साथिया - 63 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 63









*कुछ दिन बाद*

आज अक्षत के घर जोर-जोर से तैयारी चल रही थी। मनु के रिश्ते की बात की थी अरविंद और साधना ने और आज लड़के वाले आ रहे थे उससे मिलने के लिए।

मनु अपने कमरे में उदास बैठी थी। ना ही कोई उत्साह था ना ही कोई खुशी पर उसने अरविंद और साधना से वादा किया था कि वह जहां कहेंगे वहां वह शादी कर लेगी इसलिए वह तैयार हो रही थी और वह इस समय उन्हें इनकार नहीं कर सकती थीं।

"क्या मैं नए रिश्ते के लिए तैयार हूं। क्या होगा कैसे होगा? क्या मैं इस रिश्ते को एक्सेप्ट कर पाऊंगी ..?? क्या नॉर्मल रह पाऊंगी पर करूं भी क्या करूं? दिल में नील बसा हुआ है ? क्या दिल में नील के लिए फीलिंग्स लेकर नॉर्मल रह पाऊंगी। पर करूं भी तो क्या करूं ??" मनु खुद से बोली।

वही नीचे हॉल में रिश्ते वाले लोग आ चुके थे।

उनमें मम्मी पापा मिस्टर एंड मिसेज दीवान उनका बेटा आरव और उनकी बेटी संजना थे।

अक्षत और ईशान भी वही उन लोगों के पास ही बैठे थे।

अरविंद और साधना ने उन लोगों का स्वागत किया और चाय नाश्ता हुआ।

" आप लोग मिल ही चुके है। ये मेरा बेटा आरव है यही नोएडा में इसकी खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी है जिसे यही संभालता है और ये है मेरी बेरी संजना..!! बि टेक किया है और आजकल आरव के साथ उसी की कंपनी में काम कर रही हैं।" मिस्टर दीवान ने परिचय कराया।

" बहुत खुशी हुई । बड़े ही होनहार बच्चे है आपके दिवान साहब। वैसे ये मेरा बड़ा बेटा अक्षत। जज है और ये छोटा बेटा ईशान। मेरे साथ बिजनेश देखता हैं।" अरविन्द ने अक्षत और ईशान का परिचय कराया।

उनकी बेटी संजना की नजर अक्षत पर टिकी हुई थी। और इस बात को उसकी मम्मी पापा ने बहुत अच्छे से समझ लिया था।

" मानसी को बुलाइए साधना जी । बड़ा दिल कर रहा है उससे मिलने का।" मिसेज दीवान बोली।
तो साधना ने ईशान की तरफ देखा।

इशू बेटा जाओ मनु को ले आई।" साधना बोली तो ईशान मानसी के कमरे की तरफ चल दिया।

"दीवान साहब जैसा कि मैं आपको पहले ही बताया था कि मानसी मेरे दोस्त की बेटी है...!! बचपन में ही उसके माता-पिता एक हादसे में चल बसे। तब से वह हमारे साथ ही रह रही है। कहना चाहिए कि इस घर की बेटी है। जितना प्यार हम ईशान और अक्षत को करते हैं उससे कहीं ज्यादा शायद मानसी को करते होंगे। वह कहते हैं ना बेटियों से लगाव कुछ ज्यादा ही होता है। वैसे ही मेरे दोनों बेटे भी बिल्कुल उसे अपनी सगी बहन की तरह चाहते हैं। कभी तीनों बच्चों में यह रहा ही नहीं कि तीनों अलग-अलग है। तीनों को हम लोगों ने इस तरीके से पाला है और ऐसे परवरिश दी है कि तीनों हम दोनों को ही माता-पिता समझते हैं और एक दूसरे को भाई-बहन।" अरविंद जी ने कहा।

"अरे चतुर्वेदी जी आपको इस तरीके से सफाई पेश करने की जरूरत नहीं है..!! हालांकि इस तरह जब कोइ जवान लड़की दूसरो के घर रहती है तो अक्सर उसके चरित्र पर उंगली उठती है उस पर जब घर में दो दो जवान बेटे हो।" मिसेज दीवान बोली तो अक्षत की आंखे फैल गई तो वहीं साधना को भी बुरा लगा।

" पर हमें आपके संस्कारों पर पूरा विश्वास है। अब आपने अगर अपने मित्र की बेटी को अपने घर रखा है तो आपने और आपके बच्चों ने पूरी तरीके से मर्यादा का ख्याल रखा ही होगा। आखिर इतनी बड़ी जिम्मेदारी ली है तो उसे शिद्दत से निभाया भी होगा।" मिसेज दीवान बोली तो साधना के चेहरे पर अजीब से भाव आए।

उन्हें उनकी यह बात बिल्कुल अच्छी नही लगी।


"हमें मर्यादा का ध्यान रखने की कोई आवश्यकता ही नहीं हुई क्योंकि हमारे बच्चे खुद ही सब कुछ समझते हैं...!! और जब हमने बच्चों को शुरू से ही सही बात सिखाई है और साथ ही उन पर विश्वास रखा है। बच्चे भी समझदार है तो कुछ भी सोचने और समझने का प्रश्न ही नहीं होता। और मुझे नहीं लगता कि आपको इस तरह की बात करनी भी चाहिए या सोचनी चाहिए..!!" साधना बोली।

" अरे आप गलत समझ गई...!! मेरा वह मतलब नहीं था।" मिसेज दीवान ने बात संभाली तो अरविंद ने साधना को शांत रहने का इशारा किया।

फिर वो लोग सामान्य बातचीत करने में लग गए।


"मैं देख के अता हूं!" अक्षत बोला और वो भी वहां से शालू के कमरे की तरफ चल दीया।


ईशान ने रूम के दरवाजे से झटका।

मानसी आईने के सामने बैठी हुई थी।

" तू कितना भी सज ले संवर ले चुड़ैल थी तो चुड़ैल दिखेगी। चल तेरे ससुराल वाले चुड़ैल की मुंह दिखाई के लिए बेकरार हो रहे हैं।" ईशान ने कहा तो मनु ने नाराजगी से उसे देखा।

इशान ने जाकर उसे साइड हग कर लिया।

" अरे अब कुछ दिन की मेहमान है इस घर में तो कुछ दिन और तंग करने दे। तेरे जाने के बाद तो मुश्किल होगा यहां रहना। एक तू है जो घर की खुशियां बनाए हुई है वरना ऐसी मनहुसियत छाई हुई रहती है घर में की कुछ कहने का नहीं है। अब तो सोच कर ही टेंशन हो रही है कि तू चली जाएगी फिर हम लोग कैसे रहेंगे इस घर में..?" इशान ने कहा और उसकी आंखों में नमी आ गई ।

मनु उसके गले लग गई।


"नहीं जाती हूं न ...!! भगा देते हैं उन लोगों को हम दोनों मिलकर।।" मनु बोली।

" भगाने की क्या जरुरत है। तेरी सूरत देख वैसे ही भाग जाना है बेचारे आरव दीवान को।" इशान बोला


" सच्ची इशू मना कर देते है न ..!! मुझे नहीं करनी। शादी।" मनु बोली।


" खुद के मन में लड्डू फूट रहे हैं कि कब शादी हो और कब इस घर से विदा हो और बातें बड़ी-बड़ी।।" इशान ने कहा तो मनु ने उसे घूर के देखा और फिर आंखों से आंसू निकल आए।

ईशु ने उसे गले लगा लिया।

" कुछ आंसू बिदाई के लिए बचा के रख लो तुम दोनो की सारा आज ही रो लोगे।" अक्षत बोला तो मनु और इशान ने उसकी तरफ देखा और दोनो जाकर अक्षत के गले लग गए।

" थैंक गॉड कि पापा तुझे ले आए घर वर्ना हम भाई जान ही नही पाते कि बहनें इतनी प्यारी होती हैं।" अक्षत ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा और फिर वो लॉग मनु को लेकर नीचे हॉल में आए।

आरव को पहली ही नजर में मनु पसंद आ गई।

औपचारिक बातचीत हुई और उन लोगों ने मनु को पसंद किया।

" मानसी बेटा अगर आपको भी आरव से कोई बात करनी हो तो आप कर सकते हो।" मिसेज दीवान बोली।

मानसी ने एक नजर उस लड़के को देखा और फिर ना में गर्दन हिला दी ।

"हमारी तरफ से रिश्ता पक्का है चतुर्वेदी साहब...!! बस हम चाहते हैं कि आपकी बेटी हमारे घर बहू बनकर आए और हमारी बेटी आपके घर..! हमें आपका बड़ा बेटा अक्षत अपनी बेटी संजना के लिए पसंद आया है। अगर आप हां बोलते हैं तो अभी के अभी रिश्ता कर दिया जाएगा।" मिसेज दीवान बोली तो साधना ने अक्षत की तरफ देखा।


" और अगर हम ना बोले तो..?" अक्षत बोला।

" तो हमे भी सोचना होगा वैसे भी यूं अनाथ लड़की जोकि किसी दूसरे के घर रह रही हो।" मिसेज दीवान ने बात बीच में छोड़ दी।

" मनु अनाथ नही है। इस घर की बेटी है । हमारी बहिन।" इशान गुस्से से बोला।


" शांत इशू...!" अक्षत ने ईशान को इशारा लिया

" मुझे मंजूर है अगर संजना जी के मेरी लाइफ और मेरे सच से आपत्ति न हो तो ।" अक्षत बोला तो सबने उसकी तरफ़ देखा

" आइए संजना जी आपको जरा अपना रूम दिखा देता हूं और कुछ बातें भी क्लियर कर ले।" अक्षत ने कहा और संजना के साथ रूम की तरफ बढ़ गया।
साधना और अरविंद ने गहरी सांस ली।


"हां तो जैसा आपके मम्मी पापा बोल रहे हैं आप मुझसे शादी करना चाहती हैं।" अक्षत ने कहा तो संजना ने शर्मा कर गर्दन हिला दी।

अक्षत ने अपने रूम का दरवाजा खोला तो संजना ने कमरे पर नजर डाली।

पूरे कमरे में सांझ की तश्वीरे थी। कुछ में अक्षत और सांझ।

संजना की आंखें बड़ी हो गई।

" यह मेरी वाइफ है सांझ चतुर्वेदी...!! क्या इसके साथ आप मुझे बांटने के लिए तैयार है । अगर हां तो हम रिश्ते के बारे में आगे सोच सकते हैं।" अक्षत ने कहा।

" यह क्या कह रहे हैं आप..?"

" वही जो आप सुन रही है...!! शादी विवाह कोई सौदा नहीं होता है कि एक बेटी लेकर जा रहे हैं तो एक बेटी जबरदस्ती देकर जाएंगे। मैने नीचे कुछ भी नहीं था क्योंकि दुनिया को अभी सच नहीं पता है। पर सच यही है कि मैं शादीशुदा हूं और यह मेरी वाइफ है।" अक्षत बोला।

" पर मुझे तो यह कहीं दिखाई नहीं दी?" संजना बोली।

" वह अभी मेरे पास नहीं है कुछ काम से बाहर गई है पर जल्दी ही वापस आयेगी। और जहां तक मैं जानता हूं उन्हें शायद आपत्ति नहीं हो। मेरी खुशी के लिए वह आपको स्वीकार कर लेंगी पर क्या आप स्वीकार कर पाएंगी उन्हें मेरी जिंदगी में?? क्योंकि वह मेरी पहली पत्नी है तो पत्नी वही रहेगी कानूनी रूप से भी और भावनात्मक रूप से भी। मेरे प्यार पर पहला अधिकार सिर्फ उनका है। मेरी जिंदगी पर भी पहला अधिकार सिर्फ उनका है बाकी आपकी मर्जी।" अक्षत ने कहा तो संजना का मुंह गुस्से से लाल हो गया और वह नाराजगी से नीचे चली गई।



अक्षत ने सांझ की मुस्कराती तश्वीर को देखा।


" तुमको हंसी आ रही है मेरी बात पर। वैसे बोलो तो कर लूं उससे भी शादी...? " अक्षत बोला।

" जानती हो न नही कर सकता इसी किए आजमा रही हो मेरे प्यार और सब्र को।" अक्षत मुस्कराया।

"वैसे सही जवाब दिया ना ...!! अब तो वापस आ जाओ मेरे पास इससे पहले कि दुनियां मुझसे तुम्हारे होने का सबूत मांगने लगे।" अक्षत ने धीमे से कहा और नीचे चला गया।



"वही दूर अमेरिका में।

कमरे में रात के समय भी लाइट चालू थी और एक लड़की गहरी नींद में सो रही थी।

समान्य कद काठी, लोवर टीशर्ट पहने हुए।रंग दूध सा सफेद और छोटे छोटे बॉय कट बाल। दिखने में बेहद खूबसूरत।

अचानक से चेहरे पर तनाव आया और शरीर पसीने पसीने हो गया।

" प्लीज मत करो ऐसा...!! जाने दो मुझे..!! प्लीज जाने दो मुझे..!! मुझे मेरे जज साहब के पास जाना है।" उस लडकी के अर्धचेतन मस्तिष्क में कुछ धुंधली सी बातें चल रही थीं।



" जज साहब..!" अचानक से वह लड़की चीखी और एकदम से उठकर बैठ गई। चेहरा लाल हो गया था और पूरे शरीर पर पसीना आ रहा गया।


" माही क्या हुआ?? कोई सपना देखा क्या??" शालू ने आकर उसे गले लगा लिया।

" हां शालू दी ..!! फिर से वहीं सपना.!! ओर ये जज साहब कौन है दी..?" माही बोली तो दरवाज़े पर खड़े अबीर और मालिनी ने एक दूजे को देखा ओर शालु ओर माही के पास आ गए।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव

कमेंट्स भर भर के चहिए मुझे वरना 🤣🤣🤣🤣 समझ गए न आप???