साथिया - 51 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 51

अगले दिन सांझ गांव जाने के लिए बस में बैठकर निकल गई। उसने बस में बैठकर अक्षत को फोन किया।


" हाँ सांझ निकल गई तुम?" अक्षत ने पूछा।


" जी जज साहब..! बस यही बताने को फ़ोन किया आपको..!! सांझ बोली।


" अच्छा जी सिर्फ ये बताने को फोन किया बाकी याद नही आ रही थी मेरी।" अक्षत बोला।


" आप भी न जज साहब...!! कल ही बोला न कि आपको भूलती ही नही हूँ और जब तक मेरी साँसे नहीं है उनमे आपका नाम है। और जब तक दिमाग मे चेतना है आपको नही भूल सकती। अब सासों की डोर टूट जाए य...!" सांझ अभी बोल ही रही थी कि अक्षत की आवाज आई।।

" बस सांझ ये क्या फालतू का बोल रही हो। तुम्हें और मुझे बहुत लंबा जीना है। एक दूसरे के साथ जीना है।।। अभी इस तरीके की बातें दोबारा कभी मत करना वरना मैं नाराज हो जाऊंगा और फिर तुमसे बिल्कुल भी बात नहीं करूंगा।" अक्षत ने कहा।

" सॉरी जज साहब...!! वह तो बस ऐसे ही बोल दिया। ऐसे कहने से थोड़ी ना कुछ हो जाता है।" सांझ ने मासूमियत से कहा।

"पता है मुझे कहने से कुछ भी नहीं होता फिर भी कभी दोबारा मत कहना। भगवान करें तुम्हें मेरी भी उम्र लग जाए और तुम हमेशा मेरे साथ रहो।" अक्षत ने कहा।


" जी जज साहब वह तो मैं आपके साथ रहूंगी ही ना।। बस आप मेरे गांव से वापस लौटने का इंतजार कीजिए और मैं आपके ट्रेनिंग से लौटने का इंतजार करुंगी। उसके बाद हम दोनों हमेशा हमेशा साथ रहेंगे।" साँझ ने कहा।


" मै भी एक पल बस अपने वापस लौटने का इंतजार कर रहा हूं।" अक्षत बोला।

"अच्छा ठीक है अब आप ध्यान रखिए लौट कर आपसे बात करती हूं..!" सांझ बोली।



" ठीक है सांझ ध्यान से जाना और कुछ भी बात हो कोई भी परेशानी हो तुरंत मुझे बताना। कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं है और ना ही किसी से डरने की । एक बात हमेशा याद रखना कोई तुम्हारे साथ हो ना हो लेकिन हर समय हर परिस्थिति में मैं तुम्हारे साथ हूं । इसलिए कभी भी मुझे कुछ भी कहने से हिचकिचाना नहीं। हर बात खुलकर बताना।" अक्षत ने कहा।


" जी जज साहब आप हमेशा मुझे ऐसे ही समझाते हो और मैंने कहा है ना कि मैं आपसे कुछ भी नहीं छुपाऊंगी।" सांझ ने कहा और फिर कॉल कट कर दिया और नेहा के बारे में सोचने लगी।

तो वहीं दूसरी तरफ नेहा बेचैन थी उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें।

उसने आनंद को कॉल लगा दिया।

आनंद ने फोन उठाया।


"हेलो आनंद में नेहा बोल रही हूं..!"

"हां तुम्हारा नंबर सेव है बताओ क्या हुआ..?! आखिर में मेरी याद आ ही गई।" आनंद बोला।

"प्लीज आनंद इस समय पर बिल्कुल भी मजाक करने का मूड नहीं है..।" नेहा ने कहा।

"क्या हुआ इतना परेशान क्यों हो ? कुछ टेंशन है क्या? मुझे तो लगा तुम घर गई हो इस कारण वहां से मुझे कॉल नहीं किया तो मैंने भी फोन नहीं लगाया कि तुम बिजी होगी। पर तुम्हारी आवाज से ऐसा लग रहा है कि तुम बिजी नहीं परेशान हो।" आनंद ने कहा।

"आनंद मै बहुत परेशान हूं प्लीज हेल्प करो मेरी।" नेहा ने कहा।

"हां बोलो क्या करना है..?" आनंद बोला।




इससे पहले की नेहा आनंद को कुछ बता पाती अवतार सिंह ने पीछे से आकर उसके हाथ से फोन ले लिया।

नेहा ने घबराकर उनकी तरफ देखा।


अगले ही पल अवतार ने फोन को जमीन पर पटक दिया और फिर उसे उठाकर कचरे के डिब्बे में फेंक दिया.. नेहा उनके सामने आकर खड़ी हो गई...

"पापा प्लीज मैं बात ही तो कर रही थी..!" नेहा ने कहा..


" चटाक...!" एक जोरदार थप्पड़ अवतार सिंह ने नेहा के गाल पर रसीद कर दिया।

नेहा एकदम से जमीन पर गिर गई।


" मुझे सीखा रही हो? मुर्ख समझा है क्या? क्या मदद कर देगा वो बंबई का लड़का...! तीन दिन बाद ब्याह है तुम्हारा और तुम इस तरह की हरकत करोगी मैंने सोचा भी नहीं था...!" अवतार सिंह बोले

" पापा मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया...!!! वह मेरा दोस्त है बस उस बात कर रही थी...।।यहां के हाल-चाल बता रही थी!" नेहा ने कहा..

" मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि तुम क्या बात कर रही थी? तुम मुझसे मदद मांग रही थी मदद कर करने का क्या मतलब है? यहां पर तुम्हारे साथ कुछ गलत हो रहा है...? अत्याचार हो रहा है जो तुम उसे मदद मांग रही थी और तुम यह बात क्यों भूल जाती हो कि इस गांव में कोई भी बाहर का इंसान मदद नहीं कर सकता.... जब यहां पर पुलिस और कानून भी नहीं चलता है तो तुम्हारा वह मुंबई का दोस्त क्या मदद करेगा? क्यों तुम अपने साथ-साथ हम लोगों की भी ऐसी तैसी कराने पर तूली हुई हो.. कहा न तुमसे कि तुम्हारा मुंबई का कोई दोस्त यार नहीं आ सकता और ना ही अब तुम इस रिश्ते से इंकार से कर सकती हो और ना ही बाहर जा सकती हो... फिर किस तरह की मदद मांग रही थी तुम? " अवतार सिंह गुस्से से बोले..

" सच कह रही हूं पापा मैं ऐसा कुछ भी नहीं करने वाली थी मैं सिर्फ उस से हेल्प मांग रही थी...मुझे कुछ सामान मंगाना था मुंबई से उसके लिए और कुछ भी नहीं....!" नेहा ने रोते हुए कहा

" अब जो कुछ भी मांगना है यही से मंगाना है और जो कुछ भी होना है यहीं पर होना है...!! बहुत हो गया तुम्हारा! तीन दिन बाद शादी है और इस समय मुझे किसी भी तरीके का नाटक या बदनामी नहीं चाहिए...! कान खोलकर सुन लो तुम यह बात की गलती से भी कोई गलती नहीं होनी चाहिए वरना गांव वाले सजा तो बाद में देंगे उससे पहले मैं जान ले लूंगा!" अवतार ने गुस्से से कहा और बाहर निकल गए।

भावना ने आकर नेहा को अपने गले लगा लिया।


" मम्मी रोको ना पापा को....।" मुझे नहीं करनी है शादी...।।मैं नहीं कर पाऊंगी... ।।मुझे नहीं पसंद निशांत मैं उसके साथ नहीं रह पाऊंगी मम्मी प्लीज मम्मी इस तरीके से आप लोग मेरे साथ नहीं कर सकते मैं नहीं जी पाऊंगी ऐसे!" नेहा ने रोते हुए कहा

भावना की भी आंखों में आंसू बहने लगे. उसने नेहा के सिर पर हाथ रखा...

" हम कुछ नहीं कर सकते...। " भावना बोली.


" प्लीज मम्मी करो ना कुछ.। मै मर जाउंगी ऐसे तो....!" नेहा बोली...

" मैंने तुम्हें समझाया ना कि कुछ भी नहीं हो सकता तो जो है उसे स्वीकार करो ना बेटा... उसमें तुम खुश रहोगी.. अगर तुम इस तरीके से बार-बार करोगी तो तकलीफ तुम्हे ही होगी.. आज तो सिर्फ तुम्हारे पापा ने देखा तुम्हें बात करते हुए अगर पापा की जगह निशु या तुम्हारे ससुराल के किसी ने देख लिया तो बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी बेटा और तुम समझने की कोशिश करो....अब कुछ भी नहीं हो सकता जो तुम्हारी किस्मत में लिखा था वह होने जा रहा है और अब इसे कोई भी नहीं बदल सकता....इसलिए अच्छा है कि तुम खुशी-खुशी सब कुछ स्वीकार कर लो!" भावना ने नेहा को समझाया

पर नेहा कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी नहीं थी...।

"नहीं जीना मुझे ऐसी जिंदगी नहीं रहना मुझे यहां पर...!" नेहा ने कहा।


" बेटा ऐसी कोई भी बात मत करो जो कि तुम्हारे लिए और हम सबके लिए मुसीबत का कारण बन जाए... ।।समझने की कोशिश करो... । अब कुछ भी नहीं हो सकता!" भावना ने जैसे तैसे नेहा को समझाया और उसे उसके कमरे में छोड़ गई

पर नेहा बेचैन थी... अब उसका फोन भी टूट गया था और उसे अब समझ में नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करें और कैसे करें? पर कुछ भी हो उसे ना ही निशांत के साथ रिश्ता स्वीकार था और ना ही गांव की यह जबरदस्ती की मान्यताएं।


तीन दिन बाद शादी होनी थी और नेहा को समझ नहीं आ रहा था कि वह सारी चीजों को कैसे सही करें उसका दिमाग बहुत तेजी से चल रहा था पर उसके पास कुछ भी नहीं था जिससे कि वह खुद की मदद कर सके या किसी और से मदद ले सके...

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव