1. खुशी
छोटे से एक गाँव में लड़कों के जन्मदिन पर हलुआ और पूड़ी - पकौड़े बनाकर बाँटकर खुशी मनाते हैं, लेकिन किसी भी लड़की का अभी तक जन्मदिन नहीं मनाया गया।
उसी गाँव की अनिता का यह नया विद्यालय है। जहाँ विद्यालय अभिलेख के अनुसार बच्चे का जन्मदिन मनाने की परम्परा है।
वह हमेशा की तरह समय से विद्यालय आयी। प्रार्थना सभा के बाद गुरुजी ने बच्चों को अनिता की तरफ इशारा करते हुए "शुभ जन्मदिनं तुभ्यं" कहते हुए अनिता को शुभकामनाएँ और बधाई देने का संकेत दिया।
झट से सारे बच्चों ने उसे अपने हाथों में थाम लिया। कई बार ऊपर उछाला और शुभ जन्मदिन की बधाई दी।
अनिता फूली न समायी। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। आज उसे अपनी वास्तविक खुशी की अनुभूति हुई। छुट्टी के बाद घर जाते हुए उसे आनन्द आ रहा था।
घर आकर अनिता ने जब यह बात अपने माता - पिता को बतायी तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई।
संस्कार सन्देश :- हमें बेटे और बेटी में कोई भेद नहीं करना चाहिए। दोनों एक हैं।
2. फिजूलखर्ची
गाँव के विद्यालय की कक्षा सात में पढ़ने वाला अमन एक लापरवाह बच्चा था। अमन की माँ रेखा एक बहुत ही सरल स्वाभाव की और परिश्रमी महिला थी। अमन के पिता की तबियत अक्सर खराब रहती थी, इसलिए वे काम अधिक नहीं कर पाते थे। घर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी। पर अमन को फिजूलखर्ची व दिखावा करने की आदत थी। उसे भी घर से कभी - कभी जेब खर्च के लिए कुछ रुपये मिलते थे। वह उन रुपयों को तुरन्त खर्च कर देता। खाने - पीने की चीजें लेकर उसी दिन सारे रुपये उड़ा देता और फिर से अपनी माँ से रुपये माँगता। माँ बेचारी बहुत समझाती, लेकिन अमन की समझ में नहीं आता। वह जिद करके किसी भी तरह माँ से रुपये ले लेता और फिर दोस्तों में रौब दिखाता कि उसे रोज उसके घर से बहुत सारे रुपये मिलते हैं। उसके पड़ोस में रहने वाले चमन को यह सब पता था।
रेखा अपने परिवार की देखभाल करने के लिए हमेशा खूब मेहनत करती थी। वह अपने पति के साथ मेहनत करके रुपये कमाने की कोशिश करती थी। अपने घर का काम करने के साथ - साथ खेतों का काम भी करती थी।
एक दिन चमन ने अमन को आराम से अपने पास बिठाकर समझाया, "मित्र! तुम्हें बिना आवश्यकता के सब चीजें नहीं खरीदनी चाहिए। जो भी पैसे मिलते हैं, मेरी तरह तुम भी उन पैसों से अपनी पढ़ाई के लिए सामान खरीद सकते हो।"
अपनी माँ को दु:खी और परेशान देखकर अमन को अहसास हुआ कि उसने जो फ़िजूलखर्ची की है, वह भी मांँ के परेशान होने का एक कारण है।
संस्कार सन्देश :- फिजूलखर्ची करना बुरी आदत है। हमें अपने धन को सोच - समझकर खर्च करना चाहिए।
3
किसी को चाहना ...
आसान कहां होता है,
खुद को खोना पड़ता है ,
उसे पाने के लिए,
भुलाकर खुद को ,
उसकी बातें याद रखना,
अरे इतना आसान भी नहीं ,
खुद को नजरंदाज करना,
उसकी खुशी उसकी हंसी,
सारी बातें उसकी,
बस यही याद रहता है ,
हर लम्हा हर घड़ी,
हर घड़ी उसको ही,
खुद में महसूस करना,
अपने वजूद को ,
भुला देना है आसान कहां,
उसका न होना ,
दिल को मायूस करता है,
उसकी बस एक झलक पाने को ,
दिल तरसता है,
वो हंस दे तो मानो,
खिले हों फूल कितने ,
उसकी खुशी के लिए ,
खुद का गम भी छुपाना पड़ता है,
उसकी आंखों में टिमटिमाते है ,
न जाने सितारे कितने,
फिर तो गर्दिशों में भी ,
दिल नही डरता है,
उसके ख्यालों से निकलें ,
तो पाएं खुद को,
उसी के वजूद से ही मानो,
ये सारा जहां चलता है...!
खैर....