एक थी नचनिया - (अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया - (अन्तिम भाग)

कुछ ही देर में मोरमुकुट सिंह उस अँधेरी रात में खण्डहर मिल में पहुँच गया,उसकी मोटर कार अब उस सुनसान जगह पर मिल के सामने खड़ी थी,उस मिल में से कुछ रोशनी आ रही थी,ऐसा लग रहा था कि जैसे जुझार सिंह अपने गुण्डों के साथ मोरमुकुट सिंह का इन्तज़ार कर रहा था,वे चारो कार से उतरे और उन्होंने सबसे आगे शुभांकर को किया,जिसके हाथ बँधे थे और मुँह पर भी पट्टी बँधी थी और फिर मोरमुकुट सिंह ने शुभांकर की गर्दन पर चाकू भी रखा,ये उन लोगों की योजना थी,वे धीर धीरे आगे बढ़ने लगे,तभी जुझार सिंह अपने दो गुण्डों के साथ मिल के बाहर आया,शायद उसने कार की आवाज़ सुन ली थी,इसलिए वो बाहर आ गया था,लेकिन जैसे ही उसने अपने बेटे की वैसी हालत देखी तो परेशान हो उठा , तब वो मोरमुकुट सिंह से बोला....
"डाक्टर! ये तूने ठीक नहीं किया,अब तुझे इसका बहुत बुरा अन्जाम भुगतना पड़ेगा,तू ये मत समझ कि तू ये बाजी जीत गया,अभी तू जुझार सिंह को जानता नहीं है,हारी हुई बाजी को कैंसे जीतना है ये जुझार सिंह को बहुत अच्छी तरह से आता है"
"कुछ भी हो अभी तो बाजी मेरे हाथ में है ना!",मोरमुकुट सिंह बोला...
"डाक्टर! बाजी पलटने में ज्यादा देर नहीं लगेगी,क्योंकि मेरे एक हुकुम पर मेरे गुण्डे कस्तूरी और खुराना का काम तमाम कर सकते हैं,इसलिए भलाई इसी में है कि मेरे बेटे को मेरे हवाले कर दो",जुझार सिंह बोला...
"और मैं तेरे बेटे को तेरे हवाले ना करूँ तो"मोरमुकुट सिंह बोला....
"तो फिर तू जो ये मोर बना घूम रहा है ना तो तेरे पर कतरने में भी मुझे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा,तू ये कैंसे भूल गया कि मैं इस खेल का एक माहिर खिलाड़ी हूँ और आज तक नहीं हारा ",जुझार सिंह बोला...
"ठीक है तो ले जा अपने बेटे को,लेकिन इसके बदले में कस्तूरी और खुराना साहब को रिहा कर दे" मोरमुकुट सिंह बोला...
"उन दोनों को ले जाने के लिए तो तुझे मिल के भीतर चलना होगा",जुझार सिंह बोला....
अब मोरमुकुट के साथ माधुरी,मालती को भी उस खण्डहर मिल के भीतर जाना पड़ा,वे सभी भीतर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि कस्तूरी और खुराना साहब को उन लोगों ने बाँध रखा है,दोनों की आँखों पर काली पट्टी बँधी है,उन दोनों की हालत देखकर मोरमुकुट ने जुझार सिंह से कहा....
"पहले इन लोगों के आँखों की पट्टी खोल"
और फिर जुझार सिंह के कहने पर एक गुण्डे ने कस्तूरी और खुराना साहब के आँखों की पट्टी खोल दी तब जुझार सिंह कस्तूरी के सामने आकर बोला....
"जीभर के देख ले अपनी मासूका को,क्या पता फिर तुम दोनों जिन्दा रहो ना रहो"
और जैसे ही कस्तूरी ने जुझार सिंह की शकल देखी तो उसे पुराना सबकुछ याद आ गया और जोर से चीखी....
"तू! अब तक जिन्दा है,मेरी इज्जत के साथ खिलवाड़ करने वाले,मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ूगी"
"ओह....तो तेरा पागलपन ठीक हो गया,अच्छा ही हुआ,तू अब अपनी बहन और आशिक की मौत देखकर फिर से पागल हो जाएगी"
और ये कहकर जुझार सिंह हँसने लगा,फिर उसने पिस्तौल मोरमुकुट की कनपट्टी पर रखते हुए कहा कस्तूरी से पूछा....
"बोल! पहले किसे मारूँ,तेरी बहन को , तेरे आशिक को या फिर तेरी भाभी मतलब रुपतारा रायजादा को,ये रामखिलावन की बीवी है ना जो रुपतारा रायजादा बनी थी,आज मैं तेरी सारी एक्टिंग निकाल दूँगा,बहुत नखरे दिखाती थी मुझे,बहुत बेइज्ज़ती करती थी मेरी,"
"जुझार सिंह! मैंने तो तेरी बेइज्जती बहुत कम ही की थी और जो तूने दूसरों के साथ किया है उसका क्या",मालती बोली....
"ज्यादा मत बोल,नहीं तो एक गोली में तेरी जुबान बंद कर दूँगा",जुझार सिंह मालती से बोला...
"बाबूजी! ये सब मत कीजिए,आप क्यों इन सबकी जान लेने पर आमादा हैं",शुभांकर बोला....
"ये सब मेरे दुश्मन हैं और इन सबने मिलकर मेरे खिलाफ साजिश रची थी",जुझार सिंह बोला....
"और आपने जो कस्तूरी के साथ किया था,वो क्या जायज था,एक हँसती खिलखिलाती लड़की को आपने अपनी हवस का शिकार बनाकर उसकी जिन्दगी बर्बाद कर दी",शुभांकर बोला...
"तो इसका मतलब है कि तुझे सब मालूम है",जुझार सिंह ने शुभांकर से पूछा....
"कुकर्म लाख छुपाने पर भी नहीं छुपते बाबूजी! अब आपकी भलाई इसी में है कि आप अपने गुनाह कुबूल करके इन सबसे माँफी माँगकर खुद को पुलिस के हवाले कर दें",शुभांकर बोला...
"ये हरगिज़ नहीं हो सकता,तू मेरा बेटा होकर ऐसी बात कह रहा है",जुझार सिंह गरजा...
"नहीं! मैं तो केवल आपकी भलाई की बात कर रहा था और ऐसा करने में ही आपकी भलाई है",शुभांकर बोला...
"तू मुझे ज्यादा ज्ञान मत दे,मुझे अच्छी तरह मालूम है कि मेरे लिए क्या सही है और क्या गलत",जुझार सिंह बोला....
"जुझार सिंह ! मान ले अपने बेटे की बात,खुद अपने हाथों अपनी कबर मत खोद",मोरमुकुट सिंह बोला....
और मिल के भीतर सभी के बीच ऐसे ही बहस चल रही थी और तभी रामखिलावन,दुर्गेश ,श्यामा और रागिनी भी उस मिल के काफी नजदीक आ पहुँचे थे,तब दुर्गेश रामखिलावन से बोला....
"बाऊजी! हम कार यहीं खड़ी कर देते हैं,क्योंकि कार के शोर से जुझार सिंह को हमारे पहुँचने की भनक लग जाऐगी",
"हाँ! दुर्गेश ठीक कहता है रामखिलावन भइया!",श्यामा बोली...
"हाँ! यही सही रहेगा,अब हम सब कार से उतरकर पैदल ही खण्डहर मिल की ओर चलते हैं",रागिनी बोली...
और फिर सब खण्डहर मिल की ओर चल पड़े,श्यामा और रागिनी अपने डाकूओं वाले वेष में वहाँ पहुँची थीं,वे मिल के पास पहुँचे तो उन्होंने देखा कि मिल के बाहर दो गुण्डे पहरा दे रहे हैं और गुण्डो से निपटने के लिए रागिनी और श्यामा आगें आई,जो कि उन गुण्डो से निपटना उनके बाँए हाथ का काम था,कुछ देर में ही उन दोनों ने उन गुण्डो को वहीं पर ढ़ेर कर दिया,फिर वे सब सावधानीपूर्वक मिल के भीतर पहुँचे और उस समय भी जुझार सिंह उन सभी से बकवास कर रहा था,रागिनी फुर्ती से जुझार सिंह के पास पहुँची और उसे जोर से पीछे से धक्का दिया,जिससे जुझार सिंह के हाथ की पिस्तौल छूटकर नीचे गिर गई और फिर उस पिस्तौल को श्यामा ने फुर्ती से उठाते हुए कहा....
"और जुझार सिंह कैसा है तू!"
"तुम कौन हो ",जुझार ने श्यामा से पूछा....
"तेरी मौत",श्यामा बोली....
रामखिलावन जुझार सिंह के सामने आकर बोला....
"यही श्यामा डकैत हैं,इन्हीं के डर से तू उस वक्त कलकत्ता भाग गया था,तब से ये तेरा इन्तजार कर रही हैं"
"तो ये श्यामा डकैत है"जुझार सिंह बोला....
"हाँ! ये श्यामा डकैत और मैं रामकली यानि की रागिनी डकैत,मैं इतने दिनों से तेरे साथ काम कर रही थी और तू ने मुझे पहचाना ही नहीं",रागिनी बोली...
"इतना बड़ा धोखा",जुझार सिंह बोला...
"धोखेबाजों को धोखा ही दिया जाता है जुझार सिंह! हम दोनों इतने दिनों से तेरे साथ काम कर रहे थे और तुझे पता ही नहीं चला",श्यामा बोली....
"तो तुम रामकली की बड़ी बहन चंपा थी",जुझार सिंह बोला...
"हाँ! मैं ही श्यामा हूँ और मैं ही चंपा हूँ",श्यामा बोली....
"जुझार सिंह! तुझसे बदला लेने के लिए हम लोगों ने सालों का इन्तजार किया है",रामखिलावन बोला...
"तू इतना नमकहराम निकलेगा,ये मैंने कभी नहीं सोचा था,तुझे तो मैं जिन्दा नहीं छोड़ूगा",जुझार सिंह रामखिलावन से बोला...
"बाबूजी! यही सही वक्त है,भगवान के लिए इन सबसे अपने गुनाहों की माँफी माँग लीजिए",शुभांकर जुझार सिंह से बोला....
"हाँ! बेटा! शायद तू ठीक कहता है,मुझे आप सब माँफ कर दीजिए"
और ऐसा कहकर जुझार सिंह श्यामा के कदमों की ओर झुका और उसके हाथ से पिस्तौल छीनकर उसे जोर का धक्का दे दिया,अब फिर से पूरी बाजी जुझार सिंह के हाथों में थी और वो श्यामा से बोला....
"श्यामा! तेरे जैसे कितने भी डकैत क्यों ना आ जाएँ,जुझार सिंह मरते मर जाएगा लेकिन किसी से माँफी नहीं माँगेगा"
और ऐसा कहते हुए उसने मोरमुकुट सिंह पर गोली चलानी चाही तो शुभांकर ने अपने पिता के हाथ पर जोर का वार किया जिससे उसके हाथ से पिस्तौल छूटकर दूर जा गिरा,तब जुझार सिंह ने अपने गुण्डो को हुक्म देते हुए कहा....
"खड़े खड़े मेरा मुँह क्या देख रहे हो,तुम्हें किस बात का पैसा दिया है मैंने",
और इतना कहते ही सभी गुण्डे उन सब पर जूझ पड़े,लेकिन वे सब भी कहाँ कमजोर थे,वे सब भी गुण्डो पर टूट पड़े,इस भगदड़ में जुझार सिंह के लगभग ज्यादातर गुण्डे घायल हो चुके थे और जो बचे थे तो उनसे सभी लोग अभी भी निपट रहे थे और तभी जुझार सिंह के हाथ में पिस्तौल आई और उसने एक हवाई फायर करते हुए सभी से कहा....
"अब जो जहाँ है वहीं खड़ा हो जाए,"
और ऐसा ही हुआ,फिर जुझार सिंह ने कस्तूरी को पकड़ा और उसकी कनपटी पर पिस्तौल रखकर सभी से बोला....
"अगर किसी ने भी मेरा रास्ता रोकने की जुर्रत की तो मैं इस लड़की का भेजा उड़ा दूँगा"
और ऐसा कहकर वो कस्तूरी को लेकर मिल से भागकर बाहर आ गया और उसके पीछे पीछे सभी लोग भी बाहर आए,तब मोरमुकुट सिंह बोला....
"रुक जा जुझार सिंह! ऐसा मत कर ,ये सब करके तुझे कुछ भी हासिल नहीं होगा",
मोरमुकुट सिंह की बात सुनकर जुझार सिंह ने मोरमुकुट सिंह पर गोली चला दी और मोरमुकुट सिंह को बचाने के लिए श्यामा उसके सामने आ गई और गोली श्यामा को जा लगी,गोली लगते ही श्यामा लहूलूहान होकर धरती पर गिर पड़ी,अब श्यामा की हालत देखकर रागिनी कहाँ चुप रहने वाली थी,उसने अपनी बंदूक से जुझार सिंह पर निशाना साधा और बंदूक में मौजूद सभी गोलियाँ उसने जुझार सिंह के सीने पर उतार दीं, अब जुझार सिंह भी घायल होकर धरती पर जा गिरा और तब शुभांकर भागकर अपने पिता के पास गया,लेकिन तब तक जुझार सिंह दम तोड़ चुका था .....
और इधर श्यामा भी बस दम तोड़ने वाली थी,उसने सबकी ओर प्यार भरी नजरों से देखा और कस्तूरी की गोद में ही अपना दम तोड़ दिया.....
श्यामा के दम तोड़ते ही सभी फूट फूटकर रोने लग गए,श्यामा ने मोरमुकुट सिंह को बचाते हुए अपनी जान देदी थी,बड़े ही दुखी मन से सभी ने श्यामा का अन्तिम संस्कार किया और इधर रागिनी ने आत्मसमर्पण कर दिया,जब पुलिस को ये पता चला कि जुझार सिंह भी एक बहुत बड़ा मुजरिम था ,कस्तूरी की जान बचाने की खातिर ही रागिनी ने जुझार सिंह पर गोलियाँ चलाई थीं तो उसकी सजा कुछ कम हो गई ,इसके बाद जेलर बृजभूषण परिहार ने रागिनी से माँफी माँगी,जिससे रागिनी ने उन्हें माँफ भी कर दिया...
फिर कुछ दिनों बाद बड़े ही धूमधाम से कस्तूरी और मोरमुकुट सिंह का ब्याह हो गया और उन दोनों के ब्याह के कुछ समय के बाद शुभांकर और माधुरी का भी ब्याह हो गया,अब माधुरी ने खुराना साहब का थियेटर छोड़ दिया था क्योंकि खुराना साहब को अब माधुरी से भी ज्यादा काबिल लड़की मिल गई थी,इधर शुभांकर का इतना बड़ा व्यापार था इसलिए उसे सम्भालने के लिए उसने रामखिलावन और दुर्गेश को अपने यहाँ रख लिया,इधर दुर्गेश और यामिनी भी एक दूसरे को पसंद करने लगे थे.....
शुभांकर का ये मानना था कि उसके पिता ने जो अपराध किए थे उसकी उनको वही सजा मिलनी चाहिए थी,इसलिए रागिनी के प्रति उसके मन में कोई भी दुर्भावना नहीं थी,इधर जेलर साहब ने रागिनी के बेटे के लिखाई पढ़ाई की जिम्मेदारी अपने काँधों पर ले ली थी,ऐसे ही दिन गुजर रहे थे और दस साल यूँ ही बीत गए,अब तक मोरमुकुट और कस्तूरी के दो बच्चे हो चुके थे,बेटी आठ साल की थी और बेटा पाँच साल का,इधर माधुरी और शुभांकर की भी एक बेटी पैदा हो चुकी थी जो अभी दो साल की ही थी,दुर्गेश और यामिनी की शादी भी हो चुकी थी....
उस दिन रागिनी के जेल से रिहा होने का दिन था और सभी उसे जेल में लेने पहुँचे,रागिनी का बेटा भी उसे लेने आया था और जब रागिनी जेल से बाहर आई तो कस्तूरी बोली....
"रागिनी जीजी! अब से आप हमारे साथ रहेगीं",
"नहीं! कस्तूरी! मुझ जैसी मुजरिम को तुम लोगों के घर नहीं रहना चाहिए,जमाना दस तरह की बातें करेगा",
"जीजी! मुझे इस बात से कोई फरक नहीं पड़ता",कस्तूरी बोली....
"लेकिन मुझे फरक पड़ता है",रागिनी बोली....
"अगर अब सभी ने रागिनी की मरजी जान ली हो तो मैं कुछ बोल सकता हूँ",जेलर बृजभूषण परिहार बोले...
"जी! कहिए!",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले...
"मैं ये कहना चाहता था कि अगर रागिनी राजी हो तो मैं उसका हाथ थामना चाहता हूँ,जो काम अधूरा रह गया था उसे मैं अब पूरा करना चाहता हूँ,मुझसे जो गलती हो चुकी थी उसे सुधारना चाहता हूँ",जेलर बृजभूषण परिहार बोले....
"ये तो बहुत अच्छा विचार है,तब तो रागिनी को फौरन हाँ कर देनी चाहिए",मालती भाभी बोली....
"बोलो रागिनी जीजी! करोगी ना जेलर साहब से ब्याह",कस्तूरी ने पूछा....
"लेकिन मैं मुजरिम हूँ और इस उम्र में ब्याह....",रागिनी बोली....
"तो क्या हुआ? जेलर साहब अब तक तुम्हारा इन्तजार कर रहे हैं,इसका मतलब है कि वे तुम्हें अब भी चाहते हैं",माधुरी बोली....
और फिर सभी के मनाने पर रागिनी जेलर साहब से ब्याह करने को राजी हो गई,तब तक रागिनी के बच्चे की माँ जिसे उसने गोद लिया था वो किसी बिमारी में चल बसी थी इसलिए अब रागिनी का बेटा फिर से उसके साथ रहने लगा था,इस तरह से सभी खुशी खुशी रहने लगे....
तो ये थी एक नचनिया की कहानी....🙏🙏😊😊

समाप्त.....
सरोज वर्मा....