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किताब या ...

किताब या ...

नमस्कार मित्रो और प्रतिलिपि एडिटर्स टीम। ये कहानी "शापित किताब" विषय पर लिखी हुई है। दरअसल ये कहानी तीसरे विषय शापित किताब विषय के अनुसार १७ अप्रैल को ही लिखी जाने वाली थी पर किसी तकनीकी परेशानी की वजह से १७ तारीख वाली कहानी दूसरे दिन यानी १८ अप्रैल को प्रकाशित हुई और इस वजह से वाइल्ड कार्ड एंट्री का हिस्सा बनने के लिए इस विषय पर ये मेरी दूसरी कहानी है। उम्मीद है आपको पसंद आएगी। और आप सब इसे मेरी शापित किताब विषय पर जो पहली कहानी थी उससे भी ज्यादा प्यार देंगे।

धन्यवाद।

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गौरव को एंटीक चीज़े इकठ्ठा करने का बड़ा शौख था। गौरव ने अपने घर में कई पुरानी और एंटीक चीज़े इकठ्ठा की था। जिनमें से कुछ एंटीक चीजों के एग्जिबिशन से खरीदी थी तो कुछ उसके नानाजी ने दी थी तो कुछ ऐसे ही कही गया हो और मिल गई हो वैसी थी। भोपाल में वो अकेला ही रहता था। उसकी मास्टर्स की पढ़ाई के साथ वो यहां पर नोकरी भी करता था। उसका पूरा परिवार इंदौर में रहता था। गौरव एक दिन अपने दोस्तों के साथ पिकनिक अपर लेक गया था। वहां उसे पानी में मस्ती करते वक्त एक किताब मिली। जो कि पूरी पानी में होने के बावजूद एकदम सुखी थी। वो किताब गौरव को बड़ी अजीब लगी। ऊपर से बाह्य रूप से वो किसी पुरानी किताब जैसी दिख रही थी। उसके ऊपर किसी नर्तकी का चित्र था और पीछे एक राजा का। पर वो कौन थे इस बात को तो गौरव नहीं जानता था। गौरव ने वो किताब अपने बैग में रख ली और पिकनिक खतम होने के बाद सब अपने अपने घर जाने लगे। गौरव भी अपने घर उस किताब को बेग में रखके ले जाने लगा। पुरे रास्ते पर उसे जल्दी थी घर जाकर बेग में रखी वो किताब देखने और पढ़ने की। वैसे तो पढ़ने का उसे ज्यादा शौख नहीं था। पर वो किताब बड़ी अजीब सी थी क्योंकि पानी में थी फिर भी एकदम सुखी थी और उसका वजन एकदम नहीवत था।

घर जाकर बेसबरी से गौरव ने वो किताब बेग से निकाली। अचानक उसे एहसास हुआ जैसे किताब का वजन बढ़ रहा हो। ओर तो ओर वहां ज़ोर ज़ोर से हवा चलने लगी। खिड़कियां अपने आप खुलने और बंद होने लगी। अचानक किसी ने गौरव के घर का दरवाजा खटखटाया। गौरव देखने गया पर उसने देखा वहां कोई नहीं था। उसने बहार जाकर आसपास भी आवाज दी पर कोई नहीं था। गौरव ने दरवाज़ा बंद किया और पीछे कुबेर जैसे ही मुड़ा उसे लगा जैसे उसके सामने से फटाक से दौड़ कर कोई गया। पर उसे वहां कोई नहीं दिखा। अब गौरव को बहोत डर लगने लगा था। क्योंकि अचानक उसके घर की लाइट चालु बंद होने लगी। गौरव ने बहोत कोशिश की सारी लाइट्स ऑफ़ करके भी देखा पर फिर भी सारे लाइट्स अपने आप चालु हो गए और फिर से अपने आप चालु बंद होने लगे। गौरव का डर बढ़ रहा था। उस किताब को वही छोड़कर गौरव दौड़कर अपने कमरे में चला गया।

गौरव अपने कमरे में आ कर सीधा अपना कम्बल ओढ़कर बिस्तर पर सो गया। कुछ देर तक एकदम शांति थी फिर अचानक उसका दरवाजा कोई ज़ोर ज़ोर से खटकाने लगा। उसका दिल बैठा जा रहा था। गौरव बहोत पैसे वाला था और इस वजह से भोपाल में भी अकेले होने के बावजूद उसने २ माले का घर लिया था। अभी इस हालत में पूरे घर में गौरव अकेला ही था। आज से पहले उसके साथ ऐसा हादसा कभी नहीं हुआ था। अचानक गौरव के कमरे का फेन और लाइट चालु हो गई। उसे अपने कमरे के बहार से अजीब अजीब आवाजें आ रही थी। हिम्मत करके गौरव बहार गया और उसने आसपास देखा पर कोई नहीं था वहां। जैसे ही गौरव ने पीछे कमरे की तरफ देख उसका दिल बैठ गया। दरवाज़े पर किसीके हाथ के धब्बों के निशान थे ऐसा लग रहा था मानों किसीने ज़ोर ज़ोर से दरवाजे को पीटा था। गौरव की सांसें बढ़ रही थी वो वापस कमरे में आया और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया। और वापस आ कर बिस्तर पर सो गया।

कुछ देर बाद उसके कानों में अजीब सी आवाज़ सुनाई दी जिसके कारण उसके कानों में दर्द होने लगा। उसे अचानक कुछ सुनाई देना बंद हो गया। गौरव की समझ में नहीं था कि आख़िर उसके साथ हो क्या रहा है। अचानक उसके कान में एक आवाज़ आई किसी बूढ़ी औरत की जिसने प्यार से कहा, "गौरव... गौरव।" गौरव ने कम्बल हटाया नहीं क्योंकि उसे डर लग रहा था। पर अपनेआप धीरे धीरे गौरव का कम्बल नीचे की तरफ खिसक रहा था और उसका डर ओर बढ़ रहा था। उसके बाद जो देखा गौरव ने उसका सीना ही बैठ गया। उसके ठीक बगल में बिस्तर पर वो किताब पड़ी हुई थी। गौरव को फ़िर से उस बूढ़ी औरत की आवाज सुनाई दी।

"गौरव कब तक भागोगे मुझसे? मैं कितने सालों से भटक रही थी। तुम मुझे यहां लाए हो अब मैं कही नहीं जाऊंगी तुम से दूर। चलो जल्दी से किताब खोलो और पढ़कर वही करो जो इसमें लिखा है। उठो बेटा।"

"कौन हो तुम? और मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? क्यूं तुम मेरे पीछे पड़ी हो? क्या चाहती हो तुम हां? मैं बाय किताब अभी बहार फेंक देता हूं। नहीं चाहिए मुझे ऐसी भूतिया किताब।"

इतना बोल कर गौरव ने एक झटके में किताब अपने कमरे की बाल्कनी से बहार फेंक दी। और वापस कमरे में आकर सो गया। पर वो कहां अंत था।

"बेटा गौरव किताब तुम उठाकर लाए हो अब इसे खोलकर पढ़ोगे नहीं तो कैसे चलेगा? मैं कही नहीं जाने वाले कहां ना तुमसे हांन?"

गौरव के सामने फ़िर वो किताब थी। उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था पर एक बूढ़ी औरत की आवाज़ सुनाई दे रही थी। गौरव कुछ समझ नहीं पा रहा था।

"क्या चाहती हो तुम?"

" यही के के ये किताब पढ़ते जाओ और उसमें लिखा सब करते जाओ बस।"

"फ़िर तुम मेरा पीछा छोड़ दोगी?"

बूढ़ी औरत ने हसकर बात टाल दी और किताब खोलने के लिए कहा।

गौरव ने जैसे ही किताब खोली वो खोलना पहला पन्ना चाहता था पर ख़ुद बखुद कोई ६८ नंबर का पन्ना खुला जिस पर कोई एड्रेस लिखा था और इंसान का नाम। गौरव ने पूछा, " अब इसका क्या मतलब है? और मैं किसी और पन्ने को क्यों। घुमा नहीं पा रहा हूं? ये बार बार यही पन्ना क्यों आ रुकता है?"

तब उस बूढ़ी औरत ने जवाब दिया, "ये किताब मैंने मरने के कुछ वक्त पहले ही वृद्धाश्रम में लिखी थी। इस में उन सब के नाम है जिन्होंने मुझे तंग किया था। इस किताब में मेरी आत्मा बसती है। अब तुम जा जाकर एक एक करके इन सबका खून करोगे। हां। समझे?"

"पागल हो गई हो तुम? मैंने आजतक एक चींटी तक नहीं मारी। मैं किसीका खून नहीं करूंगा।"

"तो फ़िर खुद मरना मेरे हाथों "

"तुम मुझे मार सकती हो तो उन सबको तुम ही मार दो मुझे क्यूं बीच में ला रही हो? मैंने क्या बिगाड़ा हे तुम्हारा?"

"तुम मुझे अपने साथ लाए हो तो हो तो ये काम तुम्हें ही करना होगा। मैं उन सबको नहीं मार सकती क्योंकि भले उन सबने मुझे परेशान किया तड़पाया और सोपारी देकर मेरी करोड़ों की जायदाद के लिए मुझे मरवा दिया। पर मैं उन्हें नहीं मार सकती। बस मैं भी उन्हें किसी और की मदद से मरवाऊंगी और वो काम तुम करोगे।"

"मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला। जो चाहो वो कर लो।"

गौरव उठकर किताब को हाथ में लिए नीचे गया और किताब को बेग में रख अपनी बाइक पर वापस अपर लेक आधी रात को आया और वो किताब वहीं पानी में फेंक दी। एक दिन तक सब नॉर्मल था। फ़िर रात को उसे उस बूढ़ी औरत की आवाज सुनाई दी और वो किताब उसके ऊपर पंखे की तरह मंडराती मिली। अब गौरव को रोना आ रहा था पर वो लाचार और बेबस था।

"डरो मत बेटा। तुम्हें मैं बताऊंगी कैसे तुम्हें उसका खून करना है फिर तुम्हें पुलिस पकड़ भी नहीं पायेगी। बस एक के बाद एक करके पूरे खानदान को मिटाना है तुम्हें या ख़ुद मरना है।"

गौरव रोते हुए बोलने लगा, " क्यूं मैंने वो किताब उठाई। क्यूं? प्लीज़ चली जाओ मुझसे ये सब नहीं होगा।"

गौरव बिस्तर से उठा और किताब को उसने रसोई में ले जाकर गेस पर जला दिया। पर बूढ़ी औरत ज़ोर ज़ोर से हस रही थी। क्योंकि किताब जल ही नही रही थी। जैसे उस दिन पानी में होने के बावजूद किताब सुखी थी वैसे ही जलाने पर भी नहीं जली। गौरव टूट चुका था। समझ नहीं पा रहा था क्या करे।

"मैं अपने मां बाप का एक लौटा बेटा हूं। प्लीज़ मुझे छोड़ दो। मुझे बक्श दो। तुम्हारा काम कोई और कर लेगा। मुझे जाने दो।"

"एक बार कर लो फ़िर आदत लग जाएगी और धीरे धीरे सब मर जाएंगे फिर मैं भी चली जाऊंगी।"

गौरव ने उसकी बात मान ली क्योंकि वो खुद मरना नहीं चाहता था। उसने फिर से किताब खोली तो वही पन्ना खुला। उस पर एड्रेस और नाम लिखा था। उस बूढ़ी ने गौरव को एक खंजर से उसका खून करने को कहा। गौरव को बहोत बुरा लग रहा था पर उसके पास और कोई चारा नहीं था।

भोपाल के उस एड्रेस पर गौरव पहुंचा। उसने देखा घर में शादी का माहोल है और जिसका खून करना था वो तो दुल्हा था। गौरव की हिम्मत नहीं हो रही थी ऐसा करने की। एक लड़की को शादी से पहले कैसे विधवा बनाता वो? सीधा सादा गौरव पूरा फस चुका था। गौरव चुपके से दुल्हे के कमरे में गया और उसे अकेले में कुछ बताने के बारे में कहा। उस बूढ़ी औरत के कहने पर ही वो सब कर रहा था। दिखाई नहीं दे रही थी पर वो गौरव पर नज़र रखे उसके आसपास ही थी। उस दुल्हे ने पूछा भी गौरव को कि मैं तुम्हें नही जानता शायद। क्या हम कॉलेज के दोस्त है या..। उसके आगे कुछ बोलने से पहले ही गौरव ने उसके पेट में खंजर भोंक दिया और वहां से खिड़की से निकल बहार चला गया।

गौरव अपनी बाइक बहोत तेजी से चलाए जा रहा था। उसकी आंखों से आसूं रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। पूरा कांप रहा था गौरव। उसे बुखार चढ़ गया था। घर जाकर वो फूट फूट कर बहोत रोया। उस निर्दयी बूढ़ी औरत ने उसे फिर से किताब खोलने को कहा। पर इस बार गौरव ने एक फैसला लिया था और अब उसको कोई रोक नहीं सकता था।

गौरव जानता था कि उसे आज नहीं तो कल पुलिस जरूर पकड़ लेगी और इसी लिए ये औरत तुम्हें कुछ नहीं होगा ऐसा जूठ बोलकर मुझसे सारे खून जल्द से जल्द करवाना चाहती है पर ऐसा मैं नहीं करूंगा अब। एक गलती हो गई और न जाने कितने पाप... अब नहीं।

गौरव ने उस बूढ़ी की बात मानकर किताब खोली उसमें आगे क्या करना था वो पढ़ा और अपनी बाइक पर निकल गया। उसने किताब अपने बैग में ही रखी थी। पहाड़ी इलाके में गौरव रहता था। गौरव ने जानबूच के अपनी बाइक खाई में गिरा दी और नीचे गिरते वक्त बोला, "मेरी आत्मा भी इस किताब में कैद रहेगी और तुम्हें और किसीकी जान नहीं लेने देगी बुढ़िया।"

गौरव के परिवार ने अपना एक लौता बेटा खोया। आज भी उस पहाड़ी से गुजरते वक्त कई लोगों ने किसी बूढ़ी और किसी नौजवान लड़के की बहस की आवाज़ें सुनी है। पर आश्चर्य की बात वो थी के ना गौरव की लाश न वो किताब न ही गौरव का बाइक या बेग किसीको मिला था। क्या गौरव जिंदा था क्या वो अभी भी उस किताब की बुढ़िया के कैद में था?

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