साथिया - 57 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 57

" क्या आपने पिता जैसे चाचा के लिए इतना भी नहीं कर सकती.!" अवतार बोले तो साँझ जमीन पर गिर रोने लगी।


रोते रोते थक गई पर किसी का कलेजा नहीं पसीजा।

अवतार और भावना ने उसे उठाया और घर के बाहर चल दिए प्रथाओ के नाम बलि चढ़ाने और अपनी औलाद और खुद की गलती की सजा एक मासूम को दिलाने।

सांझ की आँखों के आगे अंधेरा छा गया


" जज साहब... प्लीज बचा लीजिये मुझे !" उसकी बेहोश होते हुए घुटी सी आवाज निकली।


" सांझ...!! " उधर अक्षत ने घबरा के आँखे खोली।

शरीर पसीने पसीने हो गया था और दिल की धड़कन तेज चल रही थी।

"ऐसा लगा साँझ ने पुकारा मुझे... वो ठीक नही है। हँ वो ठीक नही है। मेरा दिल बैचैन है...!! वो मुझे बुला रही है..!! सांझ...!! कहाँ हो तुम...! "
उसने फोन उठाया और कॉल लगा दिया।

" सांझ प्लीज पिक अप द फोन..!!" पर अक्षत कोल करता रहा। पर न कोल पिक होना था न हुआ।


*********

* दो साल बाद*

दिल्ली अक्षत का घर...

अरविंद और साधना डाइनिंग हॉल मे नाश्ते के लिए आ चुके थे।


साधना साधना नाश्ता लग रही थी और और मनु उसकी मदद कर रही थी

"मनु बेटा यह अक्षत और इशु नहीं आया अब तक?" अरविंद ने मनु की तरफ देखकर कहा।


"जी अंकल वह बस आते होंगे...!! मैं देख कर आती हूं।" मनु बोली और उठकर जाने लगी।

"रहने दो थोड़ी देर में आ जाएंगे!!" अरविंद ने कहा तो मनु वापस बैठ गई।


"पता नहीं क्या किस्मत है मेरे दोनों बच्चों की? दोनों की जिंदगी एकदम से बदल गई। हंसते खेलते मुस्कुराते हुए जिंदगी चल रही थी। दोनों की जिंदगी में खुशियां और प्यार सब कुछ था कि अचानक से सब कुछ खत्म हो गया।

सांझ अचानक क्या गायब हुई ऐसा लग रहा है जैसे की खुशियां ही गायब हो गई हमारे बच्चों की जिंदगी से। अक्षत आज जज बन चुका है अपनी मनचाही पोस्टिंग मिल चुकी है उसे पर खुश नहीं है। अभी भी सांझ की यादों में खोया हुआ है। तो वही ईशान उसका तो रिश्ता तय था। शादी होने वाली थी पर अचानक से ही अबीर और मालिनी शालू को लेकर अमेरिका चले गए।

क्यों चले गए नहीं बताया पर ऐसा भी क्या बिजनेस या इमर्जेंसि कि इस तरीके से बीच में ही चले गए। और सबसे बड़ी बात ईशान और शालू के बीच कोई बातचीत नहीं होती। पता नहीं यह इंतजार और कितना लंबा रहेगा मेरे दोनों बेटों की जिंदगी में? " साधना ने भावुक होकर कहा।

मनु ने उसके हाथ के ऊपर हाथ रखा।


"हौसला रखिये आंटी...!! सब सही हो जाएगा। हर रात के बाद सुबह होती है आप ही तो कहती हो। और मुझे पूरा विश्वास है कि अक्षत और ईशान की लाइफ में सब सही होगा। सांझ भी जरूर वापस आएगी और शालू को तो आना ही है। बस उनकी कुछ फैमिली प्रॉब्लम और कुछ मेडिकल इमरजेंसी के चलते वो लोग चले गए हैं ,पर ऐसा तो नहीं है कि कभी वापस नहीं आएंगे दिल्ली। उनका यहां घर है कारोबार है तो वह सब देखने तो आएंगे ही आएंगे। " मनु बोली।


