साथिया - 77 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 77

अक्षत और नील के घर शादी की तैयारियां शुरू हो गई थी।
अगले दिन ही अक्षत सौरभ से मिलने उसके ऑफिस जा पहुंचा।

" आइये जज साहब..!!" सौरभ ने उसका वेलकम करते हुए कहा।
अक्षत मुस्कराया और उसके सामने वाली कुर्सी पर आ बैठा।

"हालांकि हम दोनों के बीच में बहुत ज्यादा जान पहचान नहीं है, पर फिर भी निशि और नील के कारण काफी हद तक हम लोग एक दूसरे को जान गए है।" सौरभ ने मुस्कुराते हुए कहा।

"जी बिल्कुल और जान पहचान होने में कोई वक्त तो नहीं लगता है ना..?? अब मेरी बहन मानसी नील के घर ब्याह के जाने वाली है और उसकी बहन निशि से तुम्हारी शादी होने वाली है तो अब कहना चाहिए परिचित के साथ-साथ हम दोनों रिश्तेदार भी बनने वाले हैं।" अक्षत ने मुस्कुरा के कहा।

" जी बिल्कुल..!" सौरभ बोला।

अक्षत ने गहरी नजर से उसे देखा।

"वैसे यूं अचानक से आना हुआ कोई खास वजह मतलब कोई खबर..?? हमारे प्रेस से रिलेटेड कुछ बात है क्या..??" सौरभ ने कहा।

"अरे इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है एक यह कोई फॉर्मल मीटिंग नहीं है..!! बस यूं ही चला आया आपसे कुछ बातचीत करनी थी मुझे। हम रिश्तेदार बनने वाले है और इतना ही नही..! आप मेरी वाइफ सांझ के गाँव से है..!! और इत्तेफाक से उस परिवार से ताल्लुक रखते हैं जो मेरी सांझ के साथ जो कुछ भी घटा उसका जिम्मेदार है।" अक्षत ने कहा और बोलते हुए उसका चेहरा कठोर हो गया।।

इस बात को सौरभ ने भी बहुत अच्छे से महसूस किया था।

सौरभ ने गहरी सांस ली और अक्षत के हाथ के ऊपर अपना हाथ रखा।

" सांझ के साथ जो कुछ भी हुआ उसका मुझे अफसोस है और जिंदगी भर अफसोस रहेगा कि मैं उसके लिए कुछ भी नहीं कर पाया। यकीन मानिए सांझ मेरी बहुत अच्छी नहीं पर दोस्त जरूर थी। बचपन साथ बिताया है हमने। मैं कभी भी नहीं चाहता था कि उसके साथ कुछ गलत हो। पर मेरी खराब किस्मत अक्सर मुझे गांव में पहुंचने में देर हो जाती है, और इस बार भी मुझे देर हो गई और मैं सांझ के लिए कुछ नहीं कर सका।" सौरभ ने मायूसी और दुख के साथ कहा।

"आप पहुंच भी जाते तो कुछ नहीं कर पाते क्योंकि आपका परिवार और खास तौर पर निशांत इंसान कहलाने के लायक नहीं है।" अक्षत ने कहा।

"आप कैसे जानते हैं? मतलब..??" कहते कहते सौरभ रुक गया।

"अभी-अभी तो मैंने कहा पर आपने शायद ध्यान नहीं दिया। सांझ मेरी वाइफ है और अपनी वाइफ के गांव और उसके परिवार के बारे में पता तो मैं लगाऊंगा ही ना जब मैं उसे ढूंढने निकला हूं तो..??" अक्षत ने कहा।

"आप गलत कोशिश से कर रहे हैं...!! मुझे कहना नहीं चाहिए पर फिर भी कहूंगा क्योंकि मैं आपका भला चाहता हूं। प्लीज पुरानी बातों को भूलकर आगे बढ़िए। अपनी जिंदगी में सुकून की तलाश कीजिए क्योंकि पुरानी यादें सिर्फ तकलीफ देगी और और जिस इंसान का अब वजूद ही नहीं है उसके पीछे आप इस तरीके से खुद की लाइफ क्यों स्पॉइल कर रहे हैं?" सौरभ ने कहा।


"थैंक्स फॉर योर कंसर्न...!! पर आपसे किसने कह दिया कि साँझ नहीं है सांझ है और जरूर है..!! और मैं इस बात को साबित करके रहूंगा। मैं उसे लेकर आऊंगा। हां मैं जानता हूं कि जो कुछ भी हुआ उसके बाद उसकी हिम्मत नहीं होगी मेरे सामने आने की..!! दुनिया के सामने आने की पर मैं उसकी हिम्मत भी हूं और उसकी ताकत भी। और सबसे बड़ी बात मैं उसका पति हूं, और निशांत ने जो कुछ भी किया उसके बाद उसके लिए माफी की कोई गुंजाइश ही नहीं है।"

"पर ऐसा क्या किया? मतलब आपको क्या पता चला और कहां से..??" सौरभ बोला।

" दो साल से दिन रात ढूंढ रहा हूँ। आधा पता चल चुका है बाकी का पता आप और आपके पापा बताएंगे। इसीलिए मैं आपसे मिलने के लिए आया हूं।"अक्षत ने कहा..!!

"क्या पता चल चुका है आपको?" सौरभ के चेहरे पर टेंशन आ गया तो अक्षत ने अपना फोन खोलकर उसके सामने कर दिया।

देखते ही सौरभ के आंखें लाल हो गई।

"मुझे बहुत अफसोस है इन सब का...!! ऐसा नहीं होना चाहिए था।" सौरभ ने बहुत ही दुख के साथ कहा।

"आपको अफसोस है और मुझे गुस्सा है..!! मेरी पत्नी के साथ जिसने भी गलत किया है या जिसने भी गलत करने की कोशिश की है उन सबको सजा मिलेगी। कानूनी रूप से नहीं तो मेरे तरीके से। बस मुझे अब सारा सच जानना है जो उस चौपाल पर हुआ और इसको बाद भी। " अक्षत ने कहा।

"मुझे कुछ भी नहीं पता है...!! सच कह रहा हूं मैं जब घर पहुंचा तब तक सांझ ने उस नदी में कूद कर जान दे दी थी। अगर मैं वहां पहुंच जाता तो मैं ऐसा कभी नहीं होने देता पर वही जो मैंने कहा कि मेरी किस्मत ही कुछ ऐसी है मुझे पहुंचने में अक्सर देर हो जाती है..!" सौरभ ने कहा।

अक्षत ध्यान से उसके चेहरे को देख रहा था।

"आप अपनी तरफ से पूरी बात बताइए मुझे..!! क्या हुआ था क्या नहीं हुआ था..??" अक्षत ने कहा।

"मुझे आव्या का फोन आया था और उसने मुझे बताया कि नेहा घर से भाग गई है और गांव में जो हमेशा होता है अब उनके परिवार को सजा दी जा रही है। उनके परिवार में अवतार ने सजा से बचने के लिए सांझ को आगे कर दिया था और फिर..!!" कहते कहते सौरभ की आंखें भर आई।

"मैं उस समय दिल्ली में नहीं था वरना मैं तुरंत पहुंच जाता चार-पांच घंटे के अंदर ही गांव पहुंचकर चीजों को सही करने की कोशिश करता। उसे समय एक कवरेज के चलते मुझे देहरादून जाना पड़ा था। मैं देहरादून से दिल्ली आया और दिल्ली से गांव गया इतना सब होते-होते चौबीस घण्टे से ज्यादा का समय निकल गया था और जब मैं वहां पहुंचा तब तक सांझ इस दुनिया से जा चुकी थी।" सौरभ ने कहा।

अक्षत बस उसके चेहरे को देख रहा था।

"तुम पर विश्वास करता हूं मैं...!! इंसानों को समझना और पढ़ना सीख लिया है। तुम्हारे पापा मतलब सुरेंद्र अंकल वापस आ गए..??" अक्षत ने कहा।

"हां आज दोपहर तक आ जाएंगे वह!! "

" ठीक है शाम को आता हूं मिलने के लिए।।उनसे कहना घर पर ही रहे। मुझे उनसे जरूरी बात करनी है।" अक्षत ने कहा।

"लेकिन जितना मुझे पता है पापा को भी उतना ही पता है, इसके अलावा किसी को कुछ भी नहीं पता। उस नदी में गिरने के बाद सब लोगों ने सांझ को ढूंढने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं मिली..!!" सौरभ बोला।

अक्षत खड़ा हुआ और उसके कंधे पर हाथ रखा।


" थैंक यू दोस्त तुमने बहुत मदद की और अब उम्मीद करता हूं कि उस समय भले तुम सांझ की मदद नहीं कर पाए होंगे पर जब यह केस खुलेगा तो तुम सांझ के पक्ष में ही गवाही दोगे और उस समय तुम्हारा खून अपने खून के लिए नहीं दौड़ेगा..!!" अक्षत ने कहा तो सौरभ का चेहरा कठोर हो गया

