Sunsaan Raat - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

सुनसान रात - 2

मैंने कहा देख ले भाई, कोई नहींं जा रहा है वहाँ से, कही कोई मुसीबत ना आ जाये,

गुल्लू हंसने लगा बोला अरे कोई भूत प्रेत नहींं आएगा क्यों डरता, हरीश है ना अपने साथ, इसकी आवाज़ से अच्छे अच्छे भूत प्रेत डर कर भाग जाएंगे, और फिर हम तीनों जोर से हँसने लगे और मैंने गाड़ी बायपास की तरफ मोड़ ली।

अभी कुछ 10 , 20 किलोमीटर ही चले होंगे कि गाड़ी फिर झटके मार कर रुक गयीगुल्लू बोला अब क्या हुआ?

चला ना आराम सेमैंने बोला, होना क्या है, पेट्रोल खत्म, ये हरीश के काम ऐसे ही होते है, इसको बोला था पेट्रोल डलवाकर लाना गाड़ी में, ऐसे ही ले आया होगा।

हरीश अपनी बैठी हुई भर्राई सी आवाज में बोला, अरे देर हो रही थी इसलिए जैसी थी वैसी ले आया, अब उतरो नीचे और धक्का लगाओ देखते है आगे कोई पेट्रोल पंप मिल जाए तो।

अब हम में से बारी बारी एक आदमी स्टेरिंग पर बैठता और बाकी दोनों धक्का लगातेऐसे चलते चलते हमने देखा कि सड़क के बीचों बीच एक बहुत विशालकाय बरगद का पेड़ हैं, वो सड़क के बिल्कुल बीच में हैं, और उसके चारों तरफ बड़ा सा चबूतरा बना रखा हैं, वही से बगल से एक संकरा सा रास्ता दे रखा है जिसमें से बमुश्किल एक बार में एक गाड़ी निकल पाएबरगद की बड़ी बड़ी लतायें नीचे लटकती हुई, किसी के होने का एहसास करा रही थी, डर से हम तीनों के होश उड़ रहे थे।

जैसे जैसे हम उस बरगद के पेड़ की तरफ बढ़ रहे थे, हमारी धड़कने बढ़ती जा रही थी, यूँ लग रहा था कि वो पेड़ हमें ही देख रहा है, और हमारी और बढ़ा चला आ रहा हैऐसा लग रहा था कि मानो उस पर लताएँ नहींं , कई सारे कटे हुए पैर लटक रहे है।

हम सहमे सहमे से आगे बढ़ते गए और हमारे दिमाग में ये बात भी चल रही थी कि ये पेड़ सड़क के बीचों बीच क्यों हैं? सड़क बनाते समय इसको हटाया क्यों नहींं गया!

खैर अब हम बिल्कुल पेड़ के बगल से गुजर रहे थे, सहसा ही मेरी दृष्टि पेड़ के चबूतरे पर रखी भगवान की तस्वीरों पर पड़ी, और सब समझ आ गया कि जरूर ये पेड़ भुतिया पेड़ होगा इसलिए इसको काट नहीं पाए, और लोगो ने खुद को बचाने के लिए पेड़ को लाल डोरे से बांध दिया था भगवान की तस्वीर रख दी थी, शायद तभी वो पेड़ हमें सिर्फ घूर कर देखता रह गया कुछ कर नहींं पायावही पेड़ के तने पर कुछ अक्षर उभरे हुए थे, शायद वहाँ की स्थानीय भाषा मे कुछ लिखा था जो मुझे समझ नहींं आ रहा था, लेकिन अक्षरों की वो आकृति मेरे दिमाग मे बैठ चुकी थी।

हम थोड़ा और आगे बढ़े तो एक उजड़ी हुई वीरान बस्ती दिखाई थी, ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी कब्रिस्तान से गुजर रहे हो, रात का सन्नाटा, सुनसान सड़क सिर्फ हम तीन दोस्त, पूस की ठंडी रात में भी हमारे पसीने छूट रहे थे।

यहाँ भी हर जगह वही अक्षर आकृतियां बनी हुई थी, और एक बात और काफी देर से हमे एक अजीब सी गंध का एहसास हो रहा था , पता नहीं क्या था वो सब।

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