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कविता संग्रह _ छोटी कविताएं

कविता संग्रह


इश्क से हो तुम....


हर सुबह की ढलती हुए गौधूली सांझ,
सूरज की धीरे धीरे नम होती गरमी
और साथ में नुक्कड़ की कड़क सी चाय
बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"

नीले से आसमान में वो घनघोर से बादल
रिमझिम बरसती बारिश में,
घटादार वृक्ष के शाख के बीच में से मुस्कराती धूप,
बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"

अरसो से प्यासे उस बंजर रेगिस्तान और
किसी हिरण की मृगतृष्णा को मयस्सर होने वाली
वो अनमोल पानी की कुछ बूंदे
बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"

किसी बच्चे को अनायास मिलने वाला खिलौना,
किसी नवविवाहित को ससुराल में मिलने वाला प्यार,
और न जाने कितनों को यकायक लब्ध होने वाली
सौग़ात,
बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"

महादेव की नगरी काशी का कोई पवित्र एहसास,
गोंडोवालिया की भीड़,
अस्सी घाट की सांझ का कोई सुकून
बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"

कोरे कागज़ का कोई पन्ना,
जिस पर किसी कलम की स्याही से
महत्त्वपूर्ण इतिहास या प्रेम उपन्यास अंकित किया जाता है,
बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"



***




बस दुःख ही दुःख है...


यहां कोन सुखी है? सबको बस दुःख ही दुःख है।

पेड़ को दुःख है कि कहीं उसे कोई काट ना दे,

पौधे को दुःख है कि वे किसी को छाया देने के काम नहीं आते,

कुत्ते को दुःख है कि उसे वफादार चौकीदार बुलाया जाता है,

सर्प को दुःख है कि उसके शरीर में विष दौड़ता है,

गिद्ध को दुःख है कि वो नौच के मांस खाता है,

बिल्ली को दुःख है कि वो अपशकुनी मानी जाती है,

चिटी को दुःख है कही भी दब कर मर जाने का,

पुरुष को दुःख है महीने के आखिर में घर चलाने का,

स्त्री को दुःख है अपने रजस्वला के दर्द, पति की दांट, ससुराल के ताने और बच्चों के भविष्य का,

बच्चों को दुःख है उनकी मनपसंद चीज़ ना मिलने का,

ग़रीब को दुःख है दो वक़्त की रोटी नसीब न होने का,

तवंगर को दुःख है और पैसा कमाने के स्त्रोत ढूंढने का,

यह संसार में बल्कि पूरे ब्रह्मांड में कोई जीव ऐसा नहीं जिसे दुःख नहीं।


***


प्यार का जीवन में परिचय


जब प्यार का जीवन में परिचय होता है,
तब जीवन में जीवन का अंकुरण होता है,
एक नया सफ़र शुरू होता है,
जिसमें हमसफ़र का साथ मिलता है।।

जब स्नेह का संचार होता है,
तब जीवन में ओज की अभिवृद्धि होती है,
खुशियों की मिठास घुलती है,
और सुखमय रहाई का आगाज़ होता है।।

जब प्रीत का प्रवेश होता है,
तब नए जीवन का श्री गणेश होता है,
कलियों से बाग खिल उठता है,
बसंत के बहार का मानो पुनः निर्माण होता है।।

जब प्रणय का अंगीकार होता है,
तब जीवन में इक नया अध्याय शुरू होता है,
फूलों से भरा हर एक रास्ता लगता है,
जैसे अंधेरी राहों को वो चांद प्रजवलित करता है।।

जब अनुराग का प्रतिपादन होता है,
तब जीवन में हर लक्ष्य एक नया ढांचा लेता है,
सोलह कलाओं से खिली प्रकृति लगने लगती है,
आसपास का सब प्यारा दुलारा लगने लगता है।

जब मोहब्बत की पाठशाला में दाखिला होता है,
तब जिंदगानी में चाहत का अनुभव होता है,
हर दिन सुहाना लगता है,
और गौधूली सांझ से प्रेम हो उठता है।।

जब प्यारा सा कोई जीवन में आना होता है,
तब हर बदलाव भाने लगता है,
अच्छा बुरा हर वक़्त न्यारा लगता है,
दुनिया को देखने का नज़रिया बदल जाता है।



***


मृत्यु ... बस इतनी सी तमन्ना है मेरी...


जब आखरी सांसें लू मैं,
तुम्हें छोड़ जब चल दू मैं
हाथ थामे रखना तुम
जब मृत्यु को भेट करलूं मैं।
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

मोह ना मुझे स्वर्ग का,
ना वैराग्य मुझे इस संसार का,
ना मोक्ष ना श्राद्ध की कोई लालच,
कामना मेरी बस एक ही
बस सानिध्य तेरा मैं चाहूं।
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

देह से वास्ता टूटे मेरा,
श्वास जब अंतिम लूं मैं,
गोद में तेरे मेरा सिर रखके
मेरा नाम प्यार से लेना तुम
तब शायद एक पल में सदिया जी लूं मैं
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

ना गंगाजल देना मुझे,
ना देना तुलसी का पत्ता,
बस अपने अोष्ठ से जूठा करके
जलपान वो जूठा करवाना
बस वो जूठा नीर ही पीना चाहूं
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

चूम लेना ललाट मेरा प्यार से,
फ़िर ये लोचन बन्द होंगे,
कान तरसे उन शब्दों को,
उससे पहले तुम कह देना
बस इतना अंतिम बार सुनना चाहूं
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

रेशमी वस्त्र ना पहनाना,
ना कोई आभूषण चढ़ाना,
तुम बस दुपट्टा ओढ़ाकर,
प्रीत का कफ़न मुझे पहनाना,
बस मैं तेरा चौला मांगू
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

अर्थी पर जब लेटूं मैं,
कंधों पर जब चढ़ू मैं,
राह में तुम अंतिम ना चलना
हाथ मेरा थाम साथ दो घड़ी चलना
पुष्प मुझ पर अपने नाम का रखना
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

स्नेही परिजन से कहना,
राम को सत्य ना कहे वे,
जिसे मैं ने जिया था
मृत्यु के बाद भी जो अमर होगा
वह प्रेम मेरा सत्य कहना
इतना सुनना चाहूं मैं
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

अग्नि में मुझको जलाकर
राख मेरी प्रिय को सौंप देना
उनको गंगा ना बहाकर
प्रिय चरन में सौंप देना
हाँ ये अंतिम कर्म चाहूँ
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

इस जन्म ना हो सकूं तो,
अगले जन्म तेरा साथ पाऊं,
मेरे प्रेम की गाथा हर मुख से
मैं बस सुनना चाहूं
बस कविताएं मेरी लोगों तक पहुंचाना
बस इतनी सी मेरी तमन्ना है।

नष्ट यह देह होगा लेकिन यह आत्मा मृत्यु के बाद भी अमर हो जाएगी।

जब तक संसार में प्रेम है मेरी कविताओं के ज़रिए ये मुझे भी अमर कर जाएगी।

***


प्रकृति मैया की गोद में...

वो मीठी सी मिट्टी की महक,
वो सुनहरी और ताज़ी हवा
वो कल कल बहती नदियां
वो बहते हुए जरने
हरियाली चादर ओढ़े हुए वो धरती
हरे भरे खेत, वहीं है
प्रकृति मैया की गोद।

वो गांव की दौड़ती हुई सुबह,
वो गौधूली सुहानी सी शाम
कुल्हड़ वाले कप में चाय
मां के हाथ की रोटी,
ये सब कहां इन बड़े इमारतों में
गांव में ही है
प्रकृति मैया की गोद।

मीठी मीठी पक्षी की बोली
लोकगीत गाने वालों की टोली
प्रभातिया ही करता जहां
अलार्म का काम
वो आम के खट्टे मीठे टिकोले
वो पेड़ पर लगे टायरों वाले झूले वहीं है,
प्रकृति मैया की गोद।

वो लाली जो दूर क्षितिज तक जाके
नभ तक दिखती
जहां अनगिनत तारें टिमटिमाते है
वहां कि सौंधी सौंधी सी ख़ुशबू
ना जाने वो कैसे बदन में स्फूर्ति भर देती थी
वो ख़ुशबू में ही है बसी
प्रकृति मैया की गोद।

वो खेतों की पग डंडी
जहां खेल हम खेलते थे
वो खुले आसमान के नीचे
चारपाई लगा के हम सोते थे
दादी मां जहां कहानी सुनाती थी वहीं है,
प्रकृति मैया की गोद।

घर में लगे वो पेड़ो की
ठंडी हवा जब आती थी
किसी एयर कंडीशनर से भी तेज़
ठंड वो फैलाती थी
जहां सारे परिजन एक साथ
एक छत के नीचे मिलझुल रहते थे वहीं है
प्रकृति मैया की गोद।

जहां गाय बछड़े को जन्म दे,
वो एक त्यौहार बन जाता था
छोटी छोटी हर एक बात में
खुशियां जहां मिलती थी
वो गाव में ही है
प्रकृति मैया की गोद।

***


हत्या का भागीदार...


वो दिन मुझे आज भी
अच्छे से याद है
सर्दियां खत्म होने को थी
धूप के दिन शुरू होने को थे
जब मुझे घर में लाया गया
एक एक पाई जुटा कर
मेहनत से लगे पैसे से
घर के सबसे नए कमरे में
मुझे जगह दे दी गई
अपना काम करने के लिए
काम था एक अनोखा सा
हां बस अनवरत चलना
मै अपना काम करता रहा
मै कमरे को ठंडा कर देता
मगर लोगो के दिमाग की गर्मी का
इलाज नहीं था मेरे पास
सो एक दिन कुछ यूं हुआ
ज़रा सी बात पर
मेरे भीतर से विद्युत प्रवाह रोका गया
मुझे महसूस हुआ
अनचाहा भार जिसे मैं मुश्किल से
झेल गया
मगर जब भीड़ ने मुझे देखा
तो लगा मैं भी इसमें भागीदार हूं
समझ नहीं आता
मेरा खुद का वज़न
एक पसेरी से ज्यादा नहीं
तो मुझे क्यूं बनाया जाता है
एक कुंतल सहने के लायक
गर मुझमें ये योग्यता न होती
तो मैं इस घर की
तबाही का ज़िम्मेदार तो ना बनता
जिसमे मुझे आए
बमुश्किल साल भर हुआ
अब लोगो की नज़रे मुझे घूरती है
तो शर्म आती है
हां लोग मुझे घूरते है
क्या में हत्यारा हूं?
मैं वो पंखा हूं जो कल रात
एक हत्या का भागीदार था ।।


***


कविता


कविता लिखना आसान कहां होता है?
कवि ढलता है हर एक सांचे में
पहनता है हर कोई चोला
बदलता है मौसम को कुछ
कविता के हिसाब से
गरीब भी बनता है तवंगर भी
भीड़ में खड़ा होता है तो कभी धूप में
कभी बारिश में भीगता है
तो कभी ठंड में ठिठुरता है
कभी रोता है कभी हसता भी है
कभी छोटा बच्चा बन खेलता है
तो कभी प्रौढ बन विचार में डूब जाता है
रचयिता वे जो कविता का होता है
वो कभी एसी कविता रचता है कि
अगर वो भाव से ना पढ़ा जाए
तो कविता का पूरा मर्म बदल जाता है
अर्थ का अनर्थ हो जाता है
दिखती नहीं हैं कभी
कवि की वो मज़बूत जड़े
हम तो बस कविता को पहचानते हैं
उस पर उगे फूलों से
नमी चुराती है वो हमारी, तुम्हारी आंखों से,
नहीं रहता कभी कवि का बसंत एक सा
धूप छांव सा रहता है जीवन उसका
बहुत तल्लीनता अवशोषित करती है कलम
एक कविता बनाने में
वहीं कवि लिख देता है कभी भी कुछ भी
कविता कवि का वह जोखिम है
जो पहनने से पहले कवि
कलफ़ लगाता है शब्दों का
इत्र लगाता है भावों का
तब कहीं रचती है
एक सुंदर सी प्यारी सी कविता।।


***

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