सुनसान रात - 5 Sonali Rawat द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सुनसान रात - 5

हरीश बोला – एक साथ इतने प्रश्न, सबका जवाब देता हूं।

जब भी खाना खत्म होता तो उसके परिवार का ही कोई सदस्य वहां भेड़ बकरियां बांधकर आता था, वो दिन में ही जाता था और सूरज छिपने से पहले वापस आ जाता था।

मैंने कहा दिन में चुड़ैल नहींं आती क्या ?

हरीश बोला हाँ भाई चुड़ैल सूरज की रोशनी सहन नहींं कर सकती हैइसलिए वो रात में ही बाहर आती है।

अच्छा एक बात समझ नहींं आई कि ये कब्रिस्तान की दीवार पर नाले बा क्यों लिखते थे, गांव में तो सबको पता ही होगा फिर क्या जरूरत आ गई ? गुल्लू ने पूछा।

इस पर हरीश का जवाब था कि गांव से बाहर के लोगों को तो नहींं पता होगा ना।

ये मुख्य सड़क के साथ ही हैं गांव, बहुत लोग आते जाते थे बाहर से इसलिए कोई भूल से वहां रुके नहींं ये लिखना जरूरी था।

और ये धड़ से नीचे के हिस्से को अलग से जलाने का क्या कारण था, मैंने उत्सुकता वश पूछा?

हरीश ने बताया कि गांव के लोग ऐसा मानते थे कि ऐसा करने से चुड़ैल अपाहिज हो जाएगी और लोगों को परेशान करने के लिए इस कब्रिस्तान से बाहर ज्यादा दूर नहींं जा पाएगी , गांव में प्रवेश नहींं कर पायेगीऐसा गांव वालो का मानना था।

अच्छा ये जो चुड़ैल होती है ये किसी भी स्त्री पुरुष का रूप बना लेती हैं कितनी देर तक वो ऐसा कर सकती हैं, गुल्लू ने हरीश को बीच में रोकते हुए पूछा ?

हरीश कुछ कहता, मैं तपाक से बोला ये तो मुझे पता है मैंने पढ़ा था कही बहुत ज्यादा देर तक वो ऐसा नहींं कर सकती हैं क्योंकि जीतना ज्यादा समय वो दूसरे के रूप में रहेगी, उसके शरीर से शक्ति कम होने लगती हैं और अगर जिस व्यक्ति का रूप उसने लिया हैं वो सामने आ जाये तो वो तुरंत ही अपने असली रूप में आ जायेगी।

बस मिल गया जवाब ये बोलते हुए मैंने हरीश को कहानी आगे बढ़ाने को कहा और पूछा वो अलग से बड़ा कब्रिस्तान किसलिए था ?

वो सामान्य जन के लिए था, जो चुड़ैल नहींं होती थी उनको वहां दफनाया जाता था हरीश बोला।

गुल्लू बोला वो सुंदर गर्भवती स्त्री उसका क्या हुआ ?

हरीश बोला सारी कहानी उसी की तो हैं।

वो स्त्री अपने परिवार की बड़ी बहू थी, और पहली बार गर्भवती हुई थी।

उसको अपने भेड़ बकरियों से बहुत प्यार था, उसके पास एक बकरी का मेमना था, जिसको वो भोली कह कर पुकारती थीउसको उससे बहुत लगाव था, एक क्षण के लिए भी वो उसकी आँखों से ओझल होता थातो वो खाना पीना छोड़कर उसी को ढूंढा करती जब तक वो मिल नहींं जाता कुछ खाती पीती भी नहींं थी।

पूरा दिन घर में काम करती थी शाम को अपनी भेड़ बकरियों को चराने के लिए जंगल ले जाया करती थी।

बेचारी घर में भी अकेली ही सारा काम करती थी फिर भी उसके घर वाले उसे ताना मारा करते थे, वो कुछ ना कहती थी चुपचाप सारा दिन काम में लगी रहती थी, वो बहुत परेशान थी, भोली ही एकमात्र सहारा थी उसका, उसी से अपने सुख दुख की बतला लेती थी।

एक दिन वो जंगल से अपनी भेड़ बकरियों को लेकर वापस घर आ रही थी शाम का समय था सूरज छिप चुका था, भोली भी उसके साथ थी, अचानक भोली उसके हाथों में से कूदकर भाग गईवो भोली के पीछे दौड़ी, उसने देखा भोली कब्रिस्तान में चली गयी है, स्त्री घबरा गई वो कब्रिस्तान के बाहर ही रुक गई, उसकी नज़र नाले बा पर पड़ी, इसलिए वो अंदर जाने से डर रही थीउसने बाहर से ही आवाज लगाई भोली भोली पर वो बाहर नहीं आईवो स्त्री डरी सहमी सी धीरे धीरे कब्रिस्तान में प्रवेश कर गई, अंदर का दृश्य बहुत ही भयानक था, चारों तरफ जानवरों की हड्डियों के कंकाल पड़े थे।