लागा चुनरी में दाग--भाग(६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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लागा चुनरी में दाग--भाग(६)

अभी सुबोध को घर आए दो चार दिन ही हुए थे और दीवाली आने में भी दो चार दिन बाक़ी थे और तभी प्रमोद मेहरा जी को पता चला कि तस्कर पप्पू गोम्स जेल से सुरंग के जरिए भाग गया है,पप्पू गोम्स के जेल से भागने पर पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया और पुलिस के बड़े अफ्सर ने प्रमोद जी को सावधान रहने को कहा,क्योंकि उन्होंने ही उसे जेल भेजा था और वे अब उसके बहुत बड़े दुश्मन बन चुके हैं,तब प्रमोद जी उनसे बोले कि...
"सर! मैं अगर ऐसे डरने लगूँगा तो कभी भी पुलिस की नौकरी नहीं कर पाऊँगा",
"लेकिन फिर भी एहतियात बरतने में क्या बुराई है",बड़े अफ्सर बोले...
"जी! एहतियात बरतने में कोई बुराई नहीं है,लेकिन मैं डरकर घर में नहीं बैठ सकता",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"ठीक है लेकिन अपने साथ हमेशा एक दो हवलदार जरूर रखा करो"बड़े अफसर बोले...
"जी! अब आपकी बात तो माननी ही पड़ेगी",प्रमोद मेहरा जी बोले...
फिर उन दोनों के बीच पप्पू गोम्स को पकड़ने की योजना पर बाते होने लगी और एक योजना बन भी गई, इस बार भी ये काम प्रमोद मेहरा जी ने अपने हाथों में लिया,क्योंकि उन्हें पप्पू गोम्स के अड्डों के बारें में जानकारी थी,उन्होंने कहा कि वे इस योजना पर दीवाली के बाद से काम करना शुरू कर देगें....
और इधर दीवाली भी हो चुकी थी,दीवाली का त्यौहार बीते दो दिन बीत चुके थे,अभी सुबोध की भी बहुत सी छुट्टियाँ शेष बचीं थीं,इसलिए सुबोध ने अपनी भाभी सुरेखा से कहा...
"भाभी! आपसे एक बात कहनी थी"
"तो बोल",सुरेखा बोली...
"मैंने वहाँ एक अच्छा सा मकान ढूढ़ लिया है,मकान मालिकन बहुत ही अच्छी है उस घर की,तो मैं सोच रहा था कि इस बार मैं प्रत्यन्चा को भी अपने साथ ले जाऊँ",सुबोध अपना सिर खुजाते हुए बोला....
"ओह...तो बीवी को साथ ले जाने की साजिश रची जा रही है",सुरेखा बोली...
"कोई बात नहीं भाभी! अगर आपका मन नहीं है तो मैं उसे अपने साथ नहीं ले जाऊँगा"सुबोध बोला...
"अरे ! बाबा! बीवी तेरी है तो तू उसे कहीं भी ले जा,भला मैं मना करने वाली कौन होती हूँ",सुरेखा बोली...
"भाभी! आप तो बिगड़ रहीं हैं",सुबोध सहमते हुए बोला...
"नहीं! रे! बिगड़ नहीं रही हूँ,तू ले जा प्रत्यन्चा को अपने साथ,तुझे भी तो वहाँ खाना वगैरह बनाने में दिक्कत होती होगी",सुरेखा बोली...
"लेकिन आप यहाँ अकेलीं रह जाऐगीं",सुबोध बोला...
"अभी तुम दोनों की नई नई शादी हुई तो तुम दोनों को साथ में ही रहना चाहिए,जब मुझे अकेलापन लगा करेगा तो मैं तुम लोगों के पास मिलने चली आया करूँगी",सुरेखा बोली...
"आप कितनी अच्छी हैं भाभी!",
और ऐसा कहकर सुबोध सुरेखा के चरणों में बैठकर उसके पैर दबाने लगा,तब सुरेखा सुबोध से बोली...
"बस...बस रहने दे,इतनी खुशामद करने की जरूरत नहीं है,जा अपनी बीवी से बोल कि मेरे लिए एक कप चाय बना दे और उससे पैकिंग करने के लिए भी बोल दे और शाम को मेरे साथ बाजार चलकर दो चार जोड़ी सलवार कमीज के कपड़े भी खरीदकर सिलवाने डाल देते हैं,अब तेरे साथ वहाँ रहकर वो साढ़े पाँच मीटर की साड़ी थोड़े ही लपेटती रहेगी",
"ठीक है भाभी!",
और ऐसा कहकर सुबोध प्रत्यन्चा से चाय बनाने के लिए कहने चला गया और भाभी ने जो जो कहा वो उसने उससे कह दिया....
दोपहर को लंच में जब प्रमोद जी घर आए तो सुरेखा ने उनसे कुछ रुपए माँगे,बोली की प्रत्यन्चा के लिए कुछ चींजे खरीदनी है,वो सुबोध के साथ परदेश जा रही है,वहाँ का उसे कुछ ज्यादा मालूम तो होगा नहीं, इसलिए मैं ही उसे कुछ जरूरी सामान खरीदवा देती हूँ,तब प्रमोद जी ने सुरेखा को रुपये दिए और उससे बोले कि......
"तुम तीनों लोग शाँपिंग के लिए चले जाना,मैं तुम लोगों को सात बजे पर्ल स्टार रेस्टोरेंट में मिलूँगा,आज डिनर हम लोग वहीं करेगें और फिर फिल्म देखने भी चलेगें,आठ बजे का शो है,सुना बड़ी अच्छी फिल्म है,मेरे आँफिस के तो सभी लोग वो फिल्म देखकर भी आ गए,तो सोचा आज हम सब भी फिल्म देख लेगें,मैं अभी बालकनी का टिकट बुक करवाकर आ रहा हूँ"
"ऐ..जी! फिल्म का नाम भी तो बताइए कि कौन सी फिल्म देखने जा रहे हैं हम लोग",सुरेखा बोली...
"वही तुम्हारे दिलअजीज हीरो दिलीपकुमार की मुगल-ए-आज़म",प्रमोद मेहरा जी बोले...
"ये क्यों नहीं कहते कि आप अपनी दिलअजीज हिरोइन मधुबाला को देखने जा रहे हैं,खामख्वाह में मुझे बदनाम करते हैं",सुरेखा बोली...
"अब आप लोग झगड़ते ही रहेगें कि लंच भी करेगें",सुबोध बोला...
"तो आज हमारी बिटिया प्रत्यन्चा ने क्या क्या बनाया है लंच में",प्रमोद मेहरा जी ने प्रत्यन्चा से पूछा...
"जी! ज्यादा नहीं,भरवाँ बैंगन,तरी वाली आलू की सब्जी,लहसुन वाली हरी चटनी और रोटी,बस इतना ही",प्रत्यन्चा बोली...
"इतना बहुत है बेटा! अब लाओ जल्दी परोसो,बहुत भूख लगी है, फिर मुझे वापस भी तो जाना है",प्रमोद मेहरा जी बोले...
और फिर सबने साथ बैठकर खाना खाया,इसके बाद प्रमोद मेहरा जी वापस ड्यूटी पर चले गए,फिर तीन चार बजे तक सब शाँपिंग के लिए बाहर निकले,शाँपिंग करने के बाद वे सभी पर्ल स्टार रेस्टोरेंट डिनर के लिए पहुँचे,उस दिन प्रत्यन्चा ने बसन्ती रंग की जरी बार्डर वाली साड़ी पहन रखी थी,कलाइयों में चूड़ियाँ, बालों का जूड़ा बनाकर उसने सिर पर पल्लू ले रखा था,प्रमोद मेहरा जी तो कह चुके थे कि तुम्हें सिर पर पल्लू रखने की जरूरत नहीं है है लेकिन प्रत्यन्चा जेठ होने के नाते उनका बहुत लिहाज करती थी,उनके सामने वो सिर ढ़ककर ही जाती थी....
थोड़ी ही देर में प्रमोद मेहरा जी भी रेस्टोरेंट पहुँच गए ,फिर सबने साथ में डिनर किया और फिल्म देखने के लिए रीगल सिनेमा की ओर टैक्सी से चल पड़े,वहाँ पहुँचकर सबने फिल्म का आनन्द उठाया,वे जब सिनेमा से बाहर आए तो काफी समय हो चुका था....
और उन सबको नहीं मालूम था कि पप्पू गोम्स को ये भनक लग चुकी है कि वे सभी सिनेमा देखने आए हुए हैं,पप्पू गोम्स अपने साथियों के साथ पिस्तौल और खंजर लेकर उन सभी का सिनेमाहॉल के बाहर कोने में खड़ा इन्तजार कर रहा था,वे सभी सिनेमा से बाहर आए और टैक्सी रुकवाने के लिए सड़क के किनारे आकर खड़े हो गए,पप्पू गोम्स इसलिए अब तक रुका था कि वहाँ अभी सिनेमाहॉल से निकले हुए लोगों की बहुत भीड़ थी,जब भीड़ कम हुई तो वो अपने साथियों से बोला...
"चलो ! आज उस मेहरा और उसके घरवालों का खेल खतम कर देते हैं",
और जैसे ही वो उन सभी की ओर बढ़ रहा था तो एक कार वहाँ से गुजरी और उस कार की हेडलाइट की रोशनी में उसे प्रत्यन्चा का चेहरा दिखा,प्रत्यन्चा को देखकर वो अपने होश खो बैठा और अपने साथियों से बोला...
"आज नहीं! अभी वापस चलो! मेहरा का खेल किसी और दिन खतम करेगें",
"लेकिन क्यों भाई!",कल्लू कालिया ने पूछा...
"अभी यहाँ से चलो,बाद में मैं तुम लोगों को सारी बात बताऊँगा",
और ऐसा कहकर पप्पू गोम्स अपने साथियों के साथ सिनेमाहॉल से वापस आ गया...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...