"हां बेटा मैंने पूरी जानकारी ली है। अबीर जी इन दो सालों में दो या तीन बार ही दिल्ली आए हैं अपने बिजनेस को देखने के लिए। बाकी सब कुछ उनके एम्पलाइज और उनका मैनेजर संभाल रहा है। पता नहीं ऐसी क्या प्रॉब्लम हुई है कि अचानक से सब चले गए। " अरविंद बोले।



"सिर्फ इतना ही पता है अंकल कि उस समय पर शालू की बहन जो कि उसकी बुआ के साथ रहती थी माही वो दिल्ली आ रही थी। और उसका एक जबरदस्त एक्सीडेंट हुआ था। और इस मेडिकल इमरजेंसी के चलते और माही का इलाज कराने के लिए यह लोग अमेरिका चले गए, क्योंकि उसकी कंडीशन बहुत क्रिटिकल थी। " मनु बोली।

"और यह बात भी तो सिर्फ शालू ने इशु को मैसेज करके बताई है। उसके बाद से ईशान इतना नाराज हो गया कि उसने शालू को कॉल भी नहीं किया उसके इस तरीके से जाने से वो हार्ट हुआ। अब क्या सच्चाई है यह तो कोई नहीं जानता पर जो उन लोगों ने कहा उस पर विश्वास है हमें तो। " अरविंद बोले।


"मैं तो कहती हूं कि हमें अक्षत नहीं तो कम से कम य इशु के बारे में सोचना चाहिए। आप कहीं और रिश्ते की बात चलाने की कोशिश कीजिये। अब कब तक उनका इंतजार करते रहेंगे हम?" साधना बोली।


"मैं तो कल ही दोनों का रिश्ता कर दूँ पर तुम्हें क्या लगता है इतना आसान है? हमारे दोनों बेटे उन दोनों लड़कियों को बेहद चाहते हैं।

दो साल हो गए हैं पर अब तक भूल नहीं पाए हैं। इस तरीके से क्या वह आगे बढ़ पाएंगे? और जब तक दिल में कोई और बसा हो तब तक नए रिश्ते की कोई गुंजाइश नहीं होती साधना। इस तरीके से तो हम अपने बच्चों के लिए और भी ज्यादा प्रॉब्लम खड़ी कर देंगे । " अरविंद बोले।


"पर आखिर करें भी तो क्या करें? " साधना परेशान होकर बोली।

" तुम स्ट्रेस न लो...!! चलो कोई बात नहीं है तब तक हम मे बिटिया की शादी के बारे में सोचते हैं। और मैंने तो एक दो लड़के देख भी रखे हैं। और मैं सोच रहा हूं कि हफ्ते दस दिन का टाइम लेकर उन लोगों को घर पर बुलाया जाए जिससे मुलाकात और बातचीत हो सके। आखिर जब तक अक्षत और ईशान शादी के लिए तैयार नहीं है तब तक हम मानसी की शादी कर सकते हैं । मानसी की शादी भी तो हमारी जिम्मेदारी है ना? " अरविंद ने कहा।

एक पल को मानसी की आंखों के आगे नील का चेहरा आ गया और आंखों में हल्के सी नमी। उसने तुरंत अपने आप को कंट्रोल कर लिया।।


"इतनी भी क्या जल्दी है मुझे भगाने की अंकल जी। अभी तो मैं आप लोगों के साथ और रहना चाहती हूं।" मनु अरविंद के गले लग कर बोली।

"अरे शादी करने का मतलब भागना नहीं होता है..! तुम हमारी बेटी हो और हमेशा हमारी बेटी रहोगी। पर बेटियों को भी जाना तो होता है ना ताकि किसी दूसरे के घर की रौनक बन सके। और यही सही उम्र होती है बच्चे घर बसाने की।


अक्षत और ईशान तो तैयार नहीं है पर अब तुम मना मत करो।।" अरविंद ने कहा।


"ठीक है अंकल जैसी आपकी इच्छा ?" मानसी बोली।


"अगर तुम्हें कोई पसंद हो तुम कहीं चाहती हो शादी करना तो तुम बेझिझक कह सकती हो। हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। हम बच्चों की खुशियां ही चाहते हैं।" साधना ने कहा।


मानसी को फिर से नील की याद आई पर उसने अपना सर झटक दिया।।

"एक तरफा मोहब्बत का कोई अंजाम नहीं होता है...!! और वह आज से नहीं सालों से उस रिया को प्यार करता है। दोनों का रिश्ता काफी आगे बढ़ चुका है और अब तो रिया के वापस आने का भी टाइम हो रहा है, तो अब मैं नील के बारे में कैसे सोच सकती हूं ? शायद मेरी जिंदगी में भी अक्षत और ईशान की तरह अधूरा ही प्यार है। " मनु ने मन ही मन सोचा और फिर साधना की तरफ देखा।


"नहीं आंटी ऐसा कुछ भी नहीं है...!! आप लोग जहां कहोगे मैं शादी कर लूंगी। मैं जानती हूं कि मेरा भला आप लोगों से बेहतर और कोई नहीं सोच सकता।" मानसी ने कहा।

साधना ने प्यार से उसका सिर सहलाया।

"आप लोग शुरू कीजिए मैं अक्षत और ईशान को बुलाकर लाती हूं।" मनु बोली और उठकर सीढ़ियां चढ़कर अक्षत और इशान के कमरे की तरफ चल दी पर आंखों में आंसू भर आए थे तो उनके कमरे में जाने से पहले अपने कमरे में चली गई ताकि खुद को नॉर्मल कर सके।



*ईशान का कमरा*

ईशान बालकनी में खड़ा अपने फोन में शालू का फोटो देख रहा था।


"कहा था ना तुम्हें की कभी भी मुझे बिना बताए कहीं मत जाना..!! तुम्हें बहुत चाहता हूं एक बार मुझे सच्चाई बताइ तो होती। एक बार मुझे कहा था होता कि तुम क्यों जा रही हो? मैं तुम्हारा साथ ही देता।

इस तरीके से बिना बताए तुम्हारा चले जाना मुझे तकलीफ दे गया शालू। और फिर तुम्हें मैंने पागलों की तरह पूरे दिल्ली शहर में ढूंढा पर तुम्हारा कहीं कोई अता पता नहीं मिला और आया तो एक महीने बाद तुम्हारा मैसेज आया कि तुम अपनी बहन माही का इलाज कराने के लिए अमेरिका चली गई हो अपने पेरेंट्स के साथ और कब वापस आओगे पता नहीं।


मैं मानता हूं कि माही तुम्हारी बहन है तुम्हे उसके बारे में चिंता होगी ।

पर क्या मैं तुम्हारा कुछ भी नहीं था?

तुमने एक बार मुझसे बात करना एक बार मुझसे मिलना भी जरूरी नहीं समझा।

इस तरीके से तुम कैसे जा सकतीं हो शालू? ना जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि यह सब भी जैसे झूठ हो ।

और सबसे बड़ी बात उसके बाद तुम्हारा मैसेज करके यह कहना कि मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाऊं,,क्योंकि तुम कब वापस आओगी नहीं पता है? आओगी भी कि नहीं आओगी यह भी तुम नहीं जानती...!! ऐसा कैसे हो सकता है? हम सालों से रिलेशन में थे। एक दूसरे के लिए सीरियस थे। हमारी सगाई हो चुकी थी फिर तुम इस तरीके से मेरे साथ कैसे कर सकती हो?

मैं तुमसे नाराज हूं बहुत नाराज चाहता हूं। चाहता हूं तुम्हें भूलाकर आगे बढ़ जाऊं पर यह कर नहीं पा रहा हूं। पर तुम्हें माफ भी नहीं कर सकता।

आगे बढूंगा कि नहीं बढूंगा भगवान जाने पर तुम्हें माफ कभी नहीं करूंगा, और शायद ना ही कभी भूल पाऊंगा।" ईशान ने शालू की फोटो देखते हुए कहा और फिर फोन बंद करके अपनी पॉकेट में डाल लिया।

गहरी सांस ली और खुद को नॉर्मल कर कमरे से बाहर चल दिया क्योंकि वह जानता था की साधना और अरविंद नाश्ते पर उसका इंतजार कर रहे।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव