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मास्क वाला हैवान

मास्क वाला हैवान

बिहार का बिलसारपुर गांव, जहां आज भी हर दिन लड़कियों को बहोत सारी मुश्केलियोँ का सामना करना पड़ता है। कई मां बाप या तो अपनी बच्चियों को नहीं पढ़ाते और अगर पढ़ाई तो हर वक्त डर रहता है कि बेटी घर वापस टोआएगी ना?

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साल २०१७ की ये बात है। बिलसारपुर गांव में करीब ५०० – ६०० लोग रहते थे। सब खेतीबाड़ी का काम करते थे। मुश्किल से किसीको अपना खेत था। वरना सबके सब बड़े बड़े जमीनदार के खेतों में मजदूरी का काम ही करते थे। उनके बच्चे सुबह स्कूल पढ़ने जाते और फ़िर दोपहर खाना खाने के बाद वो भी काम पर लग जाते थे। बच्चों की पढ़ाई वगैरा या तो खेतों में मध्याह्न के समय सब थोड़ा आराम करते तब होता या फ़िर गांव में मुश्किल से जो १० – १२ स्ट्रीट लाइट लगी थी उनके नीचे बच्चे जाकर बैठते। पर उसमें भी डर ये रहता कि रात के समय पास के जंगल से किसी जंगली जानवर के आ जाने का खतरा रहता और तो और लाइट्स बहोत दूर दूर लगी थी। तो एक लाइट से दूसरी लाइट के बीच में इतना अंधेरा था कि उस बीच क्या हो रहा है वो तक देख पाना मुश्किल था। गांव में ३ किराने वाले की दुकान और एक चाय वाले का ठेला था। गांव के बीचोबीच एक चबूतरा भी था जिसके इर्दगिर्द गांव के लोग रात के वक्त बैठकर बातें कर लिया करते थे।

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शैलजा और माधव बहोत व्याकुल थे क्यूंकि नित्यक्रम के हिसाब से सबके बच्चे स्कूल से आकर खाना खाकर खेत पे अपने मम्मी पापा का खाना लेकर आ गए थे। नहीं आई थी तो बस विभा, शैलजा और माधव की बेटी। दोनों को बड़ी चिंता हो रही थी। शैलजा घर जाकर देख कर आई पर घर बंद था। वापस खेत आकर शैलजा ने बाकी बच्चों को भी पूछा पर सबने बताया की आज विभा को वापस आते उन्हों ने देखा ही नहीं। स्कूल गांव के पास ही में था इस लिए सब लोग पैदल साथ में ही आते थे पर शायद विभा को आने में देर हो गई हो। स्कूल भी पूछकर देखा और तो और चाय के ठेले वाले से किराने वाले से और गांव के चक्कर काटकर सबसे पूछा पर किसीने को आते नहीं देखा। स्कूल में भी बताया की विभा स्कूल से लेट जरूर निकली थी पर निकल गई थी। केवल गांव के ठेले वाले ने बताया की उसने विभा को सारे बच्चे चले गए उसके कुछ वक्त बाद अंदर जाते तो देखा था पर उसके बाद क्या हुआ वो उसे भी नहीं पता। विभा को वापस न आए ३ दिन बीत चुके थे अब तक ये नहीं पता चल पाया था की विभा जिंदा है या ... और है तो कहां है? छोटा सा गांव बदनामी के डर से तीन दिन तो रपट नही लिखवाई पर जब सरपंच जी से भी कुछ न हो पाया तो शैलजा और माधव ने पास के थाने में रपट लिखवाई।

पुलिस ने सबसे पूछताछ की पर ऐसे दिन दहाड़े किसीका गायब होना अजीब था। ऊपर से कोई सुराग या चीखने की आवाज कुछ भी नहीं। आख़िर विभा कहां थी? पुलिस के पूछने पर चाय के ठेले वाले ने बताया की उसके जाने के बाद गांव के बहार का तो कोई आया नहीं पर एक इंसान आया था बाइक पर जिसने चेहरे पर गमछा लगा लिया था जिससे चेहरा दिख नहीं रहा था। चाय के ठेले वाले ने जो हुलिया बताया वो आसपास के लोगों को भी पूछा पर ऐसा कोई इंसान उन्होंने गांव में कभी नहीं देखा था। गांव के सरपंच जी से भी पूछा पर उन्हों ने भी किसी को नहीं देखा। धीरे धीरे वक्त बीतता जा रहा था पर कोई सुराग या विभा का पता नही चल रहा था। तीन महीने बीत चुके थे। अब तो धीरे धीरे शैलजा और माधव को विभा के बिना जीने की आदत लग गई थी फिर भी कभी कबार थाने जाकर अपनी भड़ास और अपना दुख बयान कर आते थे। पुलिस भी पता नहीं कर पा रही थी कि वो गमछे में छिपा कोन था।

उस हादसे के छ महीने बाद,ठीक उसी तरह धीरज और धारा की बेटी भैरवी गायब हुई। इस बार पुलिस ज्यादा चौकन्नी थी क्योंकि भैरवी केवल १० साल की थी। विभा तो फिर भी १६ साल की लड़की थी शायद उसका कोई बॉयफ्रेंड हो या कही भाग गई हो ये भी हो सकता था पर १० साल की भैरवी की क्या दुश्मनी हो सकती थी? कहां गायब हो गई थी वो अचानक। इस केस में भी पुलिस ने पूछताछ की तो चाय के ठेले वाले ने बताया की उस दिन सारे बच्चे चले गए उसके कुछ वक्त बाद भैरवी आई थी और गांव में मूड गई थी फिर क्या हुआ नहीं पता। भैरवी को चाय के ठेले वाले चंदू ने देखा था पर उसके बाद ५०० मीटर की दूरी पर किराने कि दुकान ही उसने आते हुई नहीं देखा था। चाय के ठेले वाले का कहना था की उसने उस दिन भी किसीको आते हुए नहीं देखा पर भैरवी के पीछे उसने एक बाइक जाता हुआ देख था जिसने गमछे में अपना मुंह कवर किया हुआ था। मैंने उस बन्दे को आवाज़ भी दी क्योंकि ऐसा हादसा पहले बन चुका था पर वो बाइक भगाकर निकल गया। बाइक का नंबर चंदू ने नहीं देखा क्योंकि दिन में ऐसे कितने लोग जाते है ऐसा सब पर ध्यान नहीं होता और मेरे लिए चाय का ठेला छोडके उसके पीछे जाना मुमकिन नहीं था इस लिए मैं जाकर देख नही पाया की वो कौन था। पर मैं अपना ठेला बंद करके गांव के अंदर देखने गया तब वहां मुझे दूर दूर तक कोई नहीं दिखा था। किराने वाले ने बताया की उसने किसी ऐसे गमछे वाले को नहीं देखा था।

भैरवी दूसरी लड़की थी। अब गांव वाले चुप बैठने वाले नही थे। क्या हो रहा था दिन दहाड़े बच्चियों के साथ वो किसीको नहीं पता था। पुलिस ने अच्छे से तयकिकात की तो सामने आया की चाय के ठेले वाले से किराने वाले के बीच में एक गली पड़ती है। जहां गांव का पुराना खाली कूवा और दुबाकी मौसी की झोपड़ी थी। पुलिस ने वहां पर भी देखा पर कुछ सुराग नहीं मिला। अब पुलिस ने गांव के एक एक बंदे को बुलाकर गमछा पहनाकर उस ठेले वाले को उसका चेहरा दिखाया कि उनमें से कोई था? पर ठेले वाले ने मना किया। अब सिर्फ़ सरपंचजी का बेटा बचा था। जो बड़े रंगीन मिजाज़ का था। गांव वालों का कहना था की वो कई बार शराब भी पिता था और गांव के बहार रण्डी खाने भी जाता था। उसे कभी कबार गमछे में बहोत लोगों ने देखा था। अब शक के दायरे में वो था। पर अभी वो अपने फैक्टरी के काम से शहर गया हुआ था। उसके आने की देर थी। जैसे ही वो आया उसे पुलिस ने गिरफ में लिया खूब मारा और बहोत पूछा पर वो टस से मस नहीं हुआ। उसका यही कहना था कि वो जरूर कोठे जाता है पर बच्चियों की तस्करी या उनका खून या उन्हें अगवा करना जैसा नीच काम करने की वो सोच भी नहीं सकता। अब पुलिस ने चाय के ठेले वाले चंदू को मार मार कर सच उगलवाना शुरू किया था क्योंकि चंदू ने ही दोनों बार लड़कियों को अंदर जाते देखा पर और किसीने नहीं। ना किसीने उस गमछे वाले को। तो कहीं चंदू ही तो नहीं जो बच्चियों को अगवा कर रहा था या उनके साथ कुछ बुरा कर रहा था?

गांव में दहशत फैली हुई थी उस मास्क (गमछे) वाले बंदे की। पर अभी तक पुलिस किसीको रंगे हाथ नहीं पकड़ पाई थी। छ महीने बाद फिर से चंदू ने बंसी और जानकी की बेटी पुरवा को गांव के बाकी बच्चों के जाने के ठीक बाद जाते हुए देखा। इस बार चंदू पूरा तैयारी में बैठा था। चंदू ने देखा उसके पीछे गमछे वाला बंदा गया और अपना ठेला खुला छोड़कर ही चंदू पीछे देखने खड़ा हो गया उसने देखा की बाइक पर बैठा गमछे वाले इंसान ने अपना गमछा हटाया और पुरवा को अपना चहेरा दिखाया। उसे देखते ही पुरवा उसके पीछे बैठ गई और उस बंदे ने गमछे से अपना चहेरा फिर ढक लिया। गांव की और जाने की बजाय वो गमछे वाला सीधा दुबाकी मौसी की झोपड़ी की और मुड़ गया। चंदू ने तुरंत पुलिस को फ़ोन किया और पुलिस सीधी दुबाकी की बंद झोपड़ी के पास आ गई।

वहां का दृश्य अत्यंत भयानक था। पुरवा बेहोश थी और पूरी नग्न अवस्था में दुबाकी की झोपड़ी में। और वो बंदा उसके ऊपर...

पुलिस ने उसे वही मार मारकर अधमरा कर दिया और उसे पूछा कौन है वो तब उसने बताया कि मैं, सरपंच के फैक्टरी में काम करने वाला मुन्ना हूं। आगे कि हकीकत उस नाराधम राक्षस ने बिना जीजक के बता दी। शादीशुदा हूं पर मेरी बीवी रोज़ किसी न किसी वजह से मुझसे जगड़ती रहती है। घर जाना भी पसंद नही मुझे। उसका मुंह देखना भी अच्छा नहीं लगता। ये सरपंचजी के बेटे कृष्णा को में ही ग्राहक लाकर देता था। पर कोठे पर जाने के पैसे और उतनी हैसियत मेरी नहीं है। जब जब काम से सरपंचजी के घर आता था तो कभी कबार देखता था इन बच्चियों को। गोरा गोरा तन मुझे लुभाता था। मैं यहीं काम करता था इस वजह से जब देखता की गांव की कोई लड़की अकेली जा रही है तो उसे लिफ्ट देने के बहाने पीछे बिठा देता। लड़कियां बैठ भी जाती क्योंकि मुझे सब जानते है। पर मैं किसी काम के बहाने से गांव के अंदर जाने के बजाय बाइक सीधा डुबाकी मौसी की बंद झोपड़ी के तरफ ले लेता और फ़िर उनका गला दबाकर खून करने के बाद उनका तीन चार बार बलात्कार करता। फिर लाश को और उनके कपड़े दफ़्तर सबको कुएं में दफना देता था। गमछा इसी लिए पहनता था ताकि कोई मुझे पहचान न जाए।

ये सब सुनकर पुलिस को इतना बुरा लग रहा था के उस गमछा में चहरा लिपटाकर रखने वाले और तीन तीन लड़कियों के साथ दुष्कर्म करने वाले हैवान मुन्ने को तब ही फांसी दे दे। पर कोर्ट के फैसला का इंतजार किया और कोर्ट ने भी उसे सजाए मौत का ऐलान किया। तीनों बच्चियों के माता पिता टूट चुके थे अपने बच्चों के साथ जो हुआ वो देखकर।

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