" मेरा बस चलता तो मैं अभी उन्हें सजा दे देता...!! पर मैं किसी बेस पर सजा दूं? इसलिए मैं कुछ भी नहीं कर पाया। पर अगर यह केस खुलता है और उनके खिलाफ कुछ भी कार्रवाई होती है मैं आपका पूरा साथ दूंगा क्योंकि यह बातें मुझे भी पसंद नहीं है और सबसे बड़ी बात जो नियति के साथ हुआ और जो सांझ के साथ हुआ उसने मेरी बर्दाश्त की हद खत्म कर दी है।अब मैं सिर्फ और सिर्फ सजा चाहता हूं।" सौरभ कठोरता से बोला।

"नियति? " अक्षत बोला तो सौरभ ने नियति के बारे में सारी बातें बता दी


"आपकी बातों में सच्चाई है सौरभ और मैं जानता हूं कि आप मेरा साथ जरूर दोगे। बस अब आप इंतजार कीजिए सांझ के वापस आने का और उसके बाद शुरू होगा एक-एक को सजा मिलने का सिलसिला..!! पर उससे पहले मुझे आपके पापा से मिलकर बात करनी होगी।" अक्षत ने कहा।

"पर मैंने कहा ना पापा को भी कुछ नहीं पता है...!! और मैं पापा को भी वहां से ले आया था। सौरभ बोला।

" तुम्हें गलतफहमी है या शायद उन्होंने तुम्हें धोखे में रखा है..!! पर उस चौपाल पर हुई घटना और सांझ के नदी में कूदने के बीच की सारी घटनाएं तुम्हारे पापा जानते हैं। और शायद सांझ के नदी में कूदने के बाद की भी घटनाएं। और वही मुझे उनसे पूछना है और तुम प्लीज उनसे कुछ भी मत कहना। मैं शाम को आकर मिलता हूं।" अक्षत ने कहा।

"ठीक है..!!" सौरभ ने कहा।

" विश्वास कर सकता हूं तुम पर?" अक्षत बोला।

"विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है..!! जैसा आप आपने विश्वास जताया है और आप यहां आए हैं तो आपको भी मैं विश्वास दिलाता हूं कि आपको मायूस नहीं करूंगा। और अगर पापा वाकई में कुछ जानते हैं तो मैं खुद आपके साथ मिलकर उनसे पूछूंगा और सच को सामने लेकर आऊंगा।" सौरभ ने कहा तो अक्षत अपने गहरी सांस ली और तुरंत बाहर निकल गया।

सौरभ वापस से अपनी कुर्सी पर बैठ गया और आंखें बंद कर ली।


"क्या वाकई में पापा और कुछ जानते हैं ऐसा जो मुझे नहीं पता है? इसका मतलब कुछ हद तक आव्या भी जानती होगी। मैंने अब तक क्यों नहीं इस बात पर ध्यान दिया कि उसके बाद क्या घटना हुई थी और सांझ ने अचानक से सुसाइड करने का कैसे सोचा..?? और सबसे बड़ी बात यह क्या कह रहे थे जज साहब..?? सांझ इनकी वाइफ है..?? मतलब इनकी और सांझ की शादी हो चुकी थी..?? फिर तो निशांत भैया ने और भी गलत कर दिया..!!" सौरभ ने खुद से ही कहा और गहरी सांस ले अपने काम में लग गया।

अब उसे भी शाम का बेसब्री से इंतजार था क्योंकि बहुत कुछ बातें थी जो शाम को खुलने वाली थी।



उधर ईशान ऑफिस से आया और अपने कमरे की बालकनी में आकर खड़ा हो गया।

अबीर से हुई मुलाकात उसे याद आ गई और अबीर की कही बातें भी।

" आपकी कोई भी दलील कोई भी बात शालू की गलती को कम नहीं कर सकती। हाँ मै मानता हूं कि शालू मजबूर रही होगी। उसके लिए उसकी बहन और उसका परिवार पहले आता था और उसने वहीं चुना. । मैं उसकी जगह होता तो अपने परिवार का चुनाव हर रिश्ते से पहले करता। पर इसका मतलब ये नहीं है कि मैं शालू को भूल जाता..?? फिर शालू मुझे कैसे भूल गई? उसने मुझे एक बार मिलना और बात करना भी जरूरी नहीं समझा। सिर्फ एक मैसेज कर दिया कि वह अपनी बहन को लेकर अमेरिका जा रही है और मैं उसे भूल जाऊं.. ! क्या इतना आसान होता है किसी को भूलना और आगे बढ़ाना..?? जवाब तो शालू को देने ही होंगे हर बात के और आगे सब सही होगा कि नहीं होगा मैं नहीं जानता। पर मैं इतना जानता हूं कि इतनी आसानी से तो मैं यह सब बातें नहीं भूल सकता..!!" ईशान खुद से बोला और फिर गहरी सांस लेकर कमरे से बाहर निकल गया।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव