से ज्यादा जरूरी सबक होता है।" अक्षत बोला तो मनु ने आँखे छोटी कर उसे देखा।

"सजा कई बार इंसान को विद्रोही बना देती है और वह बदला लेने के लिए सोचने लगता है..!! और यहां यही रिया के साथ यही होता क्योंकि मैं मानता हूं कि उसकी गलती है। पर उसकी गलती के साथ-साथ गलती नील की भी है जो शुरू से कभी भी उसने रिया के साथ ट्रांसपेरेंसी नहीं रखी..!! कभी भी अपना पक्ष क्लियर नहीं रखा। हाँ में मानता हूं रिया उसके उसके बारे में गलत बोलती रही। गलत सोचती रही तो क्या नील की जिम्मेदारी नहीं बनती है कि सामने वाले को अपना पक्ष क्लियर करें..?? तुम्हें, अपने माता-पिता और यहां तक रिया को सीधे-सीधे शब्दों में क्लियर करें कि ऐसा कुछ भी नहीं है ना ही हो सकता है। हो सकता है रिया ने जो कुछ भी किया वह नही करती अगर नील ने शुरू से सब साफ रखा होता..!" अक्षत बोला।

" लेकिन..?" मनु ने कहना चाहा

"बिल्कुल हम रिया को सजा दिला सकते थे और उसको सजा मिलनी भी चाहिए थी। पर इस सजा का असर उसके भविष्य पर पड़ता। उसके कैरियर पर पड़ता, उसके माता-पिता पर पड़ता।और मैं मानता हूं कि जहां जब किसी का ऐसा कोई खास नुकसान नहीं हुआ हो तो सजा की जगह सबक और समझाना ज्यादा बेहतर होता है । कोर्ट में भी इस तरीके के कई बार केस आते हैं जहां पर सजा से बेहतर हमें वार्निंग देना और सामने वाले को सम
झाना ठीक लगता है। अगर हर बात में तुरंत सजा दे दी जाए तुरंत निर्णय सुना दिया जाए तो कई बार रिजल्ट ऐसे आ जाते हैं जो नहीं आने चाहिए।

आज रिया को सब के सामने शर्मिंदगी हुई और उसे यह भी समझ में आ गया कि उसके कारण उसके माता-पिता को भी शर्मिंदगी हुई तो अबअब वह दोबारा ऐसा कभी नहीं करेंगी। जबकि अगर उसे सजा दे दी जाती इतनी शर्मिंदगी के बाद सब लोगों के सामने बात आने के बाद तो उसके अंदर विद्रोह आता,,और वह फिर तुम्हारे और नील का नुकसान करने का भी सोचती।

यहां थोड़ा सा व्यक्तिगत भी सोचा मैंने। तुम मेरी बहन हो नील मेरा दोस्त...!! और मैं नहीं चाहता कि तुम लोगों का कोई भी ऐसा दुश्मन पैदा हो जो कि आगे भविष्य में तुम लोगों के लिए तकलीफ का कारण बने। बहुत मुश्किलों से तुम लोगों की लाइफ सेटल हुई है। अगर किसी एक को माफी देने से आगे शांति रहती है तो मैं माफी देना ज्यादा जरूरी समझता हूं किसी को सजा देने से बेहतर।

वैसे भी वही बात जो मैंने कहीं जब तक किसी का मानसिक शारीरिक और आर्थिक नुकसान किसी ने नहीं किया है तब तक उसे सुधरने का एक मौका देना चाहिए। अगर उसने तुम्हारा और नील का शारीरिक मानसिक और आर्थिक नुकसान किया होता या तुम्हारे और नील के साथ वाकई में कुछ गलत घट गया होता है तो उसे सजा जरूर दिलाता मैं फिर चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाता कोई भी मुझे नहीं रोक सकता था। पर यहां मुझे दूसरा विकल्प बेहतर लगा ताकि रिया सुधर सके और जीवन में सच के साथ आगे बढ़ सके।
आज उसे बहुत बड़ा सबक मिला है और मुझे पूरा विश्वास है कि अब वह दोबारा यह गलती कभी नहीं दोहरायेगी।" अक्षत ने कहा।

" तुमने अगर सजा नहीं दी है तो सोच समझ कर ही निर्णय लिया होगा। हालांकि तुम्हारे इस निर्णय के विरोध में कई लोग होंगे। कई लोगों को लगेगा कि तुमने कहा जो किया वह गलत किया..?! पर मुझे लगता है कि हां तुमने ठीक किया, क्योंकि इंसान को सुधरने का एक मौका मिलना चाहिए।

मैं भी इतने दिनों से कभी भी रिया के सामने नहीं पड़ती थी। उससे लड़ती झगड़ती नहीं थी बावजूद इसके कि मैं जानती थी कि उसका व्यवहार गलत है, सिर्फ इसीलिए क्योंकि जब तक मेरा ऐसा कोई बड़ा नुकसान ना हो मुझे किसी से नहीं उलझना चाहिए। दूसरा मैं भी यही सोचती थी कि आज नहीं तो कल यह सुधर जाएगी।" मनु ने कहा।

" अब तक नहीं सुधरी क्योंकि तुमने और नील ने कभी भी उस से दो टूक बात नहीं की। पर आज खुद के सामने पुलिस को खड़ा देखकर और सारे सबूत के साथ खुद की सारी बातें सामने आने पर उसे अच्छा सबक मिल गया है और अब वह कभी दोबारा गलती नहीं करेगी। और उसके माता पिता की नजर भी हर पल उस पर होगी।" अक्षत ने कहा तो मनु मुस्करा के बाहर चल दी।

"थैंक यू..!" मनु ने दरवाजे से जाते हुए अचानक से पलटकर कहा तो अक्षत ने उसे देखा।

मनु आकर उसके गले लग गई।

"थैंक यू मुझे मेरी लाइफ की सबसे बड़ी खुशी देने के लिए..!! तुम भले मेरे सगे भाई नहीं हो। भले दुनिया कुछ भी बोलती रहे। पर मैं जानती हूं कि तुमने हमेशा एक बड़े भाई का फर्ज पूरे दिल से निभाया है। और आज मैं यह बात पूरे दावे के साथ कह सकती हूं कि जितने पक्के खून के रिश्ते होते हैं उतने ही पक्के दिल के रिश्ते होते हैं।"

"बातें बहुत बड़ी-बड़ी करने लगी हो..!!" अक्षत मुस्कुराया।

"बातें ही नहीं करती भगवान से प्रार्थना भी करती हूँ दिन-रात की मेरे दोनों भाइयों की लाइफ में सब कुछ सही हो जाए। शालू और सांझ जहां कहीं भी है वापस आ जाए। बस और कुछ भी नहीं चाहिए मुझे।" मनु ने भावुक होकर कहा।

"आएंगे वापस जरूर आएंगे..!! तुम चिंता मत करो मैं खुद लेकर आऊंगा सांझ को भी और शालू को भी।" अक्षत ने कहा।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव