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अमावस्या का राज़

अमावस्या का राज़

कृष्णा पक्ष का पंदरवा दिन यानी अमावस्या। अमावस्या आते ही शालू के घर में डर का माहोल छा जाता हे। उसकी वजह थी शालू का ३ साल का बेटा। अर्थव ३ साल का था पर अमावस्या की रात को शालू के घर में जो होता था वो नज़ारा शायद ही कोई देख पाता तो एक मां और बाप तो पता नहीं कैसे देखते होंगे?

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भदोही के नाजियाचोक में रहने वाली शालू और उसका पति शैलेन्द्र दोनों बहोत खुश थे अपने जीवन में। शादी के एक साल बाद ही दोनों के घर एक सुंदर सा नन्हा सा बाल गोपाल जो आया था। वक्त को गुजरते कहां देर होती है। देखते ही देखते उनका बेटा अर्थव पूरे २ साल का हो गया। २ साल तक तो सब कुछ ठीक था। पर असली तूफ़ान शुरू हुआ उसके बाद। अर्थव के दो साल के होने के कुछ दिनों बाद अमावस्या थी। गौधूली बेला होते ही अर्थव की तबियत बिगड़ ने लगी और वो बहोत कुछ बोलने लगा। साधारण तरीके से देखा जाए तो दो साल का बच्चा ज्यादा कहां बोलता है। पर अर्थव का केस कुछ अलग था। उसकी आंखें भयानक लाल थी, कभी ज़ोर ज़ोर से हसता तो कभी रो देता। तो कभी मंत्रोच्चार करता जिसे कभी शालू या शैलेन्द्र ने सुना तक नहीं था।

डॉक्टर को भी दिखाया था। पर उनके हिसाब से अर्थव बिलकुल ठीक था। उसे कोई बिमारी नहीं थी। डॉक्टर ने बताया की कभी कभी बच्चो को पूर्वजन्म याद आता है तो ऐसा होता है पर ये यकीन से कहना मुश्किल है। और अर्थव अभी छोटा बच्चा ही तो स्प्लिट पर्सनालिटी के केस के भी चांस बहोत कम है।

शालू और शैलेन्द्र पूरे ८ डॉक्टरों को दिखा चुके थे पर मिला कुछ नहीं था। जैसे जैसे दिन बीत रहे थे, अर्थव की तबियत और बिगड़ रही थी। पहली बार में जो हुआ था उसके छह महीने बाद अर्थव बिमारी का शिकार हो गया था। पूरा सिकुड़ गया था। कुछ बचा नहीं था उसके शरीर में। वो बीमार रहने लगा था। किसी ने सलाह दी के तांत्रिक बाबा को दिखाई शायद कुछ हो सके। और उन्होंने गांव के बहार ही किसी तांत्रिक बाबा को दिखाया और उस दिन नसीब से अमावस्या ही थी।

दोनों अर्थव को लेकर बाबा के पास शाम को ही पहोंच गए थे। सिकुड़ा हुआ, छोटा सा बच्चा, बुखार से तप रहा अर्थव अचानक से खुश हो कर बोलने लगता हे, उसकी बातें बड़ी अजीब सी थी। पर तांत्रिक बाबा समझ गए के होना हो ये जरूर किसी आत्मा का वास है या किसीने काला जादू किया है बच्चे पर।

तांत्रिक बाबाने अर्थव के अंदर जो शक्ति थी उसे अपने वश में करके उसे पूछा तो आत्मा ने बताया की वो जहां रहते है वो मेरा घर है और मैं यहां से कही नहीं जाऊंगी। मुझे मेरे पति ने वहां जिंदा जला दिया था इसी अमावस्या की रात को। तब से मुझे मुक्ति नहीं मिली। उसके प्राण तो मैंने ले लिए पर अब यहां कोई और नहीं रहेगा। ना ये बच्चा और न ये लोग। तांत्रिक बाबा ने उसे मुक्ति दिलाने का वचन दिया और उसे कहा की तुम्हारे साथ बुरा तुम्हारे पति ने किया और उसे तो तुमने मार डाला फ़िर इन बच्चों को क्यों परेशान करना?

आत्मा को पहली बार रोते हुए शालू ने देखा। उसके बेटे में छुपी आत्मा बोली। मुझे जलाया तब में पेट से थी। 😥

उसका दुःख सच में बेहद दुखदायी था पर अब क्या करे?

तांत्रिक बाबा ने उसे बहोत समझाया और उस आत्माने अर्थव के शरीर को छोड़ दिया पर शालू और शैलेन्द्र से वचन लिया कि, आज से आने वाली हर अमावस्या पर छत पर मेरे लिए स्वादिष्ट भोजन बनाकर रखें। और घर मेविधिवत मेरी मुक्ति के लिए हवन करवाए।

शालू और शैलेन्द्र उसकी बात मान गई। और आत्माने अर्थव का शरीर छोड़ दिया। अर्थव पूरा एक साल इस आत्मा के कारण हर अमावस्या को बहोत पीड़ा अनुभवता था। पर अब वो एक छोटे बच्चे की तरह हसने खेलने लगा है।

हवन तो घर में हो गया था पर आसपास के लोगों का कहना हे की अमावस्या की रात को कई बार उन्होंने शालू की छत पर किसी की परछाई देखी है।

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