साथिया - 56 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 56

"वह मैं आपको अभी...!" अवतार अभी इतना ही बोले थे कि गजेंद्र ने उनके हाथ से वह कागज और उसके साथ ही फोन ले लिया और पढ़ने लगे।

पढ़ते-पढ़ते उनका चेहरा कठोर हो गया और उन्होंने कागज निशांत के हाथ में थमा दिया।

निशांत ने उसे कागज को पढ़ा तो उसके आंखें भी लाल हो गई और चेहरा गुस्से के कारण काला।

"यह ठीक नहीं किया नेहा ने गलत किया..!" निशांत गुस्से से बोला तभी सुरेंद्र ने उसके हाथ से कागज लिया और पढ़ा तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक गई.!

"वो निकली कैसे? " गजेंद्र बोले!



" उसका फोन भी ले लिया था हमने पर शायद साँझ के फोन से बात कर ली उसने!" अवतार बोले और गजेंद्र के हाथ मे पकड़ा फोन देखा तो निशु ने पहले फोन और फिर गुस्से से साँझ को देखा और फिर फोन ले लिया।


"भाई साहब हम शांति से बात कर सकते हैं इस तरह गुस्से से नहीं। .निशु बेटा तुम बैठो पानी पियो हम आराम से बात करते हैं!" सुरेंद्र ने बात को संभालने की कोशिश करते हुए कहा।


" नहीं अब बात पंचायत में होगी यहां नहीं..!" निशांत बोला।

" हम आपस मे बात कर सकते हैं ना बेटा घर की बात को बाहर नीलाम मत करो!" अवतार ने हाथ जोड़ दिए।।


" ज़ब आपकी बेटी पर बात आई तो घर की बात हो गई और ज़ब मेरी बहन नियति की बात हुई थी तब वो गांव और पंचायत की बात थी..!" निशांत बोला तो अवतार ने भरी आँखों से उसे देखा।

नियति के बारे मे बात पंचायत के सामने ही हुई थी और अब भी बात पंचायत के सामने ही होगी..!" निशांत बोला।

" चलिए पापा गांव वालों और पंचो को बुलाते है निर्णय वहीं पर होगा। निशांत ने कहा और बाहर निकल गया।


उनके पीछे-पीछे ही गुस्से से अवतार को घूरते हुए गजेंद्र निकल गए।

सुरेंद्र ने अवतार के कंधे पर हाथ रखा और थपका और फिर वह भी बाहर निकल गए क्योंकि वह जानते थे कि अब जो भी निर्णय होना है वह पंचों का और पंचायत का होना है इसलिए उनके कुछ भी कहने ना कहने से कुछ नहीं होगा।




सब लोग बाहर निकल गए थे क्योंकि अब जो भी निर्णय होना था वह पंचायत में होना था और निर्णय पंच करने वाले थे।


कुछ महीन पहले जिस स्थिति में गजेंद्र सिंह और उनका परिवार था आज इस स्थिति में अवतार सिंह और उनके परिवार खड़ा था।

अब निर्णय पंचायत क्या करेगी यह अवतार सिंह बहुत अच्छे से जानते थे और इसी को सोचकर उनका दिल बैठ जा रहा था।

उन्होंने गहरी सांस ली और अपना गमछा कंधे पर डाला और बाहर जाने लगे कि तभी भावना ने उनके कंधे पर हाथ रखा अवतार ने उनकी तरफ पलट कर देखा।

" क्या निर्णय होगा पंचायत का? " भावना के चेहरे पर डर और आंखों में आंसू थे।

" जो भी निर्णय हो मानना तो पड़ेगा। कोशिश करूंगा कि कुछ बेहतर हो सके कम से कम से कम थोड़ी बहुत तो इज्जत बची रहे बाकी तो हमारी औलाद ने कहीं का नहीं छोड़ा हमें..!" अवतार बोले और बाहर निकल गए।

भावना वही अपना सिर पकड़ कर बैठ गई।


साँझ ने उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसने साँझ को गुस्से से देखा।

" तू तो उसके आसपास ही रहती थी ना तुझे भी पता नहीं चला कि वह कब चली गई और किसके साथ चली गई? "भावना ने गुस्से से कहा।

" नहीं चाची सच कह रही हूं मुझे कुछ भी नहीं पता अगर मुझे पता होता तो मैं उन्हें नहीं जाने देती है या आप लोगों को बता देती.. । मैं जब तैयार होने गई तब तक वह अपने कमरे में ही थी।" साँझ ने कहा।



" एक काम की नहीं तू कम से कम नजर तो रख सकती थी। जब दिख रहा था कि उसकी मर्जी नहीं है इस शादी में तब तु इतना तो हम लोगों के लिए कर सकती थी। इतना किया तेरे लिए बदले में तु इतना न कर सकी।" भवना ने कहा तो साँझ केआंखों में आंसू भर आए पर वह अभी कुछ नहीं बोली क्योंकि जानती थी कि इस समय कुछ भी कहने का कोई मतलब नहीं था।

उसने इधर-उधर नजर दौडाई पर उसका फोन उसे दिखाई नहीं दिया तभी उसे ध्यान आया की फोन तो निशु ले गया।



क्योंकि फोन के नीचे ही तो कागज रखा था और फोन अवतार सिंह ने लिया था और अवतार सिंह के हाथ से फोन और कागज अब निशांत के हाथ में जा चुका है।

"अब मेरा फोन भी चला गया अगर फोन होता तो मैं जज साहब से बात करके उनसे पूछती कि क्या करूं क्या ना करूं? कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या होने वाला है?" साँझ ने खुद से कहा और वह भी भावना के साथ दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई जहां सामने लगे पेड़ के नीचे पंचायत लगती थी और सभी लोग इकट्ठे होने लगे थे क्योंकि नेहा घर से चली गई है यह बात आग की तरह पूरे गांव मे फ़ैल गई थी।



क्या बातें हुई है और क्या नहीं यह तो भावना और साँझ को ज्यादा सुनाई नहीं दी और डर के मारे उनकी हिम्मत भी नहीं थी वहां आने की बस अचानक से उन्हें निशांत के गुस्से में चीखने की आवाज सुनाई देती थी।।


"यह मुझे बिल्कुल भी मंजूर नहीं है मुझे आप लोगों का यह निर्णय नहीं मानना...। मैंने जो कहा है सजा वही होगी!" निशांत बोला।

" शांत हो जाओ निशांत इस तरीके से गुस्से से नहीं किया जाता और न फैसला नहीं किए जाते हैं...।। ठीक है जो गलती हुई उसकी भरपाई तो इनका परिवार करेगा ही पर उस गलती को इस तरीके से सुधारा जा सकता है!" गजेंद्र सिंह ने समझाया।

" मैं बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करूंगा!" निशांत बोला।


तभी साँझ के फोन पर किसी का नोटिफिकेशन आया तो निशु ने फोन खोलकर देखा।

" मिस यु साँझ....!" अक्षत के मसेज को देखते ही निशांत की आंखे और लाल हो गई।

फोन खोलते ही कॉल हिस्ट्री में दो-तीन कॉल इनकमिंग और आउटगोइंग दिखाई दिए और निशांत को समझते देर नहीं लगी कि इसी फोन से नेहा ने बात की है और साथ ही अक्षत के मेसेज से उसे समझ आ गया की साँझ भी किसी के सम्पर्क मे है।

निशांत ने वह फोन अपने दोस्त के हाथ में दे दिया।

"इस फोन को ऐसी जगह पर पहुंचा दो कि किसी को पता ना चले कि यह कहां पर था और कहाँ है..?" .निशांत ने अपने दोस्त से कहा तो वह फोन लेकर बाहर में रोड पर आ गया और वहां से हाईवे पर जाते हैं एक ट्रक में उसने उसे फोन को फेंक दिया ताकि उसकी एग्जैक्ट लोकेशन कोई भी ड्रेस ना कर सके।

काफी गहामा गहमी हुई बातचीत हुई निशांत बार-बार गुस्से से आज उबल जा रहा था।

अवतार सिंह नजर झुकाए खड़े थे...। बार बार हाथ जोड़ माफी मांग रहे थे। .सुरेंद्र बार-बार कभी अवतार सिंह को तो कभी निशांत को समझा रहे थे और कभी अपने भाई गजेंद्र सिंह को।

पर सभी पंचों के चेहरे पर नाराजगी थी और सभी एकदम कठोर निर्णय लेने के पक्ष में थे और उन सबको निर्णय आग में घी का काम कर रहा था निशांत का गुस्सा और उसका बार-बार इस बात को गलत कहना और बार-बार यह कहना कि जब नियति के बारे मामले में कोई रियायत नहीं की गई तो अब क्यों रियायत की जा रही है और आखिर में पंचायत ने अपना फैसला सुना दिया।


निशांत ने कई बदलाव कराये और सजा को आपने मनमुताबिक कर लिया.

अवतार ने भी खुद की इज्जत और स्वार्थ देखा और निशांत और पंचायत की बात मान ली।


"ठीक है पर सजा पूरी करनी होगी इन लोगों को वरना मैं नहीं मानने वाला हूं!"निशान ने कहा।

"ठीक है हम सजा मानने को तैयार हैं पर पहले पहले जो एक सजा निर्धारित हुई है वह हो जाए दूसरी उसके बाद..। . बाकी आगे का भी हम कर देंगे..!" अवतार सिंह बोले।


ठीक है निशांत ने गर्दन हिलाई।

और तुरंत वहाँ कुछ कागज लेकर एक आदमी आ गया



"माफ करना मुझे भैया.. अपनी और भावना की इज्जत के खातिर आज आपकी बेटी को .....!" अवतार बोले और उस कागज़ पर हस्तकक्षर कर दिए।


पंचो ने भी साइन किया और उसी के साथ अवतार सिंह थके कदमों से अपने घर की तरफ चल दिए..!!


साँझ का दिल बैठ जा रहा था किसी अनहोनी के आशंका से पर उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर पंचायत में क्या फैसला हुआ और निशांत ने क्या शर्ते रखी है और क्या परिस्थितियों अवतार सिंह और उनके परिवार के सामने आने वाली है।।


अवतार सिंह घर के अंदर आए तो भावना ने उनकी तरफ देखा।


" क्या हुआ क्या क्या निर्णय लिया है पंचायत ने? " भावना ने कहा...

" इज्जत के बदले इज्जत मांगी निशांत ने!" अवतार सिंह ने धीमे से कहा।


" मतलब...?" भावना घबरा के बोली।


" जब लड़की इस तरह इज्जत उछाल के भाग जाती है तो सजा उसके परिवार को मिलती है।" अवतार बोले।

"तो क्या करना होगा? ' भावना ने घबरा के कहा।


नेहा की माँ यानी तुम्हे निर्वस्त्र कर पूरे गाँव मे घुमाने का निर्णय लिया था" अवतार बोले।

" मैं जान दे दूंगी पर ये नही हो सकता। " भावना चीखी और अंदर की तरफ दौड़ी तो अवतार ने उसे पकड़ लिया।

" पर मैंने हमारी इज्जत के बदले कुछ और सजा देने को कहा तो...!" अवतार बोले।

" तो...?" सांझ की घुटी सी आवाज निकली..!

अवतार ने कोई जवाब नहीं दिया और भरी आंखों से साँझ की तरफ देखा...।

साँझ का दिल बैठ गया।।

अवतार सिँह ने साँझ के आगे हाथ जोड़ दिए तो वही सांझ ने रोते हुए के इंकार में गर्दन हिला दि।


" तुम्हारी चाची को जीते जी मार देंगे।" अवतार बोले


" आप मुझे मार दीजिये पर ये नही होगा मुझसे चाचा जी !" सांझ बिखर गई।


" परिवार के लिए हमारे लिए ।" अवतार बोले।


" जान ले लीजिये आपके लिए न नही कहूंगी पर यूँ जीते जी न मारिये।" सांझ चीख के रो पड़ी।

पर अवतार और भावना ने उसे मजबूर कर दिया।


" क्या आपने पिता जैसे चाचा के लिए इतना भी नहीं कर सकती.!" अवतार बोले तो साँझ जमीन पर गिर रोने लगी।


रोते रोते थक गई पर किसी का कलेजा नहीं पसीजा।

अवतार और भावना ने उसे उठाया और घर के बाहर चल दिए प्रथाओ के नाम बलि चढ़ाने और अपनी औलाद और खुद की गलती की सजा एक मासूम को दिलाने।






* दो साल बाद*


क्रमशः

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव




( सूचना - इस कहानी मे दिखाये गए सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक है। इनका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से संबंध मात्र संयोग होगा। किसी जाती समुदाय या धर्म को ठेस पहुंचाना उद्देश्य नही। मै हर जाती धर्म और समुदाय का सम्मान करती हूँ। अगर किसी की भावना आहत हुई हो तो हाथ जोड़ क्षमा प्रार्थी हूँ। 🙏🙏रचना को मनोरंजन की दृष्टि से पढ़े।
मै इस तरह की मन्यताओ का पुरजोर विरोध करती हुँ जो महीलाओ को शोषित करती है। )


कहानी का ट्रैक अगले पार्ट से बदल जायेगा तो बस साथ रहिये क्योंकि अभी बहुत कुछ होना बाकी है।