लागा चुनरी में दाग़--भाग(९) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

लागा चुनरी में दाग़--भाग(९)

अब प्रत्यन्चा और शौकत को भागते हुए सुबह हो चुकी थी,वे दोनों एक सड़क से पैदल गुजर ही रहे थे,तभी प्रत्यन्चा ने शौकत से पूछा....
"आपने मुझे बचाकर बहुत बड़ा एहसान किया है मुझ पर",
"ये तो मेरा फर्ज था बहन!",शौकत बोला...
"कुछ भी हो लेकिन मेरी चुनरी पर अब तो दाग़ लग ही चुका है,उन्होंने मेरे पूरे परिवार को खतम कर दिया, मेरी जिन्दगी बर्बाद हो गई",प्रत्यन्चा बोली...
"ऐसा ना कहो बहन,जरा हौसला रखो,वो ऊपरवाला कभी कभी हमारा ऐसा इम्तिहान लेता है कि हमारी रुह काँप जाती है",शौकत बोला....
"ये कैसा इम्तिहान था भाई! मेरी अस्मत के साथ खिलवाड़,क्या ये लिखा था ऊपरवाले ने मेरी किस्मत में",प्रत्यन्चा बोली...
"अब मैं क्या कहूँ बहन! जो तुम्हारे ऊपर बीत रही है,वो तुम ही जानती होगी,मैं तो सिर्फ़ तुम्हारा हमदर्द ही बन सकता हूँ,इसके सिवा कुछ भी नहीं",शौकत बोला...
"तुमने मेरे लिए इतना किया,वही बहुत है मेरे लिए",
ऐसा कहकर प्रत्यन्चा सुबकने लगी तो शौकत उसे चुप कराते हुए बोला...
"अपने आँसू पोछ लो बहन! ये दुनिया रोने वालों को और भी रुलाती है" शौकत बोला...
"लेकिन भाई! रोऊँ ना तो क्या करूँ,मेरी तो दुनिया ही उजड़ चुकी है",प्रत्यन्चा बोली....
"बहन! जरा सबर रखो! अभी तुम्हारे घाव बिलकुल हरे हैं,उन्हें हमदर्दी के मरहम की जरूरत है और वो मरहम अपने ही लगा सकते हैं",शौकत बोला....
"हाँ! मैं अपने माँ बाप के पास जाना चाहती हूँ,उनके पास जाकर मैं अपने सारे दुख दर्द भूल जाऊँगी", प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! अब हम उनके पास ही चलेगें,पहले तुम अपना हुलिया बदल लो और मेरे पास अभी पैसे भी नहीं है,पैसों का इन्तजाम होते ही मैं खुद तुम्हें तुम्हारे घर छोड़कर आऊँगा",शौकत बोला.....
"तुम्हारा ये एहसान मैं कैंसे चुकाऊँगी",प्रत्यन्चा बोली....
"भाई कहकर",शौकत बोला....
"अगर तुम जैसे इन्सान हो इस दुनिया में तो दुनिया की कायापलट ही हो जाए",प्रत्यन्चा बोली....
"अब इतना भी अच्छा नहीं हूँ मैं,अगर अच्छा होता तो पप्पू जैसे इन्सान के साथ काम ना करता होता", शौकत बोला....
"वो भी तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी",प्रत्यन्चा बोली...
"हाँ! गरीबी और भूख सब करवा लेती है",शौकत बोला....
"वैसे अब हम कहाँ जा रहे हैं",प्रत्यन्चा ने पूछा...
"है कोई अपना,वहीं जा रहे हैं",शौकत बोला...
और फिर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे,इसके बाद शौकत प्रत्यन्चा को किसी महफूज़ जगह ले गया और एक पुराने से मकान के पास जाकर शौकत ने दरवाजा खटखटाया,शौकत के दरवाज़ा खटखटाते ही मकान के भीतर से किसी जनाना की आवाज़ आई,वो बोली...
"आई....अभी आती हूँ",
फिर उस महिला ने दरवाज़ा खोला तो शौकत को सामने देखकर चौंकते हुए बोली...
"तुम! यहाँ क्यों आए हो और ये लड़की कौन है तुम्हारे साथ में?",
"मैं तुम्हें सब बताता हूँ महज़बीन!,पहले भीतर तो आने दो",शौकत बोला...
"अभी मेरे शौहर घर में हैं,मैं तुम्हें घर के भीतर नहीं आने दे सकती",महज़बीन बोली...
"इस लड़की पर तरस खाओ महजबीन! बेचारी हालातों की मारी है,बड़ी उम्मीद के साथ मैं तुम्हारे दर पर आया हूँ",शौकत बोला...
"ठीक है तुम पीछे वाले दरवाजे से भीतर आओ,मैं दरवाजा खोलती हूँ और आठ बजे तक कोई शोर मत करना,मेरे शौहर आठ बजे काम पर निकलते हैं",महज़बीन बोली...
"ठीक है",शौकत बोला...
फिर महज़बीन ने चुपके से घर के पीछे वाले दरवाजे खोले और फिर दोनों पीछे वाले कमरे में जाकर चुपचाप बैठ गए...
महज़बीन भीतर गई तो उसके शौहर आरिफ़ ने गुसलख़ाने से निकलते ही उससे पूछा....
"कौन था दरवाजे पर?",
"जी! वो सब्जीवाला आया था,लेकिन मैंने उससे सब्जी नहीं खरीदी,आजकल वो सब्जियांँ ताजी नहीं लाता,इसलिए मैंने उसे जाने को कह दिया",
"तब तो बिलकुल ठीक किया आपने",महज़बीन के शौहर आरिफ़ बोले...
और तभी दरवाजे के बाहर सब्जी वाले ने मकान के दरवाज़ों पर दस्तक देते हुए कहा...
"बाजी! सब्जी ले लिजिए,आपने कल कटहल लाने को कहा था,देखिए ना मैं कटहल लेकर आया हूँ",
"महज़बीन! आप तो कह रहीं थीं कि आपने सब्जीवाले को भगा दिया है",आरिफ़ बोले...
"जी! ये दूसरा सब्जीवाला है,जिससे मैंने कटहल लाने को कहा था",महज़बीन ने दोबारा झूठ बोलते हुए कहा....
"अच्छा! ठीक है! आप कटहल खरीदकर फौरन मेरा टिफिन पैक कर दें और नाश्ता भी लगा दें,मुझे अब काम पर निकलना होगा",इतना कहकर आरिफ़ तैयार होने चला गया...
फिर कटहल खरीदकर महज़बीन ने फौरन ही आरिफ़ का टिफिन पैक किया और उसके लिए नाश्ता भी परोस दिया,नाश्ता करके आरिफ़ जैसे ही काम पर निकला तो महज़बीन फौरन ही शौकत के पास पहुँचकर उससे बोली...
"अब बताओ कि ये कौन है?",
तब शौकत ने प्रत्यन्चा के बारें में महज़बीन को सब कुछ बता दिया,प्रत्यन्चा की कहानी सुनकर महज़बीन की आँखें भर आईं,फिर महज़बीन ने प्रत्यन्चा को अपने सीने से लगा लिया,महज़बीन के सीने से लगकर प्रत्यन्चा जी भर कर रोई,महज़बीन ने उसके आँसू पोछे और उसे तसल्ली देते हुए कहा...
"चुप हो जाओ प्रत्यन्चा! हम औरतों की जिन्दगी ऐसी ही होती है,करता कोई है और उसका खामियाजा हम औरतों को भुगतना पड़ता है",
"महज़बीन जीजी! भला मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था जो मेरे साथ ऐसा हुआ,इतना बड़ा कलंक लेकर भला मैं जीवन भर कैंसे जी पाऊँगीं"प्रत्यन्चा बोली....
"इस बात के लिए तुम खुद को कुसूरवार मत समझो प्रत्यन्चा! इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है",महज़बीन बोली...
"लेकिन दुनियावाले मेरी बेबसी कभी नहीं समझेगें,वो तो केवल मुझ पर ही ऊँगली उठाऐगें",प्रत्यन्चा बोली...
तब महज़बीन बोली....
"जमाना ऐसा ही है प्रत्यन्चा! कमजोर और लाचार पर ही ये जमाना ऊँगली उठा पाता है,सदियों से पित्रसत्तात्मकता हम औरतों के ऊपर हावी होती चली आई है,तभी तो पुरूषों ने हम स्त्रियों को अपनी बापौती समझ रखा है और हम स्त्रियों को जलील करने के लिए ही सारी गालियाँ स्त्रियों के ऊपर ही बना डालीं,झगड़ा दो पुरुषों के बीच होता है और जलील होतीं हैं उनके घर की माँएँ और बेटियाँ,बलि भी हमारे तुम्हारे जैसी औरतें ही चढ़ती हैं",
"शायद तुम सही कह रहीं हो जीजी!",प्रत्यन्चा बोली....
"चलो! अब अपने आँसू पोछ लो और नहा धोकर गरमागरम नाश्ता करो,उसके बाद थोड़ी देर आराम कर लेना",महज़बीन बोली...
"ठीक है महज़बीन जीजी!",प्रत्यन्चा बोली....
इसके बाद प्रत्यन्चा और शौकत दोनों ने नहाकर नाश्ता किया,महज़बीन ने अपने कपड़े दे दिए थे प्रत्यन्चा को ,उसे थोड़े ढ़ीले थे लेकिन तब भी प्रत्यन्चा का काम चल गया था और फिर नाश्ता करके दोनों आराम करने लगे,थोड़ी देर आराम करने के बाद शौकत आँगन में आया,जहाँ महज़बीन काम कर रही थी और उससे बोला...
"महज़ो! एक मदद और चाहिए थी",
"हाँ! बोलो!",महज़बीन बोली....
"कुछ रुपयों का इन्तजाम हो जाता तो बड़ा एहसान रहता मुझ पर,इस लड़की को उसके घर छोड़कर आ जाता",शौकत बोला...
"रुपए तो नहीं होगें घर पर,लेकिन हाँ मेरे पास सोने के झुमके पड़े हैं,तुम उन्हें बेचकर अपना काम चला सकते हो",महज़बीन बोली...
"हाँ! मेरे और प्रत्यन्चा के यहाँ रहने से तुम्हारे लिए भी परेशानी खड़ी हो सकती है,जितनी जल्दी हो सके तो मैं भी उसे लेकर यहाँ से जाना चाहता हूँ,उसके घर तक उसे पहुँचा दूँ तो फिर मेरी जिम्मेदारी पूरी हो जाए", शौकत बोला....
"ठीक है तो कब निकलना चाहते हो यहाँ से",महज़बीन ने पूछा...
"बस! प्रत्यन्चा आराम करके जाग जाएंँ तो निकल जाऐगें यहाँ से ,क्योंकि शाम तक तुम्हारे शौहर भी तो घर लौट आऐगें",शौकत बोला....
"ठीक है",महज़बीन उदास मन से बोली...
और फिर प्रत्यन्चा के जागने के बाद शौकत ने महज़बीन के घर से निकलने की तैयारी बना ली, महज़बीन ने सफर के लिए पूड़ियाँ और अचार बाँध दिया था और अपने सोने के झुमके भी उसने शौकत को दे दिए थे,घर से निकलते वक्त महज़बीन शौकत के गले लगकर जी भर के रोई,तब ये बात प्रत्यन्चा को कुछ अटपटी सी लगी लेकिन उस वक्त उसने कुछ नहीं कहा,फिर शौकत ने वो झुमके एक दुकान पर बेंचकर रुपए ले लिए....
इसके बाद दोनों रेलवे स्टेशन आ पहुँचे....

क्रमशः...
सरोज वर्मा....