उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रो!

आशा है, आप सब आनंद में हैं ।

मेरी सोसाइटी काफ़ी बड़ी सोसाइटी है जिसमें सुबह से ही अख़बार, दूध, सब्ज़ी-फलों वाले हाॅकर, हैल्पर आने शुरु हो जाते हैं। उनमें से कुछ तो कितने वर्षों से आते हैं और जिनको अपना सामान देते हैं, अथवा जिनके यहाँ काम करते हैं उनसे कभी अपने सुख दुख भी साझा करते हैं। दरअसल, वर्षों से आने के कारण उन्हें सब अपने ही लगते हैं।

दुनिया में सब प्रकृति के लोग होते हैं, कुछ के पास काग़ज़ी डिग्री नहीं होती लेकिन उनके अनुभव उन्हें बहुत परिपक्व बना देते हैं और वे कोशिश करते हैं कि अपनी आगे की पीढ़ी को पढा़ लिखाकर ऐसा बना सकें कि वे और उन्नति कर सकें।

जब कभी ऐसी स्थिति आती है तब वे उन लोगों से उम्मीद करते हैं जो उनके बच्चों को प्यार से समझा सकें।

कभी ऐसी स्थिति भी होती है कि बच्चे समझना चाहकर भी उसी काम को करने के लिए मज़बूर हो जाते हैं जो उनके माता-पिता करते हैं । अक्सर ऐसा भी होता कि बच्चों के लिए माता-पिता सुविधा नहीं जुटा पाते। बच्चे इससे उनसे गुस्सा भी हो जाते हैं और उनके मन में माता पिता के प्रति नाराज़गी भी पैदा हो जाती है ।

यदि देखा जाए तो कोई भी काम ख़राब या छोटा नहीं होता और सभी तरह के काम में कई तरह के अवसर मौजूद होते हैं। लेकिन कोई उस काम को सफलता पूर्वक करता है या उस काम में काफ़ी पैसा बना लेता है और कोई उससे पैसा कमाने के बजाय सब कुछ गवां देता हैं। हमारे यहाँ आने वाले कई लोगों ने अपनी मुश्किलें साझा की हैं और हमने उन्हें समझाने का प्रयत्न, कि कोशिश करो, बेहतर काम करने की। यदि नहीं हो पाता तो जो हाथ में है उसे पूरी शिद्दत से करो और कई लोग इसमें सफ़ल भी हुए हैं।

क्या कभी हमने सोचा है ऐसा क्यों होता है? यह तो हम सब दोस्तों से सुनते आ रहे हैं,

“अरे यार इस काम में ज़्यादा पैसा नहीं हैं और मेहनत भी ज्यादा है, जबकि उसी काम में कोई अच्छा पैसा बना रहा है इसका मतलब यह है कि काम तो वह ख़राब नहीं है।”

तो फिर क्यों इतना फ़र्क है, कुछ लोग बोलते हैं, "अरे यार! वो किस्मत वाला है या फिर उसकी किस्मत अच्छी है। अपने तो भाग्य में तो रोना ही लिखा है।”

ऐसे बच्चों के माता-पिता भी उन्हें समझाते हुए थक जाते हैं कि जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं हैं, यदि हम काम करने के लिए मन से इच्छुक हैं तब हमें अपना आत्म-मूल्यांकन करना आवश्यक है।

कोई भी क्यों न हो ईमानदारी से हमें अपने विषय में अच्छा और बुरा सुनने और समझने के लिए तैयार रहना चाहिए जिसका परिणाम अच्छा ही होगा।

अगर हम कायर हैं तो हर छोटी छोटी दिक्कत को देखते ही भाग खड़े होंगे। जरा सी परेशानी आई नहीं कि हम विचलित होने लगेंगे लेकिन अगर हम अपना मूल्यांकन करना जानते हैं या ऐसा करना चाहते हैं, तो कोई ना कोई रास्ता खुल ही जाता है।

कई बार हमारी तुनकमिज़ाज़ी और शिकायती नज़रिया ये दो ऐसे शत्रु हैं जो हमें दो कदम आगे ले जाकर तीन कदम पीछे खींच लेते हैं। जीवन के हर पल में बस सुविधाओं और आराम की आकांक्षा के चलते हम खुद से खुदको अलग करते जाते हैं, जबकि जीवन की यह खूबसूरती है कि यह अच्छे और निःस्वार्थ कर्म करने वाले के साथ कर्म सदा सकारात्मक रहकर उसके जीवन में सदा उन्नति लेकर आते हैं और इसकी कोई सीमा नहीं रहती कि ईमानदारी से स्वयं को अपने काम में समर्पित कर देने वाला व्यक्ति एक दिन अवश्य ही अपने जीवन को ऊँचाइयाँ पर ले जाकर आनंदित जीवन जीता है ।

 

आप सबका जीवन सुखद एवं सुरक्षित हो।

 

आपकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती